Friday, 16 November 2012

शुभ प्रभात 
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंच्मस्थ तुला राशी ...स्वामी शुक्र
यदि पंचम में तुला राशी हो तो जातक स्वरूपवान, सुशील, लक्ष्मीवान होता है यहाँ शुक्र पंचमेश और द्वादशेश बनता है बलवान हो तो बहुत संतान ( कन्या _ पुत्र ) दोनों संतान देता है जातक की संतान अति कमनीय तथा शील स्वाभाव की होती है शिक्षा अवं कार्यकुशलता में इनकी बराबरी कम ही लोग कर पाते हैं
यदि शुक्र सप्तम स्थान में हो तो जातक अतिशय कामुक होता है चूँकि शुक्र भोग का गृह है फलत: जातक का कामुक हो जाना भी स्वाभाविक है शनि बलवान हो तो पुत्र विख्यात होते हैं ...ऐसे जातक का स्वाभाव नम्र होता है तथा वह प्रत्येक कार्य तत्परता से करता है अध्यन का उसे बहुत शौक होता है ..लोग इसके कार्यो की सराहना भी करते हैं लेकिन कई बार ऐसी गलती हो जाती हैं जिससे इसे बाद में पछताना भी पड़ता है ...यहाँ शुक्र का पंचम में शनि के साथ योग अभूतपूर्व सफलता का द्योतक है शुक्र अगर त्रिकोण भाव (लग्न, पंचम और नवम) में हो तो पञ्च महापुरुष योग..में से एक मालव्य योग का निर्माण होता है ....
पंच्मस्थ  वृश्चिक राशी ...स्वामी मंगल 
यदि सूत भाव में वृश्चिक राशी हो तो जातक अपने कुल-परंपरागत धर्म और नियमो को मानने वाला , सुंदर सुशील होता है...वह बहुत सोच-विचार के पश्चात् ही कोई निर्णय लेता है , धुन के पक्के ऐसे जातक जिस कार्य के पीछे पद जाते हैं उसे करके ही छोड़ते हैं ..धार्मिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं ...यदि मगल बलवान हो तो जातक वीर, बलिष्ठ एवं साहसी होता है तथा वह अपने शौर्य पराक्रम से उच्च पद प्रतिष्ठा प्राप्त करता है वह विख्यात होता है लेकिन अभिमानी होने के कारन उसकी गलत नीतियाँ ही उसके पतन का कारन बनती हैं ...पंचमेश यदि निर्बल हो तो जातक के पुत्र कुपुत्र होते हैं देखने से उनमे कोई दोष प्रतीत नहीं होता लेकिन वे बुरे आचरण वाले तथा अविश्वसनीय होते हैं ऐसा जातक प्राय: गुप्त रोगों से पीड़ित रहता है विद्योपार्जन में बाधाएं आती हैं संतान पक्ष से हनी उठानी पड़ती है...ऐसे बडबोले किस्म के, अपनी डींग हांकने वाले होने के कारन अपने पतन का स्वयं कारन होते हैं उदार व्याधि..से पीड़ा बनी रहती है!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंच्मस्थ धनु राशी ...स्वामी गुरु 
यदि पांचवे भाव में धनु राशी हो तो जातक साहसिक कार्यो, घुड़सवारी, का शोकीन होता है उसे उत्तम वाहन सुख प्राप्त होता है तथा देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करता है ऐसा जातक शत्रुओ का मानमर्दन करने वाला. अतिथि गुरु सेवक होता है गुरु बलवान हो तो उत्तम पुत्र सुख मिलता है ...ऐसा जातक कार्य-कुशल एवं अच्छा सलाहकार होता है...अपने कार्य-व्यवसाय में उच्च पद प्राप्त करता है यदि पंचमेश निर्बल हो या पापा प्रभाव में हो तो उपरोक्त फलो में न्यूनता होती है...पंचम भाव में क्षीण चंद्रमा से बलारिष्ट होता है अर्थात शैशवकाल में ही मृत्यु भय रहता है उसे राजपद व धन से हीन होना पड़ता है यदि बुद्ध पपक्रांत होकर पंच्मस्थ हो तो जातक की बुद्धि बिगड़ जाती है अर्थात पागल हो सकता है
