Thursday, 29 November 2012

ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: षष्ठ भाव...विवेचना....
छठे स्थान को रिपु भाव अर्थात शत्रु का स्थान कहा जाता है शत्रु चूँकि अपने हितो को हनी पहुंचता है वह अपना नहीं हो सकता और क्यूंकि जो अपने हैं वे हमें हनी नहीं पहुंचा सकते इसलिए शत्रु के साथ-साथ इस स्थान से अपनों और परयो का भी विचार किया जाता है शत्रु की सर्वप्रथम इच्छा रहती है की वह अपने प्रतिद्वंद्वी को क्षति अथवा चोट पहुंचाए. ...उसके कार्यो में बाधा डाले वत: यह भी इस भाव से विचारणीय है चोट व घाव के साथ-साथ रोग का विचार भी इसी भाव से करना चाहिए ऋण चूँकि देना पड़ता है इसलिए यह भी दुसरो से लिया जाता है अपनों से लेकर देना नहीं पड़ता फलत: वह ऋण नहीं कहा जा सकता ....इसके साथ मामा, कतिपर्देश, पुत्र की आर्थिक स्थिति, पत्नी का चाचा, चोरो द्वारा धन की हनी इत्यादि का विचार किया जाता है....
इस स्थान का सूक्षम अध्यन करने के लिए छटा भाव अवं उसकी राशी, छठे भाव में स्थित गृह, षष्ठेश अवं षष्ठ स्थान पर दृष्टि डालने वाले गृह षष्ठेश किस भाव में है...किस गृह से युक्त है किस गृह की उस पर दृष्टि है तथा मंगल का सम्यक विचार करने के पश्चात ही फल कथन करना चाहिए .....क्रमश:

ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में विभिन्न राशी फल...
मेष राशी ..स्वामी मंगल ...

छठे भाव में मेष राशी हो तो ऐसा जातक मित्रता के लिए तरसता है क्युकी उसके शत्रु ही प्राय: अधिक होते हैं...पहले तो ऐसे जातक का कोई मित्र नहीं होता नहीं हो भी तो मित्रवत व्यव्हार नहीं करता...इसका कारण जातक का स्वयं का व्यव्हार होता है....ऐसा जातक कतुभाशी...गली-गलौच की भाषा बोलने वाला चुगली करने वाल...क्रोधी स्वभाव का होता है सरकारी कर्मचारी हो तो प्राय: अपने सहयोगियों के विरुद्ध अधिकारियो के कण भरता है यद्यपि ऐसा जातक कठोर परिश्रमी होता है तथापि उसके श्रम का स्वल्प फल ही उसे मिलता है ऐसे जातक को मुर्ख कहे तो गलत न होगा..
वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र... 
छठे भाव में वृषभ राशी हो तो जातक कामातुर होता है वह यहाँ तक गिर जाता है की अपनी संतान के बराबर वालो से भी अविअध सम्बन्ध रखता है व्यभिचारी होने के कारण स्व्बंधुओं से भी उसका बैर हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे महापापी कहा जाये तो क्या आश्चर्य जातक की स्त्री से उसके सम्बन्ध मधुर नहीं होते संतान भी आज्ञाकारी नहीं होती ऐसा जातक प्राय: खिन्नता पूर्ण जीवन जीते हैं

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में मिथुन और कर्क राशी का फल...
मिथुन राशी स्वामी बुध ....यदि षष्ठ भाव में मिथुन राशी हो तो जातक का गृहस्थ जीवन नरकतुल्य होता है व्यवसाय में प्राय: हानि उठानी पड़ती है इतने पर भी जातक नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय को महत्त्व देता है ...यदि बुध बलवान हो तो मामाओ की संख्या में और उनकी सम्रद्धि में वृद्धि होती है निर्बल हो तो नौकरों द्वारा परेशानी तथा शत्रुओ द्वारा हानि उठानी पड़ती है बुध और गुरु दोनों ही निर्बल हो तो बड़े भाई के लिए स्थिति घटक रहती है प्राय: ऐसे जातको का सभी से वैमनस्य बना रहता है .....
कर्क राशी स्वामी चंद्रमा .....कर्क राशी हो और चन्द्र बलवान हो तो मौसियों (माता की बहनों ) की संख्या अधिक होती है निर्बल चन्द्र मामा की छाती में रोग की सुचना देते हैं ऐसे जातक का अपने बच्चो से अत्यधिक प्रेम होता है इस कारन उसका दुसरो से लड़ी-झगडा होता रहता है इस कारन उसकी संतति का भी झगडालू स्वाभाव होता है...इन्ही कारणों से राजभ्य की उत्पत्ति होती है क्युकी संतान प्रेम के कारन उचित-अनुचित का वह ध्यान नहीं रख पता यदि ऐसा जातक सरकारी कर्मचारी हो तो अपने अधिनस्थो को व्यर्थ में डाटता -डपटता रहता है उसकी किसी से नहीं बनती....

ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;षष्ठ भाव में सिंह व कन्या राशी...का फल 
सिंह राशी स्वामी सूर्य......यदि रिपु भाव में सिंह राशी हो तो जातक अपने बंधू-बंधवो, कुटुंब जानो से द्वेष रखने वाल होता है ..उसके मन में दुर्भावना भरी होती है तथा धन के निमित्त वह दुसरो से बैर लेता है ऐसा जातक अपनी कन्या के कारन जमता से अथवा अपनी ससुराल वालो से शत्रुता करने वाला, वैश्याओ के साथ रमण करने वाला, तथा श्रेष्ठ स्त्रियों का शत्रु होता है उसके स्वाभाव के कारन ही लक्ष्मी उसके यहाँ से शीघ्र पलायन कर जाती है तथा अपनी अचल समाप्ति का वह स्वयं नाश कर देता हैअपने क्रोधी स्वाभाव अवं भ्रष्ट आचरण के कारन घर में कलेश का वातावरण बनता है ...अंतत: ऐसा जातक दरिद्र हो कर दुसरो के आश्रित होता है....
कन्या राशी स्वामी बुद्ध....ऐसा जातक कामुक होता है तथा व्यभिचार में रत हो कर अर्थ हानि करता है यदि बुध की स्थिति निर्बल हो तो जातक को लम्बे समय तक चलने वाले रोग से पीड़ित होना पड़ता है अंतड़ियो में सडन, उदार में केंसर, अपेंडीसायतिस, और हर्निया जैसे रोग भी संभावित हैं बार-बार ऋण लेना पड़ता है और उसे चुकाने के अवसर नहीं आते मामा तथा छोटी बहन के जीवन को हनी पहुँचती है छोटे भाई से भी सौमनस्य नहीं रह पता यदि बुध अपनी राशियों से तीसरे या बारहवे स्थित हो तो और उस पर किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो अर्थात बुध सिंह या वृश्चिक राशी में स्थित हो तो विपरीत राजयोग की सृष्टि करता है दुसरे शब्दों में ऐसा बुध लाभप्रद होता है ......

