ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंचंम भाव
जनम कुंडली में पंचम भाव का विशेष महत्त्व है इस भाव से मुख्यत: संतान, विद्या और पद का विचार किया जाता है! शास्त्रों का कथन है की .."अपुत्रस्य गतिर्नास्ति " अर्थात पुत्र न होने से गति नहीं होती, दूसरा कारन है की विद्या का विचार भी इसी भाव से किया जाता है ...विद्या ज्ञान की जननी है यहाँ ज्ञान का अर्थ साधारण ज्ञान से नहीं अपितु ब्रहम ज्ञान से लिया गया है कहा गया है की ब्रहम ज्ञान का सुख संसार सुख से सर्वोत्तम है अत: जिस भाव से व्यक्ति की गति और ज्ञान का पता चले उसे महत्त्व देना परम आवश्यक है ...
पंचम भाव से मुख्यत: सभी प्रकार की संतान (पुत्र, पुत्री, दत्तक पुत्र, औरस पुत्र, आदि ), विद्या, बुद्धि, धरना शक्ति, विवेचन करने की क्षमता , मंत्रणा , मेधा शक्ति, प्रतियोगिताओ में सफलता, धरम की भावना, इष्टदेव, प्रेम-विवाह, प्रियतमा, या प्रियतम, यांत-तंत्र-मन्त्र जैसी गुप्त वीडयो में रूचि, लाटरी
पंच्मस्थ विभिन्न राशी फल....
मेष राशी स्वामी ...मंगल .... पंचम में मेष राशी होने से मंगल पंचामधिपति और व्ययेश बनता है यदि मंगल बलवान हो तो पुत्रो की प्राप्ति होती है लेकिन पंच्मस्थ मंगल गर्भ हनी भी करता है ज्योतिष का सिधांत है की व्ययेश अपनी दूसरी (इतर ) राशी का फल करता है अत: गर्भ हानि संभव है इसलिए मंगल की बलि स्थिति लाभप्रद रहती है मेशास्थ मंगल संतान पक्ष को छोड़ कर अन्य सभी कार्यो के लिए शुभप्रद रहता है ....बलवान पंचमेश होने से जातक की पुत्रो के साथ एकता बनी रहती है ...मित्रो से लाभान्वित होता है जन्मान्तर में किये गए पुन्य प्रभाव के कारन तथा देवार्धना करने से जातक को अनेक सुख भी मिलते हैं किन्तु इतने पर भी जातक पाप कर्म करने वाला होता है जिसके कारन वह मानसिक चिन्ताओ से घिरा रहता है ...यदि मंगल निर्बल हो तो जातक अल्प विद्या ही प्राप्त कर पता है पुत्र कुपुत्र होते हैं जातक का स्वाभाव भी क्रोधित होता है अविवेकी होने के कारन मित्रो के भुलावे में अपने धन की शीघ्र ही नष्ट कर देता है
पंचमस्थ वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र
यदि पंच्मस्थ वृषभ राशी हो तो शुक्र अतीव योगकारक होता है यदि कुंडली में शुक्र बलि हो तो जातक उच्च पदासीन , धनी, मंत्री, एवं प्रशासनिक क्षमता वाला होता है जातक को सुंदर पत्नी की प्राप्ति होती है तथा विवाहोपरांत जातक की तीव्र गति से उन्नति होती है संतान, विद्या, तथा मान्त्रिक शक्ति से संपन्न होता है यदि शुक्र पापाक्रांत हो तो जातक स्वयम के कुकृत्यो द्वारा एवं संतान के कर्मो से हानि उठाता है ऐसे जातक को राज्य पक्ष से प्रबल हानि और विरोध का सामना करना पड़ता है संतान लाभ देर से होता है उसे सुंदर कानी रत्न की प्राप्ति होती है जो की पतिव्रत का पालन करती है लेकिन संतान उत्पन्न करने में अक्षम होती है ऐसे जातक धनोपार्जन में विशेष रूचि लेते हैं इन्हें धैर्यवान, सहिष्णु , क्षम्वन तथा समझदार कहा जा सकता है यदि पंचम व पंचमेश पर शुभ प्रभाव न हो तो संतान दुर्बल और मलिन स्वभाव की होती है तथा जातक के लिए कष्टकारी होती है
पंचमस्थ मिथुन राशी ...स्वामी बुद्ध
यदि पंचम में मिथुन राशी हो तो बुद्ध अष्टमेश बनता है फलत: बुद्ध का निर्बल होना जातक के लिए हानिकारक रहता है यदि पंचम भाव, पंचमेश और गुरु पापाक्रांत हो तो संतान नहीं होती तथा जातक को गैस या अपच जैसे रोग होते हैं ....यदि बुद्ध बलवान हो तो जातक सुशिक्षित व बुद्धिमान होता है तथा मनोनुकूल संतान लाभ करता है जो की गुणी. अच्छे शील स्वभाव वाली पत्नी तथा तेजस्वी एवं बलि होती है ऐसे जातक अकस्मात् लाटरी, सत्ता, शेयर मार्केट या एनी तरीको से धनलाभ करते हैं ऐसे जातक थोड़े जल्दबाज, बिना विचारे कम को करने वाले होते हैं दूध के उफान की भांति शीघ्र ही क्रोधित हो जाते हैं लेकिन शीघ्र ही शांत भी हो जाते हैं इनका विद्या योग उत्तम होता है ..लेकिन विद्या प्राप्ति में अनेक अड़चन भी आती हैं।
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
पंच्मस्थ कर्क राशी स्वामी चंद्रमा ....
