Thursday, 22 November 2012


  • शुभ प्रभात
    पंचम भाव में बुध
    .....
    यदि पंचम भाव में बुध हो और शुभ प्रभाव में हो तो जातक सौभाग्यशाली होता है उसे सुंदर अवं गुनवंती पत्नी मिलती है तथा वह आनंदमय जीवन व्यतीत करता है ऐसे जातक को संतान का पूर्ण सुख तो मिलता है ही अपितु भगवन विष्णु अथवा श्री कृष्ण का अनन्य भक्त होता है..ऐसा जाता...हास्य कला का जानकर और छोटी उम्र से ही अच्छी पद प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ऐसा जातक विनोदी स्वाभाव का सदा प्रसन्न रहने वाल अपने से बड़ो का आदर करने वाला तथा देव गुरु भक्त होता है ...
    यदि जल राशी का हो तो संतति मंद बुद्धि अर्थात पागल होती है ऐसा जातक त्य्पिस्त, हस्त्चिंह परीक्षक शब्द शास्त्र का ज्ञाता होता है यदि बुध अग्नि राशी का हो तो जातक गणित, ज्योतिष ओ तत्व ज्ञान में विशेष रुस्ची रखता है ...वायु राशी में बुध हो तो जातक को संतति सुख का आभाव रहता है लेकिन वो ऐसे ग्रंथों की रचना कर डालता है जिनमे उसकी कीर्ति अक्ष्णु बनी रहती है अन्यान्य योग से एक अथवा दो संतान हो भी जाती हैं लेकिन जातक को उनसे विशेष लाभ नहीं रहता ...
    यदि पृथ्वी तत्व का बुध हो तो जातक ज्योतिष की हस्त रेखा विधि का विशेषग्य या पदार्थ का ज्ञाता होता है यदि बुध पप्क्रांत हो जातक अनुदार, अर्धशिक्षित, अवं झगडालू होता है यदि बुध का शनि से शुभ योग हो तो जातक को सत्ता लोटरी आदि से लाभ होता है यदि बुध का चंद्रमा से शुभ योग हो तो जातक धनि किन्तु व्यभिचारी होता है ....बुध नीच का हो या शत्रु राशी का हो तो तुलसी यक्षणी की साधना कभी न करे ...

    पंचमस्थ गुरु....
    श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम
    :
    यदि सूत भाव में देवगुरु ब्रहस्पति विद्यमान हो तो जातक सबका सुहृदय, सज्जनों में श्रेष्ठ अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, श्रेष्ठ पुत्रो से युक्त व गूढ़ विषयों में रूचि रखने वाल होता है ...मंत-तंत्र की सिद्धि उसे प्राप्त होती है उसे पत्नी सुंदर व गुनवंती मिलती है तथा दोनों में प्रगाढ़ प्रेम होता है ऐसा जातक अपने अधिकारियो का प्रिय पात्र होता है गृह सज्जा अवं स्वयं के रखरखाव का विशेष ध्यान रखता है ऐसा जातक न तो स्वयं कोई गलत कार्य करता है और न दुसरो को गलत कम करने की सलाह देता है..ऐसे जातक के पुत्र आज्ञाकारी एवं सच्चरित्र होते हैं जातक स्वयं भी न्यायिक प्रवृत्ति का होता है पंचाम्स्थ गुरु अगर सूर्य चंद्रमा से शुभ योग करता हो या दोनों गुरु से त्रिकोण स्थान (पंचम या नवम) भाव में स्थित हो तो आकस्मिक लाभ (जुआ, सत्ता, लोटरी ) के योग बनते हैं वायु तत्व में होने से जातक की शिक्षा पूर्ण हो जाती है ऐसे जातक प्राय: स्कूल में अध्यापक होते हैं तथा इसी क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करते हैं ऐसे जातक के संतति अल्प होती है और उस से कोई लाभ भी नहीं होता
    पृथ्वी तत्व का गुरु हो जातक की शिक्षा पूरी नहीं हो पति धनु राशी में भी शिक्षा अधूरी रह जाती है लड़कियां अधिक और लड़के कम उत्पन्न होते हैं ऐसे जातक प्राय: व्यापर करते हैं ....जल तत्व का गुरु से जातक को संतानाभाव रहता है पंचम भावस्थ गुरु जल राशी, स्त्री राशी में धन पुत्रादि के लिए शुभ नहीं रहता वकीलों, बैरिस्टरो , वीडयो, दर्श्नाचार्यो, एवं भाषाविदो के लिए शुभ होता है इन्हें अपने कार्यो में प्रसिद्धि मिलती है यह अलग बात है की पुत्र चिंता बनी रहती है..

    ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंचमस्थ शुक्र ....का फल

    पंचामस्थ शुक्र जातक को कवी अवं कलाकार बना देता है इसका कारन यह है की पंचम भाव कल्पना अथवा भावनाओ का घर है शुक बुध की युति अथवा चतुर्थेश और पंचमेश का राशिपरिवर्तन योग हो तो जातक क्लब, सिनेमा. खेल आदि में ज्यादा रूचि लेता है पंचम भाव और पंचमेश बलवान हो तो उपरोक्त बातो में ख्याति अर्जित होती है
    ऐसे जातक को संतान अधिक्य योग होता है स्त्री संतति की बहुलता रहती है भोग विलासी प्रवृत्ति के कारन ऐसे जातक मौज-शौक की वस्तुओं पर अधिक व्यय करते हैं उनका स्वाभाव हंसमुख और विनोदी होता है जीवन भर आनंद चैन से समय व्यतीत करते हैं धुन के ऐसे धुनी जताक जिस बात को मन में थान लें उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं...ऐसे जातक को जुआ, सत्ता, लोटरी से लाभ होता है अग्नि राशी का शुक्र शिक्षित नहीं होने देता लेकिन इतने पर भी जातक विद्वान् कहा जा सकता है अदाकारी और कलाकारी के माध्यम से धनोपार्जन करने के पश्चात् भी धन का संचय नहीं हो पता कामुक होता है फलत: एक पत्नीवत सिधांत को नहीं मानता संतान हो या न हो उसकी उसे कोई चिंता नहीं होती.....
    वायु तत्व का शुक्र उच्च शिक्षा प्रदान करता है ऐसा जातक प्राध्यापक अथवा shikshan संसथान से सम्बंधित कार्यो में लगा होता है स्त्रियों की कुंडली में इन राशियों का शुक्र ऋतुकाल में कष्टप्रद होता है प्रदर व योनी आर्द्रता के योग हो जाते हैं इसी कारन संतानाभाव बना रहता है.....

    पंचमस्थ शनि ...फल ..
    पंचम भाव में शनि हो तो जातक की देह कृशकाय, शुष्क, एवं दुर्बल होती है विद्वान् होता है मगर बात को तुरंत नहीं समझ पता....पंचम भाव विद्या बुद्धि, पद, मन्त्र आदि का भाव हा....और शनि की गति मंद है अत: हर कार्यो में, फलो में मंदता आणि स्वाभाविक है... कम शक्ति की कमी होती है संतान भाव में स्थिति से शनि का दुष्प्रभाव पड़ना ही है...अत: संतान का न होना अथवा काफी देर से होना फलित होता है स्त्रियों की कुंडली में मासिकधर्म में गड़बड़ी, प्रदर, मृतवत्सा आदि कुफल होते हैं....लेकिन यदि शुभ हो कर बलवान हो तो भूमि, खदान, माकन आदि से लाभ करता है तथा सार्वजानिक अधिकार पद दिलाता है जुआ, सट्टा, रेस लाटरी आदि से आकस्मिक लाभ नहीं होते बल्कि इनमे धन का अपव्यय होता है
    ऐसे जातक सार्वजानिक पद पर रहते हुए भी लोगो पर अपना प्रभाव डालते हैं....अग्नि राशी का शनि भाग्योदय में सहायक होता है स्व्भुज्बल से उन्नति की और अग्रसर ऐसे जातक विलक्षण स्वाभाव के स्वामी होते हैं अपने विचारो को यथासंभव दुसरो से छिपाते हैं प्रत्येक को संशय की दृष्टि से देखते हैं मुह पर प्रशंसा और पीठ पीछे बुरे करना इनकी आदत होती है ऐसे ही जातक चाटुकार होते हैं इनके यहाँ संतान तो बहुत होती हैं लेकिन जीवित कम ही रह पति हैं. शिक्षा के लिए ऐसा शनि शुभ नहीं होता....
    वायु राशी का शनि होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर वकील, जज आदि बनता है इन राशियों का शनि प्राय: माता-पिता से अलग कर देता है दत्तक पुत्र बनने का योग भी बनता है पूर्वार्जित संपत्ति मिलती तो अवश्य है लेकिन जातक के जीवनकाल में ही नष्ट भी हो जाती है पंच्मस्थ शनि प्राय: आपदा देकर ही शांति प्रदान करता है हृदय रोग से या जल में डूबने से मृत्यु होती है..

