इन्द्राक्षी कवच एवं स्तोत्र के प्रयोग की विध********
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इन्द्राक्षी-कवच को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय चैत्र मास का नवरात्र या आश्विन मास का नवरात है! नवरात्रों के समय प्रतिदिन व्रत रखकर ताम्रपत्र पर अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का विधिवत पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र { ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं इन्द्राक्ष्ये [ये के स्थान पर ' यै ' का प्रयोग करें] नम:} का १०८ रुद्राक्ष के दानों की एक माला जप करना चाहिये! नावें दिन नवमी को १०१ इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र से हवं करके मन्त्र सिद्ध कर लेना चाहिये! हवं में आहुति देते समय इन्द्राखी देवू के मन्त्र के अंत में "स्वाहा" शब्द और जोड़ लेना चाहिये!
प्रतिदिन पाठ करनेवाले सज्जन को ताम्रपत्र अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इम्द्राक्षी देवी के मन्त्र से एक आहोती दे देनी चाहिये!
व्नियोग और न्यास की विधि इस प्रकार है! विनियोग का रथ है---मन्त्र-जप के प्रयोजन का निर्देश! विनियोग करते समय दाहिने हाथ की हथेली में जल लेकर { ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्रम महामंत्रस्य शची पुरन्दर ऋषि :! अनुष्टुपछन्द:! इन्द्राक्षीदुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम, मम इन्द्राक्षीप्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग! } यह विनियोग है! इसका पाठ करके मनोकामना को कहते हुए जल को पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिये!
करन्यास-----
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करन्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हथेलियों और हाथों के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास [स्थापन] किया जाता है! इसी प्रकार अंगन्यास में हृदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना होती है! मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान मानकर उन-उन अंगों के नाम लेकर उनपर उन मंत्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वंदन किया जाता है! ऐसा करने से पाठ या जप करने वाला स्वयं मंत्रमय होकर मन्त्र देवताओं द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है! उसके बाहर-भीतर की शुद्धि होती है, उसे दिव्य बल प्राप्त होता है और साधना निर्विघ्नता पूर्वक पूर्ण तथा परम लाभदायक होता है!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्या ं नम:!
[दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अन्गूँठों का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिति तर्जनीभ्यां नम:!
[दोनों हाथों के अंगूठों से तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श!]
ॐ माहेश्वरिति मध्यमाभ्यां नम:!
[ अंगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीत्यनामिकाभ्यां नम:!
[अनामिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति कनिष्ठिकाभ्यां नम:!
[ कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कौमारिती करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:!
[हथेलियों और उनके पृष्ठ भागों का परस्पर स्पर्श ]
हृदयादिन्यास :----
इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से "ह्रदय" आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है!
ॐ इन्द्राक्षीति हृदयाय नम:!
[दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ह्रदय का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिती शिरसे स्वाहा!
[सिरका स्पर्श]
ॐ माहेश्वरीती शिखायै वषट!
[ शिका का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीति कवचाय हुम!
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का साथ ही स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति नेत्रत्रयाय वौषट !
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श]
ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट !
[ यह वाक्य पढ़ कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर बायीं ओर से पीछे की ओर काकर दाहिनी ओरसे आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा अन्गुलियोंन से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें!]
विनियोग, करन्यास और हृदयादिन्यास करने के बाद भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान करना चाहिये!
इद्राक्षी-यंत्र---
[------------यंत्र-------- ---]
यंत्र लिखना-------यंत्र को विभूति में लिखाकर निम्नलिखित प्रकार से जप करें!------
ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्र महामंत्रस्य शचीपुरन्दर ऋषि:! इन्द्राक्षी दुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम. मम इन्द्राक्षी प्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्या ं नम:! ॐ महालक्ष्मीरिति मध्यमाभ्यां नम:! ॐ माहेश्वरीति शिखायै वषट! ॐ अम्बुजाक्षीति कवच हुम! ॐ कात्यायनीति नेत्रायाय वौषट! ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट ! ॐ भूर्भुवस्स्वरोमिति दिगबंध:!
भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान
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नेत्राणां दशभिश्शतै: परिवृता मत्युग्र चर्माम्बरां
हेमाभां महतीं विलम्बित शिखामा मुक्तकेशान्विताम!
