ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ चन्द्र फलम
यदि चन्द्र नवम हो तो जातक धरम परायण होता है तथा परंपरागत श्रुति-स्मृति प्रतिपादित धर्म को मानता है। उसे संपत्ति और संतान दोनों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। वह यात्राओं का शौक़ीन होता है, फलत: उसे प्रवास अधिक करने पड़ते हैं और प्रवास करते समय अच्छा धनलाभ भी करता हा। ऐसा जातक बहुत से शास्त्रों का जानकार एवं ज्ञानवान होता है। यदि नवमस्थ चन्द्र शुभ प्रभाव में हो और बलवान हो तो जातक को अत्यधिक शुभप्रद स्थिति देखने को मिलती है। वह माता का भक्त होता है अपनी स्वयं की माता को पूर्ण आदर और प्रेम देता है ..चंद्रमा क्षीण हो मगर शुभ द्रष्ट हो तो महाकाली मन रमेगा।यदि चंद्रमा पृथ्वी तत्व राशी में हो तो जातक की शिक्षा अड्चानो के कारन पूर्ण नहीं हो पाती, वायु राशी में हो तो अडचने- बाधाएं आती तो हैं किन्तु जातक येन-केन प्रकारेण अपनी शिक्षा पूर्ण कर लेता है यदि चंद्रमा एनी राशी में हो तो जातक की शिक्षा-दीक्षा में प्राय: अडचने नहीं आती। स्त्री राशी में चन्द्र के होने से प्राय: पुत्र संतान में विलम्ब होता है या अधिक आयु में प्राप्त होता है। नवमेश अगर दूषित हो तो पुत्राभाव भी संभव होता है। ऐसे जातक के छोटी बहनें होती हैं पर छोटे भाई की सम्भावना प्राय: समाप्त हो जाती हैं। हाँ छोटी साली या ननदें बहुत होती हैं। पुरुष राशी में हो तो छोटे भाई होते हैं ...बड़ा भाई अपवाद रूप में हो भी तो उसे सुख नहीं मिलता, चंद्रमा मेष राशी में हो तो भाग्योंनती में अनेक बाधाएं आती हैं ...इति शुभास्य ..शिव ॐ।।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:नवमस्थ मंगल फलम ......
यदि नवम भाव में मंगल हो तो जातक को शुभाशुभ दोनों प्रकार के फल अनुभव में आते हैं। नवमस्थ मंगल जातक को दम्भी व क्रोधी बनता है ..भले ही वह किसी भी राशी का क्यों न हो ....(पहले भी बताया है की मंगल और शनि के फल में इतना गंभीर अंतर है की मंगल जहाँ इन्सान को कमी, क्रोधी, अहंकारी ..और उत्तेजना प्रदान कर पतन करता है वहीँ शनिदेव जातक कोउसके किये कर्मो का दंड देकर सोने से कुंदन बनाते हैं जिसका अंतिम परिणाम सुखद ही होता है ऐसा नहीं है की मंगल सर्वथा बुरा होता है और पतन का कारन होता है ...वरन मंगल उर्जा का ...शक्ति का प्रतीक है और उस पर अंकुश लग्न अनिवार्य है ...वर्ना समाज का भी अहित और स्वयं जातक का भी ....) मकर व मीन में अधिकतर अशुभ फल मिलते हैं ..ऐसा जातक नीच, कुकर्मी, गुरुपत्नी तक से व्यभिचार की इच्छा रखने वाला होता है। व्यर्थ की डींगे हांकना तथा असत्य भाषण करना उसका स्वभाव होंता है।यदि मंगल अग्नि राशि या जल राशी में हो तो जातक उदार और मिलनसार होता है लेकिन स्वार्थ को फिर भी नहीं भूलता। नवमस्थ मंगल होने के कारण जातक प्रचीन रुढियों का पोषक नहीं होता बल्कि नवीन विचारों व मान्यताओं को स्थापित करने का प्रयत्न करता है ..फलत: सुधारक कहा जाता है। विवाह तक को ऐसा जातक समझौता मानता है ...जन्म जन्मान्तर का साथ या स्थाई सम्बन्ध नहीं समझत। इसी कारण विवाह सम्बन्ध के लिए सूक्ष्म विचार तक नहीं करता बल्कि कैसी भी स्त्री मिले स्वीकार कर लेता है यदि मंगल शुक्र से द्वादश स्थिति में हो तो द्विभार्या (दो विवाह ) का योग बनता है। पहली स्त्री से उत्पन्न बच्चों के लालन-पालन के लिए नई व्यवस्था करनी पड़ती है। रक्षा विभाग अथवा आबकारी विभाग में कार्यरत जातक के लिए नवमस्थ मंगल शुभ नहीं होता। स्त्री राशी का मंगल बहनों के लिए तथा पुरुष राशी का मंगल भाईओं के लिए मारक होता है। वृश्चिक का मंगल अधिक अशुभ फल करता है। ऐसा जातक इतना स्वार्थी होता है अपने एक पैसे के लाभ के लिए दूसरों का लाखों का नुकसान कर सकता है ....इति शुभस्य ...शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ बुध ....
