शुभ प्रभात
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश का विभिन्न भावगत फल....
यदि सप्तमेश लग्न में हो तो जातक रूपवान और कामी होता है...लेकिन उसे वात रोग (वायु जनित रोग : गैस, मांस-पेशियों में दर्द ) तथा वह लम्पट एवं दुष्ट प्रकृति का होता है ...ऐसा जातक अपनी पत्नी में रूचि न रख इधर-उधर तांक -झांक करता है ...यदि सप्तमेश शुभ गृह हो अथवा शुभ प्रभाव में हो तो जातक अपने पत्नी-बच्चों से अत्यधिक प्रेम करने वाला होता है यदि सप्तमेश अशुभ प्रभाव में आया हो या पापी अथवा क्रूर गृह हो तो जातक शोकातुर व स्नेह रहित होता है अपने मतलब से मतलब रखता है दूसरों के हित की उसे चिंता नहीं होती ....
यदि सप्तमेश धन भाव (द्वितीय ) में हो तो जातक की स्त्री दुष्ट स्वभाव की, पुत्रों की इच्छा करने वाली..और मात्र पुत्रो से प्रेम करने वाली होती है पाप प्रभावी अथवा पापी सप्तमेश हो तो जातक की स्त्री दुश्चरित्र होती है ..उसे केवल अपने रूप सौन्दर्य से मतलब होता है ...अपने इस रूप सौन्दर्य का पति के साथ रहते भी दुरूपयोग कर पराये पुरषों से सम्बन्ध रखती है...जातक यह सब जानकर भी कुछ नहीं कर पाता...घर में नित्य कलह का वातावरण रहता है ..मंगल व राहु जैसे उग्र गृह का प्रभाव सप्तम पर अथवा सप्तमेश पर हो तो जातक की पत्नी पूर्णतया व्यभिचार में लिप्त रहती है ...यहाँ जातक की स्थिति मृत्यु सामान होती है....यदि सप्तमेश शुभ प्रभाव में अथवा शुभ गृह हो तो जातक की स्त्री अपने पति पर सर्वस्व न्योछावर कर देती है प्रेम की अनूठी मिशल बनती है ...पति के धन वृद्धि करने वाली और सच्चरित्रा होती है...उसे पुत्रों का सुख मिलता है यदि सप्तमेश और गुरु स्त्री राशी में हो तो पहली संतान बेटी होती है बाद में पुत्र होते हैं...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:सप्तमेश का विभिन्न भावगत फल.....
यदि सप्तमेश तृतीय भाव में गया हो तो जातक की पत्नी मृत-वत्स होती है अर्थात मृत संतान को उत्पन्न करती है ...पुत्रियाँ जीवित रहती हैं भरपूर प्रयत्न करने पर एक पुत्र ही जी पता है यदि सप्तमेश पाप प्रभाव में हो तो जातक की पत्नी अपने देवर से सम्बन्ध रखती है ...यदि शुभ प्रभाव में हो तो जातक का अत्म्बस्ल बना रहता है ..वह स्वयम दुखी रह कर भी बंधू-बंधवो से प्रेम रखता है...उनकी भरपूर मदद करता है स्त्री को अत्यधिक प्रेम करता है...वह स्वयम भी रूपवान, गुनी, चतुर, होता है कई कार्य करता है तथा अपने धन का संचय करता......ऐसा जातक अपना भविष्य खुद बनाते हैं ..अपने पुरषार्थ बल पर...उन्नति करते हैं...
यदि सप्तमेश चतुर्थ में हो तो जातक पिता से बैर रखता है ...सदा पिता को नीचा दिखने के उपायों को खोजने में लगा रहता है...पिता की संपत्ति को हड़पने वाल होता है ...पिता और पुत्र दोनों एक साथ नहीं रह सकते और ये योग जब और विकत हो जाता जब कुंडली में सूर्य और शनि एक साथ हो...ऐसा जातक माता को तुच्छ समझता है ...माता-पिता सदा रोगों से ग्रस्त रहते हैं.....यदि सप्तमेश पाप प्रभाव में हो तो जातक स्वयं धर्मात्मा होता है, माता-पिता का सम्मान करता है सत्य वक्ता और सुसंस्कृत विचारों वाल होता है...उसे दन्त रोग से पीड़ा होती है ...पत्नी का चरित्र अच्छा नहीं होता....पुत्रों से ताड़ना मिलती है जीवन का उत्तरार्ध सुखी नहीं होता
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश पंचम भाव में..