घन्टामण्डितपादपद्मयुगलां नागेन्द्रकुम्भस्तनी --
मिन्द्राक्षीं परिचिन्तयामि मनसा कल्पोक्त सिद्धि प्रदाम!!
इन्द्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम !
वाम हस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वर! प्रदाम!!
इन्द्रादिभि: सुरैर्वन्द्यां वन्दे शंकरवल्लभाम!
एवं ध्यात्वा महादेवीं जपत सर्वार्थसिद्धये !!
इन्द्राक्षीं नौमि युवतीं नानालंकारभूषिताम !
प्रसन्नवदनाम्भोमप्सरोगणसेव िताम!!
इंद्र उवाच---
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इन्द्राक्षी पूर्वत: पातु पात्वागनेय्यां दशेश्वरी!
कुमारी दक्षिणे पातु नैर्त्रित्यां [पश्चिम और दक्षिण कोण] पातु पार्वती!!
बाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि !
उदाच्यां कालरात्री मामैशान्यां सर्वशक्तय:!!
भैरव्यूर्ध्वे सदा पातु पात्वधो वैष्णवी सदा!
एवं दश दिशो रक्षेत सर्वांग भुवनेश्वरी !
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नोट-----इन्द्राक्षीति हृदय नम: से अप्सरोगण से विताम तक दो बार जप करना चाहिये!
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इन्द्राक्षी-कवच-----
और भस्म - विधि यंत्र शेष-----
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माता जी के आगे स्तोत्र का पढ़ना भी बहुत-२ शुभ कहा गया है! यदि कोई पूर्ण विधि नहीं कर सकता तो माता इन्द्राक्षी जी का नित्य स्तोत्र का पाठ ही करें!
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इन्द्राक्षी--स्तोत्र
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इन्द्राक्षी नाम सा देवी देवतै: समुदाहृता!
गौरी शाकम्बरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता!!
कात्यायनी महादेवी चन्द्रघण्टा महातपा:!
सावित्री सा च गायत्री ब्राह्माणी ब्रह्मवादिनी!!
नारायणी भद्रकाली रूद्राणी कृष्णपिंगला !
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी !!
मेघस्वना सहस्नाक्षी विकटांगी जलोदरी!
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला!!
अजिता भाद्रदाsनन्दा रोगहत्रीं शिवप्रिया!
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी !!
इन्द्रानी इन्द्ररूपा च इन्द्रशक्ति: परायणा!
सदा सम्मोहिनी देवी सुन्दरी भुवनेश्वरी !!
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्तिनी!
नित्यं सकलकल्याणी भोगमोक्षप्रदायनी !!
महिषासुरसन्हत्रीं चामुण्डा सप्तमातृका!
वाराही नारसिंही च भीमा भैरवनादिनी!!
श्रुति: स्म्रितिर्धृतिर्मेधा विद्या लक्ष्मी: सरस्वती !
अनंता विजयापर्णा मानस्तोकापराजिता!!
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यम्बिका शिवा!
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्द्धशरीरिणी!!
ऐरावतगजारुढा वज्रहस्ता वरप्रदा!
भ्रामरी कन्चिकामाक्षी क्कणन्माणिक्यनूपुरा!!
त्रिपादभस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना!
शिवा च सिवारूपा च शिवभक्तिपरायणा!!
मृत्युंजया महामाया सर्वरोगनिवारिणी !
ऐन्द्री देवी सदा कालं शान्तिमाशु करोतु मे!!
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वहर: प्रचोदयात!!
एतत स्तोत्रं जपेन्नित्यं सर्वज्याधिनीवारणम!
रणे राजभये शौर्ये सर्वत्र विजयी भवेत्!!
एतैर्नामपदैर्दिव्यै स्तुता शक्रेण धीमता!
सा मे परित्या दद्यात सर्वा पत्ति निवारिणी !!
ज्वरं भूतज्वरं चैव शीतोष्णज्वरमेव च!
ज्वरं ज्वरातिसारं च अतिसारज्वरं हर !!
शतमावर्तयेद यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात!
आवर्त्तयन सहस्त्रं तु लभते वांछितं फलम!!
एतत्स्तोत्रमिदं पुण्यं जपेदायुष्यवर्द्धनम!
विनाशाय च रोगाणापमृत्युहराय च!!
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके!
शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोsस्तु ते !!
