ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:अष्टमेश की अन्य भावों में स्थिति .....
अष्टमेश प्रथम भाव (लग्न) में हो तो जातक के हर कार्य में विघ्न आते हैं ....ऐसा जातक लम्बे समय तक चलने वाली बीमारी से पीड़ित रहता है ...पाप कर्मों के प्रति उसकी रूचि रहती है और वह पापकर्मा होता भी है फलत: सर्वत्र उसकी निंदा होती है ऐसा जातक प्रसिद्द चोर होता है उसके शारीर पर अनेक व्रण (घावों) के निशान होते हैं देव-गुरु- ब्राह्मण अर्थात समाज के प्रतिष्ठित विद्वजनों से उसका बैर रहता है ...अपने किसी बड़ो की सलाह नहीं मानता उनका अनादर करता है उसे देह सुख अप्ल मिलता है लेकिन किसी उपलक्ष्य में उसे राज्य पक्ष से धन लाभ भी होता है ...अनेक दुखो को भोगता हुआ ऐसा जातक सहनशील होता है..
अष्टमेश का द्वितीय (धन) भाव में होने से जातक क्षीण आयु तथा अनेको शत्रुओ से युक्त होता है ऐसा जातक प्राय: शुभ कर्मो से रहित और नीच कर्मो से धन अर्जित कर अभिमान करने वाला समाज से त्याज्य होता है जैसा की पहले बताया गया है की कुंडली में अष्टम भाव सबसे ज्यादा पापी भाव होता है अत: यहाँ स्थित राशी, गृह पर उसका पपत्व का असर पड़ता है ...शुभ गृह हो और शुभ राशी, मित्र राशी...उच्च अथवा स्व राशी में हो तो पाप प्रभाव में कमी होती है इसके बावजूद उसे राज्य पक्ष से दंड का भय बना रहता है..शत्रुओं की गतिविधियों से उसे बहुत हानि होती है, मान-अपमान का भी रहता है...और समाज से उसे यथा योग्य सम्मान प्राप्त नहीं होता....क्रमश: शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: अष्टमेश तीसरे भाव में .........
यदि तीसरे भाव में अष्टमेश हो तो जताक अपने बंधू-बंधवो तथा सगोत्रियो से ईर्ष्या रखता है ऐसे जातक को सहोदरों का सुख नहीं मिल पता ...भाई या तो होते नहीं यदि हो भी तो आपस में बनती नहीं उनका शारीर भी कमजोर होता है तथा उस पर अधिक पाप प्रभाव हो तो जातक विकलांग भी हो सकता है अनेक रोगों से त्रस्त रहने वाला ऐसा जातक सहानुभूति नहीं ले पता...ऐसा जातक सदा दुर्वचन बोलता हैजिसके कारन वह लोगो की दृष्टि में निंदनीय होता है चूँकि सहोदरों से या कुटुंब के एनी भाई बंधवो से मतभेद के चलते ...ऐसा जातक बलहीन कहलाता है...दोस्तों शक्ति तीन होती हैं ...धन बल, देह बल, और सामाजिक बल ...जिस जातक के अपने सगे भाई नहीं होते और अन्य बांधवो से मतभेद होते हैं वो समाज में बलहीन होता है ...और वो सुरक्षित भी नहीं होता..
अष्टमेश अगर सुख भाव (चतुर्थ ) में हो तो सुख की आशा करना निराधार है ...ऐसे जातक का अपने पिता से व्यर्थ में विवाद हो कर बैर हो जाता है तथा उसे वहां सुख नहीं मिल पता...वह पिता की संपत्ति को नष्ट कर देता है ..यदि अष्टमेश पाप प्रभाव में आया हो तो पिता-पुत्र में मल्ल युद्ध की नौबत आ जाती है और दोनों न्यायालय में पहुँच जाते हैं ...ऐसा जातक अपने मित्रो तक को नहीं चोदता और उनसे भी द्रोह रखता हैस्वभाव से उग्र होने के कारण प्रत्येक से झगडा करता है यदि शुभ हो या शुभ प्रभाव में हो तो उपरोक्त अशुभता में कमी आती है
ॐश्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:सप्तम भाव में अष्टमेश के जाने से जातक प्रवास में कष्ट पाता है ...ऐसा जातक बड़े भाई के लिए कष्टप्रद होता है ..वह कामुक होता है तथा प्रमेह, शुक्रमेह, उपदंश आदि रोगों से पीड़ित होता है...ऐसा जातक का स्त्री से वैमनस्य बना रहता है....वह कम पिपासा को शांत करने के लिए व्यभिचार का सहारा लेता है ...उदार रोगों से पीड़ित रहता है..स्वयम मुर्ख होता है तथा दुष्टों से इसकी सांगत और मित्रता रहती है...ऐसे जातक की दुष्ट स्त्री के कारन मृत्यु तक संभव है...अर्श, भगंदर, जिअसे गुदा रोग होते हैं....व्यापर में हानि होती है ..यदि नौकरी करता हो तो पदावनति होने की प्रबल सम्भावना होती है...ऐसे जातक का द्विभार्या योग बनता है ..यदि शुभ प्रभाव में हो तो थोड़े बहुत शुभ फल अवश्य मिलते हैं....