यदि सप्तमेश पंचम भाव में हो तो जातक स्वाभिमानी एवं सर्वदा प्रसन्न रहने वाला होता है आय के अच्छे साधन होने से वह धनी होता है पुत्र आज्ञाकारी और पिता की कीर्ति को फ़ैलाने वाले होते हैं ...धन की बेतहाशा वृद्धि होती है पापी गृह अथवा पाप प्रभाव में आया पंचमेश पुत्र सुख से हीन व सर्वदा पुत्र और धन की चिंता करने वाला होता है ऐसे जातक की आयु कम होती है...पंचम भाव बुद्धि, पद-प्रतिस्था और त्रिकोण भाव होता है अत: इसका दूषित होना बल, बुद्धि, आयु को क्षीण करेगा ...फिर आयुष्कारक उपाय करने से इनके पुत्र जीवित भी रहते हैं और धन की प्राप्ति भी होती रहती है लेकिन ऐसे जातक विश्वास पात्र नहीं होते..जड़मति एवं दुसरो का अहित करने वाले होते हैं....पत्नी से वैमनस्य रहने के कारण पत्नी प्राय: अपने पिता के घर में जीवन बिताती है ....
सप्तमेश षष्ठ भाव में ......यदि सप्तमेश रिपु भाव (छटे भाव ) में गया हो तो जातक के अपनी पत्नी के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते ...यहाँ ध्यान रहे एक सर्विदित सूत्र ये है की किसी भाव का स्वामी जब उस से १२ वे स्थान में हो तो उस भाव की हानि होती है ..यहाँ सप्तमेश अपने भाव से १२ वे आ कर बैठ गे तो सप्तम भाव को हानि पहुंचाएगा... ..ऐसे जातक के घर में हमेशा कलह का वातावरण रहता है पत्नी दीर्घकालीन रोगों से घिरी रहती है अथवा जातक का साथ छोड़ देती है...दोनों अवस्थाओ में स्त्री का सुख अल्प होता है...सप्तम भाव यात्रा और डेली रोजगार का प्रतिनिधित्व भी करता है अत: वहां भी कलेश रहेगा...ऐसे जातक वास्तव में बेचारा होता है ग्रहों के खेल के आगे विवश...उसकी यही मानसिक कुंठा क्रोधी बनाती है ..फलत: झगडे होते हैं..shatru बनते हैं..जताक्का जीवन विषमय हो जाता है...राज्य पक्ष से बैर..मन-सम्मान की हानि, शत्रुओं से हानि, बाल्यावस्था कष्ट में, ..पापी सप्तमेश स्व राशी में हो तो जातक अपनी स्त्री के साथ अत्यधिक रति करने से क्षीण हो कर शीघ्र ही रोग ग्रस्त हो मृत्यु के मुख में चला जाता है
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश सप्तम में.....
यदि सप्तमेश सप्तम में हो तो तो यहाँ सप्तम और सप्तमेश का भाव बल बढ़ता है अर्थात जातक को जीवन साथी का पूर्ण सुख मिलता है...ऐसा जातक स्वयं भी विद्वान् एवं व्यवहारकुशल होता है ततः उसे जीवन साथी भी ऐसा ही मिलता है ...ऐसा जातक छल-प्रपंच से रहित साधू स्वभावी एवं तेजस्वी होता है ...उसे यात्राओं से, अपने स्वयं के उद्योग से पूर्ण लाभ मिलता है ...जातक की पत्नी उसे पूर्ण सुख सहयोग प्रदान करती है ..ऐसा जातक धैर्य शाली तथा समस्त कार्यों को विवेक एवं बुद्धि से करने वाला होता है...मुख्यतया वात रोगों से पीड़ा पहुँचती है....
