Saturday, 23 February 2013

Navmasth vibhinn grah fal

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ चन्द्र फलम 

यदि चन्द्र नवम हो तो जातक धरम परायण होता है तथा परंपरागत श्रुति-स्मृति प्रतिपादित धर्म को मानता है। उसे संपत्ति और संतान दोनों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। वह यात्राओं का शौक़ीन होता है, फलत: उसे प्रवास अधिक करने पड़ते हैं और प्रवास करते समय अच्छा धनलाभ भी करता हा। ऐसा जातक बहुत से शास्त्रों का जानकार एवं ज्ञानवान होता है। यदि नवमस्थ चन्द्र शुभ प्रभाव में हो और बलवान हो तो जातक को अत्यधिक शुभप्रद स्थिति देखने को मिलती है। वह माता का भक्त होता है अपनी स्वयं की माता को पूर्ण आदर और प्रेम देता है ..चंद्रमा क्षीण हो मगर शुभ द्रष्ट हो तो महाकाली मन रमेगा।यदि चंद्रमा पृथ्वी तत्व राशी में हो तो जातक की शिक्षा अड्चानो के कारन पूर्ण नहीं हो पाती, वायु राशी में हो तो अडचने- बाधाएं आती तो हैं किन्तु जातक येन-केन प्रकारेण अपनी शिक्षा पूर्ण कर लेता है यदि चंद्रमा एनी राशी में हो तो जातक की शिक्षा-दीक्षा में प्राय: अडचने नहीं आती। स्त्री राशी में चन्द्र के होने से प्राय: पुत्र संतान में विलम्ब होता है या अधिक आयु में प्राप्त होता है। नवमेश अगर दूषित हो तो पुत्राभाव भी संभव होता है। ऐसे जातक के छोटी बहनें होती हैं पर छोटे भाई की सम्भावना प्राय: समाप्त हो जाती हैं। हाँ छोटी साली या ननदें बहुत होती हैं। पुरुष राशी में हो तो छोटे भाई होते हैं ...बड़ा भाई अपवाद रूप में हो भी तो उसे सुख नहीं मिलता, चंद्रमा मेष राशी में हो तो भाग्योंनती में अनेक बाधाएं आती हैं ...इति शुभास्य ..शिव ॐ।।।

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:नवमस्थ मंगल फलम ......
यदि नवम भाव में मंगल हो तो जातक को शुभाशुभ दोनों प्रकार के फल अनुभव में आते हैं। नवमस्थ मंगल जातक को दम्भी व क्रोधी बनता है ..भले ही वह किसी भी राशी का क्यों न हो ....(पहले भी बताया है की मंगल और शनि के फल में इतना गंभीर अंतर है की मंगल जहाँ इन्सान को कमी, क्रोधी, अहंकारी ..और उत्तेजना प्रदान कर पतन करता है वहीँ शनिदेव जातक कोउसके किये कर्मो का दंड देकर सोने से कुंदन बनाते हैं जिसका अंतिम परिणाम सुखद ही होता है ऐसा नहीं है की मंगल सर्वथा बुरा होता है और पतन का कारन होता है ...वरन मंगल उर्जा का ...शक्ति का प्रतीक है और उस पर अंकुश लग्न अनिवार्य है ...वर्ना समाज का भी अहित और स्वयं जातक का भी ....) मकर व मीन में अधिकतर अशुभ फल मिलते हैं ..ऐसा जातक नीच, कुकर्मी, गुरुपत्नी तक से व्यभिचार की इच्छा रखने वाला होता है। व्यर्थ की डींगे हांकना तथा असत्य भाषण करना उसका स्वभाव होंता है।यदि मंगल अग्नि राशि या जल राशी में हो तो जातक उदार और मिलनसार होता है लेकिन स्वार्थ को फिर भी नहीं भूलता। नवमस्थ मंगल होने के कारण जातक प्रचीन रुढियों का पोषक नहीं होता बल्कि नवीन विचारों व मान्यताओं को स्थापित करने का प्रयत्न करता है ..फलत: सुधारक कहा जाता है। विवाह तक को ऐसा जातक समझौता मानता है ...जन्म जन्मान्तर का साथ या स्थाई सम्बन्ध नहीं समझत। इसी कारण विवाह सम्बन्ध के लिए सूक्ष्म विचार तक नहीं करता बल्कि कैसी भी स्त्री मिले स्वीकार कर लेता है यदि मंगल शुक्र से द्वादश स्थिति में हो तो द्विभार्या (दो विवाह ) का योग बनता है। पहली स्त्री से उत्पन्न बच्चों के लालन-पालन के लिए नई व्यवस्था करनी पड़ती है। रक्षा विभाग अथवा आबकारी विभाग में कार्यरत जातक के लिए नवमस्थ मंगल शुभ नहीं होता। स्त्री राशी का मंगल बहनों के लिए तथा पुरुष राशी का मंगल भाईओं के लिए मारक होता है। वृश्चिक का मंगल अधिक अशुभ फल करता है। ऐसा जातक इतना स्वार्थी होता है अपने एक पैसे के लाभ के लिए दूसरों का लाखों का नुकसान कर सकता है ....इति शुभस्य ...शिव ॐ।।

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ बुध ....