Thursday, 22 November 2012


  • शुभ प्रभात
    पंचम भाव में बुध
    .....
    यदि पंचम भाव में बुध हो और शुभ प्रभाव में हो तो जातक सौभाग्यशाली होता है उसे सुंदर अवं गुनवंती पत्नी मिलती है तथा वह आनंदमय जीवन व्यतीत करता है ऐसे जातक को संतान का पूर्ण सुख तो मिलता है ही अपितु भगवन विष्णु अथवा श्री कृष्ण का अनन्य भक्त होता है..ऐसा जाता...हास्य कला का जानकर और छोटी उम्र से ही अच्छी पद प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ऐसा जातक विनोदी स्वाभाव का सदा प्रसन्न रहने वाल अपने से बड़ो का आदर करने वाला तथा देव गुरु भक्त होता है ...
    यदि जल राशी का हो तो संतति मंद बुद्धि अर्थात पागल होती है ऐसा जातक त्य्पिस्त, हस्त्चिंह परीक्षक शब्द शास्त्र का ज्ञाता होता है यदि बुध अग्नि राशी का हो तो जातक गणित, ज्योतिष ओ तत्व ज्ञान में विशेष रुस्ची रखता है ...वायु राशी में बुध हो तो जातक को संतति सुख का आभाव रहता है लेकिन वो ऐसे ग्रंथों की रचना कर डालता है जिनमे उसकी कीर्ति अक्ष्णु बनी रहती है अन्यान्य योग से एक अथवा दो संतान हो भी जाती हैं लेकिन जातक को उनसे विशेष लाभ नहीं रहता ...
    यदि पृथ्वी तत्व का बुध हो तो जातक ज्योतिष की हस्त रेखा विधि का विशेषग्य या पदार्थ का ज्ञाता होता है यदि बुध पप्क्रांत हो जातक अनुदार, अर्धशिक्षित, अवं झगडालू होता है यदि बुध का शनि से शुभ योग हो तो जातक को सत्ता लोटरी आदि से लाभ होता है यदि बुध का चंद्रमा से शुभ योग हो तो जातक धनि किन्तु व्यभिचारी होता है ....बुध नीच का हो या शत्रु राशी का हो तो तुलसी यक्षणी की साधना कभी न करे ...

    पंचमस्थ गुरु....
    श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम
    :
    यदि सूत भाव में देवगुरु ब्रहस्पति विद्यमान हो तो जातक सबका सुहृदय, सज्जनों में श्रेष्ठ अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, श्रेष्ठ पुत्रो से युक्त व गूढ़ विषयों में रूचि रखने वाल होता है ...मंत-तंत्र की सिद्धि उसे प्राप्त होती है उसे पत्नी सुंदर व गुनवंती मिलती है तथा दोनों में प्रगाढ़ प्रेम होता है ऐसा जातक अपने अधिकारियो का प्रिय पात्र होता है गृह सज्जा अवं स्वयं के रखरखाव का विशेष ध्यान रखता है ऐसा जातक न तो स्वयं कोई गलत कार्य करता है और न दुसरो को गलत कम करने की सलाह देता है..ऐसे जातक के पुत्र आज्ञाकारी एवं सच्चरित्र होते हैं जातक स्वयं भी न्यायिक प्रवृत्ति का होता है पंचाम्स्थ गुरु अगर सूर्य चंद्रमा से शुभ योग करता हो या दोनों गुरु से त्रिकोण स्थान (पंचम या नवम) भाव में स्थित हो तो आकस्मिक लाभ (जुआ, सत्ता, लोटरी ) के योग बनते हैं वायु तत्व में होने से जातक की शिक्षा पूर्ण हो जाती है ऐसे जातक प्राय: स्कूल में अध्यापक होते हैं तथा इसी क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करते हैं ऐसे जातक के संतति अल्प होती है और उस से कोई लाभ भी नहीं होता
    पृथ्वी तत्व का गुरु हो जातक की शिक्षा पूरी नहीं हो पति धनु राशी में भी शिक्षा अधूरी रह जाती है लड़कियां अधिक और लड़के कम उत्पन्न होते हैं ऐसे जातक प्राय: व्यापर करते हैं ....जल तत्व का गुरु से जातक को संतानाभाव रहता है पंचम भावस्थ गुरु जल राशी, स्त्री राशी में धन पुत्रादि के लिए शुभ नहीं रहता वकीलों, बैरिस्टरो , वीडयो, दर्श्नाचार्यो, एवं भाषाविदो के लिए शुभ होता है इन्हें अपने कार्यो में प्रसिद्धि मिलती है यह अलग बात है की पुत्र चिंता बनी रहती है..

    ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंचमस्थ शुक्र ....का फल

    पंचामस्थ शुक्र जातक को कवी अवं कलाकार बना देता है इसका कारन यह है की पंचम भाव कल्पना अथवा भावनाओ का घर है शुक बुध की युति अथवा चतुर्थेश और पंचमेश का राशिपरिवर्तन योग हो तो जातक क्लब, सिनेमा. खेल आदि में ज्यादा रूचि लेता है पंचम भाव और पंचमेश बलवान हो तो उपरोक्त बातो में ख्याति अर्जित होती है
    ऐसे जातक को संतान अधिक्य योग होता है स्त्री संतति की बहुलता रहती है भोग विलासी प्रवृत्ति के कारन ऐसे जातक मौज-शौक की वस्तुओं पर अधिक व्यय करते हैं उनका स्वाभाव हंसमुख और विनोदी होता है जीवन भर आनंद चैन से समय व्यतीत करते हैं धुन के ऐसे धुनी जताक जिस बात को मन में थान लें उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं...ऐसे जातक को जुआ, सत्ता, लोटरी से लाभ होता है अग्नि राशी का शुक्र शिक्षित नहीं होने देता लेकिन इतने पर भी जातक विद्वान् कहा जा सकता है अदाकारी और कलाकारी के माध्यम से धनोपार्जन करने के पश्चात् भी धन का संचय नहीं हो पता कामुक होता है फलत: एक पत्नीवत सिधांत को नहीं मानता संतान हो या न हो उसकी उसे कोई चिंता नहीं होती.....
    वायु तत्व का शुक्र उच्च शिक्षा प्रदान करता है ऐसा जातक प्राध्यापक अथवा shikshan संसथान से सम्बंधित कार्यो में लगा होता है स्त्रियों की कुंडली में इन राशियों का शुक्र ऋतुकाल में कष्टप्रद होता है प्रदर व योनी आर्द्रता के योग हो जाते हैं इसी कारन संतानाभाव बना रहता है.....

    पंचमस्थ शनि ...फल ..
    पंचम भाव में शनि हो तो जातक की देह कृशकाय, शुष्क, एवं दुर्बल होती है विद्वान् होता है मगर बात को तुरंत नहीं समझ पता....पंचम भाव विद्या बुद्धि, पद, मन्त्र आदि का भाव हा....और शनि की गति मंद है अत: हर कार्यो में, फलो में मंदता आणि स्वाभाविक है... कम शक्ति की कमी होती है संतान भाव में स्थिति से शनि का दुष्प्रभाव पड़ना ही है...अत: संतान का न होना अथवा काफी देर से होना फलित होता है स्त्रियों की कुंडली में मासिकधर्म में गड़बड़ी, प्रदर, मृतवत्सा आदि कुफल होते हैं....लेकिन यदि शुभ हो कर बलवान हो तो भूमि, खदान, माकन आदि से लाभ करता है तथा सार्वजानिक अधिकार पद दिलाता है जुआ, सट्टा, रेस लाटरी आदि से आकस्मिक लाभ नहीं होते बल्कि इनमे धन का अपव्यय होता है
    ऐसे जातक सार्वजानिक पद पर रहते हुए भी लोगो पर अपना प्रभाव डालते हैं....अग्नि राशी का शनि भाग्योदय में सहायक होता है स्व्भुज्बल से उन्नति की और अग्रसर ऐसे जातक विलक्षण स्वाभाव के स्वामी होते हैं अपने विचारो को यथासंभव दुसरो से छिपाते हैं प्रत्येक को संशय की दृष्टि से देखते हैं मुह पर प्रशंसा और पीठ पीछे बुरे करना इनकी आदत होती है ऐसे ही जातक चाटुकार होते हैं इनके यहाँ संतान तो बहुत होती हैं लेकिन जीवित कम ही रह पति हैं. शिक्षा के लिए ऐसा शनि शुभ नहीं होता....
    वायु राशी का शनि होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर वकील, जज आदि बनता है इन राशियों का शनि प्राय: माता-पिता से अलग कर देता है दत्तक पुत्र बनने का योग भी बनता है पूर्वार्जित संपत्ति मिलती तो अवश्य है लेकिन जातक के जीवनकाल में ही नष्ट भी हो जाती है पंच्मस्थ शनि प्राय: आपदा देकर ही शांति प्रदान करता है हृदय रोग से या जल में डूबने से मृत्यु होती है..

    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंचमस्थ राहु...फल...
    रहू एक पापी गृह है शास्त्रों में एक उक्ति है की शनिवत रहू अर्थात रहू शनि की भांति फल करता है....लेकिन पापत्व शनि से ज्यादा पापी है यदि अशुभ सम्बन्ध में हो तो जातक कुमार्गगामी होता है संतंभाव से पीड़ित होता है तथा नीच लोगो की संगती में खुश रहता है उसे राज्य की और से दंड मिलने का भय रहता है चन्द्र के साथ अशुभ संयोग करने पर जातक के संतान नहीं होती उसे पिसाच पीड़ा से संताप मिलता है ऐसे जातक के जीवन में प्राय: कम ही सहायक होते हैं ...शत्रुओ की बाढ़ सी आई रहती है इतने पर भी वह हर नहीं मानता गृह कलह से चिंता बनी रहती है फलत: अपच व ह्रदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है
    स्त्री अवं संतान सुख में रहू प्राय: बधाकार्क ही बनता है स्त्री मिल भी जाये तो रुग्न ही बनी रहती है यदि रहू अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग बन जाता है पुरुष राशी का रहू जातक को घमंडी बनता है ऐसे जातक शिक्षा या व्यवसाय के योग्य होते हैं वह उन्हें नहीं मिल पति फलत: असफल रहते हैं
    स्त्री राशी के रहू में जातक की स्थिति शांतिप्रिय अवं विवेकशील होती है शिक्षा अच्छी मिलती है लेख अच्चा होता है शिक्षा के कारन यश मिलता है do विवाह होते हैं तथा पुत्रसुख भी मिलता है..

    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंच्मस्थ केतु फल.....

    पंचामस्थ केतु के भी प्राय: शुभ फल नहीं मिलते....सर्प दोष कहलाता है....जातक को सर्प के अशुभ स्वप्न आते हैं.. विद्या और ज्ञान से वंचित होता है डरपोक होता है तथा विदेश में वस् करने की इच्छा रखता है उसकी बुद्धि भ्रष्ट होती है जिसके कारन मानसिक कलेश या शारीरिक कष्ट होते हैं संतान सुख या तो होता नहीं या देर से होता है.....
    ऐसे जातक को उदर रोग से पीड़ा होती है कपटी स्वाभाव का ऐसा जातक अभिचार कर्म द्वारा अपने सहोदर पर भी घाट करता है परिवार वालो से उसकी बनती नहीं क्युकी वे सभी लोग उसके लिए कष्टकारक होते हैं शिक्षा अपूर्ण रहने का शोक उसे जीवन भर ट्रस्ट करता है ...सट्टा, रेस मुकद्दमो आदि में उसका धन व्यय होता है ...
    लेकिन यदि केतु अवं पंचमेश बलवान हो तथा सिंह, धनु, मीन या वृश्चिक राशी का हो तो शुभ फल देता है शिक्षा अच्छी मिलती है राज्याधिकार भी दिलाता है या किसी संस्था का प्रबंधक बनाता  है ऐसे जातको की बातें प्रभावशाली होती हैं धार्मिक वृत्ति का होने से जातक तीर्थयात्रा भी करता है....और मंत-तंत्र का, आध्यातिमिक गूढ़ ज्ञान का ज्ञाता होता है...
    By : Deval Dublish, Meerut..Mob. 9690507570