यदि सप्तमेश अष्टम भाव में हो और पापी ग्रहों से प्रभावित हो तो जातक वेश्यागामी होता है उसका दाम्पत्य जीवन नरकतुल्य होता है..अष्टम भाव बाधक भाव भी होता है अत: जातक की समस्त सांसारिक प्रगति में बाधा पहुँचती है ...(चाहे यहाँ कोई शुभ राशी ही हो लेकिन उस राशी पर अगर कोई पाप गृह बैठता है तो जीवन नरक तुल्य होता है लेकिन यहाँ एक भेद है...अगर पाप गृह मंगल या राहु जैसे हुए...तो जीवन अत्यधिक कष्टकर, विष से मृत्यु ..आदि भोगना पड़ता है और अगर शनि स्वराशी, मूल त्रिकोण राशी में हो तो जातक को अपर कष्ट देकर अंतत: धर्म, आध्यात्म की गहराइयों में ले जाते है और जातक का जीवन सार्थक बना देते हैं..) ऐसे जातक की पत्नी साधारण नयन-नक्श वाली, कटु भाषिणी और पति की परवाह न करने वाली होती है या हर समय रुग्ण अवस्था में रहती है ...अन्य अशुभ योग हो तो विवाह प्रतिबंधक योग फलीभूत होता है ..और अगर सप्तमेश शुभ, प्रभाव में हो...स्त्री, धन, मन-सम्मान सब प्राप्त होता है...जीवन के अत्यधिक कष्ट उसे खोजी प्रकृति का बना देता हैं ...क्रमश:
शुभ प्रभात
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश नवम भाव में
यदि सप्तमेश नवम भाव में हो तो जातक बुद्धिमान, विवेक शील होता है लोग उसके आचरण को अनुकरणीय मानते हैं ..एक अद्भुत संयोग...सप्तमेश का भाग्य भाव (9th) में होना विवाहोपरांत तीव्र भाग्योदय का प्रतीक है ...और यदि ऐसा सप्तमेश लग्नेश की दृष्टि में हो तो जातक नीतिकुशल होता है तथा राजनीतिक क्षेत्र में आपार सफलता अर्जित करता है ...जातक की पत्नी सुंदर, सुशील एवं पति के मन-सम्मान, धन, यश, प्रतिष्ठा को बढ़ाने में पूर्ण सहयोग करती है ...सप्तमेश का त्रिकोण भाव में जाना इस बात का भी प्रतीक है की विवाह दूरस्थ स्थान से होगा,...लेकिन यदि सप्तमेश पाप प्रभाव में हो अथवा अशुह हो तो जातक अनेक स्त्रियों से रमण करने वाला ..एक साथ कई कार्यों को प्रारंभ करने की प्रवृत्ति होती है ..लेकिन हर समय स्त्री भोग की लालसा के कारण वो अपने किसी कार्य में सफल नहीं हो पता ..अत; किसी मित्र की कुंडली में ऐसा कोई योग घटित हो रह हो तो तुरंत उसका उपाय कर ले...धन्यवाद...
सप्तमेश की दशम भाव में स्थिति
यदि सप्तमेश दशम भाव में गया हो तो जातक लम्पट, परस्त्रीलोलुप, परधनहारी, क्रोधी, दम्भी, स्वयं को श्रेष्ठ मानने वाला, जैसे दुर्गुणों से युक्त अहंकारी प्रवृत्ति का होता है .ससुराल में आसक्त ऐसा जातक अपनी ससुराल का लोभी होता है....उसका ससुर एक प्रसिद्द व्यक्ति होता है ...पत्नी अपने सासु के अधिकार में रहती है ..यदि सप्तमेश शुभ गृह अथवा शुभ गृह के प्रभाव में हो तो जातक धर्मात्मा होता है ससुराल से संपत्ति मिलती है...सास अत्यधिक प्रीती रखने वाली होती है ऐसे जातक को पुत्र, धन संपत्ति सभी कुछ प्राप्त होता है ..लेकिन पत्नी उसके अधीन नहीं रहती..फलत: उसे मानसिक कलेश बना रहता है ....शिव ॐ..
