अष्टमस्थ विभिन्न ग्रहों का फल अष्टमस्थ सूर्य ..........
अष्टम भाव में किसी भी क्रूर और पापी ग्रहों की स्थिति शुभ नहीं मानी गई है ...जातक को अपने जीवन में मृत्यु तुल्य कष्टों अवरोधों की स्थिति का सामना करना पड सकता है ...प्राचीन ग्रंथकारों ने अष्टमस्थ सूर्य के अशुभ फल ही बताएं हैं....लेकिन अनुभव में शुभाशुभ दोनों प्रकार के फलों को देखा गया है...यदि सूर्य पुरुष राशी...मुख्यतया अग्नि राशियों में हो तो बुरे फल मिलते हैं...घर की गुप्त बातें, जिनका दूसरों को ज्ञान हो जाना अहितकर होता है घर से बहार चली जाती हैं...नौकर-चाकर विश्वस्त नहीं होते ...यहाँ तक की अपनी पत्नी भी विश्वासपात्र नहीं रहती ...ऐसे में पारी या पत्नी कोई विश्वासघात करे तो क्या आश्चर्य ..यदि सूर्य स्व-राशी अथवा उच्च का हो तो असावधानीवश जातक की मृत्यु होती है ...यदि सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, तुला, वृषभ या कन्या राशी में हो तो जातक को लम्बी बीमारियाँ भोग कर मृत्यु का आलिंगन करना पड़ता है ...उसके जीवन साथी का चरित्र संदिग्ध रहता है...तथा मृत्यु भी जीवन साथी से पहले हो जाती है...जीवन के अंतिम दिनों में जातक को अर्थाभाव झेलना पड़ता है ..यह सब ऐसे ही होता है जैसे सूर्यास्त के बाद का अँधेरा ...सूर्य के स्त्री राशी में रहने से संतति सुख अधिक मिलता है ..पुरुष राशी में संतान सुख अल्प होता है दृष्टि मंदता से परेशानी होती ...ज्यादा पापा प्रभव में सूर्य हो तो आँख का ओप्रेसन भी होता है ...अधिक स्त्री प्रसंग के कारण उसे गुप्त रोगों का शिकार होना पड़ता है!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ भावस्थ चन्द्रमा.....
यदि अष्टमस्थ चन्द्र हो तो बचपन में अरिष्ट होता है ...कई प्रकार के रोगों से जातक ग्रस्त रहता है...अनेक चिकित्सकों से निदान करने पर भी व्याधियां उसका पीछा नहीं छोडती उसे जल में डूबने का भय रहता है...अथवा जलोदर रोग उसकी मृत्यु का कारन बनता है यह प्राय: बाल्यकाल में ही घटित हो जाता है क्यूंकि अरिष्ट्प्रद चंद्रमा बच्चों के लिए ही ज्यादा कष्टदायी रहता है......यदि अग्नि राशी का चंद्रमा हो तो येन-केन-प्रकारेण जातक को धन मिल जाता है...विवाह में भी अच्छा दान -दहेज़ मिल जाता है...या किसी के द्वारा वारिस घोषित होने से धन-संपत्ति मिल जाती है ..यदि चन्द्र वायु राशी में हो तो जीवन साथी अच्चा मिलता है...लेकिन परिवार में कलह बनी रहती है....ऐसा जातक योगाभ्यासी , वेदांत को जानने वाला व इश्वर की उपासना करने वाल होता है उसके घर की गुप्त बातें दूसरों को नौकरों के द्वारा अथवा पत्नी के द्वारा ज्ञात हो जाती हैं ४५ वे वर्ष से सम्पत्तिनाशक योग बनते हैं....लेकिन यदि चंद्रमा उच्च या स्वग्रही हो तो शुभ फल मिलते हैं....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ मंगल फलम
यदि अष्टम भाव में मंगल हो तो जातक प्राय: रोगों से ग्रस्त रहता है ! उसे देहसुख अच्छा नहीं मिलता तथा वह अल्पायु एवं दरिद्री अथवा अभावग्रस्त रहता है.. जातक की बोलचाल बहुत रुखी..और असभ्य होती है...ऐसा जातक स्वार्थी और कंजूस भी होता है शायद जीवन की कठिनाई उसे ऐसा करने पर विवास करती हो ...अनभव में आय अ है की ऐसे जातक का मध्य कल निर्धनावस्था में व्यतीत होता है प्राचीन महाऋषियों ने कहा है की अष्टम में अगर मंगल विराजमान हो तो उसके लिए शुभ स्थानों में बैठे शुभ गृह भी लाभ नहीं देते...विवाह से लाभ नहीं होता ..उलटे परेशानियाँ बढती है ...मित्र शत्रुवत व्यव्हार करते हैं यदि मंगल नीच राशी में हो तो रक्त-पित्त हो जाता है ...सूर्य चंद्रमा और शनि के साथ यदि मंगल भी अशुभ सम्बन्ध में हो तो जातक अल्पायु होता है अथवा किसी षट्कर्म के कारण उसकी मृत्यु होती है...यदि अकेला मंगल हो तो शीघ्र मृत्यु नहीं होने देता...