    Friday, 16 November 2012

    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
    सूत (पंचम) भाव में सूर्य 

    पंचम भावस्थ सूर्य संतान सुख के लिए शुभप्रद नहीं होता जातक की स्त्री को गर्भपात होते हैं या संतान नहीं होती विशेषतया पुत्र संतान लेकिन यदि गुरु शुभ प्रभाव में हो तो पुत्र सुख मिल जाता है यदि सूर्य स्व राशी का होकर पाप प्रभाव में पंचम में हो तो उदर रोग होते हैं. ह्रदय रोग के मृत्यु भय सताता है ...आय की अपेक्षा व्यय बढे-चढ़े होते हैं 
    यदि सूर्य जल राशी (कर्क, वृश्चिक-मीन ) में हो तो जातक की प्रवृत्ति बुरे कामो की और रहती है अपना स्वार्थ साधन करता है ...धन के मामले में कंजूस होता है पर कुशल व्यापारी और संततिवान होता है.....
    अग्नि राशी का सूर्य (मेष-सिंह=धनु ) में स्थित हो तो जातक की शिक्षा पूर्ण होती है संतानाभाव बना रहता है यदि एनी योगो के कारन संतान जीवित रह भी जाये तो उसके लिए व्यर्थ ही रहती है. ...यदि सूर्य वायु तत्व राशी में हो तो जातक विद्याव्यसनी होता है ऐसे जातक के दो विवाह होते हैं इन राशियों में पंच्मस्थ सूर्य से जातक लेखक, प्रकाशक या प्रिंटिंग प्रेस चलने वाल होता है या कपडे की छपाई का कार्य होता है उसे इस क्षेत्र में ख्याति मिलती है ...
    यदि सूर्य प्रथ्वी तत्व में हो जातक क्रोधी, कुत्सित कर्म करने वाला कुरुपवं दुष्ट बुद्धि होता है पंचम भाव का सूर्य किसी भी राशी में हो संतानाभाव तो देता ही है संतान हो भी तो कृशकाय अवं रोगी होती है जो की शीग्ढ़ ही नष्ट हो जाती है संतान लाभ के लिए पत्नी के संतान प्रतिबंधक रोग की चिकित्सा करनी चाहिए ऐसे जातक को कन्या संतति अधिक और पुत्र कम होते हैं...

    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
    पंच्मस्थ चंद्रमा 

    पंच्मस्थ चन्द्र बलि हो तो जातक सट्टे.शेयर मार्केट से खूब लाभ कमाता है तथा मौज शौक का जीवन व्यतीत करने का इच्छुक होता है ...ऐसा जातक अपने बच्चो और पत्नी से बहुत प्यार करता है स्त्री से उसे पूर्ण सहयोग और लाभ मिलता है...ऐसा जातक माता का परम भक्त होता है पंचम स्थान पत्नी के भाव (सप्तम) से एकादश अथवा लाभ भाव होता है अत: पत्नी से लाभ तो मिलेगा ही साथ ही पद प्रतिष्ठा वृद्धि में स्त्री पक्ष का बाद योगदान रहेगा.... द्वि स्वाभाव राशी यथा मिथुन, कन्या, धनु और मीन में चंद्रमा हो तो कानी संतान अधिक रहेंगी यदि चन्द्र वायु तत्व राशी मिथुन, तुला और कुम्भ में हो तो पुत्र सुख का आभाव रहता है मात्र कन्या संतति ही उत्पन्न होती है....प्राय: जुड़वाँ संतान होती हैं ....यदि पंचमस्थ चन्द्र पाप प्रभाव में हो तो जातक मलिन चित्त होता है प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है कुंठाओ से ग्रस्त जातक निराशावादी बन जाता है जलीय व अग्नि तत्व में चन्द्र हो तो जातक के पहले पुत्र फिर कन्या का जन्म होता है ...जलीय राशी का चन्द्र जातक को तीन पुत्र प्रदान करता है....
    चन्द्र के पृथ्वी तत्व में होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है अगिनी तत्व में शिक्षा अधूरी रहती है वायु तत्व में कम बोलने वाला अवं अधिक कार्य करने की निति अपनाते हैं ऐसे जातक को पत्नी गुणवती-रूपवती मिलती है वह स्वयं भी इश्वर भक्त होता है उसकी आय के कई साधन होते हैं...संतान के कारन उसे बहुत ख्याति मिलती है...

