Monday, 23 April 2012

Indrakshi Sadhna


इन्द्राक्षी कवच एवं स्तोत्र के प्रयोग की विध********
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इन्द्राक्षी-कवच को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय चैत्र मास का नवरात्र या आश्विन मास का नवरात है! नवरात्रों के समय प्रतिदिन व्रत रखकर ताम्रपत्र पर अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का विधिवत पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र { ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं इन्द्राक्ष्ये [ये के स्थान पर ' यै ' का प्रयोग करें] नम:} का १०८ रुद्राक्ष के दानों की एक माला जप करना चाहिये! नावें दिन नवमी को १०१ इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र से हवं करके मन्त्र सिद्ध कर लेना चाहिये! हवं में आहुति देते समय इन्द्राखी देवू के मन्त्र के अंत में "स्वाहा" शब्द और जोड़ लेना चाहिये!
प्रतिदिन पाठ करनेवाले सज्जन को ताम्रपत्र अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इम्द्राक्षी देवी के मन्त्र से एक आहोती दे देनी चाहिये!
व्नियोग और न्यास की विधि इस प्रकार है! विनियोग का रथ है---मन्त्र-जप के प्रयोजन का निर्देश! विनियोग करते समय दाहिने हाथ की हथेली में जल लेकर { ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्रम महामंत्रस्य शची पुरन्दर ऋषि :! अनुष्टुपछन्द:! इन्द्राक्षीदुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम, मम इन्द्राक्षीप्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग! } यह विनियोग है! इसका पाठ करके मनोकामना को कहते हुए जल को पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिये!
करन्यास-----
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करन्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हथेलियों और हाथों के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास [स्थापन] किया जाता है! इसी प्रकार अंगन्यास में हृदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना होती है! मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान मानकर उन-उन अंगों के नाम लेकर उनपर उन मंत्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वंदन किया जाता है! ऐसा करने से पाठ या जप करने वाला स्वयं मंत्रमय होकर मन्त्र देवताओं द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है! उसके बाहर-भीतर की शुद्धि होती है, उसे दिव्य बल प्राप्त होता है और साधना निर्विघ्नता पूर्वक पूर्ण तथा परम लाभदायक होता है!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्यां नम:!
[दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अन्गूँठों का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिति तर्जनीभ्यां नम:!
[दोनों हाथों के अंगूठों से तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श!]
ॐ माहेश्वरिति मध्यमाभ्यां नम:!
[ अंगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीत्यनामिकाभ्यां नम:!
[अनामिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति कनिष्ठिकाभ्यां नम:!
[ कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कौमारिती करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:!
[हथेलियों और उनके पृष्ठ भागों का परस्पर स्पर्श ]
हृदयादिन्यास :----
इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से "ह्रदय" आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है!
ॐ इन्द्राक्षीति हृदयाय नम:!
[दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ह्रदय का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिती शिरसे स्वाहा!
[सिरका स्पर्श]
ॐ माहेश्वरीती शिखायै वषट!
[ शिका का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीति कवचाय हुम!
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का साथ ही स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति नेत्रत्रयाय वौषट !
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श]
ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट !
[ यह वाक्य पढ़ कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर बायीं ओर से पीछे की ओर काकर दाहिनी ओरसे आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा अन्गुलियोंन से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें!]
विनियोग, करन्यास और हृदयादिन्यास करने के बाद भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान करना चाहिये!
इद्राक्षी-यंत्र---
[------------यंत्र-----------]
यंत्र लिखना-------यंत्र को विभूति में लिखाकर निम्नलिखित प्रकार से जप करें!------
ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्र महामंत्रस्य शचीपुरन्दर ऋषि:! इन्द्राक्षी दुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम. मम इन्द्राक्षी प्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्यां नम:! ॐ महालक्ष्मीरिति मध्यमाभ्यां नम:! ॐ माहेश्वरीति शिखायै वषट! ॐ अम्बुजाक्षीति कवच हुम! ॐ कात्यायनीति नेत्रायाय वौषट! ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट ! ॐ भूर्भुवस्स्वरोमिति दिगबंध:!
भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान
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नेत्राणां दशभिश्शतै: परिवृता मत्युग्र चर्माम्बरां
हेमाभां महतीं विलम्बित शिखामा मुक्तकेशान्विताम!
घन्टामण्डितपादपद्मयुगलां नागेन्द्रकुम्भस्तनी --
मिन्द्राक्षीं परिचिन्तयामि मनसा कल्पोक्त सिद्धि प्रदाम!!
इन्द्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम !
वाम हस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वर! प्रदाम!!
इन्द्रादिभि: सुरैर्वन्द्यां वन्दे शंकरवल्लभाम!
एवं ध्यात्वा महादेवीं जपत सर्वार्थसिद्धये !!
इन्द्राक्षीं नौमि युवतीं नानालंकारभूषिताम !
प्रसन्नवदनाम्भोमप्सरोगणसेविताम!!
इंद्र उवाच---
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इन्द्राक्षी पूर्वत: पातु पात्वागनेय्यां दशेश्वरी!
कुमारी दक्षिणे पातु नैर्त्रित्यां [पश्चिम और दक्षिण कोण] पातु पार्वती!!
बाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि !
उदाच्यां कालरात्री मामैशान्यां सर्वशक्तय:!!
भैरव्यूर्ध्वे सदा पातु पात्वधो वैष्णवी सदा!
एवं दश दिशो रक्षेत सर्वांग भुवनेश्वरी !
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नोट-----इन्द्राक्षीति हृदय नम: से अप्सरोगण से विताम तक दो बार जप करना चाहिये!
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इन्द्राक्षी-कवच-----
और भस्म - विधि यंत्र शेष-----
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माता जी के आगे स्तोत्र का पढ़ना भी बहुत-२ शुभ कहा गया है! यदि कोई पूर्ण विधि नहीं कर सकता तो माता इन्द्राक्षी जी का नित्य स्तोत्र का पाठ ही करें!
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इन्द्राक्षी--स्तोत्र
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इन्द्राक्षी नाम सा देवी देवतै: समुदाहृता!
गौरी शाकम्बरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता!!
कात्यायनी महादेवी चन्द्रघण्टा महातपा:!
सावित्री सा च गायत्री ब्राह्माणी ब्रह्मवादिनी!!
नारायणी भद्रकाली रूद्राणी कृष्णपिंगला !
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी !!
मेघस्वना सहस्नाक्षी विकटांगी जलोदरी!
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला!!
अजिता भाद्रदाsनन्दा रोगहत्रीं शिवप्रिया!
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी !!
इन्द्रानी इन्द्ररूपा च इन्द्रशक्ति: परायणा!
सदा सम्मोहिनी देवी सुन्दरी भुवनेश्वरी !!
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्तिनी!
नित्यं सकलकल्याणी भोगमोक्षप्रदायनी !!
महिषासुरसन्हत्रीं चामुण्डा सप्तमातृका!
वाराही नारसिंही च भीमा भैरवनादिनी!!
श्रुति: स्म्रितिर्धृतिर्मेधा विद्या लक्ष्मी: सरस्वती !
अनंता विजयापर्णा मानस्तोकापराजिता!!
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यम्बिका शिवा!
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्द्धशरीरिणी!!
ऐरावतगजारुढा वज्रहस्ता वरप्रदा!
भ्रामरी कन्चिकामाक्षी क्कणन्माणिक्यनूपुरा!!
त्रिपादभस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना!
शिवा च सिवारूपा च शिवभक्तिपरायणा!!
मृत्युंजया महामाया सर्वरोगनिवारिणी !
ऐन्द्री देवी सदा कालं शान्तिमाशु करोतु मे!!
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वहर: प्रचोदयात!!
एतत स्तोत्रं जपेन्नित्यं सर्वज्याधिनीवारणम!
रणे राजभये शौर्ये सर्वत्र विजयी भवेत्!!
एतैर्नामपदैर्दिव्यै स्तुता शक्रेण धीमता!