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश आय भाव (एकादश ) में...
यदि सप्तमेश आय भाव में हो तो जातक को स्त्री द्वारा धन की प्राप्ति होती है ...इसमें दो कारन हो सकते हैं ..की स्त्री कोई जॉब या व्यवसाय के सञ्चालन से अपने पति को धन देती है अथवा एक योग यह भी है की पति घर जमी बन कर रहे] करे कुछ नहीं और ससुराल से उसे धन मिलता रहे...लेकिन सभी के साथ ऐसा हो यह संभव नहीं...ऐसे जातक को यहाँ कन्या संतति अधिक होती हैं...तथा पुत्र सुख अल्प मिलता है यदि सप्तमेश पापी गृह हो तो प्रवास अधिक करने पड़ते हैं...संतान की चिंता बनी रहती है तथा जातक कंजूस और शठ होता है ...कुल मिला कर ऐसे जातक को विभिन्न स्रोतों से स्त्री जाती से लाभ मिलता है....
यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो तो जातक दरिद्र और कृपण होता है...स्त्री अधिक व्यय करने वाली होती है घर के कम काज में अधिक रूचि नहीं लेती अपितु बहार सैर -सपाटे में मग्न रहती है..स्वाभाव से चालक और मलिन बुद्धि की होती है ऐसे जातक का दाम्पत्य सुख न के बराबर होता है ...प्राय: ऐसे जातक को बड़ी आयु में विवाह होता है और पत्नी की आयु भी बड़ी होती है ...जातक अपने आपको घर-परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त रखता है फलत: पत्नी की और ज्यादा ध्यान नहीं दे पता वस्त्रों का व्यापर करने वाला ऐसा जातक पत्नी के कारन बदनाम भी हो जाता है अत्यधिक पाप प्रभाव में आया सप्तमेश पत्नी को इतना नीच बना देता है की वैश्य भी उसके सम्मुख तुच्छ दिखती है ...ऐसे जातक को तमाम जीवन रहत नहीं मिलती ...और कल्पते हुए उसके प्राण निकलते हैं....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश का विभिन्न भावगत फल....
यदि सप्तमेश लग्न में हो तो जातक रूपवान और कामी होता है...लेकिन उसे वात रोग (वायु जनित रोग : गैस, मांस-पेशियों में दर्द ) तथा वह लम्पट एवं दुष्ट प्रकृति का होता है ...ऐसा जातक अपनी पत्नी में रूचि न रख इधर-उधर तांक -झांक करता है ...यदि सप्तमेश शुभ गृह हो अथवा शुभ प्रभाव में हो तो जातक अपने पत्नी-बच्चों से अत्यधिक प्रेम करने वाला होता है यदि सप्तमेश अशुभ प्रभाव में आया हो या पापी अथवा क्रूर गृह हो तो जातक शोकातुर व स्नेह रहित होता है अपने मतलब से मतलब रखता है दूसरों के हित की उसे चिंता नहीं होती ....
यदि सप्तमेश धन भाव (द्वितीय ) में हो तो जातक की स्त्री दुष्ट स्वभाव की, पुत्रों की इच्छा करने वाली..और मात्र पुत्रो से प्रेम करने वाली होती है पाप प्रभावी अथवा पापी सप्तमेश हो तो जातक की स्त्री दुश्चरित्र होती है ..उसे केवल अपने रूप सौन्दर्य से मतलब होता है ...अपने इस रूप सौन्दर्य का पति के साथ रहते भी दुरूपयोग कर पराये पुरषों से सम्बन्ध रखती है...जातक यह सब जानकर भी कुछ नहीं कर पाता...घर में नित्य कलह का वातावरण रहता है ..मंगल व राहु जैसे उग्र गृह का प्रभाव सप्तम पर अथवा सप्तमेश पर हो तो जातक की पत्नी पूर्णतया व्यभिचार में लिप्त रहती है ...यहाँ जातक की स्थिति मृत्यु सामान होती है....यदि सप्तमेश शुभ प्रभाव में अथवा शुभ गृह हो तो जातक की स्त्री अपने पति पर सर्वस्व न्योछावर कर देती है प्रेम की अनूठी मिशल बनती है ...पति के धन वृद्धि करने वाली और सच्चरित्रा होती है...उसे पुत्रों का सुख मिलता है यदि सप्तमेश और गुरु स्त्री राशी में हो तो पहली संतान बेटी होती है बाद में पुत्र होते हैं...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:सप्तमेश का विभिन्न भावगत फल.....