यदि भाग्य भाव में बुद्ध विद्यमान हो तो जातक उत्तम विद्वानों एवं सज्जनों का संग करने वाला और यज्ञकर्ता होता है।।पर साथ ही अपने कुल की रीतियों का पालनकर्ता अवं दुर्जनों को संताप पहुँचाने वाला होता है। नवमस्थ बुध के जातक अपने कुल-परिवार में यश-मन-कीर्ति के ज्वलंत प्रतीक कहे जा सकते हैं। ऐसा जातक धन-स्त्री-पुत्र से युक्त होता है। यदि बुध पापी ग्रहों की राशी में हो, पप्द्रष्ट हो या पापी ग्रहों के साथ हो तो पिता को कष्ट होता है या पिता की मृत्यु हो जाती है। ऐसा जातक गुरु-देव-ब्राह्मण से द्वेष करता है तथा भाग्य भी उसका साथ नहीं देता। यदि बुध वायु राशी में हो तो विवाहोपरांत जातक का भाग्य उदय होता है तथा नौकरी अथवा कार्य-व्यवसाय में प्रगति होती हा। यदि बुध जल राशी में हो तो सरकारी नौकरी में लिपिक का पद मिलता है। भू-तत्व राशी में हो तो प्राइवेट नौकरी मिलती है। यदिअग्नी तत्वीय राशी में हो तो बैंक कर्मचारी, चार्टेड एकाउंटेंट, शिक्षक या फिर वह ज्योतिष को अपना व्यवसाय बना लेता है। संपादन, लेखन, प्रकशन, शिक्षण , शेयर ब्रोकर, आदि नवमस्थ बुध के ही फल हैं। इति शुभस्य ...शिव ॐ !!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: नवमस्थ गुरु
यदि नवम भाव में ब्रहस्पति हो तो विशेष शुभफलदायक मन गया है ..क्यूंकि एक तो गुरु स्वयं शुभ गृह है दुसरे नैसर्गिक कुंडली में नवं भाव का अधिपति भी बनता है। फलत: जातक को नवम भाव सम्बंधित समस्त तथ्यों से लाभ प्राप्त होना बताया गया है। स्वराशिस्थ या उच्च का गुरु हो तो जातक राज्य की और से विशेष लाभ प्राप्त करता है अर्थात राज्याधिकारी या राज्यसत्ता से संपन्न मंत्री पद पा लेता है। चूँकि यह धर्मस्थान है अत: यदि उपरोक्त अवस्था में गुरु हो तो जातक धर्मात्मा होगा ही। प्रभू कृपा उस पर सदा बनी रहती है और ये स्वाभाविक भी है क्यूंकि धर्म स्थान का करक गुरु बलवान हो कर स्थित होता है।
ऐसा जातक स्वाभाव से विनम्र , शांत, सदाचारी, एवं उच्च विचारों वाला होता है यदि गुरु अग्नि राशी में हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है लेकिन गुरु के पृथ्वी राशी में होने पर जातक को विज्ञानं में तो उच्च शिक्षाप्राप्त हो जाती है किन्तुविचार उदार नहीं होते ...स्वार्थ भावना बढ़ जाती है ..अहंकार सर उठाता है फलत: वह अच्छा शिक्षक नहीं हो सकता, हाँ अच्छा व्यवसायी हो सकता है। यदि गुरु वायु राशी में हो तो जातक लेखन, मुद्रण, प्रकाशन, जैसे कार्यों से लाभ उठाता है, यदि गुरु जल राशी में हो तो जातक न्यायविद, वकील, न्यायाधीश, अधिवक्ता,कानून पढ़ने वाला बनकर मानसम्मान प्राप्त करता है। छोटे भाई-बहनों के लिए गुरु की यह स्थिति अशुभ फलकारी होती है, आपस में मनोमालिन्य स्थिति बनती है या साथ-साथ रहे तो कोई भी प्रगति नहीं कर पाता संतान की और से भी जातक को चिंता बनी रहती है। इति शुभस्य शिव ॐ।।
शुभ प्रभात
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:नवमस्थ शुक्र फलम
यदि नवम में शुक्र हो जातक धार्मिक कार्य करने वाला तथा तपस्वी होता है। उसके माता-पिता लम्बी आयु पाते हैं।