अष्टमेश यदि अष्टम में ही हो तो जातक प्राय: निरोगी होता है ...अर्थ वो किसी दीर्घकालीन रोगों से त्रस्त नहीं होता...उसके कार्य व्यवसाय में प्रगति होती है धन और मन दोनों मिल जाते हैं तथा लम्बी आयु का उपभोग करता हुआ....प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेता अहि यदि अष्टमेश अशुभ प्रबह्व में आया हो अथवा अकरक हो तो देव, गुरु सज्जन पुरषों की निंदा करने वाला, सज्जन पुरशो अतःवा अपने से बड़ो का कहा न मानने वाला , स्त्री पुत्र सुख से हीन, यात्रा में दुर्घटना अथवा कष्ट पाने वाला पापकर्म, चौर्य्कला में निपुण, परे स्त्री से प्रेम करने वाल तथा अपयशी होता है...क्रमश: !!शिव ॐ!!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
यदि अष्टमेश नवम भाव में गया हो तो जातक देव, गुरु, और सद्जनों की संगती में नहीं रहता ...ऐसा जातक धरम-कर्म को ढोंग की संज्ञा देता है...जातक पक्का नास्तिक, पाप कर्मों में रत , जीवों की हिंसा करने वाला, बंधू-बांधवों से रहित व स्नेह रहित होता है ...ऐसे जातक को पत्नी भी दु:शीला मिलती है दुसरे के धन को हरण में पति-पत्नी दोनों का दिमाग एक साथ काम करता है ...ऐसा जातक छल-फरेब, दुसरे की धन संपत्ति को हरण करने में चतुर होते हैं ...यदि अष्टमेश शुभ गृह तो शुभ फल मिलते हैं ...तथा किसी वसीयत द्वारा संपत्ति प्राप्त होती है ...
यदि अष्टमेश दशम भाव में हो तो जातक अलसी होता है तथा उसे माता-पिता का सुख प्राय: नहीं मिलता..यदि अष्टमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो माता का चरित्र संदिग्ध होता है...चुगली करने की उसकी आदत होती है...दूसरों में विद्वेष पैदा कर अपन उल्लू सीधा करता है ...इन्ही कारणों से लोग उस से घृणा करते हैं..ऐसे जातक को राज्य दंड मिलने की प्रबल सम्भावना होती है दशम भाव के शुभ फलों में भरी कमी होती है ......ऐसा जातक अपने लाभ के लिए नित्य नवीन योजनायें बनता रहता है..यदि अष्टमेश शुभ ग्रह हो और शुभ प्रबह्व में हो तो ..ऐसा जातक खोजी प्रवृत्ति का होता है...समाजोपयोगी खोज कर जगत में अपना नाम करता है ....इति शुभ...शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: अष्टमेश दशम भाव में...फल
यदि अष्टम भाव का स्वामी एकादश में हो जातक कार्य-व्यवसाय में सफलता प्राप्त कर लेता है उसे धन-मन-सम्मान सभी कुछ प्राप्त हो जाता है...इष्ट मित्र अच्छे होते हैं तथा समय पर सहायता भी करते हैं...ऐसे जातक का माता से प्राय: वैमनस्य बना रहता है उसे यात्राओं में प्राय: कष्ट मिलता है तथा बाल्यावस्था सुखकर नहीं बीतती. ..लेकिन बाद में सुख मिलता है यदि अष्टमेश पाप प्रभाव में आया हो तो जातक अल्पायु होता है किये गए कर्मों का उसे पूरा लाभ नहीं मिलता तथा उसके इष्ट मित्र उसे धोखा देते हैं.....
यदि अष्टमेश बारहवें भाव में हो तो जातक की वाणी कर्कश होती है ऐसा जातक चौर्ये कला में निष्णात , बुरे कर्म करने वाला अल्पायु तथा आत्म ज्ञान से हीन होता है...ऐसे जातक के जन्म से ही उसका कोई अंग क्षीण होता है...या बाद में की दुर्घटना के कारन उसके किसी अंग में शिथिलता आ जाती है...आईटीआई अष्टमेश विभिन्न भावगत फलं सम्पूर्णं....शिव ॐ...
