शुभ प्रभात वंदन दोस्तों ....श्राद्ध पक्ष : कैसे मिटेगा पितृ दोष
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पितृ यानि हमारे मृत पूर्वजों का तर्पण करवाना हिन्दू धर्म की एक बहुत प्राचीन प्रथा व पर्व है। हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन निर्धारित किए गए हैं ताकि आप अपने पूर्वजों को याद करें और उनका तर्पण करवा कर उन्हे शांति और तृप्ति प्रदान करें, जिससे आपको उनका आर्शीवाद और सहयोग मिले।
जिस माता, पिता, दादा, दादी, प्रपितामह, मातामही एवं अन्य बुजुर्गों के लाड, प्यार, श्रम से कमाएं धन एवं इज्जत के सहारे आप सुखपूर्वक रहते हैं, तो आज जब उनका शरीर पांच तत्व में विलीन हो गया है तो आपका यह परम कर्तव्य बनता है कि अपने पितरों के लिए कम से कम और कुछ नहीं कर सकते तो तर्पण तो कर दें।
यदि आप अपने माता, पिता, पितामह और परदादा आदि के प्रति असम्मान प्रकट करते हो तथा उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करते हो तो आपको पितृदोष को झेलना ही होगा।
पितृ दोष दो तरह के होते हैं 1. वंशानुगत, 2. अवंशानुगत। यदि आपने उनके प्रति कोई अपराध किया है तो आपको निम्न में से एक या सभी तरह के कष्ट होंगे।
1.वंशानुगत : किसी भी प्रकार का शारीरिक अपंगता, रोग या मानसिक विकार आनुवांशिक हो सकता है।
- अर्थात वंश क्रम में कोई रोग या अवांछनीय गतिविधि होती चली आ रही हो। इस वंशानुगत दोष को दूर करने के लिए आयुर्वेद और अथर्ववेद में लिखे उपाय किए जाते हैं।
2. अवंशानुगत : अवंशानुगत का अर्थ है कि पितृ लोक के पितृ आपके धर्म-कर्म से रुष्ठ हैं इसलिए उनके कारण आपके जीवन में तरह-तरह के कष्ट होते रहते हैं जैसे : -
1. संतान बाधा : या तो संतान नहीं होगी, लेकिन यदि संतान है तो संतान से कष्ट बना रहता है।
2. विवाह बाधा : यदि कुल-खानदान में कोई पुत्र है तो उसके अविवाहित बने रहने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
3. स्वास्थ्य बाधा : परिवार में किसी अदृश्य एवं चिकित्सकों की पहुंच से बाहर का कोई रोग हो। पूरा इलाज होने के बावजूद रोग ठीक नहीं होता हो।
4. पारिवारिक बाधा : गृह कलह से मानसिक शांति भंग हो जाती है। पूरा परिवार बिखर जाता है। परिवार के किसी भी सदस्य की आपस में नहीं बनती। सभी एक-दूसरे का अपमान करते हैं। रिश्तेदारी से भी सभी दूर हो जाते हैं।
5. अर्थ बाधा : लगातार आर्थिक नुकसान होता रहता है। व्यक्ति का धंधा, नौकरी और कारोबार नहीं चलता।
पितृदोष से मुक्ति का उपाय***********
वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं -
(1) ब्रह्म यज्ञ (2) देव यज्ञ (3) पितृ यज्ञ (4) वैश्वदेव यज्ञ (5) अतिथि यज्ञ।
उक्त पांच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार से दिया गया है। उक्त पांच यज्ञ में से ही एक यज्ञ है पितृ यज्ञ। इसे पुराण में श्राद्ध कर्म की संज्ञा दी गई है।
पूर्वजों के कार्यों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ी पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पितृ दोष कहते हैं।
पितृ दोष का अर्थ यह नहीं कि कोई पितृ अतृप्त होकर आपको कष्ट दे रहा है। पितृ दोष का अर्थ वंशानुगत, मानसिक और शारीरिक रोग और शोक भी होते हैं।
घर और बाहर जो वायु है वह सभी पितरों को धूप, दीप और तर्पण देने से शुद्ध और सकारात्मक प्रभाव देने वाली बन जाती है। इस धूप, श्राद्ध और तर्पण से पितृलोक के तृप्त होने से पितृ दोष मिटता है।
पितरों के तृप्त होने से पितर आपके जीवन के दुखों को मिटाने में सहयोग करते हैं। पितृ यज्ञ और पितृ दोष एक वैज्ञानिक धारणा है।