सा मे परित्या दद्यात सर्वा पत्ति निवारिणी !!
ज्वरं भूतज्वरं चैव शीतोष्णज्वरमेव च!
ज्वरं ज्वरातिसारं च अतिसारज्वरं हर !!
शतमावर्तयेद यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात!
आवर्त्तयन सहस्त्रं तु लभते वांछितं फलम!!
एतत्स्तोत्रमिदं पुण्यं जपेदायुष्यवर्द्धनम!
विनाशाय च रोगाणापमृत्युहराय च!!
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके!
शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोsस्तु ते !!
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जय हो------यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है----अत: अतिगोपिनीय भी है! प्रत्येक मनुष्य को इस स्तोत्र का पाठ आवश्य करना चाहिये! जीवन में हर रोग का नाश करने वाला और सर्व सिद्धि देनेवाला है!
 — 

Friday, 20 April 2012

Jai Ardhnarishwar

सृष्टि के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया| शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक| पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं| जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायं अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाय। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजन्नशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदा की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया। इसके बाद अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए। शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरे के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। ======================= शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। ११वीं शताब्दी की चोल मूर्ति शिव कारण हैं; शक्ति कारक। शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी। शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुशुप्तावस्था। शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय। शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती। शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी। शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती। शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली। शिव सागर के जल सामन हैं। शक्ति सागर की लहर हैं। शिव परम चैतन्य हैं, कर्ता तो शक्ति ही है| ============================ स्त्री की जो मूर्ति सामने आती है, वह है- प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति। यह दिन यह गिनने का भी है कि आखिर हमने मील के कितने पत्थर पार कर लिए। सचमुच गौरव और आत्मविश्वास से कलेजा तर हो जाता है उन पाई हुई पायदानों के लिए और उन आत्मबल से भरी स्त्रियों के लिए जो सचमुच गजब की हैं। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है। उसने काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं। स्त्री सशक्त है व उसकी शक्ति की अभिव्यक्ति इस प्रकार देखने को मिल रही है....... महिलाओं के लिए यह भी जरूरी होगा कि वे दृढ़ निश्चय करें कि वे उनके बच्चों में नैतिक मूल्यों पर ध्यान देंगी और आगे बढ़ने के उदाहरण कायम करेंगी। सबसे युवा या युवा भारत पारिवारिक देखभाल की उपज है और यह बताती है कि उन्हें स्कूली स्तर पर कैसी शिक्षा मिलती है। परवरिश और स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता इस वर्ष तय करेगी कि उनमें सही गुणों का बीजारोपण किया जाता है या नहीं। इस स्तर पर ज्यादातर शिक्षक महिलाएं होती हैं। इस वर्ष महिलाएं अपनी क्षमताओं को साकार करने पर भी ध्यान दे सकती हैं और इसके लिए उन्हें उद्यमी बनना होगा। , घरों मे माँ के पास इतना समय ही नहीं होता की वे बच्चो को नैतिक मूल्य सिखा सके.