Saturday, 28 September 2019

संक्षिप्त नवरात्रि पूजा विधि

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौषचैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवताराक्षसमनुष्यगंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैंं।
प्रथम शैल पुत्री
देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।[1] ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
ध्यान मंत्र :-
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'
शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।

Saturday, 25 November 2017

इतिहास पढ़ें तो मुस्लिमों के भारत का शासक बनने के समय और बाद तक की स्थिति के बारे मे पता चलता है कि जब सल्तनत काल की नींव पड़ी उससे काफी पहले ही भारत से बौद्ध और जैन धर्मस्थल और साहित्य नष्टप्राय हो चुके थे, हां हिंदू धार्मिक साहित्य यानी चारों वेद, उपनिषद, रामायण के अनेक संस्करण, महाभारत, और अनेकों पुराण आदि प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध थे , और अनेकों हिन्दू मन्दिर देश भर मे मौजूद थे जिन मन्दिरो और धार्मिक साहित्य को मुस्लिम चाहते तो नष्ट कर के अपने धर्म "इस्लाम" के प्रचार का मार्ग प्रशस्त कर सकते थे ... पर मुस्लिमों के उत्तर भारत मे पहले शासक यानि मोहम्मद गौरी के समय से ही मुस्लिम शासकों ने सर्वधर्म समभाव की नीति अपनाई थी और गौरी ने अपने सिक्को पर हिन्दू देवी लक्ष्मी की आकृति उकेरवाई थी
मुस्लिमों ने किसी गैरधर्म की पवित्र पुस्तकों को नष्ट किया हो ऐसा कहीं लिखा नहीं मिलता उल्टे इन्हीं मुसलमानों ने दूसरे धर्म (हिन्दू धर्म, क्योंकि बौद्ध साहित्य उस समय भारत मे न के बराबर उपलब्ध था ) की धार्मिक किताबों का विदेशी भाषाओं (फारसी तुर्की आदि) मे अनुवाद कर के भारतीय धर्म के प्रचार प्रसार मे सहयोग ही किया ...
मुगलकाल मे ही महाभारत का तुर्की और फारसी मे नकीब खान और बदायूंनी द्वारा अनुवाद किया गया, बदायूंनी ने रामायण का भी फारसी मे अनुवाद किया
हरिवंश पुराण का मौलाना शेरी ने, भगवद् गीता का दारा शिकोह ने, राज तरंगिणी का मुल्ला शेख मुहम्मद ने अनुवाद किया ... इसके अतिरिक्त सिंहासन बत्तीसी, नल दमयंती, पंचतन्त्र और लीलावती का भी तुर्की फारसी आदि मे मुगलकाल मे ही अनुवाद किया गया जिन्होंने विदेशों मे भारतीय संस्कृति का विज्ञापन करने का काम किया था ॥
दूसरी ओर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि तुलसीदास जी ने रामचरित मानस, और मीराबाई व सूरदास ने कृष्ण भक्ति के पद मुगलकाल व मुस्लिम शासकों के शासन के भीतर ही लिखे, जिनका धार्मिक तानाशाही के दौर मे लिखे जाना और सुरक्षित रह जाना बिल्कुल असम्भव था,...
फिर मुस्लिमों के आने से पहले के अनेकों मन्दिर जैसे कैलाश मन्दिर, खजुराहो के मन्दिर, कोणार्क का सूर्य मन्दिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर, पुरी के जगन्नाथ मन्दिर आदि जैसे अनेकों मन्दिर आज भी सुरक्षित मिलते हैं यदि मुस्लिम मन्दिर तोड़ने ही भारत आए थे तो इन्हें तोड़ा क्यों नहीं .... बल्कि इतिहास तो ये बताता है कि उत्तर भारत के तीर्थ नगरों मे सर्वाधिक मन्दिरो का निर्माण तो मुस्लिम शासकों के सहयोग से ही हुआ .... यानी जिन्हें मन्दिर तोड़ने वाला प्रचारित किया गया है उन्होंने ही मन्दिर बनवाए थे
..... इसलिए मुस्लिम अपने धर्म का प्रचार और अन्य धर्मों का दमन करने की मानसिकता से भरे हुए थे मुझे इन आरोपों मे सच्चाई कम और साजिश ज्यादा नजर आती है...