यदि भाग्य भाव में बुद्ध विद्यमान हो तो जातक उत्तम विद्वानों एवं सज्जनों का संग करने वाला और यज्ञकर्ता होता है।।पर साथ ही अपने कुल की रीतियों का पालनकर्ता अवं दुर्जनों को संताप पहुँचाने वाला होता है। नवमस्थ बुध के जातक अपने कुल-परिवार में यश-मन-कीर्ति के ज्वलंत प्रतीक कहे जा सकते हैं। ऐसा जातक धन-स्त्री-पुत्र से युक्त होता है। यदि बुध पापी ग्रहों की राशी में हो, पप्द्रष्ट हो या पापी ग्रहों के साथ हो तो पिता को कष्ट होता है या पिता की मृत्यु हो जाती है। ऐसा जातक गुरु-देव-ब्राह्मण से द्वेष करता है तथा भाग्य भी उसका साथ नहीं देता। यदि बुध वायु राशी में हो तो विवाहोपरांत जातक का भाग्य उदय होता है तथा नौकरी अथवा कार्य-व्यवसाय में प्रगति होती हा। यदि बुध जल राशी में हो तो सरकारी नौकरी में लिपिक का पद मिलता है। भू-तत्व राशी में हो तो प्राइवेट नौकरी मिलती है। यदिअग्नी तत्वीय राशी में हो तो बैंक कर्मचारी, चार्टेड एकाउंटेंट, शिक्षक या फिर वह ज्योतिष को अपना व्यवसाय बना लेता है। संपादन, लेखन, प्रकशन, शिक्षण , शेयर ब्रोकर, आदि नवमस्थ बुध के ही फल हैं। इति शुभस्य ...शिव ॐ !!

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: नवमस्थ गुरु 
यदि नवम भाव में ब्रहस्पति हो तो विशेष शुभफलदायक मन गया है ..क्यूंकि एक तो गुरु स्वयं शुभ गृह है दुसरे नैसर्गिक कुंडली में नवं भाव का अधिपति भी बनता है। फलत: जातक को नवम भाव सम्बंधित समस्त तथ्यों से लाभ प्राप्त होना बताया गया है। स्वराशिस्थ या उच्च का गुरु हो तो जातक राज्य की और से विशेष लाभ प्राप्त करता है अर्थात राज्याधिकारी या राज्यसत्ता से संपन्न मंत्री पद पा लेता है। चूँकि यह धर्मस्थान है अत: यदि उपरोक्त अवस्था में गुरु हो तो जातक धर्मात्मा होगा ही। प्रभू कृपा उस पर सदा बनी रहती है और ये स्वाभाविक भी है क्यूंकि धर्म स्थान का करक गुरु बलवान हो कर स्थित होता है।
ऐसा जातक स्वाभाव से विनम्र , शांत, सदाचारी, एवं उच्च विचारों वाला होता है यदि गुरु अग्नि राशी में हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है लेकिन गुरु के पृथ्वी राशी में होने पर जातक को विज्ञानं में तो उच्च शिक्षाप्राप्त हो जाती है किन्तुविचार उदार नहीं होते ...स्वार्थ भावना बढ़ जाती है ..अहंकार सर उठाता है फलत: वह अच्छा शिक्षक नहीं हो सकता, हाँ अच्छा व्यवसायी हो सकता है। यदि गुरु वायु राशी में हो तो जातक लेखन, मुद्रण, प्रकाशन, जैसे कार्यों से लाभ उठाता है, यदि गुरु जल राशी में हो तो जातक न्यायविद, वकील, न्यायाधीश, अधिवक्ता,कानून पढ़ने वाला बनकर मानसम्मान प्राप्त करता है। छोटे भाई-बहनों के लिए गुरु की यह स्थिति अशुभ फलकारी होती है, आपस में मनोमालिन्य स्थिति बनती है या साथ-साथ रहे तो कोई भी प्रगति नहीं कर पाता संतान की और से भी जातक को चिंता बनी रहती है। इति शुभस्य शिव ॐ।।

शुभ प्रभात 
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ शुक्र फलम 
यदि नवम में शुक्र हो जातक धार्मिक कार्य करने वाला तथा तपस्वी होता है। उसके माता-पिता लम्बी आयु पाते हैं।शुक्र को मुख्य रूप से गायन, वादन,सिनेमा, सौन्दर्य प्रसाधन, अभिनय, तपस्वी, और वित्त (फाइनेंस ) के द्योतक होता है। अभिनय करने के गुण उसमे स्वाभाविक रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। फलत: इन कलाओं में निपुण होने के कारन धन तथा मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। यदि पुरुष राशी (मेष सिंह, मिथुन, तुला धनु ) का शुक्र हो तो छोटे भाई अधिक होते हैं, बहने कम होती हैं लेकिन यदि शुक्र स्त्री राशी (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, और मीन ) हो तो बहने अधिक और भाई कम .. देखा गया की 2 बहनों के बाद या 3 बहनों के बाद भाई का जन्म ये नवम और तृतीय में स्थित ग्रहों का परिणाम होता है। पत्नी साधारण नाक-नक्श की होने पर भी दोनों में प्रीती बनी रहती है। प्राय: विवाहोपरांत ही भाग्योदय संभव होता है। कार्य-व्यवसायों के लिए स्त्रियों के माध्यम से धन मिलता है। कार्य-व्यवसाय में पत्नी के जीवनकाल में बहुत उन्नति होती है लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात् स्थिति बिगड़ जाती है।
यदि शुक्र पंचमेश हो कर नवमस्थ हो अर्थात कन्या या कुम्भ राशी का हो तो संतान के कारन जातक का भाग्योदय होता है। प्रथम संतान यदि कन्या हो तो स्थिति दिन पे दिन सुदृढ़ होती जाती है। पुत्र हो तो पहले सुधर कर बाद में बिगड़ जाती है। यदि जल राशी (कर्क, वृश्चिक और मीन ) का शुक्र हो तो जातक खोजी प्रकृति का होता है ..बात की तह में जाना इसका एक महत्वपूर्ण गुण होता है। जल्दी से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाता। कुछ ऐसा कर जाने की अदम्य इच्छा उसमे सदा विद्यमान रहती है जिससे आने वाली पीढ़ी भी उसे याद रख सके। अग्नि राशी (मेष, सिंह, और धनु ) और वायु राशी (मिथुन, तुला और कुम्भ ) में शुक्र हो तो पत्नी तो लावण्यमयी और यौवन संपन्न मिलती है लेकिन उसमे सांसारिक सुख और समाप्ति के लिए विशेष इच्छा नहीं रहती।
यदि शुक्र पापाक्रांत हो तो प्रेम-विवाह और वह भी विजातीय से विवाह करने की प्रेरणा देता है। स्त्री की आयु प्राय: जातक से बड़ी होती है। माता-पिता से भी जातक का विरोध बना रहता है। यदि उच्च का शुक्र हो तो मामी ,मौसी तथा मित्र की पत्नी आदि से अवैध सम्बन्ध बनाता है। इति शुभस्य ...शिव ॐ।।