वे केवल आर्थिक या सामाजिक पक्षों पर ज्यादा ध्यान देती है.हमारा पूरा परिवार सिस्टम टूट चूका है.इसे आप मज़बूरी कहे या परिवार विघटन या नारी का घर से बाहर जाना.ये आप तय करे.मै एक प्रिंसिपल होने के कारण बहुत माओ से बात करता हू किन्तु वो मानने को तयार नहीं होती की बच्चो को बिगाडने सुधारने मे सबसे बड़ा हाथ माँ का होता है. पति की सच्ची दोस्त आज की नारी की सफलता इसी से स्वयंसिद्ध है कि वह सही अर्थों में सखी-सहधर्मिणी बन चुकी है। वह पति की हर परेशानी बाँटने में सक्षम है। वह केवल पत्नी बन उसके द्वारा प्रदत्त सुख-सुविधाओं का लाभ नहीं उठाती बल्कि हर सुख-सुविधा जुटाने में बराबर की जिम्मेदारी लेती है, संघर्ष करती है। सफल माँ शिक्षित व कामकाजी होने के साथ ही वह बच्चों के प्रति अधिक जागरूक व संवेदनशील हो गई है। हर क्षेत्र का ज्ञान होने से वह बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से करती है व उनके निर्णयों में भागीदार बनती है। बच्चे भी अपनी माँ की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं। मायके-ससुराल के बीच सेतु सही अर्थों में आज नारी मायके व ससुराल के दो परिवारों के बीच सेतु बन दोनों परिवारों की गरिमा बनाए रखना सीख चुकी है। ससुराल के दायित्वों को निभाते हुए भी वह मायके के कर्तव्यों को भी सर्वोपरि मान पूर्ण करती है ...सासों ने बहुओं को ममता-स्नेह देना प्रारंभ किया है तो बहुएँ भी सास को मानती हैं। अब सास-बहू सीरियलों में ज्यादा लड़ती हैं, असल में कम। इस तरह के सुखद परिवर्तन स्त्री शक्ति की सकारात्मक अभिव्यक्ति हैं।,, अन्तरंग संबंधो की स्थापना केवल संतानोत्पत्ति के लिए ही करना चाइये , यह धर्मसम्मत बात है , अब यदि लोग इंसानियत छोड़ दे तो क्या करे , ब्रम्हचर्य मैं बड़ी शक्ति है , कई गृहस्त लोग बहुत पहुचे हुए हें , श्री राम शर्मा आचार्य , पंडित गोपीनाथ कविराज . रामकृष्ण परमहंस , निगमानंद परमहंश और भी कई अन्य ओग है इन्होने जाना सच्च्जई को संकल्प किया और आल भगवन बन गय ==================== जय मातृशक्ति! .. स्त्री भावना प्रधान है और पुरुष विचार प्रधान| पर यह सत्य है कि जो भी सम्बन्ध सिर्फ चेहरे के कोण और त्वचा के रंग को देखकर या किसी भी तरह कि अपेक्षा पर आधारित होते हैं वे विफल होते हैं| स्त्री के लिए यदि पुरुष परमेश्वर है तो पुरुष के लिए स्त्री भी अन्नपूर्णा| जहाँ स्त्री-पुरुष एक दूसरे को परमात्मा की तरह प्रेम करते हों व एक दूसरे का प्रेम परमात्मा की तरह स्वीकार करते हों वही सम्बन्ध सफल होता है| ऐसी ही महिलाओं के गर्भ में महान आत्माओं का जन्म होता है| जब पुरुष का शुक्राणु और स्त्री का अंडाणु मिलते है तब सुक्ष्म जगत में एक विस्फोट सा होता है और जैसी भी भावस्थिति उनकी (विशेष रूप से स्त्री की) होती है वैसी ही आत्मा गर्भस्थ हो जाती है| स्त्री चाहे तो महापुरुषों को जन्म दे सकती है और अनजाने में कचरा मनुष्यता को भी| स्त्री पुरुष संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है उनके स्वभाव व संस्कारों