Tuesday, 30 October 2012

शुभ प्रभात 
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
१९/०६/२०१२ मंगलवार 
चतुर्थ भाव ......
जन्मकुंडली में चौथा बहव बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है इस से जातक के जीवन की सुख-शांति का विचार किया जाता है , चतुर्थ भाव से मुख्यता विद्या, माता, सुख, सुगंध, चौपायो का सुख, मन के सात्विक-राजसिक-तामसिक गुण, वाहन, भूमि, भवन (मकान ) नेतृत्व शक्ति, आकस्मिक कष्ट, तथा ट्रान्सफर आदि का विचार किया जाता है 
चतुर्थ भाव में मेष राशी ....स्वामी मंगल .....यदि सुख भाव में मेष राशी हो और मंगल की स्थिति बलवान हो तो माता दीर्घायु , भूमि से लाभ होगा वहीँ जातक क्रोधी स्वाभाव का, अक्खड़ स्वाभाव वाल होता है जातक का अपनी माता से अनबन होती है तथा लड़ाई-झगडे करने की प्रवृत्ति होने से सब उससे दूर रहते हैं यदि मंगल निर्बल या पपाक्रांत हो तो माता की आयु थोड़ी होती है तथा माता जनेन्द्रिय रोग से पीड़ित होती है भूमि नाश होता है या उस पर झगडे होते रहते हैं... ऐसे जातक का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता, पत्नी का दूर रहना या पत्नी का मर जाना या जातक को छोड़ देना दूसरा विवाह आदि जैसे कुफल प्राप्त होते हैं यदि मंगल नीच का हो तो दाम्पत्य जीवन उत्तम रहता है भूमि और व्यापर से जातक धनार्जन करता है ...
चतुर्थ में वृषभ राशी स्वामी शुक्र .....शुक्र केंद्र और त्रिकोण का स्वामी बनकर योग्कारका होता है शुक्र की बलवान स्थिति से जातक उच्च वाहनों का शुख प्राप्त करता है , बड़ा भूमिपति होता है तथा राजनीती में अपार लोकप्रियता प्राप्त करता है ...धार्मिक कार्यो में ऐसे जातक की रुच होती है तथा वह समाज में विशेष आदर सम्मान प्राप्त करता है ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी होता है परिवार में सभी उसे आदर मान-सम्मान देते हैं जन्कर्यो में जातक बढ़-चढ़ कर भाग लेता है ...लेकिन शुक्र की अशुभ स्थिति उपरोक्त फलो में न्यूनता लाती है
ॐ श्री सद गुरुदेवाये नम: 
सुख भाव (चतुर्थ में )....राशी फल

