ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:अथ अष्टम भाव फलं ....
कुंडली में अष्टम भाव का बहुत महत्त्व है ..यह जातक की आयु का परिचय देता.है इस भाव में स्थित गृह का, दृष्टि का बहुत महत्त्व है इस भाव में स्थित गृह आपके सम्पूर्ण व्यक्तिव को शुभाशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं....यदि जीवन है तो कुंडली के एनी भावो के योगो का भी कोई अर्थ है अन्यथा नहीं... अत: कुंडली में मारक योग का निर्णय करने के लिए सप्तमेश और द्वितीयेश का भी विचार कर लेना चाहिए क्यूँ की आठवां और तीसरा भाव (अष्टम से अष्टम ) आयु स्थान कहे गए हैं और द्वितीय तीसरे भाव का व्ययेश होने के कारन भी आयु का सूचक है....जातक की आयु कितनी होगी यह ज्ञात करने के लिए लग्न, लग्नेश, अष्टम, अष्टम भाव, तृतीय भाव तथा तृतीयेश तथा परम अयुश्कार्क शनि देव के बल का सम्यक अध्यन बहुत जरुरी है ....
यदि इनमे से दो भाव बलवान हो तो जातक अल्पायु, तीन भाव बलवान हो तो मध्यमायु और चारो बलवान हो तो पूर्णायु होता है ...इसके अलावा चंद्रमा और बुद्ध की स्थिति पर भी विचार कर लेना आवश्यक है क्यूंकि कुंडली में इनकी हीन बलवता बचपन में अरिष्ट्प्रद होती है ...जातक की मृत्यु तक हो जाती है..भगवान शिव ने ज्योतिष के २,५०,००० सूत्र प्रतिपादित किये थे जो कालांतर में घटते -घटते मात्र ५२०० रह गए जिनमे से अकेले २५०० सूत्र नाड़ी सूत्र हैं जो अपने आपमें बहुत सटीक भविष्यफल कहने में समर्थ हैं और दक्षिण भारत में वहां के विद्वजनो के पास सुरक्षित हैं...उन्होंने इन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया...गोपनीय रखा हुआ है...इस भाव से मुख्यता आयु की अवधि व मृत्यु कब और कैसे होगी, विदेश यात्रा योग, स्त्री सौम्य या कर्कशा , विपरीत राजयोग से प्रचुर धन और गहन चिंतन अथवा अन्वेषण के साथ , गुप्त धन, गुह्य अंगो में रोग..इत्यादि का अध्यन किया जाता है...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ विभिन्न राशी फल
अष्टमस्थ मेष राशी फल : स्वामी मंगल
यदि अष्टम स्थान में मेष राशी हो तो जातक प्राय: बहार विदेश में ही निवास करता है...यहाँ मंगल तीसरे और आठवे दोनों आयु भावों का अधिपति बनता है ...अत: यदि लग्न बलवान हो तो आयु दीर्घ होती है ...अष्टम भाव और अष्टमेश दोनों मंगल पर पड़ने वाले प्रभाव को मृत्यु का कारन बतलाते हैं...मंगल यदि अष्टम भाव में हो तो जातक यौवनकल में व्यसनी होता है...उसे नींद में बद्बदाने की अथवा उठकर चलने का योग होता हैशुभ योग हो तो जातक धनि-मानी होता है ऐसे जातक की मृत्यु भी घर में नहीं होती ...विदेशवास के दौरान ही ऐसा जातक पूर्व बातों को याद करता हुआ प्राणों को त्यागता है ...यदि अशुभ योग हो तो जातक दरिद्र व हर समय चिंता करने वाल होता है ..अष्टम भाव में पापा गृह बाधक तो होते हैं वहीँ प्रतिस्पर्धा अथवा सार्वजानिक चुनावो के लिए अच्छे भी होते हैं...
