ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सूत (पंचम) भाव में सूर्य
पंचम भावस्थ सूर्य संतान सुख के लिए शुभप्रद नहीं होता जातक की स्त्री को गर्भपात होते हैं या संतान नहीं होती विशेषतया पुत्र संतान लेकिन यदि गुरु शुभ प्रभाव में हो तो पुत्र सुख मिल जाता है यदि सूर्य स्व राशी का होकर पाप प्रभाव में पंचम में हो तो उदर रोग होते हैं. ह्रदय रोग के मृत्यु भय सताता है ...आय की अपेक्षा व्यय बढे-चढ़े होते हैं
यदि सूर्य जल राशी (कर्क, वृश्चिक-मीन ) में हो तो जातक की प्रवृत्ति बुरे कामो की और रहती है अपना स्वार्थ साधन करता है ...धन के मामले में कंजूस होता है पर कुशल व्यापारी और संततिवान होता है.....
अग्नि राशी का सूर्य (मेष-सिंह=धनु ) में स्थित हो तो जातक की शिक्षा पूर्ण होती है संतानाभाव बना रहता है यदि एनी योगो के कारन संतान जीवित रह भी जाये तो उसके लिए व्यर्थ ही रहती है. ...यदि सूर्य वायु तत्व राशी में हो तो जातक विद्याव्यसनी होता है ऐसे जातक के दो विवाह होते हैं इन राशियों में पंच्मस्थ सूर्य से जातक लेखक, प्रकाशक या प्रिंटिंग प्रेस चलने वाल होता है या कपडे की छपाई का कार्य होता है उसे इस क्षेत्र में ख्याति मिलती है ...
यदि सूर्य प्रथ्वी तत्व में हो जातक क्रोधी, कुत्सित कर्म करने वाला कुरुपवं दुष्ट बुद्धि होता है पंचम भाव का सूर्य किसी भी राशी में हो संतानाभाव तो देता ही है संतान हो भी तो कृशकाय अवं रोगी होती है जो की शीग्ढ़ ही नष्ट हो जाती है संतान लाभ के लिए पत्नी के संतान प्रतिबंधक रोग की चिकित्सा करनी चाहिए ऐसे जातक को कन्या संतति अधिक और पुत्र कम होते हैं...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंच्मस्थ चंद्रमा
पंच्मस्थ चन्द्र बलि हो तो जातक सट्टे.शेयर मार्केट से खूब लाभ कमाता है तथा मौज शौक का जीवन व्यतीत करने का इच्छुक होता है ...ऐसा जातक अपने बच्चो और पत्नी से बहुत प्यार करता है स्त्री से उसे पूर्ण सहयोग और लाभ मिलता है...ऐसा जातक माता का परम भक्त होता है पंचम स्थान पत्नी के भाव (सप्तम) से एकादश अथवा लाभ भाव होता है अत: पत्नी से लाभ तो मिलेगा ही साथ ही पद प्रतिष्ठा वृद्धि में स्त्री पक्ष का बाद योगदान रहेगा.... द्वि स्वाभाव राशी यथा मिथुन, कन्या, धनु और मीन में चंद्रमा हो तो कानी संतान अधिक रहेंगी यदि चन्द्र वायु तत्व राशी मिथुन, तुला और कुम्भ में हो तो पुत्र सुख का आभाव रहता है मात्र कन्या संतति ही उत्पन्न होती है....प्राय: जुड़वाँ संतान होती हैं ....यदि पंचमस्थ चन्द्र पाप प्रभाव में हो तो जातक मलिन चित्त होता है प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है कुंठाओ से ग्रस्त जातक निराशावादी बन जाता है जलीय व अग्नि तत्व में चन्द्र हो तो जातक के पहले पुत्र फिर कन्या का जन्म होता है ...जलीय राशी का चन्द्र जातक को तीन पुत्र प्रदान करता है....
चन्द्र के पृथ्वी तत्व में होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है अगिनी तत्व में शिक्षा अधूरी रहती है वायु तत्व में कम बोलने वाला अवं अधिक कार्य करने की निति अपनाते हैं ऐसे जातक को पत्नी गुणवती-रूपवती मिलती है वह स्वयं भी इश्वर भक्त होता है उसकी आय के कई साधन होते हैं...संतान के कारन उसे बहुत ख्याति मिलती है...