यदि मंगल अग्नि राशी में हो तो जातक की आग से जल कर मृत्यु होती है अथवा किसी गोली या विस्फोटक पदार्थ से मृत्यु की सम्भावना होती है ...वायु राशी में होने से मस्तिष्क विकृति मृत्यु का कारण बनती है ...यदि मंगल वृषभ, कन्या और मकर राशी में हो तो शुभ फल मिलते हैं मकर राशी में मंगल संतान का आभाव करा ता है अथवा पुत्री संतान ज्यादा होती हैं ...ऐसा जाता ज्यादा खाने वाला ,,,मिष्ठान्न प्रिय होता है फलत: अजीर्ण रोग से पीड़ित रहता है ...ऐसा जातक राजकीय कर्मचारी हो तो खूब रिश्वत लेता है...यदि कर्क, वृश्चिक, एवं मीन राशी में मगल हो तो जातक के जल में डूबने से मृत्यु होने की सम्भावना रहती है....मेने पहले भी कहा की अष्टमस्थ मंगल बाधा कर्क होता है...जो व्यव्हार में गुस्सा, अहंकार, उत्तेजना ला कर इन्सान का पतन करता है...अत: समय रहते मंगल के जाप इत्यादि से उसके कोप को शांत किया जा सकता है...!!शिव ॐ !!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:..अष्टमस्थ बुध फलम..................
यदि बुध अष्टमस्थ हो तो जातक अतिथि सेवक होता है उस पर राज्य की कृपा बनी रहती है...तथा वह राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है...यहाँ ज्योतिष का एक बहुत सुंदर सूत्र..ये है की अकेले बुध.की दृष्टि धन भाव पर हो ..और बुध शुभ प्रभाव व शुभ राशी में हो तो जातक को अत्यंत धनी बनाता है ....वह प्रख्यात होता है ऐसा जातक अपने कुल का पालन करने वाला कुल श्रेष्ठ होता है उसकी स्मरण शक्ति अच्छी होती है तथा वह गुप्त विद्याओं और आध्यात्म शास्त्र के पठन-पाठन में रूचि होने से अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेता है....ऐसा जातक मनमौजी दिल का साफ...चल कपट से दूर होता है अत: साझेदारी उसके लिए घातक होती है...यदि बुध उच्चस्थ और शुभ प्रभाव में हो तो अकस्मात् धन लाभ के उसे जीवन में कई सुअवसर मिलते हैं...ऐसा जातक सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय होता है तथा शुभ स्थिति में उसकी मृत्यु होती है.....सुंदर व्यक्तित्व का धनी ऐसा जातक शत्रु हन्ता होता है...आप्तजनो में विश्वास व्यक्त करते हुए अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर लेता है शास्त्रीय ज्ञान में रूचि होने से प्रख्यात देवज्ञ भी हो सकता है यदि बुध स्त्री राशी में हो तो मृत्यु का कारण मस्तिष्क विकार होता है ..बाल्यावस्था में सर में चोट लगती है ...यदि बुध पापा प्रभाव में आया हो तो जातक कुमार अवस्था से ही उसका चल चलन बिगड़ता है और अत्यधिक स्त्री प्रसंग के कारण विभिन्न रोगों से उसकी मृत्यु होती है ..शिव ॐ !!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ शुक्र फलम...........