    पंचमस्थ मंगल की स्थिति....
    पंचम भाव का मंगल संतान के लिए शुभ नहीं रहता....जातक की पत्नी गर्भस्राव रोग से पीड़ित अथवा मृतवत्सा होती है यदि मंगल निर्बल हो तो पिता के भाग्य को हानि होती है पुत्रो द्वारा उसे दुःख मिलता है ऐसे जातक की रूचि पापा कर्मो की और अधिक होती है तथा वह मद्य और मांस का सेवन करता है लेकिन ऐसा जातक साहसी होता है कैसी भी विषम स्थिति आ जय उसका डट कर मुकाबला करता है ...ऐसे जातक का जीवन प्राय संघर्ष शील होता है ....पत्नी से विचार मेल नहीं खाते....घर में धन की कमी गृह-कलेश का मुख्य कारण होती है यदि मंगल उच्च का या पुरुष राशी का हो तो संतति सुख में बाधा , स्त्री के पूर्व जन्म के कर्मो के कारण होती है ऐसे जातक की पत्नी को योनी रोग अथवा मासिक धर्म की गड़बड़ी भी रहती है ऐसे जातक को धन लाभ कम किन्तु ख्याति भरपूर मिलती है वैद्य , डॉक्टर के लिए पंचम मंगल शुभ रहता है....
    अग्नि तत्व का मंगल सेना, पोलिस , मोटर ड्राइविंग तथा तकनिकी (technology) द्वारा धन कमाता है ....पृथ्वी तत्व का मंगल सिविल इंजिनियर , भूमि तथा सर्वे विभाग से आजीविका प्रदान करता है ऐसा जातक फौजदारी का वकील हो तो उसे धन और ख्याति दोनों प्राप्त होती हैं ...ऐसे अधिकारी घूस लेते हैं तो शीघ्र पकड़ में आ जाते हैं पंच्मस्थ मंगल विदेशवास कराता है , प्रसिद्धि देता है, कामुक बनाता है, तथा कार्यो में सफलता देता है....
    शुभ प्रभात 
    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंच्मस्थ तुला राशी ...स्वामी शुक्र
    यदि पंचम में तुला राशी हो तो जातक स्वरूपवान, सुशील, लक्ष्मीवान होता है यहाँ शुक्र पंचमेश और द्वादशेश बनता है बलवान हो तो बहुत संतान ( कन्या _ पुत्र ) दोनों संतान देता है जातक की संतान अति कमनीय तथा शील स्वाभाव की होती है शिक्षा अवं कार्यकुशलता में इनकी बराबरी कम ही लोग कर पाते हैं
    यदि शुक्र सप्तम स्थान में हो तो जातक अतिशय कामुक होता है चूँकि शुक्र भोग का गृह है फलत: जातक का कामुक हो जाना भी स्वाभाविक है शनि बलवान हो तो पुत्र विख्यात होते हैं ...ऐसे जातक का स्वाभाव नम्र होता है तथा वह प्रत्येक कार्य तत्परता से करता है अध्यन का उसे बहुत शौक होता है ..लोग इसके कार्यो की सराहना भी करते हैं लेकिन कई बार ऐसी गलती हो जाती हैं जिससे इसे बाद में पछताना भी पड़ता है ...यहाँ शुक्र का पंचम में शनि के साथ योग अभूतपूर्व सफलता का द्योतक है शुक्र अगर त्रिकोण भाव (लग्न, पंचम और नवम) में हो तो पञ्च महापुरुष योग..में से एक मालव्य योग का निर्माण होता है ....
    पंच्मस्थ  वृश्चिक राशी ...स्वामी मंगल 
    यदि सूत भाव में वृश्चिक राशी हो तो जातक अपने कुल-परंपरागत धर्म और नियमो को मानने वाला , सुंदर सुशील होता है...वह बहुत सोच-विचार के पश्चात् ही कोई निर्णय लेता है , धुन के पक्के ऐसे जातक जिस कार्य के पीछे पद जाते हैं उसे करके ही छोड़ते हैं ..धार्मिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं ...यदि मगल बलवान हो तो जातक वीर, बलिष्ठ एवं साहसी होता है तथा वह अपने शौर्य पराक्रम से उच्च पद प्रतिष्ठा प्राप्त करता है वह विख्यात होता है लेकिन अभिमानी होने के कारन उसकी गलत नीतियाँ ही उसके पतन का कारन बनती हैं ...पंचमेश यदि निर्बल हो तो जातक के पुत्र कुपुत्र होते हैं देखने से उनमे कोई दोष प्रतीत नहीं होता लेकिन वे बुरे आचरण वाले तथा अविश्वसनीय होते हैं ऐसा जातक प्राय: गुप्त रोगों से पीड़ित रहता है विद्योपार्जन में बाधाएं आती हैं संतान पक्ष से हनी उठानी पड़ती है...ऐसे बडबोले किस्म के, अपनी डींग हांकने वाले होने के कारन अपने पतन का स्वयं कारन होते हैं उदार व्याधि..से पीड़ा बनी रहती है!
    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंच्मस्थ धनु राशी ...स्वामी गुरु 
    यदि पांचवे भाव में धनु राशी हो तो जातक साहसिक कार्यो, घुड़सवारी, का शोकीन होता है उसे उत्तम वाहन सुख प्राप्त होता है तथा देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करता है ऐसा जातक शत्रुओ का मानमर्दन करने वाला. अतिथि गुरु सेवक होता है गुरु बलवान हो तो उत्तम पुत्र सुख मिलता है ...ऐसा जातक कार्य-कुशल एवं अच्छा सलाहकार होता है...अपने कार्य-व्यवसाय में उच्च पद प्राप्त करता है यदि पंचमेश निर्बल हो या पापा प्रभाव में हो तो उपरोक्त फलो में न्यूनता होती है...पंचम भाव में क्षीण चंद्रमा से बलारिष्ट होता है अर्थात शैशवकाल में ही मृत्यु भय रहता है उसे राजपद व धन से हीन होना पड़ता है यदि बुद्ध पपक्रांत होकर पंच्मस्थ हो तो जातक की बुद्धि बिगड़ जाती है अर्थात पागल हो सकता है
    पंच्मस्थ मकर राशी ...स्वामी शनि 
    पंचम भाव में मकर राशी होने से जातक अत्यंत कठोर ह्रदय का होने से जीवमात्र के साथ म्रदु व्यव्हार नहीं कर पता पापा कर्म में रत ऐसा जातक प्रभावहीन एवं तेजहीन होता है ऐसे जातक को पुत्रो से कोई लाभ नहीं होता अपितु अपमान और हानि उठानी पड़ती है ...ऐसे जातक में दास्य भाव की प्रचुरता रहती है इसका कारन या है की शनि भरती (सेवक ) है इतने पर भी इन्हें मुर्ख नहीं कहा जा सकता समय की नब्ज ऐसे जातक खूब पहचानते हैं शत्रुओ से कैसे कम लिया जाता है ऐसे जातक बखूबी जानते हैं यदि शनि बलवान हो या तृतीयेश-अष्टमेश से राशी परिवर्तन करता हो जातक की स्मरण शक्ति गजब की होती है पुर्व जन्म की बातें भी उसे यद् रहती हैं गूढ़तम विषयों में वह पारंगत होता है....
    ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंचम भाव में कुम्भ राशी स्वामी...शनि 
    यदि पंचम भाव में कुम्भ राशी हो तो जातक गंभीर स्वाभाव का होता है असत्य से उसे घृणा होती है परोपकारी वृत्ति का ऐसा जातक सदा दुसरो के परोपकार के बारे में सोचता है ऐसे जातक को स्थिर चित्त नहीं कहा जा सकता क्यूंकि उपरी तौर पर ये शांत दीखते हैं लेकिन इनके भीतर हाहाकार मचा होता है शनि चूँकि योगकारक होता है अत: बलवान हो तो अच्चा पुत्र सुख देता है ऐसे जातक को पुत्र द्वारा भूमि लाभ भी होता है प्रसिद्धि भी सहज ही मिल जाती है कष्ट सहने की असीम क्षमता होती है कैसी भी बड़ी विपत्ति आ जाये ये विचलित नहीं होते..दरअसल विपत्तियों, दुःख, परेशानी का इनका चोली-दामन का साथ होता है ...यदि शनि निर्बल, पापा प्रभाव में पापयुक्त हो तो संतान से दुःख मिलता है घर त्यागना पड़ता है विद्या अल्प होती है, आय की अपेक्षा व्यय अधिक होता है धन की सदा कमी बनी रहती है ऐसे जातक मित्रो से एकमत नहीं रह पाते
    पंचम भाव में मीन राशी स्वामी...गुरु 
    यहाँ गुरु धनेश व पंचमेश बनता है बलवान हो तो प्रचुर धन, भूमि पुत्र सुख प्रदान करता है कुटुंब सुख अच्छा मिलता है ...जातक उच्च विद्या प्राप्त करता है ...जातक को समस्त सांसारिक, भौतिक व आध्यात्मिक सुख मिलते हैं यहाँ ज्ञातव्य है की गुरु परम सुख का करक होता है अत: गुरु का बलवान होना और शुभ द्रष्ट होना गुरु की शुभता को और बढाता है ...ऐसे जातक की प्रवृत्ति कामुक होने से भोग-विलास की और उसका विशेष रुझान रहता है फलत: पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक लोकप्रिय होता है भावुक स्वाभाव का ऐसे जातको के चेहरे पर सदा मुस्कान थिरकती है इन्हें धन की कमी भी रहती है क्यूंकि मौज-शौक में ये अपना धन व्यय कर देते हैं ...निर्बल गुरु की दशा में संतान सुख माध्यम रहता है अथवा नहीं भी होता पत्नी से मतभेद बने रहते हैं जस कारन परिवार में कलह का वातावरण बना रहता हीस पर भी जातक की वृद्धावस्था सुखपूर्वक व्यतीत होती है ....