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जय हो------यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है----अत: अतिगोपिनीय भी है! प्रत्येक मनुष्य को इस स्तोत्र का पाठ आवश्य करना चाहिये! जीवन में हर रोग का नाश करने वाला और सर्व सिद्धि देनेवाला है!
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इन्द्राक्षी-कवच को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय चैत्र मास का नवरात्र या आश्विन मास का नवरात है! नवरात्रों के समय प्रतिदिन व्रत रखकर ताम्रपत्र पर अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का विधिवत पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र { ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं इन्द्राक्ष्ये [ये के स्थान पर ' यै ' का प्रयोग करें] नम:} का १०८ रुद्राक्ष के दानों की एक माला जप करना चाहिये! नावें दिन नवमी को १०१ इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र से हवं करके मन्त्र सिद्ध कर लेना चाहिये! हवं में आहुति देते समय इन्द्राखी देवू के मन्त्र के अंत में "स्वाहा" शब्द और जोड़ लेना चाहिये!
प्रतिदिन पाठ करनेवाले सज्जन को ताम्रपत्र अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इम्द्राक्षी देवी के मन्त्र से एक आहोती दे देनी चाहिये!
व्नियोग और न्यास की विधि इस प्रकार है! विनियोग का रथ है---मन्त्र-जप के प्रयोजन का निर्देश! विनियोग करते समय दाहिने हाथ की हथेली में जल लेकर { ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्रम महामंत्रस्य शची पुरन्दर ऋषि :! अनुष्टुपछन्द:! इन्द्राक्षीदुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम, मम इन्द्राक्षीप्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग! } यह विनियोग है! इसका पाठ करके मनोकामना को कहते हुए जल को पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिये!
करन्यास-----
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करन्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हथेलियों और हाथों के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास [स्थापन] किया जाता है! इसी प्रकार अंगन्यास में हृदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना होती है! मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान मानकर उन-उन अंगों के नाम लेकर उनपर उन मंत्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वंदन किया जाता है! ऐसा करने से पाठ या जप करने वाला स्वयं मंत्रमय होकर मन्त्र देवताओं द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है! उसके बाहर-भीतर की शुद्धि होती है, उसे दिव्य बल प्राप्त होता है और साधना निर्विघ्नता पूर्वक पूर्ण तथा परम लाभदायक होता है!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्या
[दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अन्गूँठों का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिति तर्जनीभ्यां नम:!
[दोनों हाथों के अंगूठों से तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श!]
ॐ माहेश्वरिति मध्यमाभ्यां नम:!
[ अंगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीत्यनामिकाभ्यां नम:!
[अनामिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति कनिष्ठिकाभ्यां नम:!
[ कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कौमारिती करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:!
[हथेलियों और उनके पृष्ठ भागों का परस्पर स्पर्श ]
हृदयादिन्यास :----
इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से "ह्रदय" आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है!
ॐ इन्द्राक्षीति हृदयाय नम:!
[दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ह्रदय का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिती शिरसे स्वाहा!
[सिरका स्पर्श]
ॐ माहेश्वरीती शिखायै वषट!
[ शिका का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीति कवचाय हुम!
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का साथ ही स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति नेत्रत्रयाय वौषट !
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श]
ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट !
[ यह वाक्य पढ़ कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर बायीं ओर से पीछे की ओर काकर दाहिनी ओरसे आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा अन्गुलियोंन से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें!]
विनियोग, करन्यास और हृदयादिन्यास करने के बाद भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान करना चाहिये!
इद्राक्षी-यंत्र---
[------------यंत्र--------
यंत्र लिखना-------यंत्र को विभूति में लिखाकर निम्नलिखित प्रकार से जप करें!------
ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्र महामंत्रस्य शचीपुरन्दर ऋषि:! इन्द्राक्षी दुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम. मम इन्द्राक्षी प्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्या
भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान
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नेत्राणां दशभिश्शतै: परिवृता मत्युग्र चर्माम्बरां
हेमाभां महतीं विलम्बित शिखामा मुक्तकेशान्विताम!
घन्टामण्डितपादपद्मयुगलां नागेन्द्रकुम्भस्तनी --
मिन्द्राक्षीं परिचिन्तयामि मनसा कल्पोक्त सिद्धि प्रदाम!!
इन्द्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम !
वाम हस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वर! प्रदाम!!