मिथुन राशी...स्वामी बुद्ध ....यहाँ बुद्ध दो केन्द्रों चोथे व सातवे भाव का स्वामी बनता है यदि बुद्ध पापक्रांत हो तो जातक की माता के लिए अशुभ होता है वह मानसिक रोगी होती हैं ऐसे जातक के बाल्यकाल में ही पिता से दूर होना पड़ता है अथवा पिता की मृत्यु हो जाती है...यदि बुद्ध चंद्रमा और शुक्र से अशुभ योग करता हो तो जातक की माता पागल तक हो जाती है तथा उसका स्वयं का जीवन भी नरकतुल्य होता है ...ऐसा जातक विलासी प्रकृति का होता है सुन्दरता उसे पसंद होती है ऐसा जातक सुंदर लडकियों और स्त्रियों में रूचि लेता है ..वह विलासिता की वस्तुओ पर धन व्यय करता है ऐसे जातक को धनि नहीं कहा जा सकता तथा उसकी अंतिम अवस्था कष्टकर होती है...
कर्क राशी ...स्वामी चंद्रमा ....यदि चौथे भाव में कर्क राशी हो तो चंद्रमा का गहन अध्यन करना चाहिए क्यूंकि चन्द्र पर जैसा प्रभाव होगा जातक भी वैसा ही होगा चंद्रमा मन तथा माता का करक है इसका पापक्रांत रहना या निर्बल स्थिति में रहना दोनों के लिए हानिप्रद है यदि चंद्रमा राहु शनि से प्रभावित हो तो जातक शराबी-कबाबी बनता है यदि मात्र राहु से प्रभावित हो तो दौरे पड़ते हैं जातक को मिर्गी की बीमारी हो जाती है ...ऐसा जातक देखने में सुंदर, मनोहर तथा अच्छे स्वाभाव का होता है प्राणी मात्र से प्रेम करता है ऐसे जातक सुंदर सुशिल पत्नी मिलती है तथा उसका दाम्पत्य जीवन सुखी होता है...मित्रो की संख्या अधिक होती है ...उसके अभ्युदय में स्त्री का विशेष हाथ होता है
सिंह राशी ..स्वामी सूर्य .....जातक क्रूर स्वाभाव का होता है उसे हर समय क्रोध आत रहता है यदि सूर्य निर्बल हो तो जाता को अनेक निवास बदलने पड़ते हैं...नौकरी में हो तो अधिक तबादले होते हैं उसकी माता रोगिणी होती है उपरोक्त दुष्प्रभाव सूर्य के शनि रहू आदि ग्रहों से पीड़ित होने पर अनुभव में आते हैं ...जातक के पेट में पीड़ा होती है ....यदि सूर्य बलवान हो तो जातक का मकान सुंदर सुसज्जित और खुला होता है उसका वक्ष स्थल विशाल होता है तथा वह साहसी होता है .. उसकी माता मनस्विनी होती है तथा जातक को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं पपक्रांत सूर्य कन्या संतति अधिक देता है ऐसे जातक का पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता पुत्र प्राय: कुपुत्र होते हैं 
कन्या राशी...स्वामी बुद्ध...जातक सौभाग्यशाली होता है धन की ऐसे जातक को कोई कमी नहीं होती लेकिन उसकी मित्रता निम्न वर्ग के लोगो से रहती है...उसे चुगलखोरो के कारन हनी उठानी पड़ती है चोरो तथा तांत्रिक शत्कार्मो द्वारा भी ऐसा जातक पीड़ित रहता है....बुद्ध के निर्बल रहने से जातक दुखी, अल्पशिक्षित, मुर्ख, तथा जनता का विरोधी होता है....यदि बुद्ध बलि हो तो जातक का विवाह बाल्यकाल में संभव है पत्नी सुशिल सुंदर मिलती है लडकियों की अपेक्षा लड़के अधिक होते हैं ऐसा जातक अनेक भाषाओ का जानकर होता है ...बल्यावाष्ठ कष्टकर होती है लेकिन युवावस्था तक वह धनि हो जाता है ऐसा जातक सद्गुण संपन्न, विवेकशील, और शिक्षित होता है वाहन आदि का उसे सुख मिलता है समाज में लोकप्रिय व माता का पूर्ण सुख उसे मिलता है .....Deval Dublish Mob.:9690507570, 9634290878

Saturday, 20 October 2012

Jyotish ....

"शभ सुप्रभात"
ॐ श्री सद गुरुदेवाये नम:
ॐ गं गणपतये नम: 
ग्रहों का अंग विन्यास 
प्रश्न कल, गोचर अथवा जन्म समय में जब कोई गृह प्रतिकूल फलदाता होता है तो वह कालपुरुष के उसी अंग में अपने अशुभ फल के कारन पीड़ा पहुचाहता है
सूर्य का ....सर और मुख 
चन्द्र का....हृदय और कंठ 
मंगल का....पेट और पीठ 
बुद्ध का...हाथों और पावो पर 
गुरु का .........बस्ती par 
शुक्र का..........गुप्त स्थान पर 
शनि का........जन्घो पर