    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंचमस्थ राहु...फल...
    रहू एक पापी गृह है शास्त्रों में एक उक्ति है की शनिवत रहू अर्थात रहू शनि की भांति फल करता है....लेकिन पापत्व शनि से ज्यादा पापी है यदि अशुभ सम्बन्ध में हो तो जातक कुमार्गगामी होता है संतंभाव से पीड़ित होता है तथा नीच लोगो की संगती में खुश रहता है उसे राज्य की और से दंड मिलने का भय रहता है चन्द्र के साथ अशुभ संयोग करने पर जातक के संतान नहीं होती उसे पिसाच पीड़ा से संताप मिलता है ऐसे जातक के जीवन में प्राय: कम ही सहायक होते हैं ...शत्रुओ की बाढ़ सी आई रहती है इतने पर भी वह हर नहीं मानता गृह कलह से चिंता बनी रहती है फलत: अपच व ह्रदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है
    स्त्री अवं संतान सुख में रहू प्राय: बधाकार्क ही बनता है स्त्री मिल भी जाये तो रुग्न ही बनी रहती है यदि रहू अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग बन जाता है पुरुष राशी का रहू जातक को घमंडी बनता है ऐसे जातक शिक्षा या व्यवसाय के योग्य होते हैं वह उन्हें नहीं मिल पति फलत: असफल रहते हैं
    स्त्री राशी के रहू में जातक की स्थिति शांतिप्रिय अवं विवेकशील होती है शिक्षा अच्छी मिलती है लेख अच्चा होता है शिक्षा के कारन यश मिलता है do विवाह होते हैं तथा पुत्रसुख भी मिलता है..

    ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    पंच्मस्थ केतु फल.....

    पंचामस्थ केतु के भी प्राय: शुभ फल नहीं मिलते....सर्प दोष कहलाता है....जातक को सर्प के अशुभ स्वप्न आते हैं.. विद्या और ज्ञान से वंचित होता है डरपोक होता है तथा विदेश में वस् करने की इच्छा रखता है उसकी बुद्धि भ्रष्ट होती है जिसके कारन मानसिक कलेश या शारीरिक कष्ट होते हैं संतान सुख या तो होता नहीं या देर से होता है.....
    ऐसे जातक को उदर रोग से पीड़ा होती है कपटी स्वाभाव का ऐसा जातक अभिचार कर्म द्वारा अपने सहोदर पर भी घाट करता है परिवार वालो से उसकी बनती नहीं क्युकी वे सभी लोग उसके लिए कष्टकारक होते हैं शिक्षा अपूर्ण रहने का शोक उसे जीवन भर ट्रस्ट करता है ...सट्टा, रेस मुकद्दमो आदि में उसका धन व्यय होता है ...
    लेकिन यदि केतु अवं पंचमेश बलवान हो तथा सिंह, धनु, मीन या वृश्चिक राशी का हो तो शुभ फल देता है शिक्षा अच्छी मिलती है राज्याधिकार भी दिलाता है या किसी संस्था का प्रबंधक बनाता  है ऐसे जातको की बातें प्रभावशाली होती हैं धार्मिक वृत्ति का होने से जातक तीर्थयात्रा भी करता है....और मंत-तंत्र का, आध्यातिमिक गूढ़ ज्ञान का ज्ञाता होता है...
    By : Deval Dublish, Meerut..Mob. 9690507570

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