इन्द्रादिभि: सुरैर्वन्द्यां वन्दे शंकरवल्लभाम!
एवं ध्यात्वा महादेवीं जपत सर्वार्थसिद्धये !!
इन्द्राक्षीं नौमि युवतीं नानालंकारभूषिताम !
प्रसन्नवदनाम्भोमप्सरोगणसेव
इंद्र उवाच---
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इन्द्राक्षी पूर्वत: पातु पात्वागनेय्यां दशेश्वरी!
कुमारी दक्षिणे पातु नैर्त्रित्यां [पश्चिम और दक्षिण कोण] पातु पार्वती!!
बाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि !
उदाच्यां कालरात्री मामैशान्यां सर्वशक्तय:!!
भैरव्यूर्ध्वे सदा पातु पात्वधो वैष्णवी सदा!
एवं दश दिशो रक्षेत सर्वांग भुवनेश्वरी !
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नोट-----इन्द्राक्षीति हृदय नम: से अप्सरोगण से विताम तक दो बार जप करना चाहिये!
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इन्द्राक्षी-कवच-----
और भस्म - विधि यंत्र शेष-----
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माता जी के आगे स्तोत्र का पढ़ना भी बहुत-२ शुभ कहा गया है! यदि कोई पूर्ण विधि नहीं कर सकता तो माता इन्द्राक्षी जी का नित्य स्तोत्र का पाठ ही करें!
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इन्द्राक्षी--स्तोत्र
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इन्द्राक्षी नाम सा देवी देवतै: समुदाहृता!
गौरी शाकम्बरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता!!
कात्यायनी महादेवी चन्द्रघण्टा महातपा:!
सावित्री सा च गायत्री ब्राह्माणी ब्रह्मवादिनी!!
नारायणी भद्रकाली रूद्राणी कृष्णपिंगला !
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी !!
मेघस्वना सहस्नाक्षी विकटांगी जलोदरी!
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला!!
अजिता भाद्रदाsनन्दा रोगहत्रीं शिवप्रिया!
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी !!
इन्द्रानी इन्द्ररूपा च इन्द्रशक्ति: परायणा!
सदा सम्मोहिनी देवी सुन्दरी भुवनेश्वरी !!
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्तिनी!
नित्यं सकलकल्याणी भोगमोक्षप्रदायनी !!
महिषासुरसन्हत्रीं चामुण्डा सप्तमातृका!
वाराही नारसिंही च भीमा भैरवनादिनी!!
श्रुति: स्म्रितिर्धृतिर्मेधा विद्या लक्ष्मी: सरस्वती !
अनंता विजयापर्णा मानस्तोकापराजिता!!
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यम्बिका शिवा!
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्द्धशरीरिणी!!
ऐरावतगजारुढा वज्रहस्ता वरप्रदा!
भ्रामरी कन्चिकामाक्षी क्कणन्माणिक्यनूपुरा!!
त्रिपादभस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना!
शिवा च सिवारूपा च शिवभक्तिपरायणा!!
मृत्युंजया महामाया सर्वरोगनिवारिणी !
ऐन्द्री देवी सदा कालं शान्तिमाशु करोतु मे!!
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वहर: प्रचोदयात!!
एतत स्तोत्रं जपेन्नित्यं सर्वज्याधिनीवारणम!
रणे राजभये शौर्ये सर्वत्र विजयी भवेत्!!
एतैर्नामपदैर्दिव्यै स्तुता शक्रेण धीमता!
सा मे परित्या दद्यात सर्वा पत्ति निवारिणी !!
ज्वरं भूतज्वरं चैव शीतोष्णज्वरमेव च!
ज्वरं ज्वरातिसारं च अतिसारज्वरं हर !!
शतमावर्तयेद यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात!
आवर्त्तयन सहस्त्रं तु लभते वांछितं फलम!!
एतत्स्तोत्रमिदं पुण्यं जपेदायुष्यवर्द्धनम!
विनाशाय च रोगाणापमृत्युहराय च!!
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके!
शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोsस्तु ते !!
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जय हो------यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है----अत: अतिगोपिनीय भी है! प्रत्येक मनुष्य को इस स्तोत्र का पाठ आवश्य करना चाहिये! जीवन में हर रोग का नाश करने वाला और सर्व सिद्धि देनेवाला है!
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