    Wednesday, 14 November 2012


    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंचंम भाव  
    जनम कुंडली में पंचम भाव का विशेष महत्त्व है इस भाव से मुख्यत: संतान, विद्या और पद का विचार किया जाता है! शास्त्रों का कथन है की .."अपुत्रस्य गतिर्नास्ति " अर्थात पुत्र न होने से गति नहीं होती, दूसरा कारन है की विद्या का विचार भी इसी भाव से किया जाता है ...विद्या ज्ञान की जननी है यहाँ ज्ञान का अर्थ साधारण ज्ञान से नहीं अपितु ब्रहम ज्ञान से लिया गया है कहा गया है की ब्रहम ज्ञान का सुख संसार सुख से सर्वोत्तम है अत: जिस भाव से व्यक्ति की गति और ज्ञान का पता चले उसे महत्त्व देना परम आवश्यक है ...
    पंचम भाव से मुख्यत: सभी प्रकार की संतान (पुत्र, पुत्री, दत्तक पुत्र, औरस पुत्र, आदि ), विद्या, बुद्धि, धरना शक्ति, विवेचन करने की क्षमता , मंत्रणा , मेधा शक्ति, प्रतियोगिताओ में सफलता, धरम की भावना, इष्टदेव, प्रेम-विवाह, प्रियतमा, या प्रियतम, यांत-तंत्र-मन्त्र जैसी गुप्त वीडयो में रूचि, लाटरी

    पंच्मस्थ विभिन्न राशी फल....
    मेष राशी स्वामी  ...मंगल .... पंचम में मेष राशी होने से मंगल पंचामधिपति और व्ययेश बनता है यदि मंगल बलवान हो तो पुत्रो की प्राप्ति होती है लेकिन पंच्मस्थ मंगल गर्भ हनी भी करता है ज्योतिष का सिधांत है की व्ययेश अपनी दूसरी (इतर ) राशी का फल करता है अत: गर्भ हानि संभव है इसलिए मंगल की बलि स्थिति लाभप्रद रहती है मेशास्थ मंगल संतान पक्ष को छोड़ कर अन्य सभी कार्यो के लिए शुभप्रद रहता है ....बलवान पंचमेश होने से जातक की पुत्रो के साथ एकता बनी रहती है ...मित्रो से लाभान्वित होता है जन्मान्तर में किये गए पुन्य प्रभाव के कारन तथा देवार्धना करने से जातक को अनेक सुख भी मिलते हैं किन्तु इतने पर भी जातक पाप कर्म करने वाला होता है जिसके कारन वह मानसिक चिन्ताओ से घिरा रहता है ...यदि मंगल निर्बल हो तो जातक अल्प विद्या ही प्राप्त कर पता है पुत्र कुपुत्र होते हैं जातक का स्वाभाव भी क्रोधित होता है अविवेकी होने के कारन मित्रो के भुलावे में अपने धन की शीघ्र ही नष्ट कर देता है