शुक्र को मुख्य रूप से गायन, वादन,सिनेमा, सौन्दर्य प्रसाधन, अभिनय, तपस्वी, और वित्त (फाइनेंस ) के द्योतक होता है। अभिनय करने के गुण उसमे स्वाभाविक रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। फलत: इन कलाओं में निपुण होने के कारन धन तथा मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। यदि पुरुष राशी (मेष सिंह, मिथुन, तुला धनु ) का शुक्र हो तो छोटे भाई अधिक होते हैं, बहने कम होती हैं लेकिन यदि शुक्र स्त्री राशी (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, और मीन ) हो तो बहने अधिक और भाई कम .. देखा गया की 2 बहनों के बाद या 3 बहनों के बाद भाई का जन्म ये नवम और तृतीय में स्थित ग्रहों का परिणाम होता है। पत्नी साधारण नाक-नक्श की होने पर भी दोनों में प्रीती बनी रहती है। प्राय: विवाहोपरांत ही भाग्योदय संभव होता है। कार्य-व्यवसायों के लिए स्त्रियों के माध्यम से धन मिलता है। कार्य-व्यवसाय में पत्नी के जीवनकाल में बहुत उन्नति होती है लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात् स्थिति बिगड़ जाती है।
यदि शुक्र पंचमेश हो कर नवमस्थ हो अर्थात कन्या या कुम्भ राशी का हो तो संतान के कारन जातक का भाग्योदय होता है। प्रथम संतान यदि कन्या हो तो स्थिति दिन पे दिन सुदृढ़ होती जाती है। पुत्र हो तो पहले सुधर कर बाद में बिगड़ जाती है। यदि जल राशी (कर्क, वृश्चिक और मीन ) का शुक्र हो तो जातक खोजी प्रकृति का होता है ..बात की तह में जाना इसका एक महत्वपूर्ण गुण होता है। जल्दी से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाता। कुछ ऐसा कर जाने की अदम्य इच्छा उसमे सदा विद्यमान रहती है जिससे आने वाली पीढ़ी भी उसे याद रख सके। अग्नि राशी (मेष, सिंह, और धनु ) और वायु राशी (मिथुन, तुला और कुम्भ ) में शुक्र हो तो पत्नी तो लावण्यमयी और यौवन संपन्न मिलती है लेकिन उसमे सांसारिक सुख और समाप्ति के लिए विशेष इच्छा नहीं रहती।
यदि शुक्र पापाक्रांत हो तो प्रेम-विवाह और वह भी विजातीय से विवाह करने की प्रेरणा देता है। स्त्री की आयु प्राय: जातक से बड़ी होती है। माता-पिता से भी जातक का विरोध बना रहता है। यदि उच्च का शुक्र हो तो मामी ,मौसी तथा मित्र की पत्नी आदि से अवैध सम्बन्ध बनाता है। इति शुभस्य ...शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ शनि फलम
यदि कुंडली के नवम भाव में शनि हो तो जातक तंत्र, दर्शन तथा वेदांत जैसे गूढ़ विषयों के पथान्पथान में रूचि रखता है तथा विद्याव्यसनी, शुद्ध विचाराकवं शांतचित्त होता है। ऐसा जातक न्यायविद, किसी धार्मिक सन्स्थ का प्रवर्तक या विद्यालय का कुलपति बनकर अपनी श्रेष्ठ बुद्धि एवं पवित्र आचरण के कारन जनता-जनार्दन में पूजनीय बन जाता है। इसका कारन संभवत: यह होता है की नैसर्गिक कुंडली में नवं स्थान का अधिपति होता हा। दशम स्थान कर्म स्थान है और नवं स्थान धर्म स्थान अत: दश्मधिपति (दशम भाव के स्वामी जो की मेष लग्न में ) का नवम में स्थित होना जहाँ धर्म और कर्म में रूचि देगा वहीँ वह न्यायप्रिय भी बनेगा इसीलिए शनि कालचक्र में कर्म और न्याय के अधिपति होते हैं और वे जीव को उनके कर्मो के अनुसार दण्डित व लाभान्वित करते हैं।
ऐसे जातक को उत्तराधिकार में पूर्वजों की संपत्ति मिलती है तथा वह स्वयं भी इसमें वृद्धि करने में समर्थ होता है। अग्नि राशी (मेष, सिंह। और धनु ) व जल राशी (कर्क वृश्चिक और मीन ) का शनि प्राय शुभ फलप्रद होता है। ये एक ज्ञातव्य तथ्य है की शनि अपनी राशी में जितने प्रसन्न होरे हैं उतनी ही वे देव गुरु ब्रहस्पति की धनु और मीन राशी में भी होते हैं। यदि वायु राशी (मिथुन, तुला और कुम्भ ) और पृथ्वी राशी (वृषभ, कन्या और मकर ) में शनि हो तो प्राय: अशुभ फल मिलते हैं पूर्वार्जित संपत्ति मिल कर भी नष्ट हो जाती है जीवन के उत्तरार्ध में आर्थिक आभाव बनता हिया जातक के मन में अस्थिरता बनी रहती है मान -हानि, अपमान होता है। पिता दीर्घजीवी नहीं होतेअप्वाद स्वरुप जीवित रहे भी तो पिता