ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: षष्ठ भाव...विवेचना....
छठे स्थान को रिपु भाव अर्थात शत्रु का स्थान कहा जाता है शत्रु चूँकि अपने हितो को हनी पहुंचता है वह अपना नहीं हो सकता और क्यूंकि जो अपने हैं वे हमें हनी नहीं पहुंचा सकते इसलिए शत्रु के साथ-साथ इस स्थान से अपनों और परयो का भी विचार किया जाता है शत्रु की सर्वप्रथम इच्छा रहती है की वह अपने प्रतिद्वंद्वी को क्षति अथवा चोट पहुंचाए. ...उसके कार्यो में बाधा डाले वत: यह भी इस भाव से विचारणीय है चोट व घाव के साथ-साथ रोग का विचार भी इसी भाव से करना चाहिए ऋण चूँकि देना पड़ता है इसलिए यह भी दुसरो से लिया जाता है अपनों से लेकर देना नहीं पड़ता फलत: वह ऋण नहीं कहा जा सकता ....इसके साथ मामा, कतिपर्देश, पुत्र की आर्थिक स्थिति, पत्नी का चाचा, चोरो द्वारा धन की हनी इत्यादि का विचार किया जाता है....
इस स्थान का सूक्षम अध्यन करने के लिए छटा भाव अवं उसकी राशी, छठे भाव में स्थित गृह, षष्ठेश अवं षष्ठ स्थान पर दृष्टि डालने वाले गृह षष्ठेश किस भाव में है...किस गृह से युक्त है किस गृह की उस पर दृष्टि है तथा मंगल का सम्यक विचार करने के पश्चात ही फल कथन करना चाहिए .....क्रमश:
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में विभिन्न राशी फल...
मेष राशी ..स्वामी मंगल ...
छठे भाव में मेष राशी हो तो ऐसा जातक मित्रता के लिए तरसता है क्युकी उसके शत्रु ही प्राय: अधिक होते हैं...पहले तो ऐसे जातक का कोई मित्र नहीं होता नहीं हो भी तो मित्रवत व्यव्हार नहीं करता...इसका कारण जातक का स्वयं का व्यव्हार होता है....ऐसा जातक कतुभाशी...गली-गलौच की भाषा बोलने वाला चुगली करने वाल...क्रोधी स्वभाव का होता है सरकारी कर्मचारी हो तो प्राय: अपने सहयोगियों के विरुद्ध अधिकारियो के कण भरता है यद्यपि ऐसा जातक कठोर परिश्रमी होता है तथापि उसके श्रम का स्वल्प फल ही उसे मिलता है ऐसे जातक को मुर्ख कहे तो गलत न होगा..
वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र...
छठे भाव में वृषभ राशी हो तो जातक कामातुर होता है वह यहाँ तक गिर जाता है की अपनी संतान के बराबर वालो से भी अविअध सम्बन्ध रखता है व्यभिचारी होने के कारण स्व्बंधुओं से भी उसका बैर हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे महापापी कहा जाये तो क्या आश्चर्य जातक की स्त्री से उसके सम्बन्ध मधुर नहीं होते संतान भी आज्ञाकारी नहीं होती ऐसा जातक प्राय: खिन्नता पूर्ण जीवन जीते हैं
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में मिथुन और कर्क राशी का फल...मिथुन राशी स्वामी बुध ....यदि षष्ठ भाव में मिथुन राशी हो तो जातक का गृहस्थ जीवन नरकतुल्य होता है व्यवसाय में प्राय: हानि उठानी पड़ती है इतने पर भी जातक नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय को महत्त्व देता है ...यदि बुध बलवान हो तो मामाओ की संख्या में और उनकी सम्रद्धि में वृद्धि होती है निर्बल हो तो नौकरों द्वारा परेशानी तथा शत्रुओ द्वारा हानि उठानी पड़ती है बुध और गुरु दोनों ही निर्बल हो तो बड़े भाई के लिए स्थिति घटक रहती है प्राय: ऐसे जातको का सभी से वैमनस्य बना रहता है .....