पंचमस्थ मंगल की स्थिति....
पंचम भाव का मंगल संतान के लिए शुभ नहीं रहता....जातक की पत्नी गर्भस्राव रोग से पीड़ित अथवा मृतवत्सा होती है यदि मंगल निर्बल हो तो पिता के भाग्य को हानि होती है पुत्रो द्वारा उसे दुःख मिलता है ऐसे जातक की रूचि पापा कर्मो की और अधिक होती है तथा वह मद्य और मांस का सेवन करता है लेकिन ऐसा जातक साहसी होता है कैसी भी विषम स्थिति आ जय उसका डट कर मुकाबला करता है ...ऐसे जातक का जीवन प्राय संघर्ष शील होता है ....पत्नी से विचार मेल नहीं खाते....घर में धन की कमी गृह-कलेश का मुख्य कारण होती है यदि मंगल उच्च का या पुरुष राशी का हो तो संतति सुख में बाधा , स्त्री के पूर्व जन्म के कर्मो के कारण होती है ऐसे जातक की पत्नी को योनी रोग अथवा मासिक धर्म की गड़बड़ी भी रहती है ऐसे जातक को धन लाभ कम किन्तु ख्याति भरपूर मिलती है वैद्य , डॉक्टर के लिए पंचम मंगल शुभ रहता है....
अग्नि तत्व का मंगल सेना, पोलिस , मोटर ड्राइविंग तथा तकनिकी (technology) द्वारा धन कमाता है ....पृथ्वी तत्व का मंगल सिविल इंजिनियर , भूमि तथा सर्वे विभाग से आजीविका प्रदान करता है ऐसा जातक फौजदारी का वकील हो तो उसे धन और ख्याति दोनों प्राप्त होती हैं ...ऐसे अधिकारी घूस लेते हैं तो शीघ्र पकड़ में आ जाते हैं पंच्मस्थ मंगल विदेशवास कराता है , प्रसिद्धि देता है, कामुक बनाता है, तथा कार्यो में सफलता देता है....
सूत (पंचम) भाव में सूर्य
पंचम भावस्थ सूर्य संतान सुख के लिए शुभप्रद नहीं होता जातक की स्त्री को गर्भपात होते हैं या संतान नहीं होती विशेषतया पुत्र संतान लेकिन यदि गुरु शुभ प्रभाव में हो तो पुत्र सुख मिल जाता है यदि सूर्य स्व राशी का होकर पाप प्रभाव में पंचम में हो तो उदर रोग होते हैं. ह्रदय रोग के मृत्यु भय सताता है ...आय की अपेक्षा व्यय बढे-चढ़े होते हैं
यदि सूर्य जल राशी (कर्क, वृश्चिक-मीन ) में हो तो जातक की प्रवृत्ति बुरे कामो की और रहती है अपना स्वार्थ साधन करता है ...धन के मामले में कंजूस होता है पर कुशल व्यापारी और संततिवान होता है.....
अग्नि राशी का सूर्य (मेष-सिंह=धनु ) में स्थित हो तो जातक की शिक्षा पूर्ण होती है संतानाभाव बना रहता है यदि एनी योगो के कारन संतान जीवित रह भी जाये तो उसके लिए व्यर्थ ही रहती है. ...यदि सूर्य वायु तत्व राशी में हो तो जातक विद्याव्यसनी होता है ऐसे जातक के दो विवाह होते हैं इन राशियों में पंच्मस्थ सूर्य से जातक लेखक, प्रकाशक या प्रिंटिंग प्रेस चलने वाल होता है या कपडे की छपाई का कार्य होता है उसे इस क्षेत्र में ख्याति मिलती है ...