यदि अष्टम भाव में शुक्र होतो अनायास धन की प्राप्ति होती है ...यहाँ अनायास धन प्राप्ति बिना अर्जन किये धन का द्योतक है ...ऐसे जातको को लोटरी , सट्टा, विरासत अथवा भूमि में गड़ा हुआ धन प्राप्त होता है विशेषत: किसी विधवा स्त्री की संपत्ति उसके मृत्यु के पश्चात प्राप्त हो जाती है ...अष्टम भाव आयु का स्थान है और नैसर्गिक रूप से शुक्र शुभ गृह है ...अत: जातक का दीर्घायु हो जाना स्वाभाविक है ...शुक्र के होने से आर्थिक और स्त्री विषेयक सुख और मिल जाता है ...ऐसा जातक विद्वान होता है तथा उसकी पत्नी प्राय: स्वाभिमानी, कर्ण प्रियभाषिणी,अवं विश्वासपात्र होती है...ऐसे जातक को प्राय: नशे की लत होती है...यदि शुक्र वृषभ, धनु या कर्क राशी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुली रहता है ...स्त्री एवं संतति से वैमनस्य बना रहता है...चूँकि ऐसे जातक अत्यधिक कामुक होने से व्यभिचारी प्रवृत्ति वाले होते हैं, फलत: मधुमेह , शुक्रमेह, उपदंश आदि गुप्त रोगों से ट्रस्ट हो कर दुःख भोगते हैं...
यदि शुक्र मिथुन या वृश्चिक राशी में अष्टमस्थ हो तो स्त्री सुख में न्यूनता रहती है...आर्थिक स्थिति साधारण तथा कार्य-व्यवसाय ठीक प्रकार नहीं चलता..यदि शुक्र मकर या कुम्भ राशी में हो तो जातक को संतान, स्त्री आदि का सुख अल्प होता है लेकिन परे स्त्रियों से उसके सम्बन्ध बने रहते हैं तथा उनसे उसे लाभ भी मिलता है ...यदि शुक्र कन्या व मेष राशी में हो तो विवाहोपरांत जातक अवनति के गर्त में गिर जाता है...कार्य-व्यवसाय में हानि, नौकरी में पदावनति , सस्पेंसन आदि फल मिलते हैं..ऐसा जातक प्राय: ऋण ग्रस्त रहता है .....अन्य राशियों में प्राय: सब ठीक ठाक रहता है..ऐसा जातक परित्यक्ता तथा विधवा स्त्रियों से सम्बन्ध रखता है ...अष्टमस्थ शुक्र दूषित हो कर पाप प्रभाव में आया हो तो कामुकता यहाँ तक बढ़ जाती है की जातक कामवासना की शांति के लिए अनैतिक तथा अनैसर्गिक संसर्ग भी करता है .....क्रमश:
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ शनि गृह फलम
यदि शनि अष्टमस्थ हो तो सुख की आशा करना निर्मूल है...शनि को ज्योतिष में दुःख का कारक तथा अष्टम स्थान को संकट, कष्ट, व मृत्यु आदि का स्थान माना जाता है ....अत: दुःख स्वरुप शनि जब स्वयं दुःख स्थान में विराजमान हो तो सुख की आशा करना निर्मूल है...इतने पर भी यदि शनि बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है ...पूर्णायु भोग कर ही ऐसा जातक स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त होता है यदि शनि स्वग्रही अथवा उच्च का हो तो जातक को दहेज़ में अच्छा धन और संपत्ति प्राप्त होती है ...ऐसा जातक मृत्यु समय स्वस्थ चित्त रहता है तथा मृत्यु का उसे पूर्वाभास होता है...उसे ज्ञान होता है...
अत्यधिक पाप प्रभाव में आया शनि राजकीय दंड विशेषत: कारावास का कारन बनता है ऐसे जातक की बाल्यावस्था में ही उसके माता-पिता की मृत्यु हो जाती है या पिता को भारी आर्थिक हानि होती है...यदि शनि कर्क राशी में हो तो जातक संपत्ति और अधिकार दोनों मिल जाते हैं ...यदि शनि धनु राशी में हो तो विवाहोपरांत अशुभ फल करता है ...इसका कारण भाग्येश का अपनी राशी से द्वादश होना है (वृषभ लग्न में शनि भाग्येश होते हैं और जब वे अष्टम भाव में हो तो भाग्य भाव से द्वादश स्थान अष्टम पड़ता है)..ऐसे जातक को धनार्जन नहीं हो पता बल्कि उसके व्यय में वृद्धि हो जाती है...यदि शनि वृषभ, कन्या, तुला और कुम्भ या मीन राशी में हो तो नौकरी के लिए शुभ होता है शेष राशियों में हो तो स्वतंत्र व्यवसाय के लिए शुभ होता है ...लेकिन संतान और संपत्ति दोनों एक साथ नहीं मिलते.....क्रमश: शेष कल...२३/१०/२०१२
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ राहु फलम............