यदि सप्तमेश तृतीय भाव में गया हो तो जातक की पत्नी मृत-वत्स होती है अर्थात मृत संतान को उत्पन्न करती है ...पुत्रियाँ जीवित रहती हैं भरपूर प्रयत्न करने पर एक पुत्र ही जी पता है यदि सप्तमेश पाप प्रभाव में हो तो जातक की पत्नी अपने देवर से सम्बन्ध रखती है ...यदि शुभ प्रभाव में हो तो जातक का अत्म्बस्ल बना रहता है ..वह स्वयम दुखी रह कर भी बंधू-बंधवो से प्रेम रखता है...उनकी भरपूर मदद करता है स्त्री को अत्यधिक प्रेम करता है...वह स्वयम भी रूपवान, गुनी, चतुर, होता है कई कार्य करता है तथा अपने धन का संचय करता......ऐसा जातक अपना भविष्य खुद बनाते हैं ..अपने पुरषार्थ बल पर...उन्नति करते हैं...
यदि सप्तमेश चतुर्थ में हो तो जातक पिता से बैर रखता है ...सदा पिता को नीचा दिखने के उपायों को खोजने में लगा रहता है...पिता की संपत्ति को हड़पने वाल होता है ...पिता और पुत्र दोनों एक साथ नहीं रह सकते और ये योग जब और विकत हो जाता जब कुंडली में सूर्य और शनि एक साथ हो...ऐसा जातक माता को तुच्छ समझता है ...माता-पिता सदा रोगों से ग्रस्त रहते हैं.....यदि सप्तमेश पाप प्रभाव में हो तो जातक स्वयं धर्मात्मा होता है, माता-पिता का सम्मान करता है सत्य वक्ता और सुसंस्कृत विचारों वाल होता है...उसे दन्त रोग से पीड़ा होती है ...पत्नी का चरित्र अच्छा नहीं होता....पुत्रों से ताड़ना मिलती है जीवन का उत्तरार्ध सुखी नहीं होता
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश पंचम भाव में..
यदि सप्तमेश पंचम भाव में हो तो जातक स्वाभिमानी एवं सर्वदा प्रसन्न रहने वाला होता है आय के अच्छे साधन होने से वह धनी होता है पुत्र आज्ञाकारी और पिता की कीर्ति को फ़ैलाने वाले होते हैं ...धन की बेतहाशा वृद्धि होती है पापी गृह अथवा पाप प्रभाव में आया पंचमेश पुत्र सुख से हीन व सर्वदा पुत्र और धन की चिंता करने वाला होता है ऐसे जातक की आयु कम होती है...पंचम भाव बुद्धि, पद-प्रतिस्था और त्रिकोण भाव होता है अत: इसका दूषित होना बल, बुद्धि, आयु को क्षीण करेगा ...फिर आयुष्कारक उपाय करने से इनके पुत्र जीवित भी रहते हैं और धन की प्राप्ति भी होती रहती है लेकिन ऐसे जातक विश्वास पात्र नहीं होते..जड़मति एवं दुसरो का अहित करने वाले होते हैं....पत्नी से वैमनस्य रहने के कारण पत्नी प्राय: अपने पिता के घर में जीवन बिताती है ....