    पंचमस्थ वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र 
    यदि पंच्मस्थ वृषभ राशी हो तो शुक्र अतीव योगकारक होता है यदि कुंडली में शुक्र बलि हो तो जातक उच्च पदासीन , धनी, मंत्री, एवं प्रशासनिक क्षमता वाला होता है जातक को सुंदर पत्नी की प्राप्ति होती है तथा विवाहोपरांत जातक की तीव्र गति से उन्नति होती है संतान, विद्या, तथा मान्त्रिक शक्ति से संपन्न होता है यदि शुक्र पापाक्रांत हो तो जातक स्वयम के कुकृत्यो द्वारा एवं संतान के कर्मो से हानि उठाता है ऐसे जातक को राज्य पक्ष से प्रबल हानि और विरोध का सामना करना पड़ता है संतान लाभ देर से होता है उसे सुंदर कानी रत्न की प्राप्ति होती है जो की पतिव्रत का पालन करती है लेकिन संतान उत्पन्न करने में अक्षम होती है ऐसे जातक धनोपार्जन में विशेष रूचि लेते हैं इन्हें धैर्यवान, सहिष्णु , क्षम्वन तथा समझदार कहा जा सकता है यदि पंचम व पंचमेश पर शुभ प्रभाव न हो तो संतान दुर्बल और मलिन स्वभाव की होती है तथा जातक के लिए कष्टकारी होती है 
    पंचमस्थ मिथुन राशी ...स्वामी बुद्ध 
    यदि पंचम में मिथुन राशी हो तो बुद्ध अष्टमेश बनता है फलत: बुद्ध का निर्बल होना जातक के लिए हानिकारक रहता है यदि पंचम भाव, पंचमेश और गुरु पापाक्रांत हो तो संतान नहीं होती तथा जातक को गैस या अपच जैसे रोग होते हैं ....यदि बुद्ध बलवान हो तो जातक सुशिक्षित व बुद्धिमान होता है तथा मनोनुकूल संतान लाभ करता है जो की गुणी. अच्छे शील स्वभाव वाली पत्नी तथा तेजस्वी एवं बलि होती है ऐसे जातक अकस्मात् लाटरी, सत्ता, शेयर मार्केट या एनी तरीको से धनलाभ करते हैं ऐसे जातक थोड़े जल्दबाज, बिना विचारे कम को करने वाले होते हैं दूध के उफान की भांति शीघ्र ही क्रोधित हो जाते हैं लेकिन शीघ्र ही शांत भी हो जाते हैं इनका विद्या योग उत्तम होता है ..लेकिन विद्या प्राप्ति में अनेक अड़चन भी आती हैं।

    ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
    पंच्मस्थ कर्क राशी स्वामी चंद्रमा ....
    यदि पंचम भाव में कर्क राशी हो तो चंद्रमा का बलाबल का विशेष विचार किया जाता है ...चन्द्र निर्बल या पापाक्रांत हो तो संतान क्षीण स्वास्थ्य वाली होती है खांसी, नजला, जुकाम, निमोनिया आदि रोग लगे ही रहते हैं संतान अल्पायु होती है ...चन्द्र बलवान हो तो जातक की स्मरण शकित अच्छी होती है, मानसिक शक्ति प्रबल होती है...चन्द्र चूँकि तरल धन का करक है अत: धन की तरलता में जातक कमी नहीं आने देता... ऐसे जातक का भाग्योदय होता है देश-विदेश में उसकी ख्याति फैलती है भाग्य उसका साथ देता है ऐसे जातक देह से स्थूल होते हैं यदि गुरु निर्बल हो तो कन्या संतान अधिक होती हैं पुत्र सुख प्राय: नहीं मिलता... मिलता भी है तो देर से...ऐसे जातक दुसरो पर जल्दी विश्वास कर लेते हैं और धोखा खाते हैं...
    यदि पंचम भाव में सिंह राशी हो तो जातक उग्र स्वाभाव का होता है वह किसी भी प्रकार का उपहास सहन नहीं कर पाता उसके रुझे स्वाभाव के कारन दुसरे लोग उस से सम्बन्ध नहीं रख पते ऐसे जातक साहसी और पराक्रमी होते हैं तथा परदेश में जीवकोपार्जन करते हैं ऐसे जातक देखने में अत्यंत सुदर्शन स्वाभाव से उग्र मांस-मदिरा का सेवन करने वाले तःथा उन्हें प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है....
    यदि पंचम भाव में सिंह राशी हो तो जातक उग्र स्वाभाव का होता है वह किसी भी प्रकार का उपहास सहन नहीं कर पाता उसके रुझे स्वाभाव के कारन दुसरे लोग उस से सम्बन्ध नहीं रख पते ऐसे जातक साहसी और पराक्रमी होते हैं तथा परदेश में जीवकोपार्जन करते हैं ऐसे जातक देखने में अत्यंत सुदर्शन स्वाभाव से उग्र मांस-मदिरा का सेवन करने वाले तःथा उन्हें प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है....
    पंचमस्थ ...विभिन्न राशी फल
    कन्या राशी ...स्वामी बुद्ध.....यदि पंचम भाव में कन्या राशी हो तो कन्या संतति की बहुलता रहती है जातक अधिक पुत्रियों का पिता बनता है वे सभी जेवर रखने और पहनने की अत्यधिक शौक़ीन होती हैं उनके पति उन्हें बहुत चाहते हैं..वे पुन्य करने वाली अवं सत्य का साथ देने वाली होती हैं लेकिन प्राय: पुत्र सुख से विहीन होती हैं यदि बुद्ध बलवान हो तो जातक विद्वान अवं भाषण कला में निपुण होता है पुत्र के साथ-साथ जाता स्वयं भी सुंदर होता है यदि बुश निर्बल या पापाक्रांत हो तो पत्नी को गर्भपात होते हैं तथा जातक की वाणी में दोष होता है ...ऐसे जातको देह स्थूल होती है लम्बी-चौड़ी बात बनाना इनका स्वाभाव होता है व्यर्थ के प्रदर्शन में इनकी रूचि रहती है वास्तविकता को छुपा कर किसी भी तथ्य को दुसरे रूप में प्रस्तुत करना इनकी आदत होती है ...मोती बुद्धि के ऐसे जातक अपने व्यर्थ के सिद्धांतो पर अड़ जाते हैं ...इन्हें थोडा सा अधिकार मिल जाये तो ये उसका खूब दुरूपयोग करते हैं प्राय इन्हें पुत्र सुख मिलता ही नहीं....यहाँ एक बात ज्ञातव्य है की बुध की शुभ स्थिति से जातक के धन परिवार की वृद्धि होती है ...हास्य विनोद का शौक़ीन होता है ..पोस्टेड 14/11/2012