राहु एक छाया गृह है इसका अपना कोई फल नहीं होता है ..यह जिस राशी में स्थित होता है तदनुसार फल देता है ...इतने पर भी इसमें शनि जैसे गुण होते हैं..."शनिवत राहु कुज वत केतु " अर्थात राहु का फल शनि जैसा और केतु का फल मंगल जैसा ! राहु और शनि के पापत्व में बड़ा अंतर है... शनि जातक को विभिन्न कष्ट देकर धर्म अध्यात्म की और परिवर्तन करते हैं वाही राहु...अपनी राशी स्थिति अनुसार विभिन्न बाधाएं, आकस्मिक शुभाशुभ प्रभाव अथवा विनाश जैसे भूकंप, तूफान.या कोई भयानक प्राकर्तिक आपदा, शक्तिशाली से शक्तिशाली सत्ता] व्यक्ति को धूल चटा देते हैं ...रहू कालपुरुष का मुख है ..समस्त श्रृष्टि , समस्त चराचर जगत कल पुरुष के मुख में समां जाता है...पापी श्रेणी में इसी वजह से गिना जाता है की अस्तित्व न होते हुए भी ...महाकाल है...अत: विनाशक हैं ..जब देने पर आते हैं तो रंक को रजा बनते देर नहीं लगती....यदि राहु पुरुष राशी में से किसी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य होता है ...क्यूंकि स्त्री कलह करने वाली व संदिग्ध चरित्र की होती है .ऐसे जातक को धनार्जन की धुन रहती है...वहा नैतिक-अनैतिक का ध्यान किये बिना धन संचय में लगा रहता है ...राजकीय नौकरी में हो तो रिश्वत लेता है पर शीघ्र ही पकड़ा जाता है और दंड भोगता है ....इसकी मृत्यु मूर्छित अवस्था में होती है
स्त्री राशी का राहु हो तो प्राय: उपरोक्त से फल उलटे मिलते हैं...पत्नी अच्छी मिलती है....लेकिन पत्नी की मृत्यु हो जाने से विधुर जीवन यापन करना पड़ता है...इसे मृत्यु का ज्ञान पहले ही हो जाता है तथा मृत्यु के समय चेतना बनी रहती है...प्राय: ऐसे जातक स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं..यदि नौकरी करते हो तो रिश्वत लेते हैं पर पकडे नहीं जाते ..यदि राहु शुभ प्रभाव में हो तो जातक को उत्तर आयु में सुख मिलता है..लेकिन पापा प्रभाव में हो तो बुढ़ापे तक सुख नहीं मिलता ...अत: अष्टमस्थ गृह को ध्यान में रख कर उसकी शांति ...अवश्य करा लेनी चाहिए...
अष्टमस्थ केतु
अष्टमस्थ केतु शुभ फलदाता नहीं होता ...ऐसे जातक को प्राय: अर्श, भगंदर, आदि रोग लगे रहते हैं मूत्रकृछ (यूरिन की बीमारी, इस'कक्क की बीमारी )से वह ४२ वर्ष की उम्र में पीड़ित होता है ...व्यवसाय में अनेक उलझाने आती हैं ...जातक जितनी महनत करता है उतना उसको फल नहीं मिलता...दिया हुआ पैसा वापस नहीं आता..प्राय: वृश्चिक राशी का केतु शुभ फल देता है..जैसा की पहले बताया ..की इसका फल मंगल जैसा होता है ...फोड़े, फुंसी , मुहासे, आगजनी की घटना, विस्फोट, ये सब केतु के लक्षण हैं...जातक को दुर्घटनाओं से देह कष्ट होता है...पत्नी बच्चों में कलह बनी रहती है ...शत्रु के शास्त्र से मृत्यु की आशंका रहती है ...यदि केतु शुभ प्रभाव में हो तो उपर्युक्त फलो में न्यूनता रहती है ...और शुभ फल मिलते हैं.....शिव ॐ...