अष्टमेश प्रथम भाव (लग्न) में हो तो जातक के हर कार्य में विघ्न आते हैं ....ऐसा जातक लम्बे समय तक चलने वाली बीमारी से पीड़ित रहता है ...पाप कर्मों के प्रति उसकी रूचि रहती है और वह पापकर्मा होता भी है फलत: सर्वत्र उसकी निंदा होती है ऐसा जातक प्रसिद्द चोर होता है उसके शारीर पर अनेक व्रण (घावों) के निशान होते हैं देव-गुरु- ब्राह्मण अर्थात समाज के प्रतिष्ठित विद्वजनों से उसका बैर रहता है ...अपने किसी बड़ो की सलाह नहीं मानता उनका अनादर करता है उसे देह सुख अप्ल मिलता है लेकिन किसी उपलक्ष्य में उसे राज्य पक्ष से धन लाभ भी होता है ...अनेक दुखो को भोगता हुआ ऐसा जातक सहनशील होता है..
अष्टमेश का द्वितीय (धन) भाव में होने से जातक क्षीण आयु तथा अनेको शत्रुओ से युक्त होता है ऐसा जातक प्राय: शुभ कर्मो से रहित और नीच कर्मो से धन अर्जित कर अभिमान करने वाला समाज से त्याज्य होता है जैसा की पहले बताया गया है की कुंडली में अष्टम भाव सबसे ज्यादा पापी भाव होता है अत: यहाँ स्थित राशी, गृह पर उसका पपत्व का असर पड़ता है ...शुभ गृह हो और शुभ राशी, मित्र राशी...उच्च अथवा स्व राशी में हो तो पाप प्रभाव में कमी होती है इसके बावजूद उसे राज्य पक्ष से दंड का भय बना रहता है..शत्रुओं की गतिविधियों से उसे बहुत हानि होती है, मान-अपमान का भी रहता है...और समाज से उसे यथा योग्य सम्मान प्राप्त नहीं होता....क्रमश: शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: अष्टमेश तीसरे भाव में .........
यदि तीसरे भाव में अष्टमेश हो तो जताक अपने बंधू-बंधवो तथा सगोत्रियो से ईर्ष्या रखता है ऐसे जातक को सहोदरों का सुख नहीं मिल पता ...भाई या तो होते नहीं यदि हो भी तो आपस में बनती नहीं उनका शारीर भी कमजोर होता है तथा उस पर अधिक पाप प्रभाव हो तो जातक विकलांग भी हो सकता है अनेक रोगों से त्रस्त रहने वाला ऐसा जातक सहानुभूति नहीं ले पता...ऐसा जातक सदा दुर्वचन बोलता हैजिसके कारन वह लोगो की दृष्टि में निंदनीय होता है चूँकि सहोदरों से या कुटुंब के एनी भाई बंधवो से मतभेद के चलते ...ऐसा जातक बलहीन कहलाता है...दोस्तों शक्ति तीन होती हैं ...धन बल, देह बल, और सामाजिक बल ...जिस जातक के अपने सगे भाई नहीं होते और अन्य बांधवो से मतभेद होते हैं वो समाज में बलहीन होता है ...और वो सुरक्षित भी नहीं होता..
अष्टमेश अगर सुख भाव (चतुर्थ ) में हो तो सुख की आशा करना निराधार है ...ऐसे जातक का अपने पिता से व्यर्थ में विवाद हो कर बैर हो जाता है तथा उसे वहां सुख नहीं मिल पता...वह पिता की संपत्ति को नष्ट कर देता है ..यदि अष्टमेश पाप प्रभाव में आया हो तो पिता-पुत्र में मल्ल युद्ध की नौबत आ जाती है और दोनों न्यायालय में पहुँच जाते हैं ...ऐसा जातक अपने मित्रो तक को नहीं चोदता और उनसे भी द्रोह रखता हैस्वभाव से उग्र होने के कारण प्रत्येक से झगडा करता है यदि शुभ हो या शुभ प्रभाव में हो तो उपरोक्त अशुभता में कमी आती है
ॐश्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:सप्तम भाव में अष्टमेश के जाने से जातक प्रवास में कष्ट पाता है ...ऐसा जातक बड़े भाई के लिए कष्टप्रद होता है ..वह कामुक होता है तथा प्रमेह, शुक्रमेह, उपदंश आदि रोगों से पीड़ित होता है...ऐसा जातक का स्त्री से वैमनस्य बना रहता है....वह कम पिपासा को शांत करने के लिए व्यभिचार का सहारा लेता है ...उदार रोगों से पीड़ित रहता है..स्वयम मुर्ख होता है तथा दुष्टों से इसकी सांगत और मित्रता रहती है...ऐसे जातक की दुष्ट स्त्री के कारन मृत्यु तक संभव है...अर्श, भगंदर, जिअसे गुदा रोग होते हैं....व्यापर में हानि होती है ..यदि नौकरी करता हो तो पदावनति होने की प्रबल सम्भावना होती है...ऐसे जातक का द्विभार्या योग बनता है ..यदि शुभ प्रभाव में हो तो थोड़े बहुत शुभ फल अवश्य मिलते हैं....