की| स्त्री चाहे तो परिवार का जीवन स्वर्ग या नर्क बना सकती है| धन्यवाद! आप मेरी बेटी ही हो अतः मेरी ओर से बहुत बहुत प्यार| मेरे इस लेख को सुरक्षित रखना| जय मातृशक्ति! मेरे उपरोक्त कथन में एक और पंक्ति जोडना चाहता हूँ ---- "स्त्री चाहे तो स्वयं को भोग्या बना सकती है और चाहे तो पूज्या|" प्रकृति ने ही स्त्री और पुरुष में जो मुलभूत भेद रखे है उसका छेदन तो नं नारी कर सक्ती है नं पुरुष . "यत्र नार्यस्तु पूज्यते, तत्र रमन्ते देवता " ये हमारी संस्कृति है शिव भी शक्ति बिन अधुरे है ,और हमारे ज्ञानी मनीषी ऋषी यो में सिर्फ पुरुष ही नही थे ,गार्गी ,मदालसा ,अनुसया ,स्वयंप्रभा,,मीरा सावित्री ,द्रोपदी जैसी विदुशी नारीया हमारे धरती पर हुई और ज्ञानी ऋषी योंको भी इन महिलावोने शास्त्रार्थ में परास्त भी किया था और वैदिक काळ में भी इन महिला वो के ज्ञान का लोहा समाज ने माना था और यही परंपरा आज भी चल रही है =================================== मनुष्य जीवन की आधारभूता शक्ती स्त्री है,स्त्री ही अपने विभिन्न रुपों से ममता,प्यार,वात्सल्य आदि की वर्षा करती हुई मानव जीवन को गतिमान करती है। मनुष्य जीवन की आधारभूता शक्ती स्त्री है,स्त्री ही अपने विभिन्न रुपों से ममता,प्यार,वात्सल्य आदि की वर्षा करती हुई मानव जीवन को गतिमान करती है। =========================== प्राचीन काल के ऋषि-मुनि सब गृहस्थ होते थे| संन्यास आश्रम में प्रवेश ७५ वर्ष की आयु के पश्चात ही होता था| कुछ ही अपवाद थे जो जन्म से ही विरक्त होते थे| युवा सन्यासियों की परम्परा तो बहुत बाद में समय की तत्कालीन आवश्यकताओं के कारण हुई| प्राचीन काल के ऋषियों को महान संताने उत्पन्न करने की कला का ज्ञान था इसीलिये भारत में इतने महान आत्माओं ने जन्म लिया| गृहस्थाश्रम सब आश्रमों से श्रेष्ठ है क्योंकि अन्य सारे आश्रमों को आश्रय ग्रुहास्थाश्रम से ही मिलता है| अतः प्राचीन भारत की वर्णाश्रम परम्परा सर्वश्रेष्ठ थी| अगस्त्य ऋषि भी जन्म से ही विरक्त थे पर उनके पितृगणों ने उन्हें आदेश दिया विवाह करने का क्योंकि पितृगण श्राद्ध न होने से प्रेत योनी में थे| अगस्त्य ऋषि ने लोपामुद्रा से विवाह किया जो उस समय की सबसे अधिक विदुषी और तपस्वी कन्या थी| वेदों की अनेक ऋचाएं लोपामुद्रा ने अनावृत कीं| प्राचीन भारत में विवाह एक अनिवार्य संस्था थी, बहुत नगण्य अपवाद थे| एक सद्गृहस्थ का स्थान सबसे ऊपर है| वह सन्यासी से भी श्रेष्ठ है| ======================== Woman….. Artfully and delicately moulded, the creator's masterpiece; his perfect delight! His choice as man's mate; Much more than a mere missing rib! Woman... The epitome of beauty and glamour Adorned with dignity, full of strenght, splendour and vigour Man's mother, sister, friend, and soulmate Affectionately configured, warm and tender, Skilled in the crafts of home and hearth, diligent in homemaking, ordained to productivity! God's dream came true, you produced the seed that bruised the serpent's heel your mouth is filled with wisdom, faithful instructions emit from your tongue the weaker vessel you may be called yet you are the mother of all men! You are an ultimate being!!!!!!!!!!! ============================= स्त्री के कर्म, सफलता व स्थिति को हर परिवार में सम्मान