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवमस्थ शनि फलम 

यदि कुंडली के नवम भाव में शनि हो तो जातक तंत्र, दर्शन तथा वेदांत जैसे गूढ़ विषयों के पथान्पथान में रूचि रखता है तथा विद्याव्यसनी, शुद्ध विचाराकवं शांतचित्त होता है। ऐसा जातक न्यायविद, किसी धार्मिक सन्स्थ का प्रवर्तक या विद्यालय का कुलपति बनकर अपनी श्रेष्ठ बुद्धि एवं पवित्र आचरण के कारन जनता-जनार्दन में पूजनीय बन जाता है। इसका कारन संभवत: यह होता है की नैसर्गिक कुंडली में नवं स्थान का अधिपति होता हा। दशम स्थान कर्म स्थान है और नवं स्थान धर्म स्थान अत: दश्मधिपति (दशम भाव के स्वामी जो की मेष लग्न में ) का नवम में स्थित होना जहाँ धर्म और कर्म में रूचि देगा वहीँ वह न्यायप्रिय भी बनेगा इसीलिए शनि कालचक्र में कर्म और न्याय के अधिपति होते हैं और वे जीव को उनके कर्मो के अनुसार दण्डित व लाभान्वित करते हैं।
ऐसे जातक को उत्तराधिकार में पूर्वजों की संपत्ति मिलती है तथा वह स्वयं भी इसमें वृद्धि करने में समर्थ होता है। अग्नि राशी (मेष, सिंह। और धनु ) व जल राशी (कर्क वृश्चिक और मीन ) का शनि प्राय शुभ फलप्रद होता है। ये एक ज्ञातव्य तथ्य है की शनि अपनी राशी में जितने प्रसन्न होरे हैं उतनी ही वे देव गुरु ब्रहस्पति की धनु और मीन राशी में भी होते हैं। यदि वायु राशी (मिथुन, तुला और कुम्भ ) और पृथ्वी राशी (वृषभ, कन्या और मकर ) में शनि हो तो प्राय: अशुभ फल मिलते हैं पूर्वार्जित संपत्ति मिल कर भी नष्ट हो जाती है जीवन के उत्तरार्ध में आर्थिक आभाव बनता हिया जातक के मन में अस्थिरता बनी रहती है मान -हानि, अपमान होता है। पिता दीर्घजीवी नहीं होतेअप्वाद स्वरुप जीवित रहे भी तो पिता पुत्र में मनोमालिन्य बना रहता है तथा दोनों एक जगह प्रगति नहीं कर पाते। भाई-बहनों से भी जातक की अनबन रहती है। विभाजन के समय झगडे होते हैं तथा नौबत कोर्ट-कचेहरी तक चली जाती है। ऐसे स्थिति में जातक के मन में विवाह करने की इच्छा का आभाव रहता है। शनि मोह के करक हैं अत: ऐसे जातक को अपने धर्म, कर्म परिवार, मित्रो से बहुत स्नेह रहता है लेकिन उसकी इन भावनाओ का निरंतर अपमान होता है अत: वह तटस्थ हो जाता ही जो हो रहा है होने दो में वह बहुत असहाय महसूस करता है। विदेशवास की इच्छा होती है तथा अशुभ प्रभाव के कारन विदेशवास में बहुत कष्ट उठाता है ...ऐसे जातक की माता सौतेली होती है अपवाद स्वरुप सौतेली न भी हो तो वह पूरी जिन्दगी स्नेह और ममता के लिए तड़पता हा, घर में नहीं मिलता तो बहार धुन्धता है और अपमानित होता है, चित्त भ्रम, पागलपन , व्यर्थ भटकना अदि अशुभ फल मिलते हैं ..इति ...शुभस्य शिव ॐ।।