अष्टमेश यदि अष्टम में ही हो तो जातक प्राय: निरोगी होता है ...अर्थ वो किसी दीर्घकालीन रोगों से त्रस्त नहीं होता...उसके कार्य व्यवसाय में प्रगति होती है धन और मन दोनों मिल जाते हैं तथा लम्बी आयु का उपभोग करता हुआ....प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेता अहि यदि अष्टमेश अशुभ प्रबह्व में आया हो अथवा अकरक हो तो देव, गुरु सज्जन पुरषों की निंदा करने वाला, सज्जन पुरशो अतःवा अपने से बड़ो का कहा न मानने वाला , स्त्री पुत्र सुख से हीन, यात्रा में दुर्घटना अथवा कष्ट पाने वाला पापकर्म, चौर्य्कला में निपुण, परे स्त्री से प्रेम करने वाल तथा अपयशी होता है...क्रमश: !!शिव ॐ!!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
यदि अष्टमेश नवम भाव में गया हो तो जातक देव, गुरु, और सद्जनों की संगती में नहीं रहता ...ऐसा जातक धरम-कर्म को ढोंग की संज्ञा देता है...जातक पक्का नास्तिक, पाप कर्मों में रत , जीवों की हिंसा करने वाला, बंधू-बांधवों से रहित व स्नेह रहित होता है ...ऐसे जातक को पत्नी भी दु:शीला मिलती है दुसरे के धन को हरण में पति-पत्नी दोनों का दिमाग एक साथ काम करता है ...ऐसा जातक छल-फरेब, दुसरे की धन संपत्ति को हरण करने में चतुर होते हैं ...यदि अष्टमेश शुभ गृह तो शुभ फल मिलते हैं ...तथा किसी वसीयत द्वारा संपत्ति प्राप्त होती है ...
यदि अष्टमेश दशम भाव में हो तो जातक अलसी होता है तथा उसे माता-पिता का सुख प्राय: नहीं मिलता..यदि अष्टमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो माता का चरित्र संदिग्ध होता है...चुगली करने की उसकी आदत होती है...दूसरों में विद्वेष पैदा कर अपन उल्लू सीधा करता है ...इन्ही कारणों से लोग उस से घृणा करते हैं..ऐसे जातक को राज्य दंड मिलने की प्रबल सम्भावना होती है दशम भाव के शुभ फलों में भरी कमी होती है ......ऐसा जातक अपने लाभ के लिए नित्य नवीन योजनायें बनता रहता है..यदि अष्टमेश शुभ ग्रह हो और शुभ प्रबह्व में हो तो ..ऐसा जातक खोजी प्रवृत्ति का होता है...समाजोपयोगी खोज कर जगत में अपना नाम करता है ....इति शुभ...शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: अष्टमेश दशम भाव में...फल
यदि अष्टम भाव का स्वामी एकादश में हो जातक कार्य-व्यवसाय में सफलता प्राप्त कर लेता है उसे धन-मन-सम्मान सभी कुछ प्राप्त हो जाता है...इष्ट मित्र अच्छे होते हैं तथा समय पर सहायता भी करते हैं...ऐसे जातक का माता से प्राय: वैमनस्य बना रहता है उसे यात्राओं में प्राय: कष्ट मिलता है तथा बाल्यावस्था सुखकर नहीं बीतती. ..लेकिन बाद में सुख मिलता है यदि अष्टमेश पाप प्रभाव में आया हो तो जातक अल्पायु होता है किये गए कर्मों का उसे पूरा लाभ नहीं मिलता तथा उसके इष्ट मित्र उसे धोखा देते हैं.....
यदि अष्टमेश बारहवें भाव में हो तो जातक की वाणी कर्कश होती है ऐसा जातक चौर्ये कला में निष्णात , बुरे कर्म करने वाला अल्पायु तथा आत्म ज्ञान से हीन होता है...ऐसे जातक के जन्म से ही उसका कोई अंग क्षीण होता है...या बाद में की दुर्घटना के कारन उसके किसी अंग में शिथिलता आ जाती है...आईटीआई अष्टमेश विभिन्न भावगत फलं सम्पूर्णं....शिव ॐ...
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