पुत्र में मनोमालिन्य बना रहता है तथा दोनों एक जगह प्रगति नहीं कर पाते। भाई-बहनों से भी जातक की अनबन रहती है। विभाजन के समय झगडे होते हैं तथा नौबत कोर्ट-कचेहरी तक चली जाती है। ऐसे स्थिति में जातक के मन में विवाह करने की इच्छा का आभाव रहता है। शनि मोह के करक हैं अत: ऐसे जातक को अपने धर्म, कर्म परिवार, मित्रो से बहुत स्नेह रहता है लेकिन उसकी इन भावनाओ का निरंतर अपमान होता है अत: वह तटस्थ हो जाता ही जो हो रहा है होने दो में वह बहुत असहाय महसूस करता है। विदेशवास की इच्छा होती है तथा अशुभ प्रभाव के कारन विदेशवास में बहुत कष्ट उठाता है ...ऐसे जातक की माता सौतेली होती है अपवाद स्वरुप सौतेली न भी हो तो वह पूरी जिन्दगी स्नेह और ममता के लिए तड़पता हा, घर में नहीं मिलता तो बहार धुन्धता है और अपमानित होता है, चित्त भ्रम, पागलपन , व्यर्थ भटकना अदि अशुभ फल मिलते हैं ..इति ...शुभस्य शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ राहू एवं केतु फलम
राहू ....राहू एक छाया गृह है है इसका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता ..छाया गृह् है यानि के अंधकार। यदि कुंडली के नवम भाव में स्थित हो तो जातक का अपनी जन्म भूमि मे मन नहीं रमता विदेश में व्यवसाय करने की इच्छा होती है लेकिन उसमे इसे सफलता नहीं मिलती और धनहानि होती है ...राहू चूँकि नवमस्थ है फलत: जातक के छोटे बड़े भाई बहनों में कमी रहती है राहू को काल पुरुष का मुख माना गया है ...जो इस धरती पर पैदा हुआ उसे अंत में इस कालपुरुष के मुख का ग्रास बनना होगा ही। भाग्य में आकस्मिक उतर-चढाव बने रहते हैं। ऐसा जातक एकलौती संतान होता है ...अपनी पत्नी में विशेष प्रीती रखता है पानी पत्नी में आसक्त ऐसा जातक उसके कारण अपने प्रियजनों, माता-पिता तक का अनादर कर देता है। विवाह करने का या तो वह इच्छुक नहीं होता या इतनी उतावली करता है की प्रणय सूत्र में बंधते समय स्त्री की जाति , वर्ण , और व्य का भी ध्यान नहीं करता। वायु राशी का राहू होने पर ही जातक को उपरोक्त बातें अनुभव में आती हैं। ऐसा जाता स्त्री पर एकमात्र अपना अधिकार समझता है ...पत्नी का पुत्रों से अधिक प्रेम भी उसे नहीं सुहाता। यदि अग्नि राशी का राहू हो तो जातक व्यव्हार कुशल होता है तथा दुसरो का आदर मान करता है। संतान की चिंता विशेषतय: पुत्र संतति की चिंता उसे बनी रहती है। पुत्र संतान के लिए दूसरा विवाह तक कर लेता है। यदि राहू स्त्री राशी में हो तो संतति होती है लेकिन उसकी मृत्यु की सम्भावना बनी रहती है। प्राय पहली संतान कन्या ही उत्पन्न होती है अधिक आयु का भी सुख मिलता है। बहनों के लिए ऐसा राहू कष्टकर होता है ....
केतु .....यदि नवम भाव में केतु हो तो ऐसा जातक व्यव्हार कुशल नहीं होता है ..लोकमत के विरुद्ध आचरण करने से अप्रिय्भाजन बनता है ...लेकिन उच्च विकारों का धनि होता है। प्राचीन रुढियों के सामानांतर नए-नए रीति-रिवाजों की स्थापना कर सुधारवादी बन् ने का यत्न करता है लेकिन इन सबके फलस्वरूप उसे लोकनिंदा और कष्ट झेलने पड़ते हैं वृश्चिक राशी का केतु न हो तो जातक पापी, पिता के सुख से हीन तथा जाति और समाज से तिरस्कृत होता है लेकिन वृश्चिक राशी का या शुभ प्रभाव में नवमस्थ केतु हो तो जातक के समस्त कष्टों का नाश हो जाता है तथा मलेच्छों के द्वारा भाग्य वृद्धि होती है। ऐसे जातक के बाजुओं में रोग होता है तथा उसके छोटे भाइयों को कष्ट देता है। ऐसा जातक अंतिम अवस्था में धार्मिक बन तपस्या-दान आदि के आनंद को प्राप्त होता है ...इति शुभस्य।।।शिव ॐ ..
