Tuesday, 5 February 2013

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:अथ अष्टम भाव फलं ....
कुंडली में अष्टम भाव का बहुत महत्त्व है ..यह जातक की आयु का परिचय देता.है इस भाव में स्थित गृह का, दृष्टि का बहुत महत्त्व है इस भाव में स्थित गृह आपके सम्पूर्ण व्यक्तिव को शुभाशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं....यदि जीवन है तो कुंडली के एनी भावो के योगो का भी कोई अर्थ है अन्यथा नहीं... अत: कुंडली में मारक योग का निर्णय करने के लिए सप्तमेश और द्वितीयेश का भी विचार कर लेना चाहिए क्यूँ की आठवां और तीसरा भाव (अष्टम से अष्टम ) आयु स्थान कहे गए हैं और द्वितीय तीसरे भाव का व्ययेश होने के कारन भी आयु का सूचक है....जातक की आयु कितनी होगी यह ज्ञात करने के लिए लग्न, लग्नेश, अष्टम, अष्टम भाव, तृतीय भाव तथा तृतीयेश तथा परम अयुश्कार्क शनि देव के बल का सम्यक अध्यन बहुत जरुरी है ....
यदि इनमे से दो भाव बलवान हो तो जातक अल्पायु, तीन भाव बलवान हो तो मध्यमायु और चारो बलवान हो तो पूर्णायु होता है ...इसके अलावा चंद्रमा और बुद्ध की स्थिति पर भी विचार कर लेना आवश्यक है क्यूंकि कुंडली में इनकी हीन बलवता बचपन में अरिष्ट्प्रद होती है ...जातक की मृत्यु तक हो जाती है..भगवान शिव ने ज्योतिष के २,५०,००० सूत्र प्रतिपादित किये थे जो कालांतर में घटते -घटते मात्र ५२०० रह गए जिनमे से अकेले २५०० सूत्र नाड़ी सूत्र हैं जो अपने आपमें बहुत सटीक भविष्यफल कहने में समर्थ हैं और दक्षिण भारत में वहां के विद्वजनो के पास सुरक्षित हैं...उन्होंने इन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया...गोपनीय रखा हुआ है...इस भाव से मुख्यता आयु की अवधि व मृत्यु कब और कैसे होगी, विदेश यात्रा योग, स्त्री सौम्य या कर्कशा , विपरीत राजयोग से प्रचुर धन और गहन चिंतन अथवा अन्वेषण के साथ , गुप्त धन, गुह्य अंगो में रोग..इत्यादि का अध्यन किया जाता है...

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
अष्टमस्थ विभिन्न राशी फल 
अष्टमस्थ मेष राशी फल : स्वामी मंगल 

यदि अष्टम स्थान में मेष राशी हो तो जातक प्राय: बहार विदेश में ही निवास करता है...यहाँ मंगल तीसरे और आठवे दोनों आयु भावों का अधिपति बनता है ...अत: यदि लग्न बलवान हो तो आयु दीर्घ होती है ...अष्टम भाव और अष्टमेश दोनों मंगल पर पड़ने वाले प्रभाव को मृत्यु का कारन बतलाते हैं...मंगल यदि अष्टम भाव में हो तो जातक यौवनकल में व्यसनी होता है...उसे नींद में बद्बदाने की अथवा उठकर चलने का योग होता हैशुभ योग हो तो जातक धनि-मानी होता है ऐसे जातक की मृत्यु भी घर में नहीं होती ...विदेशवास के दौरान ही ऐसा जातक पूर्व बातों को याद करता हुआ प्राणों को त्यागता है ...यदि अशुभ योग हो तो जातक दरिद्र व हर समय चिंता करने वाल होता है ..अष्टम भाव में पापा गृह बाधक तो होते हैं वहीँ प्रतिस्पर्धा अथवा सार्वजानिक चुनावो के लिए अच्छे भी होते हैं...
अष्टमस्थ वृषभ राशी फल....स्वामी शुक्र 
यदि अष्टम भाव में वृषभ राशी हो तो शुक्र लग्नाधिपति और अष्टमेश बनता है....इसकी निर्बल स्थिति जातक की आयु को समाप्त कर देती है ऐसे जातक को काफ रोग होता है और प्राय: काफ के कारन ही श्वास नलिका में अवरोध होने से उसकी मृत्यु हो जाती है ऐसे जातक को प्राय: भोजन करते समय..अचानक धसका सा लग जाता है ..ऐसे जातक को सावधानी रखनी चाहिए की...और पानी का सेवन करते रहना चाहिए.... यदि चन्द्र और बुध के साथ शुक्र भी बलि हो तो अत्यधिक ख़ुशी या हंसने के कारन जातक की ह्रदय गति रुक जाती है ऐसा जातक चोरो अथवा डाकुओं से संघर्ष करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है चोपयों के सींगो से भी मृत्यु भय होता है यदि लग्न और शुक्र मंगल या केतु से प्रभावित हो तो जातक की मृत्यु अग्निदाह अथवा विस्फोटक, या गोली लगने से होती है ....