अष्टम भाव में किसी भी क्रूर और पापी ग्रहों की स्थिति शुभ नहीं मानी गई है ...जातक को अपने जीवन में मृत्यु तुल्य कष्टों अवरोधों की स्थिति का सामना करना पड सकता है ...प्राचीन ग्रंथकारों ने अष्टमस्थ सूर्य के अशुभ फल ही बताएं हैं....लेकिन अनुभव में शुभाशुभ दोनों प्रकार के फलों को देखा गया है...यदि सूर्य पुरुष राशी...मुख्यतया अग्नि राशियों में हो तो बुरे फल मिलते हैं...घर की गुप्त बातें, जिनका दूसरों को ज्ञान हो जाना अहितकर होता है घर से बहार चली जाती हैं...नौकर-चाकर विश्वस्त नहीं होते ...यहाँ तक की अपनी पत्नी भी विश्वासपात्र नहीं रहती ...ऐसे में पारी या पत्नी कोई विश्वासघात करे तो क्या आश्चर्य ..यदि सूर्य स्व-राशी अथवा उच्च का हो तो असावधानीवश जातक की मृत्यु होती है ...यदि सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, तुला, वृषभ या कन्या राशी में हो तो जातक को लम्बी बीमारियाँ भोग कर मृत्यु का आलिंगन करना पड़ता है ...उसके जीवन साथी का चरित्र संदिग्ध रहता है...तथा मृत्यु भी जीवन साथी से पहले हो जाती है...जीवन के अंतिम दिनों में जातक को अर्थाभाव झेलना पड़ता है ..यह सब ऐसे ही होता है जैसे सूर्यास्त के बाद का अँधेरा ...सूर्य के स्त्री राशी में रहने से संतति सुख अधिक मिलता है ..पुरुष राशी में संतान सुख अल्प होता है दृष्टि मंदता से परेशानी होती ...ज्यादा पापा प्रभव में सूर्य हो तो आँख का ओप्रेसन भी होता है ...अधिक स्त्री प्रसंग के कारण उसे गुप्त रोगों का शिकार होना पड़ता है!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ भावस्थ चन्द्रमा.....
यदि अष्टमस्थ चन्द्र हो तो बचपन में अरिष्ट होता है ...कई प्रकार के रोगों से जातक ग्रस्त रहता है...अनेक चिकित्सकों से निदान करने पर भी व्याधियां उसका पीछा नहीं छोडती उसे जल में डूबने का भय रहता है...अथवा जलोदर रोग उसकी मृत्यु का कारन बनता है यह प्राय: बाल्यकाल में ही घटित हो जाता है क्यूंकि अरिष्ट्प्रद चंद्रमा बच्चों के लिए ही ज्यादा कष्टदायी रहता है......यदि अग्नि राशी का चंद्रमा हो तो येन-केन-प्रकारेण जातक को धन मिल जाता है...विवाह में भी अच्छा दान -दहेज़ मिल जाता है...या किसी के द्वारा वारिस घोषित होने से धन-संपत्ति मिल जाती है ..यदि चन्द्र वायु राशी में हो तो जीवन साथी अच्चा मिलता है...लेकिन परिवार में कलह बनी रहती है....ऐसा जातक योगाभ्यासी , वेदांत को जानने वाला व इश्वर की उपासना करने वाल होता है उसके घर की गुप्त बातें दूसरों को नौकरों के द्वारा अथवा पत्नी के द्वारा ज्ञात हो जाती हैं ४५ वे वर्ष से सम्पत्तिनाशक योग बनते हैं....लेकिन यदि चंद्रमा उच्च या स्वग्रही हो तो शुभ फल मिलते हैं....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ मंगल फलम
यदि अष्टम भाव में मंगल हो तो जातक प्राय: रोगों से ग्रस्त रहता है ! उसे देहसुख अच्छा नहीं मिलता तथा वह अल्पायु एवं दरिद्री अथवा अभावग्रस्त रहता है.. जातक की बोलचाल बहुत रुखी..और असभ्य होती है...ऐसा जातक स्वार्थी और कंजूस भी होता है शायद जीवन की कठिनाई उसे ऐसा करने पर विवास करती हो ...अनभव में आय अ है की ऐसे जातक का मध्य कल निर्धनावस्था में व्यतीत होता है प्राचीन महाऋषियों ने कहा है की अष्टम में अगर मंगल विराजमान हो तो उसके लिए शुभ स्थानों में बैठे शुभ गृह भी लाभ नहीं देते...विवाह से लाभ नहीं होता ..उलटे परेशानियाँ बढती है ...मित्र शत्रुवत व्यव्हार करते हैं यदि मंगल नीच राशी में हो तो रक्त-पित्त हो जाता है ...सूर्य चंद्रमा और शनि के साथ यदि मंगल भी अशुभ सम्बन्ध में हो तो जातक अल्पायु होता है अथवा किसी षट्कर्म के कारण उसकी मृत्यु होती है...यदि अकेला मंगल हो तो शीघ्र मृत्यु नहीं होने देता...
