Thursday, 22 May 2014

शुभ प्रभात दोस्तों .......जय माता दी!!जय श्री राधे कृष्णा !!
श्री लक्ष्मी ध्यान मन्त्र :
"अरुण कमल संस्था तद्रज: पुंजवर्णा
कर कमल धृतेष्टा भीती युग्माम्बुजा च !
मणि कटक विचित्राकल्प्जालै: 
सकल भुवन माता संततं श्री: श्रियै नम:
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री महालक्ष्म्ये नम:
जय माँ महामाया महालक्ष्मी
आप पर सदा अपनी कृपा बनाये रखें....
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श्री लक्ष्मीसूक्त 


ॐ ॥ हिर॑ण्यवर्णां॒ हरि॑णीं सु॒वर्ण॑रज॒तस्र॑जाम् । च॒न्द्रां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥
तां म॒ आव॑ह॒ जात॑वेदो ल॒क्ष्मीमन॑पगा॒मिनी॓म् ।
यस्यां॒ हिर॑ण्यं वि॒न्देयं॒ गामश्वं॒ पुरु॑षान॒हम् ॥
अ॒श्व॒पू॒र्वां र॑थम॒ध्यां ह॒स्तिना॓द-प्र॒बोधि॑नीम् ।
श्रियं॑ दे॒वीमुप॑ह्वये॒ श्रीर्मा दे॒वीर्जु॑षताम् ॥
कां॒ सो॓स्मि॒तां हिर॑ण्यप्रा॒कारा॑मा॒र्द्रां ज्वलं॑तीं तृ॒प्तां त॒र्पयं॑तीम् ।
प॒द्मे॒ स्थि॒तां प॒द्मव॑र्णां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥
च॒न्द्रां प्र॑भा॒सां य॒शसा॒ ज्वलं॑तीं॒ श्रियं॑ लो॒के दे॒वजु॑ष्टामुदा॒राम् ।
तां प॒द्मिनी॑मीं॒ शर॑णम॒हं प्रप॑द्ये‌உल॒क्ष्मीर्मे॑ नश्यतां॒ त्वां वृ॑णे ॥
आ॒दि॒त्यव॑र्णे तप॒सो‌உधि॑जा॒तो वन॒स्पति॒स्तव॑ वृ॒क्षो‌உथ बि॒ल्वः ।
तस्य॒ फला॑नि॒ तप॒सानु॑दन्तु मा॒यान्त॑रा॒याश्च॑ बा॒ह्या अ॑ल॒क्ष्मीः ॥
उपैतु॒ मां दे॒वस॒खः की॒र्तिश्च॒ मणि॑ना स॒ह ।
प्रा॒दु॒र्भू॒तो‌உस्मि॑ राष्ट्रे॒‌உस्मिन् की॒र्तिमृ॑द्धिं द॒दादु॑ मे ॥
क्षुत्पि॑पा॒साम॑लां ज्ये॒ष्ठाम॑ल॒क्षीं ना॑शया॒म्यहम् ।
अभू॑ति॒मस॑मृद्धिं॒ च सर्वां॒ निर्णु॑द मे॒ गृहात् ॥
ग॒न्ध॒द्वा॒रां दु॑राध॒र्षां॒ नि॒त्यपु॑ष्टां करी॒षिणी॓म् ।
ई॒श्वरीग्ं॑ सर्व॑भूता॒नां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥
मन॑सः॒ काम॒माकूतिं वा॒चः स॒त्यम॑शीमहि ।
प॒शू॒नां रू॒पमन्य॑स्य मयि॒ श्रीः श्र॑यतां॒ यशः॑ ॥
क॒र्दमे॑न प्र॑जाभू॒ता॒ म॒यि॒ सम्भ॑व क॒र्दम ।
श्रियं॑ वा॒सय॑ मे कु॒ले मा॒तरं॑ पद्म॒मालि॑नीम् ॥
आपः॑ सृ॒जन्तु॑ स्नि॒ग्दा॒नि॒ चि॒क्ली॒त व॑स मे॒ गृहे ।
नि च॑ दे॒वीं मा॒तरं॒ श्रियं॑ वा॒सय॑ मे कु॒ले ॥
आ॒र्द्रां पु॒ष्करि॑णीं पु॒ष्टिं॒ सु॒व॒र्णाम् हे॑ममा॒लिनीम् ।
सू॒र्यां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥
आ॒र्द्रां यः॒ करि॑णीं य॒ष्टिं पि॒ङ्ग॒लाम् प॑द्ममा॒लिनीम् ।
च॒न्द्रां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं॒ जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥
तां म॒ आव॑ह॒ जात॑वेदो ल॒क्षीमन॑पगा॒मिनी॓म् ।
यस्यां॒ हिर॑ण्यं॒ प्रभू॑तं॒ गावो॑ दा॒स्यो‌உश्वा॓न्, वि॒न्देयं॒ पुरु॑षान॒हम् ॥
ॐ म॒हा॒दे॒व्यै च॑ वि॒द्महे॑ विष्णुप॒त्नी च॑ धीमहि । तन्नो॑ लक्ष्मीः प्रचो॒दया॓त् ॥
श्री-र्वर्च॑स्व॒-मायु॑ष्य॒-मारो॓ग्य॒मावी॑धा॒त् पव॑मानं मही॒यते॓ । धा॒न्यं ध॒नं प॒शुं ब॒हुपु॑त्रला॒भं श॒तसं॓वत्स॒रं दी॒र्घमायुः॑ ॥
ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥

Thursday, 15 May 2014

शुभ दुपहरिया वंदन   दोस्तों।। जय श्री कृष्णा ....जय श्री राम ...!!
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        आर्य कौन थे? आर्य भारत के हिमालय से हिन्दूकुश तक के क्षेत्र में रहने वाले लोग थे। यहीं से वे संपूर्ण जम्बूद्वीप पर फैल गए। क्यों? क्योंकि यह देव और असुरों की लड़ाई थी। देव और असुर कौन थे? ये आर्यों के ही दो वर्ग थे। उन्हीं में दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष, किन्नर और नाग हुए। देव और असुरों में झगड़ा क्यों था? इसलिए कि देव उन नियमों को मानते थे, जो ऋग्वेद में थे और असुर नहीं मानते थे। पहले ऋग्वेद ही होता था फिर इससे यजुर्वेद बना। फिर सामवेद और ‍अंत में अथर्ववेद। वेद किसने लिखे? प्रारंभिक जातियां- सुर और असुर कौन थे? भारतीय दर्शन और योग हिन्दू धर्म : आर्य शब्द का अर्थ वेद ईश्वर की वाणी है। 
         इस वाणी को सर्वप्रथम 4 ऋषियों ने सुना: 1. अग्नि, 2. वायु, 3. अंगिरा और 4. आदित्य। ये चारों कौन थे? क्रमश: ये सभी ब्रह्मा के कुल के थे। वेद ज्ञान की रक्षा की गायत्री, सविता, सनतकुमार, अश्विनी कुमार आदि देवी-देवताओं ने। परंपरागत रूप से इस ज्ञान को स्वायम्भुव मनु ने अपने कुल के लोगों को सुनाया, फिर स्वरोचिष, फिर औत्तमी, फिर तामस मनु, फिर रैवत और फिर चाक्षुष मनु ने इस ज्ञान को अपने कुल और समाज के लोगों को सुनाया। बाद में इस ज्ञान को वैवश्वत मनु ने अपने पुत्रों को दिया। 
         भगवान कृष्ण के माध्यम से परमेश्वर कहते हैं:- इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥ एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः। स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप॥ स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः। भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्॥- गीता अर्थ : ' भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। हे परंतप अर्जुन! इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किंतु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वीलोक में लुप्तप्राय हो गया। तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है इसलिए वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है, क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात गुप्त रखने योग्य विषय है।' 
         इतिहासकारों अनुसार वेद का विभाजन राम के जन्म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। तब वेद तीन भागों में बांटा गया जिसे वेदत्रयी कहा गया। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया। इस तरह चार वेद हो गया। बाद में भगवान कृष्ण के काल में वेदों के ज्ञान को लिपिबद्ध किया गया और इस ज्ञान की कई शाखाओं का निर्माण हुआ। कृष्ण के चचेरे भाई और कौरवों के पिता वेद व्यास ने इस ज्ञान पर आधारित गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत की और उन्होंने मूलत: 4 वेदों पर आधारित 4 पुराण लिखे। प्राचीन काल में अग्नि, वायु, आदित्य और अगिंरा ऋषियों को वेदों का ज्ञान मिला जिसके बाद सात ऋषियों को ये ज्ञान मिला। ऐतिहासिक रूप से ब्रह्मा, उनके पुत्र बादरायण और पौत्र व्यास और अन्य यथा जैमिनी, पातांजलि, मनु, वात्स्यायन, कपिल, कणाद आदि मुनियों को वेदों का अच्छा ज्ञान था। निरूक्त, निघण्टु तथा मनुस्मृति को वेदों की व्याख्या मानते हैं। पुराण को वेदों की कथाओं की व्याख्या माना जाता है।
Devel Dublish 
Meerut