यदि पंचम भाव में कर्क राशी हो तो चंद्रमा का बलाबल का विशेष विचार किया जाता है ...चन्द्र निर्बल या पापाक्रांत हो तो संतान क्षीण स्वास्थ्य वाली होती है खांसी, नजला, जुकाम, निमोनिया आदि रोग लगे ही रहते हैं संतान अल्पायु होती है ...चन्द्र बलवान हो तो जातक की स्मरण शकित अच्छी होती है, मानसिक शक्ति प्रबल होती है...चन्द्र चूँकि तरल धन का करक है अत: धन की तरलता में जातक कमी नहीं आने देता... ऐसे जातक का भाग्योदय होता है देश-विदेश में उसकी ख्याति फैलती है भाग्य उसका साथ देता है ऐसे जातक देह से स्थूल होते हैं यदि गुरु निर्बल हो तो कन्या संतान अधिक होती हैं पुत्र सुख प्राय: नहीं मिलता... मिलता भी है तो देर से...ऐसे जातक दुसरो पर जल्दी विश्वास कर लेते हैं और धोखा खाते हैं...
यदि पंचम भाव में सिंह राशी हो तो जातक उग्र स्वाभाव का होता है वह किसी भी प्रकार का उपहास सहन नहीं कर पाता उसके रुझे स्वाभाव के कारन दुसरे लोग उस से सम्बन्ध नहीं रख पते ऐसे जातक साहसी और पराक्रमी होते हैं तथा परदेश में जीवकोपार्जन करते हैं ऐसे जातक देखने में अत्यंत सुदर्शन स्वाभाव से उग्र मांस-मदिरा का सेवन करने वाले तःथा उन्हें प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है....
यदि पंचम भाव में सिंह राशी हो तो जातक उग्र स्वाभाव का होता है वह किसी भी प्रकार का उपहास सहन नहीं कर पाता उसके रुझे स्वाभाव के कारन दुसरे लोग उस से सम्बन्ध नहीं रख पते ऐसे जातक साहसी और पराक्रमी होते हैं तथा परदेश में जीवकोपार्जन करते हैं ऐसे जातक देखने में अत्यंत सुदर्शन स्वाभाव से उग्र मांस-मदिरा का सेवन करने वाले तःथा उन्हें प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है....
पंचमस्थ ...विभिन्न राशी फल
कन्या राशी ...स्वामी बुद्ध.....यदि पंचम भाव में कन्या राशी हो तो कन्या संतति की बहुलता रहती है जातक अधिक पुत्रियों का पिता बनता है वे सभी जेवर रखने और पहनने की अत्यधिक शौक़ीन होती हैं उनके पति उन्हें बहुत चाहते हैं..वे पुन्य करने वाली अवं सत्य का साथ देने वाली होती हैं लेकिन प्राय: पुत्र सुख से विहीन होती हैं यदि बुद्ध बलवान हो तो जातक विद्वान अवं भाषण कला में निपुण होता है पुत्र के साथ-साथ जाता स्वयं भी सुंदर होता है यदि बुश निर्बल या पापाक्रांत हो तो पत्नी को गर्भपात होते हैं तथा जातक की वाणी में दोष होता है ...ऐसे जातको देह स्थूल होती है लम्बी-चौड़ी बात बनाना इनका स्वाभाव होता है व्यर्थ के प्रदर्शन में इनकी रूचि रहती है वास्तविकता को छुपा कर किसी भी तथ्य को दुसरे रूप में प्रस्तुत करना इनकी आदत होती है ...मोती बुद्धि के ऐसे जातक अपने व्यर्थ के सिद्धांतो पर अड़ जाते हैं ...इन्हें थोडा सा अधिकार मिल जाये तो ये उसका खूब दुरूपयोग करते हैं प्राय इन्हें पुत्र सुख मिलता ही नहीं....यहाँ एक बात ज्ञातव्य है की बुध की शुभ स्थिति से जातक के धन परिवार की वृद्धि होती है ...हास्य विनोद का शौक़ीन होता है ..पोस्टेड 14/11/2012
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