सप्तमेश षष्ठ भाव में ......यदि सप्तमेश रिपु भाव (छटे भाव ) में गया हो तो जातक के अपनी पत्नी के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते ...यहाँ ध्यान रहे एक सर्विदित सूत्र ये है की किसी भाव का स्वामी जब उस से १२ वे स्थान में हो तो उस भाव की हानि होती है ..यहाँ सप्तमेश अपने भाव से १२ वे आ कर बैठ गे तो सप्तम भाव को हानि पहुंचाएगा... ..ऐसे जातक के घर में हमेशा कलह का वातावरण रहता है पत्नी दीर्घकालीन रोगों से घिरी रहती है अथवा जातक का साथ छोड़ देती है...दोनों अवस्थाओ में स्त्री का सुख अल्प होता है...सप्तम भाव यात्रा और डेली रोजगार का प्रतिनिधित्व भी करता है अत: वहां भी कलेश रहेगा...ऐसे जातक वास्तव में बेचारा होता है ग्रहों के खेल के आगे विवश...उसकी यही मानसिक कुंठा क्रोधी बनाती है ..फलत: झगडे होते हैं..shatru बनते हैं..जताक्का जीवन विषमय हो जाता है...राज्य पक्ष से बैर..मन-सम्मान की हानि, शत्रुओं से हानि, बाल्यावस्था कष्ट में, ..पापी सप्तमेश स्व राशी में हो तो जातक अपनी स्त्री के साथ अत्यधिक रति करने से क्षीण हो कर शीघ्र ही रोग ग्रस्त हो मृत्यु के मुख में चला जाता है
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश सप्तम में.....
यदि सप्तमेश सप्तम में हो तो तो यहाँ सप्तम और सप्तमेश का भाव बल बढ़ता है अर्थात जातक को जीवन साथी का पूर्ण सुख मिलता है...ऐसा जातक स्वयं भी विद्वान् एवं व्यवहारकुशल होता है ततः उसे जीवन साथी भी ऐसा ही मिलता है ...ऐसा जातक छल-प्रपंच से रहित साधू स्वभावी एवं तेजस्वी होता है ...उसे यात्राओं से, अपने स्वयं के उद्योग से पूर्ण लाभ मिलता है ...जातक की पत्नी उसे पूर्ण सुख सहयोग प्रदान करती है ..ऐसा जातक धैर्य शाली तथा समस्त कार्यों को विवेक एवं बुद्धि से करने वाला होता है...मुख्यतया वात रोगों से पीड़ा पहुँचती है....
यदि सप्तमेश अष्टम भाव में हो और पापी ग्रहों से प्रभावित हो तो जातक वेश्यागामी होता है उसका दाम्पत्य जीवन नरकतुल्य होता है..अष्टम भाव बाधक भाव भी होता है अत: जातक की समस्त सांसारिक प्रगति में बाधा पहुँचती है ...(चाहे यहाँ कोई शुभ राशी ही हो लेकिन उस राशी पर अगर कोई पाप गृह बैठता है तो जीवन नरक तुल्य होता है लेकिन यहाँ एक भेद है...अगर पाप गृह मंगल या राहु जैसे हुए...तो जीवन अत्यधिक कष्टकर, विष से मृत्यु ..आदि भोगना पड़ता है और अगर शनि स्वराशी, मूल त्रिकोण राशी में हो तो जातक को अपर कष्ट देकर अंतत: धर्म, आध्यात्म की गहराइयों में ले जाते है और जातक का जीवन सार्थक बना देते हैं..) ऐसे जातक की पत्नी साधारण नयन-नक्श वाली, कटु भाषिणी और पति की परवाह न करने वाली होती है या हर समय रुग्ण अवस्था में रहती है ...अन्य अशुभ योग हो तो विवाह प्रतिबंधक योग फलीभूत होता है ..और अगर सप्तमेश शुभ, प्रभाव में हो...स्त्री, धन, मन-सम्मान सब प्राप्त होता है...जीवन के अत्यधिक कष्ट उसे खोजी प्रकृति का बना देता हैं ...क्रमश:
शुभ प्रभात
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश नवम भाव में
यदि सप्तमेश नवम भाव में हो तो जातक बुद्धिमान, विवेक शील होता है लोग उसके आचरण को अनुकरणीय मानते हैं ..एक अद्भुत संयोग...सप्तमेश का भाग्य भाव (9th) में होना विवाहोपरांत तीव्र भाग्योदय का प्रतीक है ...और यदि ऐसा सप्तमेश लग्नेश की दृष्टि में हो तो जातक नीतिकुशल होता है तथा राजनीतिक क्षेत्र में आपार सफलता अर्जित करता है ...जातक की पत्नी सुंदर, सुशील एवं पति के मन-सम्मान, धन, यश, प्रतिष्ठा को बढ़ाने में पूर्ण सहयोग करती है ...सप्तमेश का त्रिकोण भाव में जाना इस बात का भी प्रतीक है की विवाह दूरस्थ स्थान से होगा,...लेकिन यदि सप्तमेश पाप प्रभाव में हो अथवा अशुह हो तो जातक अनेक स्त्रियों से रमण करने वाला ..एक साथ कई कार्यों को प्रारंभ करने की प्रवृत्ति होती है ..लेकिन हर समय स्त्री भोग की लालसा के कारण वो अपने किसी कार्य में सफल नहीं हो पता ..अत; किसी मित्र की कुंडली में ऐसा कोई योग घटित हो रह हो तो तुरंत उसका उपाय कर ले...धन्यवाद...