ॐ श्री गणेशाम्बा गुर्भ्यो नम: 
अष्टमस्थ मिथुन राशी....स्वामी बुध 

यदि अष्टमस्थ मिथुन राशी हो तो बुध अष्टमेश बनता है...बुध सौर मंडल वहां की गृह परिषद् में युवराज का स्थान प्राप्त है...गति तेज़ है..२०-४२ दिनों में एक राशी में रहते हैं..अत: अतिशीघ्र शुभाशुभ फल प्रदाता माने जाते हैं..अत: बाल्यावस्था से ही शुभाशुभ प्रभाव घटित होने प्रारंभ हो जाते हैं ...पाप प्रभाव में आया बुध जातक को शीघ्र ही घर से विलग कर देता है और वह विदेशवास करता है...यदि मंगल की राशी में स्थित हो कर बुध पाप प्रभाव में हो, पाप दृष्ट हो अथवा किसी भी शुभ गृह की दृष्टि में न हो तो दीर्घकालीन रोगों से ग्रसित करता है ..लेकिन धन लाभ के लिए ऐसा बुध अच्छा होता है यदि बुध वृश्चिक राशी में हो तो जातक शत्रुओं द्वारा घात लगाकर मारा जाता है ...ऐसा जातक पापात्मा होता है फलत: पापों के परिणामस्वरूप मृत्यु का ग्रास बनता है......अर्श, भगंदर जैसे गुदा रोग भी मृत्यु का कारन बनते हैं लम्पट होने से प्रमेह या मधुमेह जैसे रोग हो जाने से भी आयु क्षीण. होती है ....
अष्टमस्थ कर्क राशी....स्वामी चन्द्र 
यदि अष्टमस्थ कर्क राशी हो तो चन्द्रमा अष्टमधिपति होता है इस पर आया पाप प्रभाव अरिष्ट्प्रद रहता है...शैशवकाल में ऐसा जातक अनेक कष्ट भोगता है ..उसे जल में डूबने का भय होता है अत: ऐसे जातक को जल से सावधान रहना चाहिए ...अथवा कालांतर में जलोदर नमक रोग से मृत्यु संभव होती है ...ऐसे जातकों की नौकरों के द्वारा या घर की किसी स्त्री के द्वारा घर की गुप्ता बातें घर से बहार जाती हैं ..यदि चन्द्रमा यहाँ उच्च का हो शुभ प्रभाव में हो और पंचम भाव भी शुभ प्रभाव में हो तो जातक को आकस्मिक लाभ, अद्भुत दैविक ज्ञान प्राप्त होता है .....


  • !!ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:!!
    अष्टमस्थ सिंह राशी...स्वामी सूर्य 

    यदि अष्टम भाव में सिंह राशी हो तो सूर्य अष्टमाधिपति बनता है यदि लग्न व लग्नेश पर इसका अशुभ प्रभाव हो तो जातक हकला कर बोलता है अर्थात उसकी वाणी में दोष होता है सर्प के काटने से अथवा किसी के द्वारा विष दिए जाने से उसकी मृत्यु हो सकती है....हिंसक पशुओं (शेर, चीता आदि ) से खाए जाने का भय भी बना रहता है चोरों द्वारा उसकी धन संपत्ति अवम जीवन को हानि पहुँचती है...जीवन साथी खर्चीला मिलता है....यदि अष्टमेश अग्नि राशी का हो तो प्राय: अशुभ फल ही अनुभव में आते हैं ऐसे जातक के जीवन साथी का चरित्र संदिग्ध रहता है तथा उसकी वृद्धावस्था कष्टकर व्यतीत होती है...विशेषत: अर्थाभाव बना रहता है ....
    अष्टमस्थ कन्या राशी....स्वामी बुध 
    अष्टमस्थ कन्या राशी हो तो बुध त्रिकोणेश होने के साथ-साथ अष्टमाधिपति भी बनता है...यदि बुध निर्बल अवस्था का हो तो जातक को पुत्र द्वारा अपमान सहन करना पड़ता है...तथा धन की हानि होती है मृगी होने की सम्भावना रहती है यदि सूर्य पाप प्रभाव में हो तो जातक का विवाह नहीं होता मृत्यु सावधान अवस्था में होती है...यदि अष्टमाधिपति छटे भाव में हो तो सुजाक अथवा किसी गुप्त रोग से जातक की मृत्यु की सम्भावना होती है ...ऐसा जातक गुप्त विद्या और आध्यात्म की पुस्तकें पढने में रूचि लेता है...यदि बुध स्वराशी होतो आक्स्मत धन लाभ होता है तथा यदि उच्च का हो तो अप्रत्यासित धन (भूमि में गड़ा धन, लोटरी ) आदि की प्रबल सम्भावना होती है ...विवाह हो जाये तो जातक की पत्नी रहस्य को गुप्त रखने वाली तथा आनंद पूर्वक रहने वाली होती है
    • October 14, 2012
    • Devel Dublish
      शुभ प्रभात
      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      अष्टमस्थ तुला राशी ....स्वामी शुक्र...

