Friday, 23 December 2011

Prabhoo ka Naam

एक बार माँ गिरिजा ने उत्सुक्तावस प्रभू भोलेनाथ से पूछा, "मेरी एक जिज्ञासा का निवारण करें प्रभू, कृपया मुझे बताएं की श्री हरी के नाम में अधिक शक्ति है या श्री भगवान में ? में जिज्ञासावस् यह पूछ रहीं हूँ आप इसे अन्यथा न लें" ? भोले नाथ ने मुस्कुराते हुए कहा- "इस बात को लेकर तो स्वयं श्री हरी ही भ्रम में पड़ गए थे, श्री राम के रूप में जब श्री हरी लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बनवा रहे थे तो वानर पत्थरों पर श्री राम नाम लिख कर पत्थर फेंकते थे और वे जल में तैर जाते थे| रात्री में उन प्रभू ने सोचा- 'ये रीछ,वानर, मेरे लिए कितना परिश्रम कर रहे हैं| दिन भर पत्थरों पर मेरा नाम लिख कर फेंकते हैं- क्यों न कुछ पत्थर में भी फेंक दूँ, जिससे उनका कम कुछ कम हो जायेगा"
यह सोच कर प्रभू उठे और एक पत्थर जल में फेंका तो वह डूब गया, कुछ आश्चर्य हुआ, उन्होंने दूसरा पत्थर फेंका वो भी डूब गया| मन में बड़ा खेद हुआ- सोचने लगे अच्चा हुआ की किसी ने नहीं देखा| वापस आकर मुड़े तो देखा की भक्त शिरोमणि खड़े मुस्कुरा रहे हैं, देख कर कुछ दुखी हो गए, तब तक पवनसुत ने उनकी व्यथा समझते हुए कहा की 'प्रभू, आप व्यर्थ ही दुखित हो रहे हैं| आप जिसका अपने से परित्याग कर देंगे उसका तो डूबना निश्चित है|"
सुनकर श्री राम कुछ प्रस्सन हुए और बोले, "हे पवनसुत तुम केवल भक्त ही नहीं बल्कि बुद्धिमान भी हो," प्रभू को प्रस्सन देखकर अंजनिपुत्र कहने लगे की प्रभू आप की अपेक्षा आपके नाम में अधिक शक्ति है'' श्री राम ने मुस्कुरा कर पुछा की क्या, सचमुच ऐसा है यह तो आश्चर्य की बात है" विनम्रता पूर्वक कपिश बोले, "प्रभू आप जानकर अनजान बन रहे हैं, स्वामिन आप ही बताएं की आप के दर्शन कितने लोगों को हो सकते हैं किन्तु आपका नाम का सहारा लेकर तो प्रत्येक व्यक्ति भाव सागर से पर हो सकता है, इसलिए कृपासिंधु ! अपने नाम की शक्ति से भक्तों को वंचित न करें, तुलसीदास जी ने कहा है, " कलियुग केवल नाम अधर, सुमिरि सुमिरि जन उतरेहीं परा"

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