Devel Dublish
नवमस्थ चन्द्र फलम
यदि चन्द्र नवम हो तो जातक धरम परायण होता है तथा परंपरागत श्रुति-स्मृति प्रतिपादित धर्म को मानता है। उसे संपत्ति और संतान दोनों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। वह यात्राओं का शौक़ीन होता है, फलत: उसे प्रवास अधिक करने पड़ते हैं और प्रवास करते समय अच्छा धनलाभ भी करता हा। ऐसा जातक बहुत से शास्त्रों का जानकार एवं ज्ञानवान होता है। यदि नवमस्थ चन्द्र शुभ प्रभाव में हो और बलवान हो तो जातक को अत्यधिक शुभप्रद स्थिति देखने को मिलती है। वह माता का भक्त होता है अपनी स्वयं की माता को पूर्ण आदर और प्रेम देता है ..चंद्रमा क्षीण हो मगर शुभ द्रष्ट हो तो महाकाली मन रमेगा।यदि चंद्रमा पृथ्वी तत्व राशी में हो तो जातक की शिक्षा अड्चानो के कारन पूर्ण नहीं हो पाती, वायु राशी में हो तो अडचने- बाधाएं आती तो हैं किन्तु जातक येन-केन प्रकारेण अपनी शिक्षा पूर्ण कर लेता है यदि चंद्रमा एनी राशी में हो तो जातक की शिक्षा-दीक्षा में प्राय: अडचने नहीं आती। स्त्री राशी में चन्द्र के होने से प्राय: पुत्र संतान में विलम्ब होता है या अधिक आयु में प्राप्त होता है। नवमेश अगर दूषित हो तो पुत्राभाव भी संभव होता है। ऐसे जातक के छोटी बहनें होती हैं पर छोटे भाई की सम्भावना प्राय: समाप्त हो जाती हैं। हाँ छोटी साली या ननदें बहुत होती हैं। पुरुष राशी में हो तो छोटे भाई होते हैं ...बड़ा भाई अपवाद रूप में हो भी तो उसे सुख नहीं मिलता, चंद्रमा मेष राशी में हो तो भाग्योंनती में अनेक बाधाएं आती हैं ...इति शुभास्य ..शिव ॐ।।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:नवमस्थ मंगल फलम ......
यदि नवम भाव में मंगल हो तो जातक को शुभाशुभ दोनों प्रकार के फल अनुभव में आते हैं। नवमस्थ मंगल जातक को दम्भी व क्रोधी बनता है ..भले ही वह किसी भी राशी का क्यों न हो ....(पहले भी बताया है की मंगल और शनि के फल में इतना गंभीर अंतर है की मंगल जहाँ इन्सान को कमी, क्रोधी, अहंकारी ..और उत्तेजना प्रदान कर पतन करता है वहीँ शनिदेव जातक कोउसके किये कर्मो का दंड देकर सोने से कुंदन बनाते हैं जिसका अंतिम परिणाम सुखद ही होता है ऐसा नहीं है की मंगल सर्वथा बुरा होता है और पतन का कारन होता है ...वरन मंगल उर्जा का ...शक्ति का प्रतीक है और उस पर अंकुश लग्न अनिवार्य है ...वर्ना समाज का भी अहित और स्वयं जातक का भी ....) मकर व मीन में अधिकतर अशुभ फल मिलते हैं ..ऐसा जातक नीच, कुकर्मी, गुरुपत्नी तक से व्यभिचार की इच्छा रखने वाला होता है। व्यर्थ की डींगे हांकना तथा असत्य भाषण करना उसका स्वभाव होंता है।यदि मंगल अग्नि राशि या जल राशी में हो तो जातक उदार और मिलनसार होता है लेकिन स्वार्थ को फिर भी नहीं भूलता। नवमस्थ मंगल होने के कारण जातक प्रचीन रुढियों का पोषक नहीं होता बल्कि नवीन विचारों व मान्यताओं को स्थापित करने का प्रयत्न करता है ..फलत: सुधारक कहा जाता है। विवाह तक को ऐसा जातक समझौता मानता है ...जन्म जन्मान्तर का साथ या स्थाई सम्बन्ध नहीं समझत। इसी कारण विवाह सम्बन्ध के लिए सूक्ष्म विचार तक नहीं करता बल्कि कैसी भी स्त्री मिले स्वीकार कर लेता है यदि मंगल शुक्र से द्वादश स्थिति में हो तो द्विभार्या (दो विवाह ) का योग बनता है। पहली स्त्री से उत्पन्न बच्चों के लालन-पालन के लिए नई व्यवस्था करनी पड़ती है। रक्षा विभाग अथवा आबकारी विभाग में कार्यरत जातक के लिए नवमस्थ मंगल शुभ नहीं होता। स्त्री राशी का मंगल बहनों के लिए तथा पुरुष राशी का मंगल भाईओं के लिए मारक होता है। वृश्चिक का मंगल अधिक अशुभ फल करता है। ऐसा जातक इतना स्वार्थी होता है अपने एक पैसे के लाभ के लिए दूसरों का लाखों का नुकसान कर सकता है ....इति शुभस्य ...शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ बुध ....