यदि मंगल अग्नि राशी में हो तो जातक की आग से जल कर मृत्यु होती है अथवा किसी गोली या विस्फोटक पदार्थ से मृत्यु की सम्भावना होती है ...वायु राशी में होने से मस्तिष्क विकृति मृत्यु का कारण बनती है ...यदि मंगल वृषभ, कन्या और मकर राशी में हो तो शुभ फल मिलते हैं मकर राशी में मंगल संतान का आभाव करा ता है अथवा पुत्री संतान ज्यादा होती हैं ...ऐसा जाता ज्यादा खाने वाला ,,,मिष्ठान्न प्रिय होता है फलत: अजीर्ण रोग से पीड़ित रहता है ...ऐसा जातक राजकीय कर्मचारी हो तो खूब रिश्वत लेता है...यदि कर्क, वृश्चिक, एवं मीन राशी में मगल हो तो जातक के जल में डूबने से मृत्यु होने की सम्भावना रहती है....मेने पहले भी कहा की अष्टमस्थ मंगल बाधा कर्क होता है...जो व्यव्हार में गुस्सा, अहंकार, उत्तेजना ला कर इन्सान का पतन करता है...अत: समय रहते मंगल के जाप इत्यादि से उसके कोप को शांत किया जा सकता है...!!शिव ॐ !!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:..अष्टमस्थ बुध फलम..................
यदि बुध अष्टमस्थ हो तो जातक अतिथि सेवक होता है उस पर राज्य की कृपा बनी रहती है...तथा वह राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है...यहाँ ज्योतिष का एक बहुत सुंदर सूत्र..ये है की अकेले बुध.की दृष्टि धन भाव पर हो ..और बुध शुभ प्रभाव व शुभ राशी में हो तो जातक को अत्यंत धनी बनाता है ....वह प्रख्यात होता है ऐसा जातक अपने कुल का पालन करने वाला कुल श्रेष्ठ होता है उसकी स्मरण शक्ति अच्छी होती है तथा वह गुप्त विद्याओं और आध्यात्म शास्त्र के पठन-पाठन में रूचि होने से अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेता है....ऐसा जातक मनमौजी दिल का साफ...चल कपट से दूर होता है अत: साझेदारी उसके लिए घातक होती है...यदि बुध उच्चस्थ और शुभ प्रभाव में हो तो अकस्मात् धन लाभ के उसे जीवन में कई सुअवसर मिलते हैं...ऐसा जातक सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय होता है तथा शुभ स्थिति में उसकी मृत्यु होती है.....सुंदर व्यक्तित्व का धनी ऐसा जातक शत्रु हन्ता होता है...आप्तजनो में विश्वास व्यक्त करते हुए अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर लेता है शास्त्रीय ज्ञान में रूचि होने से प्रख्यात देवज्ञ भी हो सकता है यदि बुध स्त्री राशी में हो तो मृत्यु का कारण मस्तिष्क विकार होता है ..बाल्यावस्था में सर में चोट लगती है ...यदि बुध पापा प्रभाव में आया हो तो जातक कुमार अवस्था से ही उसका चल चलन बिगड़ता है और अत्यधिक स्त्री प्रसंग के कारण विभिन्न रोगों से उसकी मृत्यु होती है ..शिव ॐ !!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ शुक्र फलम...........