    Friday, 2 November 2012


    • ॐ श्री सद गुरुदेवाय नम:
      ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      चतुर्थ भावस्थ तुला राशी...स्वामी शुक्र...यदि चौथे भाव में तुला राशी हो तो शुक्र एकादश भाव का स्वामी भी होता है अत: पापी होता है भोग स्थान (सप्तम-द्वादश ) में शुक्र की स्थिति जातक को अति कमी बना देती है यदि चतुर्थ और शुक्र पर राहु का प्रभाव हो तो जातक की माता को लम्बे समय तक चलने वाले रोग होते हैं तथा उन्ही अशध्य रोगों की वजह से उनकी मृत्यु होती है यदि शनि व राहु दोनों का ही प्रभाव हो तो जनम स्थान को छोड़ कर जातक को अन्यत्र रहना पड़ता है यदि शुक्र शुभ भाव में और शुभ प्रभाव में हो तो जातक सोमी प्रकृति का होता है अच्छे कर्मो को करने वाला समाज में माननीय होता है कई विद्याओ का जानकर होता है ऐसा जातक व्यापर करे तो अच्चा व्यापारी बनता है यह सत्य है की बचपन में उस एअर्थभव रहता है लेकिन अपने बहुबल से लक्ष्मी को वह अपने अधीन कर लेता है ...ऐसे जातक को वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ततः उसका यौवनकाल और वृद्धावस्था सुखमय होता है यदि शुक्र प्रथकता जनक ग्रहों के प्रभाव में हो तो (शनि-राहु- सूर्य) तो उसे वाहन सुख नहीं मिलता उसकी माता की मृत्यु भी शीघ्र होती है एवंविवाह में बाधा आती है..
      वृश्चिक राशी स्वामी ...मंगल .....मंगल अतीव योग कर्क गृह होता है इसके बलवान होने से जातक भूमिपति बन कर भूमि से लाभ उठाता है उसे पिता का पूर्ण सुख मिलता है राज्य्क्रिपा, पद व उन्नति उसके अंग संग बनी रहती हैं जातक का पारिवारिक जीवन सुखी होता है .......पाप प्रभाव का मंगल पिता को कास्ट देता है तथा उनकी शीघ्र मृत्यु होती है क्यूंकि मंगल पिता के भाव (नवम) से अष्टम होता है अत: पिता की मृत्यु को दर्शाता है ऐसे जातक के शत्रु अधिक होते हैं उसके मस्तिष्क को शांति नहीं मिलती तथा अनेको कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है हर कार्य में बाधा अति है तब कार्य पूर्ण होता है .....
      धनु राशी...स्वामी गुरु ....यदि सुख स्थान में धनु राशी हो तो गुरु चौथे और सातवे भाव का स्वामी बनता है चौथा स्थान सुख का स्थान है और गुरु नैसर्गिक सुख और ज्ञान का करक गृह है अत: इसकी अनुकूल स्थिति होने से जातक ज्ञान से गौरान्वित होता है तथा उसकी माता दीर्घायु होती है ऐसे जातक को भूमि, मकान , वाहन का पूरा सुख मिलता है ऐसा जातक अपने भाग्य का स्वयं निर्माता होता है... गुरु की प्रतिकूल स्थिति जातक को लड़ाकू प्रवृत्ति का बना देती है वह झगडा मोल लेने में अग्रणी होता है ऐसे जातक सेना अथवा पुलिस में नौकरी करते हो तो उन्नति करते हैं तथा पदक आदि भी प्राप्त करते हैं व्यापर करे तो प्राय: सूदखोर होते हैं ऐसे जातक की आधी जिन्दगी मुक़द्दमेबाजी में व्यतीत होती है
      मकर राशी स्वामी शनि .....शनि अतीव योगकारक गृह बनता है इसकी अनुकूल स्थिति जातक को भूमिपति बना देती है सनी अपने कारकत्व के अनुसार सभी लाभ देता है जातक को यश, मन-सम्मान मिलता है तथा वह सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर भाग लेता है फलत: सभी उसका मन करते हैं ऐसे जातक की मित्रो की कमी नहीं होती. ...जीवन में मित्र बहुत सहायक होते हैं शनि की जरा भी प्रतिकूल स्थिति जातक को हैरान परेसान करती है क्युकी शनि नैसर्गिक रूप से दुःख, चिंता, का करक है शनि चतुर्थेश और पंचमेश होता है अत: जातक को भरी मानसिक कलेश भोगना पड़ता है अपवाद सहन करने पड़ते हैं.. लम्बी बीमारिया भोगनी पड़ती हैं लेकिन ऐसे जातक का दांपत्य जीवन प्राय ठीक रहता है ..पत्नी का स्वाभाव तेज होता है...लेकिन जातक शनि के प्रभाव के कारन सब कुछ सह लेता है....

      • चतुर्थ भाव में यदि कुम्भ राशी स्वामी शनि ...तो शनि सुख भाव व सहज स्थान का स्वामी बनता है यदि इसकी स्थिति अनुकूल रहे तो जातक धन, वाहन, भूमि का अधिपति बनता है तथा अपने भुजबल से प्रतिकूल स्थितयो को भी अपने अनुकूल बना लेता है ...बहुत कठोर श्रम करना पड़ता है जन्कर्यो में उसकी रूचि होती है तथा मित्रवर्ग बड़ा होता है ...उसे माता का पूर्ण सुख मिलता है ...पारिवारिक जीवन सुखद रहता है तथा ससुराल से सहायता मिलती है स्त्री के मामले में ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है ...शनि प्रेम स्नेह के प्रतीक हैं अत जातक अपनी पत्नी को अगाध प्रेम करता है ...विअवाहोप्रांत ही जातक का भाग्योदय होता है ...यदि शनि निर्बल हो तो जातक की माँ कर्कशा होती है तथा जातक से उसके मतभेद बने रहते हैं पत्नी के आलावा भी जातक के एनी स्त्रियों से सम्बन्ध होते हैं उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता...विवाहोपरांत तो जातक का जीवन नरक हो जाता है
        मीन राशी स्वामी गुरु ...यहाँ गुरु लग्नेश भी होता है इसके सबल होने से जातक विद्वान्, गुनी व ज्ञानी होता है परोपकार के कार्यो, सामाजिक कार्यो, धार्मिक कार्यो में जातक बढ़-चढ़ कर भाग लेता है अपने शुभ कर्मो से जातक जनप्रिय होता है अगर राजनीती में हो तो उसे हराने वाल कोई नहीं होता... धन की जातक को कभी कमी नहीं होती ...उस इश्वर पर अगाध श्रद्धा होती है.... यदि गुरु निर्बल और पापाक्रांत हो तो उपरोक्त फलो में न्यूनता लाता है अपने कृत्यों से शत्रु उत्पन्न करता है समाज में उसे अपमान झेलना पड़ता है ...आर्थिक आभाव से जूझता है..उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता....
        deval dublish ....Meerut...Mob No : 9634290878,9690507570