यदि भाग्य भाव में बुद्ध विद्यमान हो तो जातक उत्तम विद्वानों एवं सज्जनों का संग करने वाला और यज्ञकर्ता होता है।।पर साथ ही अपने कुल की रीतियों का पालनकर्ता अवं दुर्जनों को संताप पहुँचाने वाला होता है। नवमस्थ बुध के जातक अपने कुल-परिवार में यश-मन-कीर्ति के ज्वलंत प्रतीक कहे जा सकते हैं। ऐसा जातक धन-स्त्री-पुत्र से युक्त होता है। यदि बुध पापी ग्रहों की राशी में हो, पप्द्रष्ट हो या पापी ग्रहों के साथ हो तो पिता को कष्ट होता है या पिता की मृत्यु हो जाती है। ऐसा जातक गुरु-देव-ब्राह्मण से द्वेष करता है तथा भाग्य भी उसका साथ नहीं देता। यदि बुध वायु राशी में हो तो विवाहोपरांत जातक का भाग्य उदय होता है तथा नौकरी अथवा कार्य-व्यवसाय में प्रगति होती हा। यदि बुध जल राशी में हो तो सरकारी नौकरी में लिपिक का पद मिलता है। भू-तत्व राशी में हो तो प्राइवेट नौकरी मिलती है। यदिअग्नी तत्वीय राशी में हो तो बैंक कर्मचारी, चार्टेड एकाउंटेंट, शिक्षक या फिर वह ज्योतिष को अपना व्यवसाय बना लेता है। संपादन, लेखन, प्रकशन, शिक्षण , शेयर ब्रोकर, आदि नवमस्थ बुध के ही फल हैं। इति शुभस्य ...शिव ॐ !!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: नवमस्थ गुरु
यदि नवम भाव में ब्रहस्पति हो तो विशेष शुभफलदायक मन गया है ..क्यूंकि एक तो गुरु स्वयं शुभ गृह है दुसरे नैसर्गिक कुंडली में नवं भाव का अधिपति भी बनता है। फलत: जातक को नवम भाव सम्बंधित समस्त तथ्यों से लाभ प्राप्त होना बताया गया है। स्वराशिस्थ या उच्च का गुरु हो तो जातक राज्य की और से विशेष लाभ प्राप्त करता है अर्थात राज्याधिकारी या राज्यसत्ता से संपन्न मंत्री पद पा लेता है। चूँकि यह धर्मस्थान है अत: यदि उपरोक्त अवस्था में गुरु हो तो जातक धर्मात्मा होगा ही। प्रभू कृपा उस पर सदा बनी रहती है और ये स्वाभाविक भी है क्यूंकि धर्म स्थान का करक गुरु बलवान हो कर स्थित होता है।
ऐसा जातक स्वाभाव से विनम्र , शांत, सदाचारी, एवं उच्च विचारों वाला होता है यदि गुरु अग्नि राशी में हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है लेकिन गुरु के पृथ्वी राशी में होने पर जातक को विज्ञानं में तो उच्च शिक्षाप्राप्त हो जाती है किन्तुविचार उदार नहीं होते ...स्वार्थ भावना बढ़ जाती है ..अहंकार सर उठाता है फलत: वह अच्छा शिक्षक नहीं हो सकता, हाँ अच्छा व्यवसायी हो सकता है। यदि गुरु वायु राशी में हो तो जातक लेखन, मुद्रण, प्रकाशन, जैसे कार्यों से लाभ उठाता है, यदि गुरु जल राशी में हो तो जातक न्यायविद, वकील, न्यायाधीश, अधिवक्ता,कानून पढ़ने वाला बनकर मानसम्मान प्राप्त करता है। छोटे भाई-बहनों के लिए गुरु की यह स्थिति अशुभ फलकारी होती है, आपस में मनोमालिन्य स्थिति बनती है या साथ-साथ रहे तो कोई भी प्रगति नहीं कर पाता संतान की और से भी जातक को चिंता बनी रहती है। इति शुभस्य शिव ॐ।।
शुभ प्रभात
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:नवमस्थ शुक्र फलम
यदि नवम में शुक्र हो जातक धार्मिक कार्य करने वाला तथा तपस्वी होता है। उसके माता-पिता लम्बी आयु पाते हैं।