Saturday, 23 February 2013

Navmasth vibhinn rashi fal

श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवम भावस्थ मिथुन राशी ...स्वामी बुध 

यदि कुंडली के नवम भाव में मिथुन राशी हो तो जाता धर्म स्वरुप हो जाता है ...तथा देव, गुरु, ब्राह्मण, विद्वजनो, का आदर सत्कार करने वाला, दीं-हीन दुखियो को यथा संभव मदद करने वाला, अभ्यागतों का पूर्ण मन-सम्मान करने, सात्विक व सरल स्वाभाव का जातक होता है ...वह धार्मिक अवं सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर भाग लेता है...नवम.भाव धर्म भाव है तो बुध विष्णु स्वरुप होते हैं जब स्वयं बुध ही नव्मधिपति हो जातक में धार्मिकता, परोपकारिता आदि भावना व गुण आने स्वाभाविक हैं ..यदि बुध लग्नेश से सम्बन्ध करे तो जातक स्वार्थ रहित व सबसे छुप कर परोपकार या मदद करता है ...लेकिन बुध की निर्बल स्थिति जातक के भाग्योदय में तो विघ्नकारी होती ही है..बड़े मामा अवं मौसी की भी हानि करती है...उसे अर्थभाव बना रहता है ...तथा वह दुसरो के लिए कार्य करता है ..स्वयं ऋणी हो जाता है तथा जैसे तैसे अपने जीवन का निर्वाह करता है .....
नवम भाव में कर्क राशी ...स्वामी चंद्रमा 
यदि कुंडली के नवम भाव में कर्क राशी हो तो जातक धार्मिक भावना प्रवण तो होता है लेकिन व्रत-उपवास आदि अधिक करता है वह किसी गुप्त स्थान में तप में निरत हो जाता है या तीर्थ स्थानों का भ्रमण करता है ...ऐसा जातक भावना प्रवण प्राणी होता है तथा सदा ही कल्पना लोक में खोया रहता है ...ऐसा जातक कविता भी करे तो इश्वर-भक्ति से पूर्ण ही करता है ...ततः पुराणी परंपरा व रुढियों से चिपका रहता है...अधिक व्रत करने से उसे प्राय: उदार रोग घेरे रहते हैं...तथा वाट रोग कारन बन जाते हैं ,,,भावुकता तथा अस्थिरता उसके त्वरित निर्णय लेने में बाधा कारक होती है इसीलिए वह किसी कार्य को करने में आवश्यकता से अधिक समय लगा देता है...उसे अपने जीवन में अनेक उतर-चढाव देखने पड़ते हैं ...यहाँ चंद्रमा नवमेश बनता है अत: बलवान चंद्रमा मिअर्युक्त शुभ फल देता है क्षीण चन्द्र हो तो सालियों, नन्दों (पति की बहनों )का सुख नहीं मिलता ///इति शुभम ...शिव ॐ...२.११/२०१२

शुभ प्रभात 
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अथ नवम भाव राशी फलम.......
मेष राशी ...स्वामी मंगल ...यदि नवम भाव में मेष राशी हो तो जातक सौभाग्यशाली कहा जा सकता है ....वह विवेकशील होता है तथा प्रत्येक कार्य को सोच विचार कर करता है ...उसे प्राय: अर्थाभाव बना रहता है क्युकी उस पर अनपेक्षित व्यय भर रहता है...इसीलिए ऐसे व्यक्तियों की आय व्यय से कम हुआ करती है उसे चतुष्पदों (गाय, घोडा, भैंस आदि ..अथवा वाहन) के कार्यो से लाभ होता है यहाँ मंगल चूँकि चतुर्थेश व नवमेश बनता है ...अत: यदि बलवान हो तो जातक को धन-संपत्ति, मन-सम्मान अवं अधिकार उसी अनुपात में मिल जाते हैं ...ऐसा जातक भूपति होता है..उसे माता का का भरपूर सुख प्राप्त होता है तथा राज्य-दरबार में मान सम्मान मिलता है ..यदि मंगल निर्बल हो तो पिता का अरिष्ट होता है ... नवम भाव हो या कोई और भाव हमें भाव स्थित गृह, भावेश की स्थिति, भाव बल, भावे और भावेश पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव का बारीकी से विश्लेषण करना चाहिए...इति शिव ॐ 
वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र...यदि कुंडली के नवम भाव में वृषभ राशी हो तो जातक की धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा होती है ..वह दीं जानो का अपने धन से पालन पोषण करता है अभ्यागतों का आदर करने वाला तथा याचकों को यथासंभव धन-वस्त-आभूषण आदि समयानुसार दान देता है ...ऐसा जातक विद्वान और सच्चरित्र होता है ...समय को पहचान कर विवेकयुक्त और प्रिय वचन कहता है ...बाल्यावस्था में कष्ट उठाता है ....शिक्षा प्राप्ति के लिए भटकना पड़ता है लेकिन अन्तत: उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है उत्तरवय में जीवन के सभी सुखो को प्राप्त कर लेता है...ऐसे जातक को स्वतंत्र व्यवसाय में ही सफलता मिलती है यदि जातक नौकरी में हो तो प्रगति धीरे -धीरे होती है यहाँ शुक्र नवमेश और द्वितीयेश बनता है ...अत: यदि बलवान हो शुभ प्रभाव में हो तो बहुत धनदाता होता है...वैसे भी शुक्र तरल धन का प्रबल कारक होता है ..लेकिन यदि निर्बल हो तो साले के द्वारा धन का नाश एवं राजकीय दंड मिलने की सम्भावना बनी रहती है इति शिव ॐ