      अष्टमस्थ तुला राशी होने से शुक्र तृतीयेश अवं सप्तमेश बनकर प्रबल पापी गृह बन जाता है चूँकि ये दोनों ही आयु स्थान हैं और शुक्र आयुष्कारक गृह है फलत: शुक्र बलवान हो तो दीर्घायु करता है यदि निर्बल या पाप प्रभाव में आया हो तो क्षीणआयु करता है व मित्रो द्वारा अपमानित भी कराता है ...स्व-राशिस्थ या उच्च का शुक्र गो तो जातक को अनायास धन-प्राप्ति होती है....यह धन संपत्ति विरासत से, सट्टे या लोटरी से , या किसी विधवा स्त्री द्वारा दी जाती है ....ऐसे जातक को बड़े उद्योगों से भी धन लाभ मिलता है अष्टम अधिपति अवं अष्टम भाव पर शुभ प्रभाव हो तो जातक धार्मिक वृत्ति वाल होता है तथा व्रताधिक अधिक करता है फलत: जठराग्नि क्षीण हो जाने के कारन से भी मृत्यु संभव होती है....ऐसे जातक का अत्यधिक दुस्साहस भी उसका मृत्युकारक बनता है...अष्टमस्थ प्रबल पाप गृह हो और कुंडली में योगकारक हो तो तो किसी भी स्पर्धा, चुनाव, प्रतिस्पर्धा आदि में विजय आसान होती है...
      अष्टमस्थ वृश्चिक राशी ...स्वामी मंगल 
      अष्टमस्थ वृश्चिक राशी हो तो मंगल लग्नेश और अष्टमाधिपति बनता है...ऐसे में अष्टम भाव पर शुभ प्रभाव हो तो जातक की आयु दीर्घ होती है ...यदि अष्टम भाव व अष्टमाधिपति पाप प्रभाव में हो तो उसका मस्तिष्क विकृत हो जाता है तथा वह आत्म घात कर लेता..जितने भी आत्महत्या के केस होते हैं मंगल उसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कारन मंगल उत्तेजना, आवेश, अहंकार का पर्याय है...अत: ये जातक अथवा जातिका को उकसाता है ....यदि शनि की दृष्टि लग्न और मंगल पर हो तो जातक दुसरे की हत्या कर सकता है ...ऐसे जातक की इच्छा बहुत कुछ खाने की होती है....वह विरुद्ध आहार का भक्षण करता है ..फलत रुधिर विकार (खून में इन्फेक्सन) होता है ..पित्त दूषित हो जाता है तथा शारीर में घाव हो जाने से उसमे कीड़े उत्पन्न होने का भय होता है और यही उसकी मृत्यु का कारण हो सकता है ...अत: ऐसे जातक को जिनका मंगल, शनि और राहु ख़राब हो तुरंत उसकी शांति करा लेनी चाहिए और अपने आचरण में यथा संभव सुधर लाना चाहिए....ॐ शांति :

      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      अष्टमस्थ धनु राशी...स्वामी गुरु 