शुक्र को मुख्य रूप से गायन, वादन,सिनेमा, सौन्दर्य प्रसाधन, अभिनय, तपस्वी, और वित्त (फाइनेंस ) के द्योतक होता है। अभिनय करने के गुण उसमे स्वाभाविक रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। फलत: इन कलाओं में निपुण होने के कारन धन तथा मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। यदि पुरुष राशी (मेष सिंह, मिथुन, तुला धनु ) का शुक्र हो तो छोटे भाई अधिक होते हैं, बहने कम होती हैं लेकिन यदि शुक्र स्त्री राशी (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, और मीन ) हो तो बहने अधिक और भाई कम .. देखा गया की 2 बहनों के बाद या 3 बहनों के बाद भाई का जन्म ये नवम और तृतीय में स्थित ग्रहों का परिणाम होता है। पत्नी साधारण नाक-नक्श की होने पर भी दोनों में प्रीती बनी रहती है। प्राय: विवाहोपरांत ही भाग्योदय संभव होता है। कार्य-व्यवसायों के लिए स्त्रियों के माध्यम से धन मिलता है। कार्य-व्यवसाय में पत्नी के जीवनकाल में बहुत उन्नति होती है लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात् स्थिति बिगड़ जाती है।
यदि शुक्र पंचमेश हो कर नवमस्थ हो अर्थात कन्या या कुम्भ राशी का हो तो संतान के कारन जातक का भाग्योदय होता है। प्रथम संतान यदि कन्या हो तो स्थिति दिन पे दिन सुदृढ़ होती जाती है। पुत्र हो तो पहले सुधर कर बाद में बिगड़ जाती है। यदि जल राशी (कर्क, वृश्चिक और मीन ) का शुक्र हो तो जातक खोजी प्रकृति का होता है ..बात की तह में जाना इसका एक महत्वपूर्ण गुण होता है। जल्दी से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाता। कुछ ऐसा कर जाने की अदम्य इच्छा उसमे सदा विद्यमान रहती है जिससे आने वाली पीढ़ी भी उसे याद रख सके। अग्नि राशी (मेष, सिंह, और धनु ) और वायु राशी (मिथुन, तुला और कुम्भ ) में शुक्र हो तो पत्नी तो लावण्यमयी और यौवन संपन्न मिलती है लेकिन उसमे सांसारिक सुख और समाप्ति के लिए विशेष इच्छा नहीं रहती।
यदि शुक्र पापाक्रांत हो तो प्रेम-विवाह और वह भी विजातीय से विवाह करने की प्रेरणा देता है। स्त्री की आयु प्राय: जातक से बड़ी होती है। माता-पिता से भी जातक का विरोध बना रहता है। यदि उच्च का शुक्र हो तो मामी ,मौसी तथा मित्र की पत्नी आदि से अवैध सम्बन्ध बनाता है। इति शुभस्य ...शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ शनि फलम
यदि कुंडली के नवम भाव में शनि हो तो जातक तंत्र, दर्शन तथा वेदांत जैसे गूढ़ विषयों के पथान्पथान में रूचि रखता है तथा विद्याव्यसनी, शुद्ध विचाराकवं शांतचित्त होता है। ऐसा जातक न्यायविद, किसी धार्मिक सन्स्थ का प्रवर्तक या विद्यालय का कुलपति बनकर अपनी श्रेष्ठ बुद्धि एवं पवित्र आचरण के कारन जनता-जनार्दन में पूजनीय बन जाता है। इसका कारन संभवत: यह होता है की नैसर्गिक कुंडली में नवं स्थान का अधिपति होता हा। दशम स्थान कर्म स्थान है और नवं स्थान धर्म स्थान अत: दश्मधिपति (दशम भाव के स्वामी जो की मेष लग्न में ) का नवम में स्थित होना जहाँ धर्म और कर्म में रूचि देगा वहीँ वह न्यायप्रिय भी बनेगा इसीलिए शनि कालचक्र में कर्म और न्याय के अधिपति होते हैं और वे जीव को उनके कर्मो के अनुसार दण्डित व लाभान्वित करते हैं।
ऐसे जातक को उत्तराधिकार में पूर्वजों की संपत्ति मिलती है तथा वह स्वयं भी इसमें वृद्धि करने में समर्थ होता है। अग्नि राशी (मेष, सिंह। और धनु ) व जल राशी (कर्क वृश्चिक और मीन ) का शनि प्राय शुभ फलप्रद होता है। ये एक ज्ञातव्य तथ्य है की शनि अपनी राशी में जितने प्रसन्न होरे हैं उतनी ही वे देव गुरु ब्रहस्पति की धनु और मीन राशी में भी होते हैं। यदि वायु राशी (मिथुन, तुला और कुम्भ ) और पृथ्वी राशी (वृषभ, कन्या और मकर ) में शनि हो तो प्राय: अशुभ फल मिलते हैं पूर्वार्जित संपत्ति मिल कर भी नष्ट हो जाती है जीवन के उत्तरार्ध में आर्थिक आभाव बनता हिया जातक के मन में अस्थिरता बनी रहती है मान -हानि, अपमान होता है। पिता दीर्घजीवी नहीं होतेअप्वाद स्वरुप जीवित रहे भी तो पिता पुत्र में मनोमालिन्य बना रहता है तथा दोनों एक जगह