मिले ....... आजादी सबको प्रिय है। लेकिन स्वतंत्र रहने के साथ स्वावलंबन भी जरूरी है। परिवार में स्त्री-पुरुष जब पति-पत्नी के रूप में होते हैं, तब स्वतंत्र तो हो जाते हैं, पर स्वावलंबन नहीं आ पाता। परमात्मा और प्रकृति ने स्त्रियों को मां बनने का अधिकार देकर उनकी विशेषता घोषित की है। इसलिए समाज में उनकी प्रतिष्ठा अधिक होनी चाहिए, लेकिन हो उल्टा गया। उनके गुण को उनकी मजबूरी बता दिया गया, जबकि प्रकृति ऐसा विश्वास पुरुष के प्रति व्यक्त नहीं कर पाई। परमात्मा ने तो पुरुष के शरीर में इतना सत्व भी नहीं रखा कि वह किसी नवजात को दूध का पोषण करा सके। पुरुषप्रधान समाज ने तो यह घोषणा कर दी कि स्त्री का शरीर गर्भ धारण के लिए बना है, इसलिए वह स्वतंत्र व स्वावलंबी नहीं हो सकती। ईश्वर ने जब स्त्री और पुरुष को बनाया तो दोनों के भीतर उनके लक्षण और गुण थोड़े-थोड़े डाल दिए। जैसे नेपोलियन जैसे योद्धा की शक्ल में स्त्रियों की झलक थी। परमात्मा ने सभी के भीतर स्त्री के भाव, लक्षण और गुण छोड़े हैं। इसलिए परिवारों में स्त्रियों द्वारा किए गए कर्म, सफलता और उनकी स्थिति को वही सम्मान मिलना चाहिए, जो पुरुष प्राप्त करना चाहता है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि यदि मेरे ही हाथों से मेरे लोग मारे गए तो मेरी विजय का मूल्य क्या है? भगवान ने इसे समझाने के लिए गीता कह दी, लेकिन वे अर्जुन को समझाते हैं कि तुम एक स्थिति हो। सारी क्रियाओं के पीछे मैं खड़ा हूं। जिस दिन हमारे परिवारों में सही रूप में भक्ति उतरती है, हम स्त्री-पुरुष का भेद इसी भाव से मिटा सकते हैं। हम एक स्थिति हैं और परमात्मा ने एक-दूसरे की पूर्ति करते हुए हमें बनाया है। .. जिस आर्य संस्कृति में स्त्री के सम्बन्ध में इतनी आदर और सम्मान पूर्ण बातें कही हैं उस संस्कृति में स्त्री का अपमान कैसे हो सकता है? हमारी भारतीय संस्कृति आज भले ही पुरुष-प्रधान संस्कृति का रूप ले रही है, परन्तु इस संस्कृति के विकास में और श्रेष्ठता के शिखर पर पहुँचाने में नारी जाति का अवर्णनीय योगदान रहा है। उस उपकारी के प्रति यदि कोई अपमान करता है, तिरस्कार जनक शब्द लिखता है, कहता है तो वह उसकी कृतघ्नता ही मानी जायेगी। ===================== यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राऽफलाः क्रियाः । जिस घर में स्त्रियों का सम्मान होता है, उन्हें आदर और स्नेह मिलता है, उस घर में देवता रमण करते हैं। वहाँ लक्ष्मी का निवास रहता है। और जहाँ स्त्री को सम्मान नहीं मिलता, वहाँ सभी क्रियाएँ, सभी प्रवृत्तियाँ व्यर्थ जाती हैं। मनुस्मृति में मनु महाराज स्वयं इस बात पर बार-बार बल देते हैं कि - जहाँ बहन, बेटी दुःख पाती हैं, जहाँ नारी आँसू बहाती हैं, वह कुल उस नारी आँसू रूपी नदी में बहकर नष्ट हो जाता है। नारी के दुःख भरे श्वास-आहें अग्नि की ज्वाला बनकर भरे-पूरे समृद्ध परिवार को भस्म कर देते हैं।

Wednesday, 18 April 2012

श्री गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
" शुभ सुप्रभात" 
ॐ श्री सद गुरु देवाय नम: 
ॐ गं गणपतये नम: 
प्रत्येक लग्न के लिए कारक और अकारक गृह 
कारक गृह उस लग्न के लिए शुभ फलदात होते हैं और अकारक कोई फल नहीं देते 
मेष लग्न के लिए....स्वामी मंगल 
करक.. ......सूर्य मंगल और गुरु....
सूर्य (त्रिकोणेश), मंगल लग्नेश ] गुरु..भाग्येश (त्रिकोणेश)
अकारक.......शुक्र, बुद्ध और शनि.