यदि सूर्य प्रथ्वी तत्व में हो जातक क्रोधी, कुत्सित कर्म करने वाला कुरुपवं दुष्ट बुद्धि होता है पंचम भाव का सूर्य किसी भी राशी में हो संतानाभाव तो देता ही है संतान हो भी तो कृशकाय अवं रोगी होती है जो की शीग्ढ़ ही नष्ट हो जाती है संतान लाभ के लिए पत्नी के संतान प्रतिबंधक रोग की चिकित्सा करनी चाहिए ऐसे जातक को कन्या संतति अधिक और पुत्र कम होते हैं...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंच्मस्थ चंद्रमा
पंच्मस्थ चन्द्र बलि हो तो जातक सट्टे.शेयर मार्केट से खूब लाभ कमाता है तथा मौज शौक का जीवन व्यतीत करने का इच्छुक होता है ...ऐसा जातक अपने बच्चो और पत्नी से बहुत प्यार करता है स्त्री से उसे पूर्ण सहयोग और लाभ मिलता है...ऐसा जातक माता का परम भक्त होता है पंचम स्थान पत्नी के भाव (सप्तम) से एकादश अथवा लाभ भाव होता है अत: पत्नी से लाभ तो मिलेगा ही साथ ही पद प्रतिष्ठा वृद्धि में स्त्री पक्ष का बाद योगदान रहेगा.... द्वि स्वाभाव राशी यथा मिथुन, कन्या, धनु और मीन में चंद्रमा हो तो कानी संतान अधिक रहेंगी यदि चन्द्र वायु तत्व राशी मिथुन, तुला और कुम्भ में हो तो पुत्र सुख का आभाव रहता है मात्र कन्या संतति ही उत्पन्न होती है....प्राय: जुड़वाँ संतान होती हैं ....यदि पंचमस्थ चन्द्र पाप प्रभाव में हो तो जातक मलिन चित्त होता है प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है कुंठाओ से ग्रस्त जातक निराशावादी बन जाता है जलीय व अग्नि तत्व में चन्द्र हो तो जातक के पहले पुत्र फिर कन्या का जन्म होता है ...जलीय राशी का चन्द्र जातक को तीन पुत्र प्रदान करता है....
चन्द्र के पृथ्वी तत्व में होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है अगिनी तत्व में शिक्षा अधूरी रहती है वायु तत्व में कम बोलने वाला अवं अधिक कार्य करने की निति अपनाते हैं ऐसे जातक को पत्नी गुणवती-रूपवती मिलती है वह स्वयं भी इश्वर भक्त होता है उसकी आय के कई साधन होते हैं...संतान के कारन उसे बहुत ख्याति मिलती है...
पंचमस्थ मंगल की स्थिति....
पंचम भाव का मंगल संतान के लिए शुभ नहीं रहता....जातक की पत्नी गर्भस्राव रोग से पीड़ित अथवा मृतवत्सा होती है यदि मंगल निर्बल हो तो पिता के भाग्य को हानि होती है पुत्रो द्वारा उसे दुःख मिलता है ऐसे जातक की रूचि पापा कर्मो की और अधिक होती है तथा वह मद्य और मांस का सेवन करता है लेकिन ऐसा जातक साहसी होता है कैसी भी विषम स्थिति आ जय उसका डट कर मुकाबला करता है ...ऐसे जातक का जीवन प्राय संघर्ष शील होता है ....पत्नी से विचार मेल नहीं खाते....घर में धन की कमी गृह-कलेश का मुख्य कारण होती है यदि मंगल उच्च का या पुरुष राशी का हो तो संतति सुख में बाधा , स्त्री के पूर्व जन्म के कर्मो के कारण होती है ऐसे जातक की पत्नी को योनी रोग अथवा मासिक धर्म की गड़बड़ी भी रहती है ऐसे जातक को धन लाभ कम किन्तु ख्याति भरपूर मिलती है वैद्य , डॉक्टर के लिए पंचम मंगल शुभ रहता है....
अग्नि तत्व का मंगल सेना, पोलिस , मोटर ड्राइविंग तथा तकनिकी (technology) द्वारा धन कमाता है ....पृथ्वी तत्व का मंगल सिविल इंजिनियर , भूमि तथा सर्वे विभाग से आजीविका प्रदान करता है ऐसा जातक फौजदारी का वकील हो तो उसे धन और ख्याति दोनों प्राप्त होती हैं ...ऐसे अधिकारी घूस लेते हैं तो शीघ्र पकड़ में आ जाते हैं पंच्मस्थ मंगल विदेशवास कराता है , प्रसिद्धि देता है, कामुक बनाता है, तथा कार्यो में सफलता देता है....
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