कर्क राशी स्वामी चंद्रमा .....कर्क राशी हो और चन्द्र बलवान हो तो मौसियों (माता की बहनों ) की संख्या अधिक होती है निर्बल चन्द्र मामा की छाती में रोग की सुचना देते हैं ऐसे जातक का अपने बच्चो से अत्यधिक प्रेम होता है इस कारन उसका दुसरो से लड़ी-झगडा होता रहता है इस कारन उसकी संतति का भी झगडालू स्वाभाव होता है...इन्ही कारणों से राजभ्य की उत्पत्ति होती है क्युकी संतान प्रेम के कारन उचित-अनुचित का वह ध्यान नहीं रख पता यदि ऐसा जातक सरकारी कर्मचारी हो तो अपने अधिनस्थो को व्यर्थ में डाटता -डपटता रहता है उसकी किसी से नहीं बनती....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;षष्ठ भाव में सिंह व कन्या राशी...का फल
सिंह राशी स्वामी सूर्य......यदि रिपु भाव में सिंह राशी हो तो जातक अपने बंधू-बंधवो, कुटुंब जानो से द्वेष रखने वाल होता है ..उसके मन में दुर्भावना भरी होती है तथा धन के निमित्त वह दुसरो से बैर लेता है ऐसा जातक अपनी कन्या के कारन जमता से अथवा अपनी ससुराल वालो से शत्रुता करने वाला, वैश्याओ के साथ रमण करने वाला, तथा श्रेष्ठ स्त्रियों का शत्रु होता है उसके स्वाभाव के कारन ही लक्ष्मी उसके यहाँ से शीघ्र पलायन कर जाती है तथा अपनी अचल समाप्ति का वह स्वयं नाश कर देता हैअपने क्रोधी स्वाभाव अवं भ्रष्ट आचरण के कारन घर में कलेश का वातावरण बनता है ...अंतत: ऐसा जातक दरिद्र हो कर दुसरो के आश्रित होता है....
कन्या राशी स्वामी बुद्ध....ऐसा जातक कामुक होता है तथा व्यभिचार में रत हो कर अर्थ हानि करता है यदि बुध की स्थिति निर्बल हो तो जातक को लम्बे समय तक चलने वाले रोग से पीड़ित होना पड़ता है अंतड़ियो में सडन, उदार में केंसर, अपेंडीसायतिस, और हर्निया जैसे रोग भी संभावित हैं बार-बार ऋण लेना पड़ता है और उसे चुकाने के अवसर नहीं आते मामा तथा छोटी बहन के जीवन को हनी पहुँचती है छोटे भाई से भी सौमनस्य नहीं रह पता यदि बुध अपनी राशियों से तीसरे या बारहवे स्थित हो तो और उस पर किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो अर्थात बुध सिंह या वृश्चिक राशी में स्थित हो तो विपरीत राजयोग की सृष्टि करता है दुसरे शब्दों में ऐसा बुध लाभप्रद होता है ......
छठे स्थान को रिपु भाव अर्थात शत्रु का स्थान कहा जाता है शत्रु चूँकि अपने हितो को हनी पहुंचता है वह अपना नहीं हो सकता और क्यूंकि जो अपने हैं वे हमें हनी नहीं पहुंचा सकते इसलिए शत्रु के साथ-साथ इस स्थान से अपनों और परयो का भी विचार किया जाता है शत्रु की सर्वप्रथम इच्छा रहती है की वह अपने प्रतिद्वंद्वी को क्षति अथवा चोट पहुंचाए. ...उसके कार्यो में बाधा डाले वत: यह भी इस भाव से विचारणीय है चोट व घाव के साथ-साथ रोग का विचार भी इसी भाव से करना चाहिए ऋण चूँकि देना पड़ता है इसलिए यह भी दुसरो से लिया जाता है अपनों से लेकर देना नहीं पड़ता फलत: वह ऋण नहीं कहा जा सकता ....इसके साथ मामा, कतिपर्देश, पुत्र की आर्थिक स्थिति, पत्नी का चाचा, चोरो द्वारा धन की हनी इत्यादि का विचार किया जाता है....
इस स्थान का सूक्षम अध्यन करने के लिए छटा भाव अवं उसकी राशी, छठे भाव में स्थित गृह, षष्ठेश अवं षष्ठ स्थान पर दृष्टि डालने वाले गृह षष्ठेश किस भाव में है...किस गृह से युक्त है किस गृह की उस पर दृष्टि है तथा मंगल का सम्यक विचार करने के पश्चात ही फल कथन करना चाहिए .....क्रमश:
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में विभिन्न राशी फल...
मेष राशी ..स्वामी मंगल ...
छठे भाव में मेष राशी हो तो ऐसा जातक मित्रता के लिए तरसता है क्युकी उसके शत्रु ही प्राय: अधिक होते हैं...पहले तो ऐसे जातक का कोई मित्र नहीं होता नहीं हो भी तो मित्रवत व्यव्हार नहीं करता...इसका कारण जातक का स्वयं का व्यव्हार होता है....ऐसा जातक कतुभाशी...गली-गलौच की भाषा बोलने वाला चुगली करने वाल...क्रोधी स्वभाव का होता है सरकारी कर्मचारी हो तो प्राय: अपने सहयोगियों के विरुद्ध अधिकारियो के कण भरता है यद्यपि ऐसा जातक कठोर परिश्रमी होता है तथापि उसके श्रम का स्वल्प फल ही उसे मिलता है ऐसे जातक को मुर्ख कहे तो गलत न होगा..
वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र...
छठे भाव में वृषभ राशी हो तो जातक कामातुर होता है वह यहाँ तक गिर जाता है की अपनी संतान के बराबर वालो से भी अविअध सम्बन्ध रखता है व्यभिचारी होने के कारण स्व्बंधुओं से भी उसका बैर हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे महापापी कहा जाये तो क्या आश्चर्य जातक की स्त्री से उसके सम्बन्ध मधुर नहीं होते संतान भी आज्ञाकारी नहीं होती ऐसा जातक प्राय: खिन्नता पूर्ण जीवन जीते हैं
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में मिथुन और कर्क राशी का फल...मिथुन राशी स्वामी बुध ....यदि षष्ठ भाव में मिथुन राशी हो तो जातक का गृहस्थ जीवन नरकतुल्य होता है व्यवसाय में प्राय: हानि उठानी पड़ती है इतने पर भी जातक नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय को महत्त्व देता है ...यदि बुध बलवान हो तो मामाओ की संख्या में और उनकी सम्रद्धि में वृद्धि होती है निर्बल हो तो नौकरों द्वारा परेशानी तथा शत्रुओ द्वारा हानि उठानी पड़ती है बुध और गुरु दोनों ही निर्बल हो तो बड़े भाई के लिए स्थिति घटक रहती है प्राय: ऐसे जातको का सभी से वैमनस्य बना रहता है .....
कर्क राशी स्वामी चंद्रमा .....कर्क राशी हो और चन्द्र बलवान हो तो मौसियों (माता की बहनों ) की संख्या अधिक होती है निर्बल चन्द्र मामा की छाती में रोग की सुचना देते हैं ऐसे जातक का अपने बच्चो से अत्यधिक प्रेम होता है इस कारन उसका दुसरो से लड़ी-झगडा होता रहता है इस कारन उसकी संतति का भी झगडालू स्वाभाव होता है...इन्ही कारणों से राजभ्य की उत्पत्ति होती है क्युकी संतान प्रेम के कारन उचित-अनुचित का वह ध्यान नहीं रख पता यदि ऐसा जातक सरकारी कर्मचारी हो तो अपने अधिनस्थो को व्यर्थ में डाटता -डपटता रहता है उसकी किसी से नहीं बनती....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;षष्ठ भाव में सिंह व कन्या राशी...का फल
सिंह राशी स्वामी सूर्य......यदि रिपु भाव में सिंह राशी हो तो जातक अपने बंधू-बंधवो, कुटुंब जानो से द्वेष रखने वाल होता है ..उसके मन में दुर्भावना भरी होती है तथा धन के निमित्त वह दुसरो से बैर लेता है ऐसा जातक अपनी कन्या के कारन जमता से अथवा अपनी ससुराल वालो से शत्रुता करने वाला, वैश्याओ के साथ रमण करने वाला, तथा श्रेष्ठ स्त्रियों का शत्रु होता है उसके स्वाभाव के कारन ही लक्ष्मी उसके यहाँ से शीघ्र पलायन कर जाती है तथा अपनी अचल समाप्ति का वह स्वयं नाश कर देता हैअपने क्रोधी स्वाभाव अवं भ्रष्ट आचरण के कारन घर में कलेश का वातावरण बनता है ...अंतत: ऐसा जातक दरिद्र हो कर दुसरो के आश्रित होता है....
कन्या राशी स्वामी बुद्ध....ऐसा जातक कामुक होता है तथा व्यभिचार में रत हो कर अर्थ हानि करता है यदि बुध की स्थिति निर्बल हो तो जातक को लम्बे समय तक चलने वाले रोग से पीड़ित होना पड़ता है अंतड़ियो में सडन, उदार में केंसर, अपेंडीसायतिस, और हर्निया जैसे रोग भी संभावित हैं बार-बार ऋण लेना पड़ता है और उसे चुकाने के अवसर नहीं आते मामा तथा छोटी बहन के जीवन को हनी पहुँचती है छोटे भाई से भी सौमनस्य नहीं रह पता यदि बुध अपनी राशियों से तीसरे या बारहवे स्थित हो तो और उस पर किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो अर्थात बुध सिंह या वृश्चिक राशी में स्थित हो तो विपरीत राजयोग की सृष्टि करता है दुसरे शब्दों में ऐसा बुध लाभप्रद होता है ......