अष्टमस्थ वृषभ राशी फल....स्वामी शुक्र
यदि अष्टम भाव में वृषभ राशी हो तो शुक्र लग्नाधिपति और अष्टमेश बनता है....इसकी निर्बल स्थिति जातक की आयु को समाप्त कर देती है ऐसे जातक को काफ रोग होता है और प्राय: काफ के कारन ही श्वास नलिका में अवरोध होने से उसकी मृत्यु हो जाती है ऐसे जातक को प्राय: भोजन करते समय..अचानक धसका सा लग जाता है ..ऐसे जातक को सावधानी रखनी चाहिए की...और पानी का सेवन करते रहना चाहिए.... यदि चन्द्र और बुध के साथ शुक्र भी बलि हो तो अत्यधिक ख़ुशी या हंसने के कारन जातक की ह्रदय गति रुक जाती है ऐसा जातक चोरो अथवा डाकुओं से संघर्ष करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है चोपयों के सींगो से भी मृत्यु भय होता है यदि लग्न और शुक्र मंगल या केतु से प्रभावित हो तो जातक की मृत्यु अग्निदाह अथवा विस्फोटक, या गोली लगने से होती है ....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुर्भ्यो नम:
अष्टमस्थ मिथुन राशी....स्वामी बुध
यदि अष्टमस्थ मिथुन राशी हो तो बुध अष्टमेश बनता है...बुध सौर मंडल वहां की गृह परिषद् में युवराज का स्थान प्राप्त है...गति तेज़ है..२०-४२ दिनों में एक राशी में रहते हैं..अत: अतिशीघ्र शुभाशुभ फल प्रदाता माने जाते हैं..अत: बाल्यावस्था से ही शुभाशुभ प्रभाव घटित होने प्रारंभ हो जाते हैं ...पाप प्रभाव में आया बुध जातक को शीघ्र ही घर से विलग कर देता है और वह विदेशवास करता है...यदि मंगल की राशी में स्थित हो कर बुध पाप प्रभाव में हो, पाप दृष्ट हो अथवा किसी भी शुभ गृह की दृष्टि में न हो तो दीर्घकालीन रोगों से ग्रसित करता है ..लेकिन धन लाभ के लिए ऐसा बुध अच्छा होता है यदि बुध वृश्चिक राशी में हो तो जातक शत्रुओं द्वारा घात लगाकर मारा जाता है ...ऐसा जातक पापात्मा होता है फलत: पापों के परिणामस्वरूप मृत्यु का ग्रास बनता है......अर्श, भगंदर जैसे गुदा रोग भी मृत्यु का कारन बनते हैं लम्पट होने से प्रमेह या मधुमेह जैसे रोग हो जाने से भी आयु क्षीण. होती है ....
अष्टमस्थ कर्क राशी....स्वामी चन्द्र
यदि अष्टमस्थ कर्क राशी हो तो चन्द्रमा अष्टमधिपति होता है इस पर आया पाप प्रभाव अरिष्ट्प्रद रहता है...शैशवकाल में ऐसा जातक अनेक कष्ट भोगता है ..उसे जल में डूबने का भय होता है अत: ऐसे जातक को जल से सावधान रहना चाहिए ...अथवा कालांतर में जलोदर नमक रोग से मृत्यु संभव होती है ...ऐसे जातकों की नौकरों के द्वारा या घर की किसी स्त्री के द्वारा घर की गुप्ता बातें घर से बहार जाती हैं ..यदि चन्द्रमा यहाँ उच्च का हो शुभ प्रभाव में हो और पंचम भाव भी शुभ प्रभाव में हो तो जातक को आकस्मिक लाभ, अद्भुत दैविक ज्ञान प्राप्त होता है .....
कुंडली में अष्टम भाव का बहुत महत्त्व है ..यह जातक की आयु का परिचय देता.है इस भाव में स्थित गृह का, दृष्टि का बहुत महत्त्व है इस भाव में स्थित गृह आपके सम्पूर्ण व्यक्तिव को शुभाशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं....यदि जीवन है तो कुंडली के एनी भावो के योगो का भी कोई अर्थ है अन्यथा नहीं... अत: कुंडली में मारक योग का निर्णय करने के लिए सप्तमेश और द्वितीयेश का भी विचार कर लेना चाहिए क्यूँ की आठवां और तीसरा भाव (अष्टम से अष्टम ) आयु स्थान कहे गए हैं और द्वितीय तीसरे भाव का व्ययेश होने के कारन भी आयु का सूचक है....जातक की आयु कितनी होगी यह ज्ञात करने के लिए लग्न, लग्नेश, अष्टम, अष्टम भाव, तृतीय भाव तथा तृतीयेश तथा परम अयुश्कार्क शनि देव के बल का सम्यक अध्यन बहुत जरुरी है ....
यदि इनमे से दो भाव बलवान हो तो जातक अल्पायु, तीन भाव बलवान हो तो मध्यमायु और चारो बलवान हो तो पूर्णायु होता है ...इसके अलावा चंद्रमा और बुद्ध की स्थिति पर भी विचार कर लेना आवश्यक है क्यूंकि कुंडली में इनकी हीन बलवता बचपन में अरिष्ट्प्रद होती है ...जातक की मृत्यु तक हो जाती है..भगवान शिव ने ज्योतिष के २,५०,००० सूत्र प्रतिपादित किये थे जो कालांतर में घटते -घटते मात्र ५२०० रह गए जिनमे से अकेले २५०० सूत्र नाड़ी सूत्र हैं जो अपने आपमें बहुत सटीक भविष्यफल कहने में समर्थ हैं और दक्षिण भारत में वहां के विद्वजनो के पास सुरक्षित हैं...उन्होंने इन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया...गोपनीय रखा हुआ है...इस भाव से मुख्यता आयु की अवधि व मृत्यु कब और कैसे होगी, विदेश यात्रा योग, स्त्री सौम्य या कर्कशा , विपरीत राजयोग से प्रचुर धन और गहन चिंतन अथवा अन्वेषण के साथ , गुप्त धन, गुह्य अंगो में रोग..इत्यादि का अध्यन किया जाता है...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ विभिन्न राशी फल
अष्टमस्थ मेष राशी फल : स्वामी मंगल
यदि अष्टम स्थान में मेष राशी हो तो जातक प्राय: बहार विदेश में ही निवास करता है...यहाँ मंगल तीसरे और आठवे दोनों आयु भावों का अधिपति बनता है ...अत: यदि लग्न बलवान हो तो आयु दीर्घ होती है ...अष्टम भाव और अष्टमेश दोनों मंगल पर पड़ने वाले प्रभाव को मृत्यु का कारन बतलाते हैं...मंगल यदि अष्टम भाव में हो तो जातक यौवनकल में व्यसनी होता है...उसे नींद में बद्बदाने की अथवा उठकर चलने का योग होता हैशुभ योग हो तो जातक धनि-मानी होता है ऐसे जातक की मृत्यु भी घर में नहीं होती ...विदेशवास के दौरान ही ऐसा जातक पूर्व बातों को याद करता हुआ प्राणों को त्यागता है ...यदि अशुभ योग हो तो जातक दरिद्र व हर समय चिंता करने वाल होता है ..अष्टम भाव में पापा गृह बाधक तो होते हैं वहीँ प्रतिस्पर्धा अथवा सार्वजानिक चुनावो के लिए अच्छे भी होते हैं...