Monday, 26 September 2016

!! शुभ संध्या/रात्रि वंदन.... जय माता दी..!!
💠🔹☀🔹☀🔹☀🔹☀🔹☀🔹☀💠
नवरात्रि शनिवार से प्रारम्भ होने के कारणा माता का वाहन अश्व (घोड़ा) है ः अश्व पर माता रानी आती हैं तो राजनीतिक उठापठक, व युद्ध की सम्भावना बनती है, जिस प्रकार घोड़ा न थकता है, न बैठता है उसी प्रकार शासक व प्रशासक को देवी का यह योग बैठने नही देगा..!!
हिन्दू त्यौहारों का महत्वपूर्ण पर्व नवरात्र 01 अक्टूर से प्रारम्भ होकर 10 अक्टूबर तक रहेंगे। इस बार प्रतिपदा तिथि दो दिन होने के कारण नवरात्र नौ दिन की बजाय 10 दिन रहेंगे। नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करने का विधान है
!! शुभ संध्या/रात्रि वंदन.... जय माता दी..!!
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नवरात्रि शनिवार से प्रारम्भ होने के कारणा माता का वाहन अश्व (घोड़ा) है ः अश्व पर माता रानी आती हैं तो राजनीतिक उठापठक, व युद्ध की सम्भावना बनती है, जिस प्रकार घोड़ा न थकता है, न बैठता है उसी प्रकार शासक व प्रशासक को देवी का यह योग बैठने नही देगा..!!
हिन्दू त्यौहारों का महत्वपूर्ण पर्व नवरात्र 01 अक्टूर से प्रारम्भ होकर 10 अक्टूबर तक रहेंगे। इस बार प्रतिपदा तिथि दो दिन होने के कारण नवरात्र नौ दिन की बजाय 10 दिन रहेंगे। नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करने का विधान है

Tuesday, 8 March 2016

रक्षा-कारक  शाबर मन्त्र
“श्रीरामचन्द्र-दूत हनुमान ! तेरी चोकी – लोहे का खीला, भूत का मारूँ पूत । डाकिन का करु दाण्डीया । हम हनुमान साध्या । मुडदां बाँधु । मसाण बाँधु । बाँधु नगर की नाई । भूत बाँधु । पलित बाँधु । उघ मतवा ताव से तप । घाट पन्थ की रक्षा – राजा रामचन्द्र जी करे ।
बावन वीर, चोसठ जोगणी बाँधु । हमारा बाँधा पाछा फिरे, तो वीर की आज्ञा फिरे । नूरी चमार की कुण्ड मां पड़े । तू ही पीछा फिरे, तो माता अञ्जनी का दूध पीया हराम करे । स्फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ।”

विधिः- उक्त मन्त्र का प्रयोग कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही करें । प्रयोग हनुमान् जी के मन्दिर में करें । पहले धूप-दीप-अगरबत्ती-फल-फूल इत्यादि से पूजन करें । सिन्दूर लगाएँ, फिर गेहूँ के आटे का एक बड़ा रोट बनाए । उसमें गुड़ व घृत मिलाए । साथ ही इलायची-जायफल-बादाम-पिस्ते इत्यादि भी डाले तथा इसका भोग लगाए । भोग लगाने के बाद मन्दिर में ही हनुमान् जी के समक्ष बैठकर उक्त मन्त्र का १२५ बार जप करें । जप के अन्त में हनुमान् जी के पैर के नीचे जो तेल होता है, उसे साधक अँगुली से लेकर स्वयं अपने मस्तक पर लगाए । इसके बाद फिर किसी दूसरे दिन उसी समय उपरोक्तानुसार पूजा कर, काले डोरे में २१ मन्त्र और पढ़कर गाँठ लगाए तथा डोरे को गले में धारण करे । मांस-मदिरा का सेवन न करे । इससे सभी प्रकार के वाद-विवाद में जीत होती है । मनोवाञ्छित कार्य पूरे होते हैं तथा शरीर की सुरक्षा होती है ।