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवमस्थ सिंह राशी ...स्वामी सूर्य.

यदि कुंडली के नवम भाव में सिंह राशी हो तो जातक धर्म को तो मानता है अपितु उसका अन्धानुकरण नहीं करता....प्राचीन रुढियो को नहीं मानता ...तथा कुछ अपने खुद के नियमों विचारों को ही प्रमुखता देता है ...फलत: धर्म के मामलों में उसका व्यव्हार बत्तख जैसा होता है जो समाज के हित के नियम हैं उन्हें ग्रहण करा बाकि सबको तिलांजली....यही उत्तम भी है देश-काल-परिस्थिति के अनुकूल ही धरम का अनुसरण करना चाहिए राशी जिसका स्वामी शेर हो तो उसके सारे आचरण सिंह या राजा की भांति हो तो क्या आश्चर्य.. यदि सूर्य निर्बल हो तो जातक धर्म का विरोध करता है तथा दूसरे के धर्म को अपने धर्म से श्रेष्ठ समझता है ...अपने धर्म के दुर्बल पक्षों को बार-बार उजागर कर व्यंग्य कसता है ...यदि सूर्य बलवान हो तो ऐसा जातक समाज अवं राज्य में सम्मानित होता है तथा तथा पद व अधिकार दोनों प्राप्त कर लेता है...उसका कोई भी कार्य बिना व्यवधान संपन्न नहीं होता है ..वह अपने उच्चाधिकारियों को प्रयत्न करके भी प्रसन्न नहीं कर पाता...ऐसा जातक अथक परिश्रमी होता है और श्रम को ही जीवन का लक्ष्य समझता है...बाल्यावस्था की अपेक्षा उसकी वृद्धावस्था सुलह से व्यतीत होती है ....
नवमस्थ कन्या राशी ...स्वामी बुध 
कुंडली के नवम भाव में कन्या राशी हो तो जातक में विलासिता का पुट आ जाता है.....स्त्रैण स्वाभाव का होने से महिला मित्रो की संख्या अधिक होती है और उनसे भरपूर लाभ भी होता है ..स्त्री उसकी प्रमुख कमजोरी होती है ..पत्नी बहुत प्यारी होती है ..ऐसा जातक धर्म के मामले में कट्टर नहीं होता और न उसमे भक्ति की भावना होती है..भाग्य निरंतर उसको जीवन के उंच-नीच समझाता रहता है ..लेकिन वह संभालना नहीं चाहता ...दुनिया दिखावे के लिए ऐसा जातक कुछ भी कर सकता है ..ऐसा जातक फलत: अपने को धनि-मानी स्थापित करने के लिए व्यर्थ के दिखावे करता है ..कन्या राशी के नवम भाव व शत्रु भाव (छटे) भाव का स्वामी होने के कारण शुभ फलो में न्यूनता रहती है ज्योतिष का सर्वमान्य सिद्धांत की कोई शुभ गृह शुभ भाव का स्वामी होकर अगर किसी दुष्ट भाव में स्थित हो तो अशुभ फल ज्यादा मिलते हैं यहाँ रिपु और भाग्य भाव का स्वामी बुद्ध शीघ्र ही अपने शुभशुभ फल का प्रदर्शन करता है ...अत: ऐसे जातको को सावधानी पूर्वक जीवनयापन करना चाहिए ...यदि बुद्ध का लग्न-लग्नेश से शुभ सम्बन्ध हो तो व्यक्ति धार्मिक, शुभ कर्म करने वाला होता है यदि नवम बहव में बुद्ध के साथ रहू हो तो अचानक भाग्योंनती होती है ...क्युकी रहू के दोष को बलवान बुद्ध नष्ट करता है ...इति...शिव ॐ....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: नवमस्थ तुला राशी ...स्वामी शुक्र।।