      यदि अष्टम भाव में धनु राशी हो तो गुरु आएश और अष्टमेश बनता है यदि गुरु की स्थिति बलवान हो अवं अष्टम भाव पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक विदेशवास करता है तह वहां अच्छा धन अर्जित करता है ...उसकी आयु दीर्घ होती है तथा वह लम्बी बीमारियों से बचा रहता है पाप प्रबह्व में आया गुरु भिन्न-भिन्न रोग उत्पन्न करता है ...यदि कुंडली का अष्टम भाव या अष्टमस्थ मगल से प्रभावित हो तो जातक को विविध रोग होते हैं यदि बुध से प्रभावित हो तो प्राय: कर्ण रोग होते हैं कर्न्स्रव अथवा कर्ण शूल से पीड़ा होती यदि शुक्र से सम्बंधित हो तो उदरशूल से मृत्यु तक संभव है यदि स्वराशी का हो तो बहुभोजन के कारण अजीर्ण रोग हो जाता है सूर्य से प्रभावित हो तो विशुचिका, कब्ज जहर आदि से पीड़ा होती है ....सूर्य राहु का योग अष्टम में हो तो पिता अथवा स्वयं की किसी षट्कर्म द्वारा मृत्यु संभव....
      अष्टमस्थ मकर राशी स्वामी शनि 
      यदि अष्टम भाव में मकर राशी हो तो शनि अष्टमेश व नवमेश बनता है ...नवमेश होने जहाँ वह शुभ है वहीँ अष्टमेश हो जाने से प्रबल पापी भी है शनि का बलवान होना जातक को लम्बी आयु देता है...मृत्यु के समय उसका चित्त स्थिर होता है तथा बिना किसी व्याधि के अपने समय पर ही मृत्यु होती है ऐसे जातक की रूचि आध्यात्म, परा विद्या, साधना, विभिन्न मंत्रो को सिद्धहस्त करने की खूबी होती है...उसे एकाकी जीवन पसंद होता है ऐसे जातक को उच्च पद की प्राप्ति है यदि शनि निर्बल हो आयु को क्षीण करता है ऐसा जातक वायु रोगों से पीड़ित होता है ..ऐसे जातक के निर्बल शनि के कारण उस पर नकारात्मक उर्जा का प्रभाव ज्यादा रहता है फलत: ऐसे जातक को कुछ अप्राकर्तिक पीड़ा जिसे आम भाषा में उपरी का असर बोलते हैं...को झेलना पड़ सकता है ,,इसके साथ उदार शूल, अर्श, भगंदर जैसे रोग भी उसे घेरे रहते हैं.....शिव ॐ

      ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      अष्टमस्थ कुम्भ राशी..... स्वामी शनि ....

      यदि अष्टम में कुम्भ राशी हो तो शनि सप्तमेश व अष्टमेश बनता है इसकी बलवान स्थिति जातक को दीर्घायु बनाती है ...वहीँ दाम्पत्य जीवन में अशुभता भी लती है तथा जीवन साथी स्वाभाव उग्र, रुखा तथा कर्कश वाणी बोलने वाला मिलता है पति या पत्नी के द्वारा अपमानित होने के योग बनते हैं...यदि शनि निर्बल अवस्था में हो तो अपनी दशा -अन्तर्दशा में अशुभ फल देता है ...शुक्र की दशा में शनि का अंतर अथवा शनि की दशा में शक्र का अंतर जातक को दिवालिया बना देता है....जातक के घर को अग्नि से जल जाने का भय रहता है ...तथा उसकी संपत्ति नष्ट हो जाती है ...अत्यधिक श्रम करने का बाद भी जातक नवीन घर नहीं बना पाता तथा अधिक श्रम करने से, वायु के दूषित होने से तथा घावों के साद जाने से मृत्यु की सम्भावना रहती है ...
      अष्टमस्थ मीन राशी...स्वामी गुरु 
      यदि अष्टम भाव में मीन राशी हो तो गुरु पंचमेश व अष्टमेश बनता है गुरु की बलवान स्थिति जातक को पुत्र सुख देती है लेकिन निर्बल गुरु संतान से अपमानित करता है...गुरु बलवान हो तो जातक की आयु लम्बी होती है...निर्बल अवस्था में स्थित गुरु और मीन राशी पर पाप गृह की दृष्टि जातक को उसकी जनम भूमि में नहीं रहने देती...उसे विदेशवास करना पड़ता है...आयु के उत्तर भाग में प्राय: उदार रोग व अतिसार रोग होने की प्रबल सम्भावना होती है...पित्त की थेली या पित्त के दूषित हो जाने ..पित्त ज्वर भी मृत्यु का कारण बनता है...जल में डूबकर मृत्यु की सम्भावना को नाकारा नहीं जा सकता ...तीसरा ...छटा और आठवां भाव क्रमश: एक दुसरे से प्रबल पापी भाव होते हैं...अत: यहाँ शुभ गृह या पाप गृह की स्थिति, दृष्टि, व भावेश की स्थिति..बहुत महत्वपूर्ण होती है....

    1 comment:

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      With Best wishes
      Ashutosh
      Astrologer / Vaastu consultant from Indore
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