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ राहू एवं केतु फलम 

राहू ....राहू एक छाया गृह है है इसका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता ..छाया गृह् है यानि के अंधकार। यदि कुंडली के नवम भाव में स्थित हो तो जातक का अपनी जन्म भूमि मे मन नहीं रमता विदेश में व्यवसाय करने की इच्छा होती है लेकिन उसमे इसे सफलता नहीं मिलती और धनहानि होती है ...राहू चूँकि नवमस्थ है फलत: जातक के छोटे बड़े भाई बहनों में कमी रहती है राहू को काल पुरुष का मुख माना गया है ...जो इस धरती पर पैदा हुआ उसे अंत में इस कालपुरुष के मुख का ग्रास बनना होगा ही। भाग्य में आकस्मिक उतर-चढाव बने रहते हैं। ऐसा जातक एकलौती संतान होता है ...अपनी पत्नी में विशेष प्रीती रखता है पानी पत्नी में आसक्त ऐसा जातक उसके कारण अपने प्रियजनों, माता-पिता तक का अनादर कर देता है। विवाह करने का या तो वह इच्छुक नहीं होता या इतनी उतावली करता है की प्रणय सूत्र में बंधते समय स्त्री की जाति , वर्ण , और व्य का भी ध्यान नहीं करता। वायु राशी का राहू होने पर ही जातक को उपरोक्त बातें अनुभव में आती हैं। ऐसा जाता स्त्री पर एकमात्र अपना अधिकार समझता है ...पत्नी का पुत्रों से अधिक प्रेम भी उसे नहीं सुहाता। यदि अग्नि राशी का राहू हो तो जातक व्यव्हार कुशल होता है तथा दुसरो का आदर मान करता है। संतान की चिंता विशेषतय: पुत्र संतति की चिंता उसे बनी रहती है। पुत्र संतान के लिए दूसरा विवाह तक कर लेता है। यदि राहू स्त्री राशी में हो तो संतति होती है लेकिन उसकी मृत्यु की सम्भावना बनी रहती है। प्राय पहली संतान कन्या ही उत्पन्न होती है अधिक आयु का भी सुख मिलता है। बहनों के लिए ऐसा राहू कष्टकर होता है ....
केतु .....यदि नवम भाव में केतु हो तो ऐसा जातक व्यव्हार कुशल नहीं होता है ..लोकमत के विरुद्ध आचरण करने से अप्रिय्भाजन बनता है ...लेकिन उच्च विकारों का धनि होता है। प्राचीन रुढियों के सामानांतर नए-नए रीति-रिवाजों की स्थापना कर सुधारवादी बन् ने का यत्न करता है लेकिन इन सबके फलस्वरूप उसे लोकनिंदा और कष्ट झेलने पड़ते हैं वृश्चिक राशी का केतु न हो तो जातक पापी, पिता के सुख से हीन तथा जाति और समाज से तिरस्कृत होता है लेकिन वृश्चिक राशी का या शुभ प्रभाव में नवमस्थ केतु हो तो जातक के समस्त कष्टों का नाश हो जाता है तथा मलेच्छों के द्वारा भाग्य वृद्धि होती है। ऐसे जातक के बाजुओं में रोग होता है तथा उसके छोटे भाइयों को कष्ट देता है। ऐसा जातक अंतिम अवस्था में धार्मिक बन तपस्या-दान आदि के आनंद को प्राप्त होता है ...इति शुभस्य।।।शिव ॐ ..

Devel Dublish
शुभ प्रभात 18/11/2012
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमेश की विभिन्न भावगत स्थिति 
नवमेश लग्न में हो तो जातक धार्मिक विचारधारा वाला, सर्वत्र सम्मानित अपने बड़ो का, पूर्वजो का गुरुओं का आदर सत्कार करने वाला तथा विद्वान, आस्तिक, मानवता मेद्रध विश्वास रखने वाला बुद्धिमान होता है। भीड़-भाड़ से उसे नफरत होती है अत: जहाँ कम लोग रहते हों वहां रहना पसंद करता है संभवतय ऐसे जातक उच्च कोटि के धार्मिक प्राणी होते हुए भी किसी धार्मिक स्थल पर भीड़-भाड़ के कारण ही नहीं जाते। उसकी विचारधारा राजसी होती हैं। कृपणता का पुट होने के कारन ऐसा जताक्धन संग्रह कर लेता है। भाग्य भी उसका साथ देता है। पुत्रों का भी उसे पूर्ण सुख मिलता है और पुत्रो के कारन उसके यश में और वृद्धि होती हा। अशुभ गृह हो तो उपरोक्त फलों में न्यूनता रहती है तथा अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
नवमेश धन (द्वितीय ) में हो तो जातक उत्तम स्वभाव का होता है सत्कर्म करने वाला अच्छे शील धर्म से युक्त सत्यभाषी होता है तथा धर्म, साधना और आध्यात्म के पथपर अग्रसर ऐसे जातक को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है। कुटुंब, परिवार और समाज के साथ उसका विशेष प्रीती भाव होता है तथा उनकी सेवा करता है। धन] यश, मान-सम्मान, कीर्ति, स्त्री-पुत्रों का पूर्ण सुख पारपत होता है तथा अपने समाज और जाति में देवतुल्य पूजा जाता है। यदि नवमेश अशुभ गृह हो तो जातक शूद्रों जैसा आचरण करता है तथा परिवार में कलह का वातावरण बनाएं रखता है, मुख पर झाई होने से चेहरा असुंदर हो जाता है ...वाणी में मिठास नहीं होती तथा चौपायों, वाहन आदि से पीड़ा होती है ...इति शुभस्य ..शिव ॐ।।



  • November 19, 2012
  • Devel Dublish
    शुभ प्रभात
    ॐ श्री गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    नवमेश का तृतीय एवं चतुर्थ भाव फलम 