पंच्मस्थ मकर राशी ...स्वामी शनि 
पंचम भाव में मकर राशी होने से जातक अत्यंत कठोर ह्रदय का होने से जीवमात्र के साथ म्रदु व्यव्हार नहीं कर पता पापा कर्म में रत ऐसा जातक प्रभावहीन एवं तेजहीन होता है ऐसे जातक को पुत्रो से कोई लाभ नहीं होता अपितु अपमान और हानि उठानी पड़ती है ...ऐसे जातक में दास्य भाव की प्रचुरता रहती है इसका कारन या है की शनि भरती (सेवक ) है इतने पर भी इन्हें मुर्ख नहीं कहा जा सकता समय की नब्ज ऐसे जातक खूब पहचानते हैं शत्रुओ से कैसे कम लिया जाता है ऐसे जातक बखूबी जानते हैं यदि शनि बलवान हो या तृतीयेश-अष्टमेश से राशी परिवर्तन करता हो जातक की स्मरण शक्ति गजब की होती है पुर्व जन्म की बातें भी उसे यद् रहती हैं गूढ़तम विषयों में वह पारंगत होता है....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंचम भाव में कुम्भ राशी स्वामी...शनि 
यदि पंचम भाव में कुम्भ राशी हो तो जातक गंभीर स्वाभाव का होता है असत्य से उसे घृणा होती है परोपकारी वृत्ति का ऐसा जातक सदा दुसरो के परोपकार के बारे में सोचता है ऐसे जातक को स्थिर चित्त नहीं कहा जा सकता क्यूंकि उपरी तौर पर ये शांत दीखते हैं लेकिन इनके भीतर हाहाकार मचा होता है शनि चूँकि योगकारक होता है अत: बलवान हो तो अच्चा पुत्र सुख देता है ऐसे जातक को पुत्र द्वारा भूमि लाभ भी होता है प्रसिद्धि भी सहज ही मिल जाती है कष्ट सहने की असीम क्षमता होती है कैसी भी बड़ी विपत्ति आ जाये ये विचलित नहीं होते..दरअसल विपत्तियों, दुःख, परेशानी का इनका चोली-दामन का साथ होता है ...यदि शनि निर्बल, पापा प्रभाव में पापयुक्त हो तो संतान से दुःख मिलता है घर त्यागना पड़ता है विद्या अल्प होती है, आय की अपेक्षा व्यय अधिक होता है धन की सदा कमी बनी रहती है ऐसे जातक मित्रो से एकमत नहीं रह पाते
पंचम भाव में मीन राशी स्वामी...गुरु 
यहाँ गुरु धनेश व पंचमेश बनता है बलवान हो तो प्रचुर धन, भूमि पुत्र सुख प्रदान करता है कुटुंब सुख अच्छा मिलता है ...जातक उच्च विद्या प्राप्त करता है ...जातक को समस्त सांसारिक, भौतिक व आध्यात्मिक सुख मिलते हैं यहाँ ज्ञातव्य है की गुरु परम सुख का करक होता है अत: गुरु का बलवान होना और शुभ द्रष्ट होना गुरु की शुभता को और बढाता है ...ऐसे जातक की प्रवृत्ति कामुक होने से भोग-विलास की और उसका विशेष रुझान रहता है फलत: पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक लोकप्रिय होता है भावुक स्वाभाव का ऐसे जातको के चेहरे पर सदा मुस्कान थिरकती है इन्हें धन की कमी भी रहती है क्यूंकि मौज-शौक में ये अपना धन व्यय कर देते हैं ...निर्बल गुरु की दशा में संतान सुख माध्यम रहता है अथवा नहीं भी होता पत्नी से मतभेद बने रहते हैं जस कारन परिवार में कलह का वातावरण बना रहता हीस पर भी जातक की वृद्धावस्था सुखपूर्वक व्यतीत होती है ....

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