यदि कुंडली के नवम भाव में तुला राशी हो तो जातक धर्म भीरु होता है लेकिन पक्षपात अवं अन्याय का प्रबल विरोधी होता है ऐसे जातक समाज व कानून का आदर करते हैं तथा कोई ऐसा कार्य जाने-अनजाने नहीं करना चाहते तो इन बन्धनों की अवहेलना करे समाज और कानून की ही परिधि में ही सब कुछ करता है ...ऐसे जातक की बाल्यावस्था बहुत कष्टकर बीतती है ...लेकिन जैसे-जैसे आयु बढती है तो धन -मान -अधिकार सब मिल जाते हैं ...शिक्षा पूरी करने में उपस्थित होते हैं नौकरी की अपेक्षा व्यापर हितकर रहता है ..ऐसा जातक भोग-विलास को ही सच्चा सुख समझता है ...यात्राएं इसकी नियति होती है।।।ऐसा जातक देश -विदेश में कार्य -व्यवसायों के लिए तो जाता है ही तथा स्वयं भी घुमने-फिरने का शौक़ीन होता है ...यदि शुक्र बलवान हो तो तथा शुभ प्रभाव में हो तो जीवन में विलासिता की सम्पूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है ...यदि शुक्र निर्बल हो तो भाग्य्हीनता के कारण दुखी रहता है ....तुला राशी कुम्भ लगन में ही नवमस्थ होती है अत: लग्नेश यानि की शनि की स्थिति का सारगर्भित अध्ययन बेहद जरुरी है इसके साथ ही भाग्य भाव पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव का सम्यक अध्ययन भी आवश्यक है।।।
नवमस्थ वृश्चिक राशी।।
यदि कुंडली के नवम भाव में वृश्चिक राशी हो तो जातक दान-पुन्य करने वाला तथा दीनो, असहायों की मदद करने का ढोंग करता है तथा जिस धर्म से लोगों को मानसिक पीड़ा हो ऐसे धर्म को मानता है ..दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की ऐसा जातक नास्तिक होता है ..पाखंड और दिखावे में उसकी आस्था रहती है। फलत: इस मद में उसका धन व्यर्थ में व्यय होता है उसके जीवन के प्रारंभिक वर्ष आर्थिक दृष्टिकोण से तंगी के रहते हैं उसे आजीविका के लिए बहुत भटकना पड़ता है। सगोत्रियों एवं बन्धु-बांधवों की सहायता नहीं मिलती। ऐसे समय की व्यथा को झेलना ही ऐसे जातक के सहस अथवा आत्मबल को दर्शाता है। ऐसा जातक अपने प्रयत्नों से ही स्थापित होता है। जीवन के मध्यकाल से उसकी स्थिति में सुधार होता है ...भाग्य साथ देता है, आर्थिक स्टार ऊँचा होता है तथा निरंतर अपने लक्ष्य की और बढ़ता हुआ ऐसा जातक सफलता प्राप्त कर लेता है। समय की पहचान करने में ऐसा जातक सिद्धहस्त होता है। यहाँ मंगल नवमेश और दशमेश होता है बलवान हो तो बहुत धन-मान पदवी देता है यदि गुरु और मंगल का सम्बन्ध हो तो जातक दान-पुन्य करने वाला होता है ...इति ...शिव ॐ।।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ धनु राशी स्वामी गुरु ......