    यदि नवमेश तीसरे स्थान में गया हो तो जातक सहोदरों (भाई-बहनों)से विशेष प्रेम करता है। जीवन भर उनसे विलग नहीं होना चाहता। उसकी पत्नी रूप-यौवन सम्पन्ना एवं पत्नी धर्म का पालन करने वाली पति परायण होती है। जातक स्वयं भी उसे बहुत प्यार करता है। ऐसा जातक पुत्रों, भाई बहनों को अत्यधिक संरक्षण एवं प्रेम करने वाला होता है और हमेशा ढाल बन कर उनकी रक्षा करता है। भाषण देने की कला में निष्णात ऐसा जातक सत्य-धर्म युक्त एवं दीर्घ जीवी होता है। यदि नवमेश अशुभ गृह हो तोतो समस्त शुभ फलों में न्यूनता आती है ...यहाँ ज्ञातव्य तथ्य ये है कि नवमेश अगर शुभ गृह है तो तीसरे भाव में स्थित हो कर अपनी सप्तम पूर्ण दृष्टि से नवं को देख कर उसे अति महत्वपूर्ण बल प्रदान करेगा ..ज्योतिष का एक सर्व मान्य सिद्धांत है की कोई भी भाव अगर अपने स्वामी से दृष्ट हो तो वह भाव बली हो जाता है किन्तु अगर किसी अशुभ गृह से द्रष्ट हो तो उस भाव का फल नष्ट हो जाता है।।।
    यदि नवमेश चतुर्थ भाव में हो तो जातक माता का भक्त होता है।।।पिता से उसे प्रेम होता है लेकिन माता को वह ज्यादा महत्त्व देता है अपनी पूजा आराधना में भी उसकी इष्ट माता रानी ही होती हैं। माता-पिता का भक्त ऐसा जातक अपने माता-पिता को व्रद्धावस्था में तीर्थाटन कराता है एवं उनकी सेवा करता है। उसका मित्र वर्ग अच्चा होता है तथा आवश्यकता के समय उसकी मदद करता है। उत्तम कर्म करने वाला इअसा जातक उच्च वाहन एवं भव्य भवन का स्वामी होता है। उत्तम विद्या प्राप्त कर विद्वान एवं यशस्वी होता है। यदि नवमेश अशुभ गृह हो तो संतान की चिंता, पडौसियों से कलह तथा माता का सुख अल्प मिलता है। अशुभ गृह भाग्य भाव की तो हानि करता ही है उसके साथ -साथ चतुर्थ में स्थित हो कर चतुर्थ के शुभ फलों में भरी न्यूनता ला देता है जिससे घर में नित्य कलह का वातावरण बनता है।। इति शुभस्य शिव ॐ।।



    • November 20, 2012
    • Devel Dublish
      शुभ प्रभात 20/11/2012
      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      नवमेश का पंचम व षष्ठ भावगत फल।।

      यदि नवमेश पचम भाव में हो तो जातक सत्कर्म में प्रवृत्त रहने वाला, देव गौ ब्राह्मण की सेवा ..साधू-संतों, भद्र जानो का आदर सत्कार करने वाला होता है ...यहाँ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वह योग घटित होता है जो व्यक्ति के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन ला देता है त्रिकोनेश का वापस दुसरे त्रिकोण भाव में बैठना एक अद्भुत संयोग होता है अगर नवमेश , नवम भाव और पंचम भाव शुभ प्रभाव में हो तो जीवन में उच्चतर स्तर देखने को मिलता है ...या तो उसे राजसिक शुखोप्भोग में उच्चता मिलती है या आध्यात्म में। दोनों ही स्तर पर उसकी कीर्ति पताका लहराती है। ऐसा जातक अनेक शास्त्रों, उपनिषदों का जानकर, पुण्यात्मा एवं ज्ञानी मानी विद्वान होता है। लेकिन यदि नवमेश अशुभ गृह हो तो पुत्रो से संताप मिलता है ..पिता से वैमनस्य रहता है। लोक में अपकीर्ति फैलती है तथा ऐसा जातक विद्याव्यसनी नहीं होता।
      यदि नवमेश षष्ठ भाव में हो तो जातक को जीवन साथी शील गुण संपन्न मिलता है। यदि पुरुष की कुंडली में यह योग हो तो स्त्री रूप यौवन संपन्न, शीलवान, मधुर वचन बोलने वाली, नीतियुक्त व घर गृहस्थ का सञ्चालन करने वाली होती है। ऐसा जातक स्वयं भी धर्मनिष्ठ , सत्यवक्ता एवं मनस्वी होता है। ऐसा जातक रति पंडित व विलासी भी होता है लेकिन स्वपत्नी में ही आसक्ति रखता है। स्त्री के द्वारा ही इसका भाग्योदय होता है तथा द्विजातियों में श्रेष्ठ माना जाता है। यदि नवमेश अशुभ गृह हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य हो जाता हा। ऐसा जातक स्वयं भी लम्पट, असत्य भाषी, पित्रद्वेषी एवं निन्दित होता है।।।इति शुभस्य शिव ॐ।।

      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:नवमेश नवम व दशम भाव में ..
      यदि नवमेश नवम भाव में हो तो जातक अपने बंधू वर्ग के साथ परम स्नेह रखता है वह श्रीमानों की श्रेणी में हो कर भी सभी के साथ सामान व्यव्हार करता है। धार्मिक संस्थाओं को दान देता है तथा समस्त धार्मिक उत्सवों में आगे बढ़ कर भाग लेता है। देव, गुरु ब्राह्मण एवं अभ्यागतों का आदर सत्कार करने वाला ऐसा जातक व्यापर के माध्यम से अतुल धन कमाता है या एक कुशल प्रशासक होता है। पुत्र एवं स्त्री से अधिक प्रीती रखता है। माता-पिता का आदर करने वाला ऐसा जातक लोक में विख्यात होता है 
      यदि नवमेश दशम भाव में हो तो जातक बुद्धिबल का धनी एवं कठिन से कठिन कार्यों में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। शासन कार्य में भाग लेता है अर्थात कहीं प्रशासक होता है या जनता द्वारा चुना जाकर मंत्रिपद को सुशोभित करता है। भाही सदा उसका साथ देता हैवैसे भी ये एक बहुत प्रसिद्द नियम है की जिस भाव का स्वामी अपने से द्वितीय हो उसको भरपूर लाभ मिलता है क्यूंकि किसी भी भाव का द्वितीय उसका धन भाव होता है। ऐसा जातक लब्ध प्रतिष्ठित होकर जीवन में हर ऐश्वर्य का उपयोग करता है। धार्मिक कृत्यों के कारन लोगो की दृष्टी में वह आदरणीय होता है। ऐसा जातक माता-पिता का भक्त और उनकी दिल से सेवा करने वाल होता है। दशम नवं में एकाधिपत्य हो तो- ऐसा तभी संभव होता है जब वृषभ लग्न हो तो फल प्राप्ति में स्वाभाविक देरी होती है क्यूंकि शनि देव दोनों राशी के स्वामी होते हैं और शनि जग विदित है की हर कम को धीरे करते हैं। ...इति शुभस्य।। शिव ॐ।।