बुद्ध प्रबल अकारक..है ३ सरे और छटे भाव का स्वामी होकर अशुभ है/ शुक्र मारकेश धन और सप्तम का स्वामी होकर मारकेश...है
शनि दशम (राज्यश और आय ) का स्वामी हो कर 
nutal .....चन्द्र सुखेश है अत; होरो में जैसी स्थिति में होगा उस प्रकार फल देगा
वृषभ लग्न........स्वामी शुक्र 
करक........प्रबल करक शनि, सूर्य और बुद्ध 
शनि (भाग्येश ९थ , राज्येश १० ), सूर्य सुखेश , बुद्ध पंचमेश (त्रिकोण का स्वामी )
अकारक ........चन्द्र और गुरु (दोनों लग्न के स्वामी के शत्रु हैं ) 
nutal .....चन्द्र और गुरु 
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मिथुन लग्न.......स्वामी बुद्ध 
करक .........बुद्ध, शुक्र और शनि 
बुद्ध............... लग्नेश, सुखेश (चतुर्थ का स्वामी ), शुक्र...पंचमेश (शुभ भाव होता है ) शनि नवमेश (भाग्य भाव ९ थ ) त्रिकोण का स्वामी हो कर साद शुभ फलदाता....
'शुभ सुप्रभात" 
ॐ श्री सद गुरुदेवाये नम: 
ॐ गं गणपतये नम: 
कर्क लग्न ......स्वामी chandr
कारक ---- चन्द्र, गुरु, मंगल 
चन्द्र लग्नेश, मंगल पंचमेश, राज्येश, प्रबल कर्क गुरु ...नवमेश 
अकारक .....बुद्ध, शुक्र और शनि (मारकेश )
Nutal .... सूर्य.
सिंह लग्न.......स्वामी सूर्य .
कारक......सूर्य और मंगल
सूर्य लग्नेश, मंगल भाग्येश, सुखेश 
अकारक .....बुद्ध, शुक्र शनि..
Nutal .... चन्द्र और गुरु
कन्या लग्न...स्वामी बुद्ध 
कारक.....शुक्र और बुद्ध/ बुद्ध लग्नेश और शुक्र....धनेश और नवमेश...
अकारक ....गुरु, चन्द्र, मंगल (मारक )
Nutal .... सूर्य , शनि 
तुला लग्न...स्वामी शुक्र 
कारक ....शनि, बुद्ध, और शुक्र
शनि ......पंचमेश,(त्रिकोनेश) सुखेश,(kendresh), प्रबल कारक बुद्ध नवमेश (त्रिकोनेश ) शुक्र लग्नेश 
अकारक...सूर्य, चन्द्र, गुरु 
Nutal .... मंगल 
वृश्चिक ........स्वामी मंगल (बिच्छू )
कारक.....चन्द्र, सूर्य, गुरु 
चन्द्र नवमेश, सूर्य राज्येश, गुरु पंचमेश 
अकारक ...बुद्ध, शुक्र, शनि 
Nutal .... मंगल....
" शुभ सुप्रभात" 
ॐ श्री सद गुरुदेवाये नम: 
ॐ गं गणपतये नम: 
धनु लग्न.....स्वामी गुरु...
करक गृह......सूर्य, मंगल 
सूर्य भाग्येश, मंगल पंचमेश 
अकारक........बुद्ध, शुक्र, शनि, चन्द्र,
nutal ......गुरु 
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मकर लग्न ...स्वामी शनि 
करक गृह......शुक्र, शनि और बुद्ध, 
बुद्ध भाग्येश, शुक्र पंचमेश, शनि लग्नेश और धनेश (Nutal) 
अकारक........गुरु, मंगल, चन्द्र,
nutal ......सूर्य 
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कुम्भ लग्न ........स्वामी शनि 
करक गृह.......शुक्र, शनि
शुक्र सुखेश, नवमेश, शनि लग्नेश (शनि की मूल त्रिकोण राशी है )
अकारक........सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु 
nutal ......बुद्ध.
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मीन लग्न........स्वामी गुरु 
करक गृह...... मंगल, चन्द्र,
मंगल धनेश, नवमेश और चन्द्र पंचमेश 
अकारक........बुद्ध, शुक्र, शनि, सूर्य, 
nutal .....गुरु 
-----------------------क्रमश: भाव फल कल .....