यदि अष्टम भाव में शुक्र होतो अनायास धन की प्राप्ति होती है ...यहाँ अनायास धन प्राप्ति बिना अर्जन किये धन का द्योतक है ...ऐसे जातको को लोटरी , सट्टा, विरासत अथवा भूमि में गड़ा हुआ धन प्राप्त होता है विशेषत: किसी विधवा स्त्री की संपत्ति उसके मृत्यु के पश्चात प्राप्त हो जाती है ...अष्टम भाव आयु का स्थान है और नैसर्गिक रूप से शुक्र शुभ गृह है ...अत: जातक का दीर्घायु हो जाना स्वाभाविक है ...शुक्र के होने से आर्थिक और स्त्री विषेयक सुख और मिल जाता है ...ऐसा जातक विद्वान होता है तथा उसकी पत्नी प्राय: स्वाभिमानी, कर्ण प्रियभाषिणी,अवं विश्वासपात्र होती है...ऐसे जातक को प्राय: नशे की लत होती है...यदि शुक्र वृषभ, धनु या कर्क राशी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुली रहता है ...स्त्री एवं संतति से वैमनस्य बना रहता है...चूँकि ऐसे जातक अत्यधिक कामुक होने से व्यभिचारी प्रवृत्ति वाले होते हैं, फलत: मधुमेह , शुक्रमेह, उपदंश आदि गुप्त रोगों से ट्रस्ट हो कर दुःख भोगते हैं...
यदि शुक्र मिथुन या वृश्चिक राशी में अष्टमस्थ हो तो स्त्री सुख में न्यूनता रहती है...आर्थिक स्थिति साधारण तथा कार्य-व्यवसाय ठीक प्रकार नहीं चलता..यदि शुक्र मकर या कुम्भ राशी में हो तो जातक को संतान, स्त्री आदि का सुख अल्प होता है लेकिन परे स्त्रियों से उसके सम्बन्ध बने रहते हैं तथा उनसे उसे लाभ भी मिलता है ...यदि शुक्र कन्या व मेष राशी में हो तो विवाहोपरांत जातक अवनति के गर्त में गिर जाता है...कार्य-व्यवसाय में हानि, नौकरी में पदावनति , सस्पेंसन आदि फल मिलते हैं..ऐसा जातक प्राय: ऋण ग्रस्त रहता है .....अन्य राशियों में प्राय: सब ठीक ठाक रहता है..ऐसा जातक परित्यक्ता तथा विधवा स्त्रियों से सम्बन्ध रखता है ...अष्टमस्थ शुक्र दूषित हो कर पाप प्रभाव में आया हो तो कामुकता यहाँ तक बढ़ जाती है की जातक कामवासना की शांति के लिए अनैतिक तथा अनैसर्गिक संसर्ग भी करता है .....क्रमश:
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ शनि गृह फलम
यदि शनि अष्टमस्थ हो तो सुख की आशा करना निर्मूल है...शनि को ज्योतिष में दुःख का कारक तथा अष्टम स्थान को संकट, कष्ट, व मृत्यु आदि का स्थान माना जाता है ....अत: दुःख स्वरुप शनि जब स्वयं दुःख स्थान में विराजमान हो तो सुख की आशा करना निर्मूल है...इतने पर भी यदि शनि बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है ...पूर्णायु भोग कर ही ऐसा जातक स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त होता है यदि शनि स्वग्रही अथवा उच्च का हो तो जातक को दहेज़ में अच्छा धन और संपत्ति प्राप्त होती है ...ऐसा जातक मृत्यु समय स्वस्थ चित्त रहता है तथा मृत्यु का उसे पूर्वाभास होता है...उसे ज्ञान होता है...
अत्यधिक पाप प्रभाव में आया शनि राजकीय दंड विशेषत: कारावास का कारन बनता है ऐसे जातक की बाल्यावस्था में ही उसके माता-पिता की मृत्यु हो जाती है या पिता को भारी आर्थिक हानि होती है...यदि शनि कर्क राशी में हो तो जातक संपत्ति और अधिकार दोनों मिल जाते हैं ...यदि शनि धनु राशी में हो तो विवाहोपरांत अशुभ फल करता है ...इसका कारण भाग्येश का अपनी राशी से द्वादश होना है (वृषभ लग्न में शनि भाग्येश होते हैं और जब वे अष्टम भाव में हो तो भाग्य भाव से द्वादश स्थान अष्टम पड़ता है)..ऐसे जातक को धनार्जन नहीं हो पता बल्कि उसके व्यय में वृद्धि हो जाती है...यदि शनि वृषभ, कन्या, तुला और कुम्भ या मीन राशी में हो तो नौकरी के लिए शुभ होता है शेष राशियों में हो तो स्वतंत्र व्यवसाय के लिए शुभ होता है ...लेकिन संतान और संपत्ति दोनों एक साथ नहीं मिलते.....क्रमश: शेष कल...२३/१०/२०१२
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ राहु फलम............