      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      नवमेश लाभ भाव (एकादश ) में

      यदि नवमेश लाभ भाव में हो तो जातक धार्मिक भावना से ओत-प्रोत होता है तथा धर्माचरण के कारन ही लोक में प्रसिद्धि पता है। धन की उसके पास कमी नहीं रहती। प्रत्येक से स्नेह करता है ...व्यापर में विपुल धन कमाता है पुत्र पौत्रादि का पूर्ण सुह उसे मिलता है। अपने सहोदरों, बांधवों, मित्रो का उसे पूर्ण सहयोग मिलता है। माता-पिता का भक्त ऐसा जाता यशस्वी होता है ..यदि नवमेश पाप गृह हो या पाप प्रभाव में हो तो जातक को संतान चिंता, पद्प्रतिष्ठ की चिंता सताती है। अगर जातक किसी नौकरी में हो तो किसी बड़े गड़बड़ घोटाले में नाम बदनाम होता है ..व्यापारी हो तो तो जबरदस्त घाटा होता है . मित्र वर्ग धोखा देते हैं तथा जातक स्वयं भी निन्दित कर्म करके अपनी आजीविका चलाता है
      यदि नवमेश द्वादश (बारहवें ) में हो तो जातक सुंदर विद्वान एवं कलाविद होता है। उसे विदेश में ख्याति मिलती है। किसी महँ कार्य में सफलता मिलती है तथा सेवा परायणता में वह प्रसिद्द होता है। उसका धन शुभ कार्यों में व्यय होता है। अभ्यागतों के आदर-सत्कार में काफी धन व्यय होने के कारण उसका आर्थिक पक्ष कमजोर हो जाता है। यदि पापा गृह हो तो जातक दुर्बुद्धि होता है। धूर्तता में उसकी बराबरी करने वाला कोई नहीं होता है। ऐसा जातक भाग्यहीन एवं दरिद्र होता है। .......... इति शुभस्य शिव ॐ।।




Navmasth vibhinn rashi fal

श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवम भावस्थ मिथुन राशी ...स्वामी बुध 

यदि कुंडली के नवम भाव में मिथुन राशी हो तो जाता धर्म स्वरुप हो जाता है ...तथा देव, गुरु, ब्राह्मण, विद्वजनो, का आदर सत्कार करने वाला, दीं-हीन दुखियो को यथा संभव मदद करने वाला, अभ्यागतों का पूर्ण मन-सम्मान करने, सात्विक व सरल स्वाभाव का जातक होता है ...वह धार्मिक अवं सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर भाग लेता है...नवम.भाव धर्म भाव है तो बुध विष्णु स्वरुप होते हैं जब स्वयं बुध ही नव्मधिपति हो जातक में धार्मिकता, परोपकारिता आदि भावना व गुण आने स्वाभाविक हैं ..यदि बुध लग्नेश से सम्बन्ध करे तो जातक स्वार्थ रहित व सबसे छुप कर परोपकार या मदद करता है ...लेकिन बुध की निर्बल स्थिति जातक के भाग्योदय में तो विघ्नकारी होती ही है..बड़े मामा अवं मौसी की भी हानि करती है...उसे अर्थभाव बना रहता है ...तथा वह दुसरो के लिए कार्य करता है ..स्वयं ऋणी हो जाता है तथा जैसे तैसे अपने जीवन का निर्वाह करता है .....
नवम भाव में कर्क राशी ...स्वामी चंद्रमा 
यदि कुंडली के नवम भाव में कर्क राशी हो तो जातक धार्मिक भावना प्रवण तो होता है लेकिन व्रत-उपवास आदि अधिक करता है वह किसी गुप्त स्थान में तप में निरत हो जाता है या तीर्थ स्थानों का भ्रमण करता है ...ऐसा जातक भावना प्रवण प्राणी होता है तथा सदा ही कल्पना लोक में खोया रहता है ...ऐसा जातक कविता भी करे तो इश्वर-भक्ति से पूर्ण ही करता है ...ततः पुराणी परंपरा व रुढियों से चिपका रहता है...अधिक व्रत करने से उसे प्राय: उदार रोग घेरे रहते हैं...तथा वाट रोग कारन बन जाते हैं ,,,भावुकता तथा अस्थिरता उसके त्वरित निर्णय लेने में बाधा कारक होती है इसीलिए वह किसी कार्य को करने में आवश्यकता से अधिक समय लगा देता है...उसे अपने जीवन में अनेक उतर-चढाव देखने पड़ते हैं ...यहाँ चंद्रमा नवमेश बनता है अत: बलवान चंद्रमा मिअर्युक्त शुभ फल देता है क्षीण चन्द्र हो तो सालियों, नन्दों (पति की बहनों )का सुख नहीं मिलता ///इति शुभम ...शिव ॐ...२.११/२०१२