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पितृ यानि हमारे मृत पूर्वजों का तर्पण करवाना हिन्दू धर्म की एक बहुत प्राचीन प्रथा व पर्व है। हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन निर्धारित किए गए हैं ताकि आप अपने पूर्वजों को याद करें और उनका तर्पण करवा कर उन्हे शांति और तृप्ति प्रदान करें, जिससे आपको उनका आर्शीवाद और सहयोग मिले।
जिस माता, पिता, दादा, दादी, प्रपितामह, मातामही एवं अन्य बुजुर्गों के लाड, प्यार, श्रम से कमाएं धन एवं इज्जत के सहारे आप सुखपूर्वक रहते हैं, तो आज जब उनका शरीर पांच तत्व में विलीन हो गया है तो आपका यह परम कर्तव्य बनता है कि अपने पितरों के लिए कम से कम और कुछ नहीं कर सकते तो तर्पण तो कर दें।
यदि आप अपने माता, पिता, पितामह और परदादा आदि के प्रति असम्मान प्रकट करते हो तथा उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करते हो तो आपको पितृदोष को झेलना ही होगा।
पितृ दोष दो तरह के होते हैं 1. वंशानुगत, 2. अवंशानुगत। यदि आपने उनके प्रति कोई अपराध किया है तो आपको निम्न में से एक या सभी तरह के कष्ट होंगे।
1.वंशानुगत : किसी भी प्रकार का शारीरिक अपंगता, रोग या मानसिक विकार आनुवांशिक हो सकता है।
- अर्थात वंश क्रम में कोई रोग या अवांछनीय गतिविधि होती चली आ रही हो। इस वंशानुगत दोष को दूर करने के लिए आयुर्वेद और अथर्ववेद में लिखे उपाय किए जाते हैं।
2. अवंशानुगत : अवंशानुगत का अर्थ है कि पितृ लोक के पितृ आपके धर्म-कर्म से रुष्ठ हैं इसलिए उनके कारण आपके जीवन में तरह-तरह के कष्ट होते रहते हैं जैसे : -
1. संतान बाधा : या तो संतान नहीं होगी, लेकिन यदि संतान है तो संतान से कष्ट बना रहता है।
2. विवाह बाधा : यदि कुल-खानदान में कोई पुत्र है तो उसके अविवाहित बने रहने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
3. स्वास्थ्य बाधा : परिवार में किसी अदृश्य एवं चिकित्सकों की पहुंच से बाहर का कोई रोग हो। पूरा इलाज होने के बावजूद रोग ठीक नहीं होता हो।
4. पारिवारिक बाधा : गृह कलह से मानसिक शांति भंग हो जाती है। पूरा परिवार बिखर जाता है। परिवार के किसी भी सदस्य की आपस में नहीं बनती। सभी एक-दूसरे का अपमान करते हैं। रिश्तेदारी से भी सभी दूर हो जाते हैं।
5. अर्थ बाधा : लगातार आर्थिक नुकसान होता रहता है। व्यक्ति का धंधा, नौकरी और कारोबार नहीं चलता।
पितृदोष से मुक्ति का उपाय***********
वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं -
(1) ब्रह्म यज्ञ (2) देव यज्ञ (3) पितृ यज्ञ (4) वैश्वदेव यज्ञ (5) अतिथि यज्ञ।
उक्त पांच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार से दिया गया है। उक्त पांच यज्ञ में से ही एक यज्ञ है पितृ यज्ञ। इसे पुराण में श्राद्ध कर्म की संज्ञा दी गई है।
पूर्वजों के कार्यों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ी पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पितृ दोष कहते हैं।
पितृ दोष का अर्थ यह नहीं कि कोई पितृ अतृप्त होकर आपको कष्ट दे रहा है। पितृ दोष का अर्थ वंशानुगत, मानसिक और शारीरिक रोग और शोक भी होते हैं।
घर और बाहर जो वायु है वह सभी पितरों को धूप, दीप और तर्पण देने से शुद्ध और सकारात्मक प्रभाव देने वाली बन जाती है। इस धूप, श्राद्ध और तर्पण से पितृलोक के तृप्त होने से पितृ दोष मिटता है।
पितरों के तृप्त होने से पितर आपके जीवन के दुखों को मिटाने में सहयोग करते हैं। पितृ यज्ञ और पितृ दोष एक वैज्ञानिक धारणा है।
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