Friday, 26 February 2016

गायत्री मंत्र ः विभिन्न देवी देवताओं व ग्रहों के गायत्री मंत्र

चन्द्र गायत्री- ॐ अमृतंग अन्गाये विधमहे कलारुपाय धीमहि,तन्नो सोम प्रचोदयात"|
मंगल गायत्री- "ॐ अंगारकाय विधमहेशक्तिहस्तायधीमहितन्नो भोम :प्रचोदयात"|
बुध गायत्री- "ॐ सौम्यरुपाय विधमहे वानेशाय चधीमहितन्नोसौम्य प्रचोदयात"|
गुरु गायत्री- "ॐ अन्गिर्साय विधमहे दिव्यदेहायधीमहिजीव:प्रचोदयात "|
शुक्र गायत्री- "ॐ भ्र्गुजाय विधमहे दिव्यदेहायतन्नो शुक्र:प्रचोदयात"|
शनि गायत्री- "ॐ भग्भवाय विधमहे मृत्युरुपायधीमहितन्नो सौरी:प्रचोदयात "|
राहू गायत्री- "ॐ शिरोरुपाय विधमहे अमृतेशायधीमहितन्नो राहू:प्रचोदयात"|
केतु गायत्री- "ॐ पद्म्पुत्राय विधमहे अम्रितेसाय धीमहि तन्नोकेतु:प्रचोदयात"|
ब्रम्हा गायत्री- "ॐ वेदात्मने च विधमहे हिरंगार्भाय तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात "|
विष्णु गायत्री- "ॐ नारायण विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात"|
शिवगायत्री- ॐ महादेवाय विधमहेरुद्रमुर्तय धीमहि तन्नोशिव:प्रचोदयात "|
कृष्ण गायत्री- ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे,वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात "|
राधागायत्री-वृष भानु: जायै विधमहे,क्रिश्न्प्रियाय धीमहि तन्नो राधा :प्रचोदयात "|
लक्ष्मी गायत्री-ॐमहालाक्ष्मये विधमहेविष्णु प्रियाय धीमहि तन्नोलक्ष्मी:प्रचोदयात|
तुलसी गायत्री- ॐ श्री तुल्स्ये विधमहे,विश्नुप्रियाय धीमहि तन्नो वृंदा:प्रचोदयात "|
इन्द्र गायत्री- ॐ सहस्त्र नेत्राए विधमहे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्र:प्रचोदयात "|
सरस्वती गायत्री- ॐ वाग देव्यैविधमहे काम राज्या धीमहि तन्नो सरस्वती :प्रचोदयात "|
दुर्गा गायत्री- ॐ गिरिजाये विधमहे,शिवप्रियाय धीमहि तन्नो दुर्गा :प्रचोदयात "|
हनुमान गायत्री- ॐअन्जनिसुतायविधमहे वायु पुत्राय धीमहितन्नो मारुती :प्रचोदयात "|
पृथ्वी गायत्री- ॐपृथ्वी देव्यैविधमहेसहस्र मूरतयैधीमहि तन्नो पृथ्वी :प्रचोदयात "|
राम गायत्री- ॐदशारथाय विधमहे सीता वल्लभाय धीमहि तन्नो राम :प्रचोदयात "|
सीता गायत्री- ॐ जनक नंदिन्ये विधमहे भुमिजाय धीमहि तन्नो सीता :प्रचोदयात "|
यम् गायत्री- ॐ सुर्यपुत्राय विधमहे,महाकालाय धीमहि तन्नो यम् :प्रचोदयात "|
वरुण गायत्री- ॐ जल बिम्बाय विधमहे नील पुरु शाय धीमहि तन्नो वरुण :प्रचोदयात "|
नारायण गायत्री- ॐनारायण विधमहे,वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायण :प्रचोदयात "|
हयग्रीव गायत्री- ॐवाणीश्वरायविधमहे,हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीव :प्रचोदयात "|
हंसा गायत्री- ॐपरम्ह्न्सायविधमहेमहा हंसाय धीमहि तन्नोहंस:प्रचोदयात "|

Saturday, 20 February 2016

!! शुभ प्रभात....शुभ दिवस..!!
!! जय गायत्री माता.!!
!! जय सूर्यदेव
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गायत्री मंत्र:-
!!ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
अर्थ ः
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।