सप्तमेश की दशम भाव में स्थिति
यदि सप्तमेश दशम भाव में गया हो तो जातक लम्पट, परस्त्रीलोलुप, परधनहारी, क्रोधी, दम्भी, स्वयं को श्रेष्ठ मानने वाला, जैसे दुर्गुणों से युक्त अहंकारी प्रवृत्ति का होता है .ससुराल में आसक्त ऐसा जातक अपनी ससुराल का लोभी होता है....उसका ससुर एक प्रसिद्द व्यक्ति होता है ...पत्नी अपने सासु के अधिकार में रहती है ..यदि सप्तमेश शुभ गृह अथवा शुभ गृह के प्रभाव में हो तो जातक धर्मात्मा होता है ससुराल से संपत्ति मिलती है...सास अत्यधिक प्रीती रखने वाली होती है ऐसे जातक को पुत्र, धन संपत्ति सभी कुछ प्राप्त होता है ..लेकिन पत्नी उसके अधीन नहीं रहती..फलत: उसे मानसिक कलेश बना रहता है ....शिव ॐ..
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमेश आय भाव (एकादश ) में...
यदि सप्तमेश आय भाव में हो तो जातक को स्त्री द्वारा धन की प्राप्ति होती है ...इसमें दो कारन हो सकते हैं ..की स्त्री कोई जॉब या व्यवसाय के सञ्चालन से अपने पति को धन देती है अथवा एक योग यह भी है की पति घर जमी बन कर रहे] करे कुछ नहीं और ससुराल से उसे धन मिलता रहे...लेकिन सभी के साथ ऐसा हो यह संभव नहीं...ऐसे जातक को यहाँ कन्या संतति अधिक होती हैं...तथा पुत्र सुख अल्प मिलता है यदि सप्तमेश पापी गृह हो तो प्रवास अधिक करने पड़ते हैं...संतान की चिंता बनी रहती है तथा जातक कंजूस और शठ होता है ...कुल मिला कर ऐसे जातक को विभिन्न स्रोतों से स्त्री जाती से लाभ मिलता है....
यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो तो जातक दरिद्र और कृपण होता है...स्त्री अधिक व्यय करने वाली होती है घर के कम काज में अधिक रूचि नहीं लेती अपितु बहार सैर -सपाटे में मग्न रहती है..स्वाभाव से चालक और मलिन बुद्धि की होती है ऐसे जातक का दाम्पत्य सुख न के बराबर होता है ...प्राय: ऐसे जातक को बड़ी आयु में विवाह होता है और पत्नी की आयु भी बड़ी होती है ...जातक अपने आपको घर-परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त रखता है फलत: पत्नी की और ज्यादा ध्यान नहीं दे पता वस्त्रों का व्यापर करने वाला ऐसा जातक पत्नी के कारन बदनाम भी हो जाता है अत्यधिक पाप प्रभाव में आया सप्तमेश पत्नी को इतना नीच बना देता है की वैश्य भी उसके सम्मुख तुच्छ दिखती है ...ऐसे जातक को तमाम जीवन रहत नहीं मिलती ...और कल्पते हुए उसके प्राण निकलते हैं....
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