शुभ प्रभात 
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अथ नवम भाव राशी फलम.......
मेष राशी ...स्वामी मंगल ...यदि नवम भाव में मेष राशी हो तो जातक सौभाग्यशाली कहा जा सकता है ....वह विवेकशील होता है तथा प्रत्येक कार्य को सोच विचार कर करता है ...उसे प्राय: अर्थाभाव बना रहता है क्युकी उस पर अनपेक्षित व्यय भर रहता है...इसीलिए ऐसे व्यक्तियों की आय व्यय से कम हुआ करती है उसे चतुष्पदों (गाय, घोडा, भैंस आदि ..अथवा वाहन) के कार्यो से लाभ होता है यहाँ मंगल चूँकि चतुर्थेश व नवमेश बनता है ...अत: यदि बलवान हो तो जातक को धन-संपत्ति, मन-सम्मान अवं अधिकार उसी अनुपात में मिल जाते हैं ...ऐसा जातक भूपति होता है..उसे माता का का भरपूर सुख प्राप्त होता है तथा राज्य-दरबार में मान सम्मान मिलता है ..यदि मंगल निर्बल हो तो पिता का अरिष्ट होता है ... नवम भाव हो या कोई और भाव हमें भाव स्थित गृह, भावेश की स्थिति, भाव बल, भावे और भावेश पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव का बारीकी से विश्लेषण करना चाहिए...इति शिव ॐ 
वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र...यदि कुंडली के नवम भाव में वृषभ राशी हो तो जातक की धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा होती है ..वह दीं जानो का अपने धन से पालन पोषण करता है अभ्यागतों का आदर करने वाला तथा याचकों को यथासंभव धन-वस्त-आभूषण आदि समयानुसार दान देता है ...ऐसा जातक विद्वान और सच्चरित्र होता है ...समय को पहचान कर विवेकयुक्त और प्रिय वचन कहता है ...बाल्यावस्था में कष्ट उठाता है ....शिक्षा प्राप्ति के लिए भटकना पड़ता है लेकिन अन्तत: उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है उत्तरवय में जीवन के सभी सुखो को प्राप्त कर लेता है...ऐसे जातक को स्वतंत्र व्यवसाय में ही सफलता मिलती है यदि जातक नौकरी में हो तो प्रगति धीरे -धीरे होती है यहाँ शुक्र नवमेश और द्वितीयेश बनता है ...अत: यदि बलवान हो शुभ प्रभाव में हो तो बहुत धनदाता होता है...वैसे भी शुक्र तरल धन का प्रबल कारक होता है ..लेकिन यदि निर्बल हो तो साले के द्वारा धन का नाश एवं राजकीय दंड मिलने की सम्भावना बनी रहती है इति शिव ॐ

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवमस्थ सिंह राशी ...स्वामी सूर्य.

यदि कुंडली के नवम भाव में सिंह राशी हो तो जातक धर्म को तो मानता है अपितु उसका अन्धानुकरण नहीं करता....प्राचीन रुढियो को नहीं मानता ...तथा कुछ अपने खुद के नियमों विचारों को ही प्रमुखता देता है ...फलत: धर्म के मामलों में उसका व्यव्हार बत्तख जैसा होता है जो समाज के हित के नियम हैं उन्हें ग्रहण करा बाकि सबको तिलांजली....यही उत्तम भी है देश-काल-परिस्थिति के अनुकूल ही धरम का अनुसरण करना चाहिए राशी जिसका स्वामी शेर हो तो उसके सारे आचरण सिंह या राजा की भांति हो तो क्या आश्चर्य.. यदि सूर्य निर्बल हो तो जातक धर्म का विरोध करता है तथा दूसरे के धर्म को अपने धर्म से श्रेष्ठ समझता है ...अपने धर्म के दुर्बल पक्षों को बार-बार उजागर कर व्यंग्य कसता है ...यदि सूर्य बलवान हो तो ऐसा जातक समाज अवं राज्य में सम्मानित होता है तथा तथा पद व अधिकार दोनों प्राप्त कर लेता है...उसका कोई भी कार्य बिना व्यवधान संपन्न नहीं होता है ..वह अपने उच्चाधिकारियों को प्रयत्न करके भी प्रसन्न नहीं कर पाता...ऐसा जातक अथक परिश्रमी होता है और श्रम को ही जीवन का लक्ष्य समझता है...बाल्यावस्था की अपेक्षा उसकी वृद्धावस्था सुलह से व्यतीत होती है ....
नवमस्थ कन्या राशी ...स्वामी बुध 
कुंडली के नवम भाव में कन्या राशी हो तो जातक में विलासिता का पुट आ जाता है.....स्त्रैण स्वाभाव का होने से महिला मित्रो की संख्या अधिक होती है और उनसे भरपूर लाभ भी होता है ..स्त्री उसकी प्रमुख कमजोरी होती है ..पत्नी बहुत प्यारी होती है ..ऐसा जातक धर्म के मामले में कट्टर नहीं होता और न उसमे भक्ति की भावना होती है..भाग्य निरंतर उसको जीवन के उंच-नीच समझाता रहता है ..लेकिन वह संभालना नहीं चाहता ...दुनिया दिखावे के लिए ऐसा जातक कुछ भी कर सकता है ..ऐसा जातक फलत: अपने को धनि-मानी स्थापित करने के लिए व्यर्थ के दिखावे करता है ..कन्या राशी के नवम भाव व शत्रु भाव (छटे) भाव का स्वामी होने के कारण शुभ फलो में न्यूनता रहती है ज्योतिष का सर्वमान्य सिद्धांत की कोई शुभ गृह शुभ भाव का स्वामी होकर अगर किसी दुष्ट भाव में स्थित हो तो अशुभ फल ज्यादा मिलते हैं यहाँ रिपु और भाग्य भाव का स्वामी बुद्ध शीघ्र ही अपने शुभशुभ फल का प्रदर्शन करता है ...अत: ऐसे जातको को सावधानी पूर्वक जीवनयापन करना चाहिए ...यदि बुद्ध का लग्न-लग्नेश से शुभ सम्बन्ध हो तो व्यक्ति धार्मिक, शुभ कर्म करने वाला होता है यदि नवम बहव में बुद्ध के साथ रहू हो तो अचानक भाग्योंनती होती है ...क्युकी रहू के दोष को बलवान बुद्ध नष्ट करता है ...इति...शिव ॐ....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: नवमस्थ तुला राशी ...स्वामी शुक्र।।
यदि कुंडली के नवम भाव में तुला राशी हो तो जातक धर्म भीरु होता है लेकिन पक्षपात अवं अन्याय का प्रबल विरोधी होता है ऐसे जातक समाज व कानून का आदर करते हैं तथा कोई ऐसा कार्य जाने-अनजाने नहीं करना चाहते तो इन बन्धनों की अवहेलना करे समाज और कानून की ही परिधि में ही सब कुछ करता है ...ऐसे जातक की बाल्यावस्था बहुत कष्टकर बीतती है ...लेकिन जैसे-जैसे आयु बढती है तो धन -मान -अधिकार सब मिल जाते हैं ...शिक्षा पूरी करने में उपस्थित होते हैं नौकरी की अपेक्षा व्यापर हितकर रहता है ..ऐसा जातक भोग-विलास को ही सच्चा सुख समझता है ...यात्राएं इसकी नियति होती है।।।ऐसा जातक देश -विदेश में कार्य -व्यवसायों के लिए तो जाता है ही तथा स्वयं भी घुमने-फिरने का शौक़ीन होता है ...यदि शुक्र बलवान हो तो तथा शुभ प्रभाव में हो तो जीवन में विलासिता की सम्पूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है ...यदि शुक्र निर्बल हो तो भाग्य्हीनता के कारण दुखी रहता है ....तुला राशी कुम्भ लगन में ही नवमस्थ होती है अत: लग्नेश यानि की शनि की स्थिति का सारगर्भित अध्ययन बेहद जरुरी है इसके साथ ही भाग्य भाव पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव का सम्यक अध्ययन भी आवश्यक है।।।
नवमस्थ वृश्चिक राशी।।
यदि कुंडली के नवम भाव में वृश्चिक राशी हो तो जातक दान-पुन्य करने वाला तथा दीनो, असहायों की मदद करने का ढोंग करता है तथा जिस धर्म से लोगों को मानसिक पीड़ा हो ऐसे धर्म को मानता है ..दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की ऐसा जातक नास्तिक होता है ..पाखंड और दिखावे में उसकी आस्था रहती है। फलत: इस मद में उसका धन व्यर्थ में व्यय होता है उसके जीवन के प्रारंभिक वर्ष आर्थिक दृष्टिकोण से तंगी के रहते हैं उसे आजीविका के लिए बहुत भटकना पड़ता है। सगोत्रियों एवं बन्धु-बांधवों की सहायता नहीं मिलती। ऐसे समय की व्यथा को झेलना ही ऐसे जातक के सहस अथवा आत्मबल को दर्शाता है। ऐसा जातक अपने प्रयत्नों से ही स्थापित होता है। जीवन के मध्यकाल से उसकी स्थिति में सुधार होता है ...भाग्य साथ देता है, आर्थिक स्टार ऊँचा होता है तथा निरंतर अपने लक्ष्य की और बढ़ता हुआ ऐसा जातक सफलता प्राप्त कर लेता है। समय की पहचान करने में ऐसा जातक सिद्धहस्त होता है। यहाँ मंगल नवमेश और दशमेश होता है बलवान हो तो बहुत धन-मान पदवी देता है यदि गुरु और मंगल का सम्बन्ध हो तो जातक दान-पुन्य करने वाला होता है ...इति ...शिव ॐ।।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
नवमस्थ धनु राशी स्वामी गुरु ......