प्रगति नहीं कर पाते। भाई-बहनों से भी जातक की अनबन रहती है। विभाजन के समय झगडे होते हैं तथा नौबत कोर्ट-कचेहरी तक चली जाती है। ऐसे स्थिति में जातक के मन में विवाह करने की इच्छा का आभाव रहता है। शनि मोह के करक हैं अत: ऐसे जातक को अपने धर्म, कर्म परिवार, मित्रो से बहुत स्नेह रहता है लेकिन उसकी इन भावनाओ का निरंतर अपमान होता है अत: वह तटस्थ हो जाता ही जो हो रहा है होने दो में वह बहुत असहाय महसूस करता है। विदेशवास की इच्छा होती है तथा अशुभ प्रभाव के कारन विदेशवास में बहुत कष्ट उठाता है ...ऐसे जातक की माता सौतेली होती है अपवाद स्वरुप सौतेली न भी हो तो वह पूरी जिन्दगी स्नेह और ममता के लिए तड़पता हा, घर में नहीं मिलता तो बहार धुन्धता है और अपमानित होता है, चित्त भ्रम, पागलपन , व्यर्थ भटकना अदि अशुभ फल मिलते हैं ..इति ...शुभस्य शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ राहू एवं केतु फलम
राहू ....राहू एक छाया गृह है है इसका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता ..छाया गृह् है यानि के अंधकार। यदि कुंडली के नवम भाव में स्थित हो तो जातक का अपनी जन्म भूमि मे मन नहीं रमता विदेश में व्यवसाय करने की इच्छा होती है लेकिन उसमे इसे सफलता नहीं मिलती और धनहानि होती है ...राहू चूँकि नवमस्थ है फलत: जातक के छोटे बड़े भाई बहनों में कमी रहती है राहू को काल पुरुष का मुख माना गया है ...जो इस धरती पर पैदा हुआ उसे अंत में इस कालपुरुष के मुख का ग्रास बनना होगा ही। भाग्य में आकस्मिक उतर-चढाव बने रहते हैं। ऐसा जातक एकलौती संतान होता है ...अपनी पत्नी में विशेष प्रीती रखता है पानी पत्नी में आसक्त ऐसा जातक उसके कारण अपने प्रियजनों, माता-पिता तक का अनादर कर देता है। विवाह करने का या तो वह इच्छुक नहीं होता या इतनी उतावली करता है की प्रणय सूत्र में बंधते समय स्त्री की जाति , वर्ण , और व्य का भी ध्यान नहीं करता। वायु राशी का राहू होने पर ही जातक को उपरोक्त बातें अनुभव में आती हैं। ऐसा जाता स्त्री पर एकमात्र अपना अधिकार समझता है ...पत्नी का पुत्रों से अधिक प्रेम भी उसे नहीं सुहाता। यदि अग्नि राशी का राहू हो तो जातक व्यव्हार कुशल होता है तथा दुसरो का आदर मान करता है। संतान की चिंता विशेषतय: पुत्र संतति की चिंता उसे बनी रहती है। पुत्र संतान के लिए दूसरा विवाह तक कर लेता है। यदि राहू स्त्री राशी में हो तो संतति होती है लेकिन उसकी मृत्यु की सम्भावना बनी रहती है। प्राय पहली संतान कन्या ही उत्पन्न होती है अधिक आयु का भी सुख मिलता है। बहनों के लिए ऐसा राहू कष्टकर होता है ....
केतु .....यदि नवम भाव में केतु हो तो ऐसा जातक व्यव्हार कुशल नहीं होता है ..लोकमत के विरुद्ध आचरण करने से अप्रिय्भाजन बनता है ...लेकिन उच्च विकारों का धनि होता है। प्राचीन रुढियों के सामानांतर नए-नए रीति-रिवाजों की स्थापना कर सुधारवादी बन् ने का यत्न करता है लेकिन इन सबके फलस्वरूप उसे लोकनिंदा और कष्ट झेलने पड़ते हैं वृश्चिक राशी का केतु न हो तो जातक पापी, पिता के सुख से हीन तथा जाति और समाज से तिरस्कृत होता है लेकिन वृश्चिक राशी का या शुभ प्रभाव में नवमस्थ केतु हो तो जातक के समस्त कष्टों का नाश हो जाता है तथा मलेच्छों के द्वारा भाग्य वृद्धि होती है। ऐसे जातक के बाजुओं में रोग होता है तथा उसके छोटे भाइयों को कष्ट देता है। ऐसा जातक अंतिम अवस्था में धार्मिक बन तपस्या-दान आदि के आनंद को प्राप्त होता है ...इति शुभस्य।।।शिव ॐ ..
Devel Dublish
Thanks for posting such wonderful articles
ReplyDeleteMata rani dress