राहु एक छाया गृह है इसका अपना कोई फल नहीं होता है ..यह जिस राशी में स्थित होता है तदनुसार फल देता है ...इतने पर भी इसमें शनि जैसे गुण होते हैं..."शनिवत राहु कुज वत केतु " अर्थात राहु का फल शनि जैसा और केतु का फल मंगल जैसा ! राहु और शनि के पापत्व में बड़ा अंतर है... शनि जातक को विभिन्न कष्ट देकर धर्म अध्यात्म की और परिवर्तन करते हैं वाही राहु...अपनी राशी स्थिति अनुसार विभिन्न बाधाएं, आकस्मिक शुभाशुभ प्रभाव अथवा विनाश जैसे भूकंप, तूफान.या कोई भयानक प्राकर्तिक आपदा, शक्तिशाली से शक्तिशाली सत्ता] व्यक्ति को धूल चटा देते हैं ...रहू कालपुरुष का मुख है ..समस्त श्रृष्टि , समस्त चराचर जगत कल पुरुष के मुख में समां जाता है...पापी श्रेणी में इसी वजह से गिना जाता है की अस्तित्व न होते हुए भी ...महाकाल है...अत: विनाशक हैं ..जब देने पर आते हैं तो रंक को रजा बनते देर नहीं लगती....यदि राहु पुरुष राशी में से किसी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य होता है ...क्यूंकि स्त्री कलह करने वाली व संदिग्ध चरित्र की होती है .ऐसे जातक को धनार्जन की धुन रहती है...वहा नैतिक-अनैतिक का ध्यान किये बिना धन संचय में लगा रहता है ...राजकीय नौकरी में हो तो रिश्वत लेता है पर शीघ्र ही पकड़ा जाता है और दंड भोगता है ....इसकी मृत्यु मूर्छित अवस्था में होती है
स्त्री राशी का राहु हो तो प्राय: उपरोक्त से फल उलटे मिलते हैं...पत्नी अच्छी मिलती है....लेकिन पत्नी की मृत्यु हो जाने से विधुर जीवन यापन करना पड़ता है...इसे मृत्यु का ज्ञान पहले ही हो जाता है तथा मृत्यु के समय चेतना बनी रहती है...प्राय: ऐसे जातक स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं..यदि नौकरी करते हो तो रिश्वत लेते हैं पर पकडे नहीं जाते ..यदि राहु शुभ प्रभाव में हो तो जातक को उत्तर आयु में सुख मिलता है..लेकिन पापा प्रभाव में हो तो बुढ़ापे तक सुख नहीं मिलता ...अत: अष्टमस्थ गृह को ध्यान में रख कर उसकी शांति ...अवश्य करा लेनी चाहिए...
अष्टमस्थ केतु
अष्टमस्थ केतु शुभ फलदाता नहीं होता ...ऐसे जातक को प्राय: अर्श, भगंदर, आदि रोग लगे रहते हैं मूत्रकृछ (यूरिन की बीमारी, इस'कक्क की बीमारी )से वह ४२ वर्ष की उम्र में पीड़ित होता है ...व्यवसाय में अनेक उलझाने आती हैं ...जातक जितनी महनत करता है उतना उसको फल नहीं मिलता...दिया हुआ पैसा वापस नहीं आता..प्राय: वृश्चिक राशी का केतु शुभ फल देता है..जैसा की पहले बताया ..की इसका फल मंगल जैसा होता है ...फोड़े, फुंसी , मुहासे, आगजनी की घटना, विस्फोट, ये सब केतु के लक्षण हैं...जातक को दुर्घटनाओं से देह कष्ट होता है...पत्नी बच्चों में कलह बनी रहती है ...शत्रु के शास्त्र से मृत्यु की आशंका रहती है ...यदि केतु शुभ प्रभाव में हो तो उपर्युक्त फलो में न्यूनता रहती है ...और शुभ फल मिलते हैं.....शिव ॐ...
No comments:
Post a Comment