अष्टमस्थ वृषभ राशी फल....स्वामी शुक्र
यदि अष्टम भाव में वृषभ राशी हो तो शुक्र लग्नाधिपति और अष्टमेश बनता है....इसकी निर्बल स्थिति जातक की आयु को समाप्त कर देती है ऐसे जातक को काफ रोग होता है और प्राय: काफ के कारन ही श्वास नलिका में अवरोध होने से उसकी मृत्यु हो जाती है ऐसे जातक को प्राय: भोजन करते समय..अचानक धसका सा लग जाता है ..ऐसे जातक को सावधानी रखनी चाहिए की...और पानी का सेवन करते रहना चाहिए.... यदि चन्द्र और बुध के साथ शुक्र भी बलि हो तो अत्यधिक ख़ुशी या हंसने के कारन जातक की ह्रदय गति रुक जाती है ऐसा जातक चोरो अथवा डाकुओं से संघर्ष करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है चोपयों के सींगो से भी मृत्यु भय होता है यदि लग्न और शुक्र मंगल या केतु से प्रभावित हो तो जातक की मृत्यु अग्निदाह अथवा विस्फोटक, या गोली लगने से होती है ....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुर्भ्यो नम:
अष्टमस्थ मिथुन राशी....स्वामी बुध
यदि अष्टमस्थ मिथुन राशी हो तो बुध अष्टमेश बनता है...बुध सौर मंडल वहां की गृह परिषद् में युवराज का स्थान प्राप्त है...गति तेज़ है..२०-४२ दिनों में एक राशी में रहते हैं..अत: अतिशीघ्र शुभाशुभ फल प्रदाता माने जाते हैं..अत: बाल्यावस्था से ही शुभाशुभ प्रभाव घटित होने प्रारंभ हो जाते हैं ...पाप प्रभाव में आया बुध जातक को शीघ्र ही घर से विलग कर देता है और वह विदेशवास करता है...यदि मंगल की राशी में स्थित हो कर बुध पाप प्रभाव में हो, पाप दृष्ट हो अथवा किसी भी शुभ गृह की दृष्टि में न हो तो दीर्घकालीन रोगों से ग्रसित करता है ..लेकिन धन लाभ के लिए ऐसा बुध अच्छा होता है यदि बुध वृश्चिक राशी में हो तो जातक शत्रुओं द्वारा घात लगाकर मारा जाता है ...ऐसा जातक पापात्मा होता है फलत: पापों के परिणामस्वरूप मृत्यु का ग्रास बनता है......अर्श, भगंदर जैसे गुदा रोग भी मृत्यु का कारन बनते हैं लम्पट होने से प्रमेह या मधुमेह जैसे रोग हो जाने से भी आयु क्षीण. होती है ....
अष्टमस्थ कर्क राशी....स्वामी चन्द्र
यदि अष्टमस्थ कर्क राशी हो तो चन्द्रमा अष्टमधिपति होता है इस पर आया पाप प्रभाव अरिष्ट्प्रद रहता है...शैशवकाल में ऐसा जातक अनेक कष्ट भोगता है ..उसे जल में डूबने का भय होता है अत: ऐसे जातक को जल से सावधान रहना चाहिए ...अथवा कालांतर में जलोदर नमक रोग से मृत्यु संभव होती है ...ऐसे जातकों की नौकरों के द्वारा या घर की किसी स्त्री के द्वारा घर की गुप्ता बातें घर से बहार जाती हैं ..यदि चन्द्रमा यहाँ उच्च का हो शुभ प्रभाव में हो और पंचम भाव भी शुभ प्रभाव में हो तो जातक को आकस्मिक लाभ, अद्भुत दैविक ज्ञान प्राप्त होता है .....
- October 14, 2012
Dear Sir, Good Article. We suggest you should have your full address and contact no also in your Blog-profile.
ReplyDeleteWith Best wishes
Ashutosh
Astrologer / Vaastu consultant from Indore
www.shreepad-gems.blogspot.com
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