ॐ श्री सद गुरुदेवाये नम:
ॐ गं गणपतये नम:
ग्रहों के सम्बन्ध..
दो ग्रहों में परस्पर राशी परिवर्तन का योग हो- अर्थात 'क' गृह..ख गृह की राशी में बैठा हो ख गृह क गृह की राशी में बैठा हो -तो यह सम्बन्ध अति उत्तम सम्बन्ध होता है 
जब दो गृह परस्पर एक-दुसरे को देख रहे हो तो यह सम्बन्ध बनता है -यह मध्यम सम्बध मन जाता है ...
दोनों ग्रहों में से एक गृह दुसरे गृह की राशी में बैठा हो और दोनों में से एक दुसरे गृह को देखता हो यह तीसरा सम्बन्ध मन जाता है 
जब दोनों गृह एक ही राशी में बैठे हो तो एश चौथे प्रकार का सम्बन्ध होता है....
तब दो गृह एक-दुसरे से त्रिकोण भाव में (5th और 9th भाव में ) बैठे हो तो ये सम्बन्ध उत्तम सम्बन्ध मन जाता है ...मतलब कोई भी गृह जिस भाव में बैठा हो उस से पांचवे या नवे भाव में जोग्रह बैठा हो उसका सम्बन्ध त्रिकोण सम्बन्ध कहलाता है .....

ग्रहों की दृष्टि .....
जो प्रभावकारी दृष्टि हैं वे इस प्रकार हैं ...
प्रत्येक गृह अपने से सातवे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है 
गुरु जहां बैठा हो वहां से ५वी ७वी ९ वी दृष्टि से देखता है
शनि ३री ७वी १० वी दृष्टि से देखता है
मंगल ४थी ७वी और १० वी दृष्टि से देखता है 
रहू और केतु की दृष्टि ३ री ७ वी ५ वी और ९वी के साथ अपने अगले भाव पर भी दृष्टी रखते हैं
भावो के स्थिर करक 
सूर्य लग्न, धर्म और कर्म भाव का करक hai
चन्द्र...सुख bhav का / मंगल पुरषार्थ और शत्रु भाव का कारक है/ बुद्ध सुख और कर्म बहव का/ गुरु ...धन, पुत्र, धर्म, कर्म और आय भाव का / शुक्र ..स्त्री भाव का तथा शनि ..शत्रु, मृत्यु , कर्म और व्यय भाव का स्वामी है ......

"शुभ सुप्रभात" 
ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
भावो के स्थिर कारक गृह ...
सूर्य....लग्न, धर्म, कर्म का (ix & x) ka
चन्द्र...सुख (iv) का 
मंगल ..सहज (iii) कौर शत्रु (vi) का
बुद्ध....सुख और कर्म भाव का...
गुरु....धन (ii) पुत्र (v) धर्म, कर्म और आय (xi) का 
शुक्र....स्त्री भाव (vii) का 
शनि .......मृत्यु (viii) कर्म (x) और व्यय (xii) का 
आत्मदी चर कारक.....
सुर्यादी नव ग्रहों में जो सबसे अधिक अंश वाला गृह ...आत्म कारक, उससे कम अंश वाला...अमात्य कारक, उससे कम अंश वाला...भ्रात्र कारक ...उससे कम...मात्र कारक....उससे कम....पितृ कारक ...उससे कम पुत्र कारक....उससे कम जाति कारक 
यदि गृह सूर्य का साथ हो तो अस्त, मंगल आदि पुरुष गृह चन्द्र का साथ हो तो समागम और मंगल के साथ एनी गृह हो तो युद्ध कहलाता है...उत्तरायण में सूर्य और चन्द्र दोनों बलि होते हैं शेष गृह समागम और वक्री (regrotted) होने से बलि होते हैं 
सूर्य....के नेत्र शहद की भांति पिंगल वर्ण के हैं इसके शारीर की लम्बाई चौरे बराबर है..यह अधिक पित्त वाला और सर पर थोड़े बालो वाला होता है..तथा मृत्युलोक का अधिपति होता है जन्म के समय इसकी स्थिति के अनुरूप जातक की देह, पिता, पराक्रम , आशक्ति, और धन का विचार किया जाता है...शारीर में हड्डी और आत्मा का स्वामी है.....................शेष कल