ॐ श्री सद गुरुदेवाय नम:
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
चतुर्थ भावस्थ तुला राशी...स्वामी शुक्र...यदि चौथे भाव में तुला राशी हो तो शुक्र एकादश भाव का स्वामी भी होता है अत: पापी होता है भोग स्थान (सप्तम-द्वादश ) में शुक्र की स्थिति जातक को अति कमी बना देती है यदि चतुर्थ और शुक्र पर राहु का प्रभाव हो तो जातक की माता को लम्बे समय तक चलने वाले रोग होते हैं तथा उन्ही अशध्य रोगों की वजह से उनकी मृत्यु होती है यदि शनि व राहु दोनों का ही प्रभाव हो तो जनम स्थान को छोड़ कर जातक को अन्यत्र रहना पड़ता है यदि शुक्र शुभ भाव में और शुभ प्रभाव में हो तो जातक सोमी प्रकृति का होता है अच्छे कर्मो को करने वाला समाज में माननीय होता है कई विद्याओ का जानकर होता है ऐसा जातक व्यापर करे तो अच्चा व्यापारी बनता है यह सत्य है की बचपन में उस एअर्थभव रहता है लेकिन अपने बहुबल से लक्ष्मी को वह अपने अधीन कर लेता है ...ऐसे जातक को वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ततः उसका यौवनकाल और वृद्धावस्था सुखमय होता है यदि शुक्र प्रथकता जनक ग्रहों के प्रभाव में हो तो (शनि-राहु- सूर्य) तो उसे वाहन सुख नहीं मिलता उसकी माता की मृत्यु भी शीघ्र होती है एवंविवाह में बाधा आती है..
वृश्चिक राशी स्वामी ...मंगल .....मंगल अतीव योग कर्क गृह होता है इसके बलवान होने से जातक भूमिपति बन कर भूमि से लाभ उठाता है उसे पिता का पूर्ण सुख मिलता है राज्य्क्रिपा, पद व उन्नति उसके अंग संग बनी रहती हैं जातक का पारिवारिक जीवन सुखी होता है .......पाप प्रभाव का मंगल पिता को कास्ट देता है तथा उनकी शीघ्र मृत्यु होती है क्यूंकि मंगल पिता के भाव (नवम) से अष्टम होता है अत: पिता की मृत्यु को दर्शाता है ऐसे जातक के शत्रु अधिक होते हैं उसके मस्तिष्क को शांति नहीं मिलती तथा अनेको कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है हर कार्य में बाधा अति है तब कार्य पूर्ण होता है .....
धनु राशी...स्वामी गुरु ....यदि सुख स्थान में धनु राशी हो तो गुरु चौथे और सातवे भाव का स्वामी बनता है चौथा स्थान सुख का स्थान है और गुरु नैसर्गिक सुख और ज्ञान का करक गृह है अत: इसकी अनुकूल स्थिति होने से जातक ज्ञान से गौरान्वित होता है तथा उसकी माता दीर्घायु होती है ऐसे जातक को भूमि, मकान , वाहन का पूरा सुख मिलता है ऐसा जातक अपने भाग्य का स्वयं निर्माता होता है... गुरु की प्रतिकूल स्थिति जातक को लड़ाकू प्रवृत्ति का बना देती है वह झगडा मोल लेने में अग्रणी होता है ऐसे जातक सेना अथवा पुलिस में नौकरी करते हो तो उन्नति करते हैं तथा पदक आदि भी प्राप्त करते हैं व्यापर करे तो प्राय: सूदखोर होते हैं ऐसे जातक की आधी जिन्दगी मुक़द्दमेबाजी में व्यतीत होती है
मकर राशी स्वामी शनि .....शनि अतीव योगकारक गृह बनता है इसकी अनुकूल स्थिति जातक को भूमिपति बना देती है सनी अपने कारकत्व के अनुसार सभी लाभ देता है जातक को यश, मन-सम्मान मिलता है तथा वह सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर भाग लेता है फलत: सभी उसका मन करते हैं ऐसे जातक की मित्रो की कमी नहीं होती. ...जीवन में मित्र बहुत सहायक होते हैं शनि की जरा भी प्रतिकूल स्थिति जातक को हैरान परेसान करती है क्युकी शनि नैसर्गिक रूप से दुःख, चिंता, का करक है शनि चतुर्थेश और पंचमेश होता है अत: जातक को भरी मानसिक कलेश भोगना पड़ता है अपवाद सहन करने पड़ते हैं.. लम्बी बीमारिया भोगनी पड़ती हैं लेकिन ऐसे जातक का दांपत्य जीवन प्राय ठीक रहता है ..पत्नी का स्वाभाव तेज होता है...लेकिन जातक शनि के प्रभाव के कारन सब कुछ सह लेता है....
चतुर्थ भाव में यदि कुम्भ राशी स्वामी शनि ...तो शनि सुख भाव व सहज स्थान का स्वामी बनता है यदि इसकी स्थिति अनुकूल रहे तो जातक धन, वाहन, भूमि का अधिपति बनता है तथा अपने भुजबल से प्रतिकूल स्थितयो को भी अपने अनुकूल बना लेता है ...बहुत कठोर श्रम करना पड़ता है जन्कर्यो में उसकी रूचि होती है तथा मित्रवर्ग बड़ा होता है ...उसे माता का पूर्ण सुख मिलता है ...पारिवारिक जीवन सुखद रहता है तथा ससुराल से सहायता मिलती है स्त्री के मामले में ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है ...शनि प्रेम स्नेह के प्रतीक हैं अत जातक अपनी पत्नी को अगाध प्रेम करता है ...विअवाहोप्रांत ही जातक का भाग्योदय होता है ...यदि शनि निर्बल हो तो जातक की माँ कर्कशा होती है तथा जातक से उसके मतभेद बने रहते हैं पत्नी के आलावा भी जातक के एनी स्त्रियों से सम्बन्ध होते हैं उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता...विवाहोपरांत तो जातक का जीवन नरक हो जाता है
मीन राशी स्वामी गुरु ...यहाँ गुरु लग्नेश भी होता है इसके सबल होने से जातक विद्वान्, गुनी व ज्ञानी होता है परोपकार के कार्यो, सामाजिक कार्यो, धार्मिक कार्यो में जातक बढ़-चढ़ कर भाग लेता है अपने शुभ कर्मो से जातक जनप्रिय होता है अगर राजनीती में हो तो उसे हराने वाल कोई नहीं होता... धन की जातक को कभी कमी नहीं होती ...उस इश्वर पर अगाध श्रद्धा होती है.... यदि गुरु निर्बल और पापाक्रांत हो तो उपरोक्त फलो में न्यूनता लाता है अपने कृत्यों से शत्रु उत्पन्न करता है समाज में उसे अपमान झेलना पड़ता है ...आर्थिक आभाव से जूझता है..उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता....
deval dublish ....Meerut...Mob No : 9634290878,9690507570
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