यदि कुंडली के नवं भाव में धनु राशी हो तो जातक धर्मात्मा होता है तथा देव, गुरु ब्राह्मण व सज्जनों की सेवा-सत्कार करने वाला होता है सनातन धर्म का आश्रय लेता है ...उसका स्वाभाव शांत, सौम्य अवं सरल होता है। ऐसा कोई कार्य नहीं होता जिसको ऐसा जातक सरलता पूर्वक न कर ले ..उसके हर कार्य में विघ्न बाधा आती है। बाल्यकाल सुखपूर्वक बीतता है .लेकिन जीवन के मध्यकाल में अर्थात यौवनावस्था में ऐसा जातक स्वयं को स्थापित करने के लिए कठिन श्रम एवं संघर्ष करता है। सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेता है।।फलत: शीघ्र ही सबका प्रिय बन जाता है। यदि गुरु बलवान हो तो उसे धन- पद अधिकार मिल जाता है ..यदि गुरु बलवान हो कर नवम भाव अथवा केंद्र में स्थित हो तो हँस महापुरुष नामक योग का निर्माण होता है ..जो की पञ्च महापुरुष योग में से एक है 
नवमस्थ मकर राशी स्वामी शनि ....
यदि कुंडली के नवं भाव में मकर राशी हो तो जातक धर्म के प्रति कट्टर नहीं होता ...उसके पूर्वार्जित कर्म - पुण्य उसे प्रतापशाली बन देते हैं। ऐसा जातक अपनी आयु से बड़ी स्त्रियों से प्रभावित होकर अंत में कॉल मतानुयायी बन जाता है। राजनीतिक क्षेत्र में उसकी बराबरी कम लोग ही कर पते हैं ...मकर राशी एक युक्ति युक्त राशी होती है अगर ये शुभ प्रभाव में हो शुभ युक्ति सुझाती है अशुभ में अशुभ जिस कार्य को लोग कठिन समझते हैं वह उसे अपने युक्ति बल से सहज ही सिद्ध कर लेता है दूसरों पर उपकार करने में भी उसे कठिनाई नहीं आती ...लेकिन महा अलसी होने के कारण उसके कार्य अपूर्ण पड़े रहते हैं। शत्रुपक्ष की प्रबलता के कारण उसका कोई भी कार्य सहज नहीं होता।।नौकरी करता हो तो शने : शने: प्रगति होती यदि शनि देव बलवान व शुभ प्रभाव में हो तोतो धन व पद सहज ही मिल जाते हैं ...यहाँ भी शनि यदि नवम में स्थित हो तो पञ्च महापुरुष योग में से एक शश योग का निर्माण होता है ...उसके सामान क्षेत्र बल वाला कोई नहीं होता ....इति ...शुभस्य ..शिव ॐ शिव ॐ शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवमस्थ कुम्भ राशी .........स्वामी शनि 

यदि कुंडली के नवम भाव में कुम्भ राशी हो तो जातक धरम परायण, परोपकारी तथा जातक वृक्षारोपण, धर्मशाला आदि शुभ कार्य करता है जिस से आने जाने वाले लोगो को वहां आराम मिल सके वो स्वयं अपने आप में एक धरम ध्वज होता है।। बाल्यावस्था उसकी कष्टकर व्यतीत होती है ...तथा उसे शिक्षा और आजीविका के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है ...जीवन के मध्यकाल से उसे यश, मान -सम्मान मिलना प्रारंभ होता है। किसी को परखने की योग्यता, कूटनीति एवं नेतृत्व में कम ही लोग उसकी बराबरी कर पाते हैं। यहाँ शनि अष्टम और नवम दो भावो का स्वामी बनता है ...अत: शुभता-अशुभता उसके जीवन में चलती रहती है यदि शनि बलवान हैं तो आयु लम्बी होती है ....भाग्य साथ देता है। पञ्च महापुरुष योग में से एक शश योग का निर्माण भी होता है ...ऐसे जातक अत्यंत प्रतिभाशाली , विद्वान्, ज्योतिष, दर्शन में रूचि रखते हैं ...
नवमस्थ मीन राशी ...स्वामी गुरु 
यदि कुंडली के नवम भाव में मीन राशी हो तो जातक धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत रहता है साधू-संतों, अभ्यागतों का स्वागत करता है तथा यत्र-तत्र।।समाज और जनोपयोगी कार्य करता है ..जनता की भलाई और सामाजिक हित वाले कार्यो में उसकी रूचि होती है। जीवन में उसे सफलता मिलती है। भ्रमण का उसे शौक होता है, उसे नौकरी और व्यापर दोनों में सफलता मिलती है, उसमे सहिष्णुता व नम्रता के साथ -साथ उच्च विचार भी होते हैं ..मीन राशी द्वि स्वाभाव राशी होती है ..इसके साथ बौद्धिक राशी, धार्मिक राशी भी होती है अत: ऐसे जातक के हर विचारों धार्मिकता का पूत होना स्वाभाविक है।। यदि गुरु बलवान हो तो बहुत शुभ फल मिलते हैं और निर्बल हो तो शत्रुओं द्वारा हानि होती है। यदि गुरु लग्न में हो तो धार्मिक तथा द्वितीय में हो तो धर्मोपदेशक होता है ...और यदि स्वयं गुरु बलवान हो कर नवम भाव में हो तो पञ्च महापुरुष योग में से एक हंस महापुरुष योग का निर्माण होता है ...जो अत्यत शुभ फल्प्रदाता होता है ..इति ..शुभस्य ..शिवोम।।।

No comments:

Post a Comment