यदि कुंडली के नवं भाव में धनु राशी हो तो जातक धर्मात्मा होता है तथा देव, गुरु ब्राह्मण व सज्जनों की सेवा-सत्कार करने वाला होता है सनातन धर्म का आश्रय लेता है ...उसका स्वाभाव शांत, सौम्य अवं सरल होता है। ऐसा कोई कार्य नहीं होता जिसको ऐसा जातक सरलता पूर्वक न कर ले ..उसके हर कार्य में विघ्न बाधा आती है। बाल्यकाल सुखपूर्वक बीतता है .लेकिन जीवन के मध्यकाल में अर्थात यौवनावस्था में ऐसा जातक स्वयं को स्थापित करने के लिए कठिन श्रम एवं संघर्ष करता है। सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेता है।।फलत: शीघ्र ही सबका प्रिय बन जाता है। यदि गुरु बलवान हो तो उसे धन- पद अधिकार मिल जाता है ..यदि गुरु बलवान हो कर नवम भाव अथवा केंद्र में स्थित हो तो हँस महापुरुष नामक योग का निर्माण होता है ..जो की पञ्च महापुरुष योग में से एक है 
नवमस्थ मकर राशी स्वामी शनि ....
यदि कुंडली के नवं भाव में मकर राशी हो तो जातक धर्म के प्रति कट्टर नहीं होता ...उसके पूर्वार्जित कर्म - पुण्य उसे प्रतापशाली बन देते हैं। ऐसा जातक अपनी आयु से बड़ी स्त्रियों से प्रभावित होकर अंत में कॉल मतानुयायी बन जाता है। राजनीतिक क्षेत्र में उसकी बराबरी कम लोग ही कर पते हैं ...मकर राशी एक युक्ति युक्त राशी होती है अगर ये शुभ प्रभाव में हो शुभ युक्ति सुझाती है अशुभ में अशुभ जिस कार्य को लोग कठिन समझते हैं वह उसे अपने युक्ति बल से सहज ही सिद्ध कर लेता है दूसरों पर उपकार करने में भी उसे कठिनाई नहीं आती ...लेकिन महा अलसी होने के कारण उसके कार्य अपूर्ण पड़े रहते हैं। शत्रुपक्ष की प्रबलता के कारण उसका कोई भी कार्य सहज नहीं होता।।नौकरी करता हो तो शने : शने: प्रगति होती यदि शनि देव बलवान व शुभ प्रभाव में हो तोतो धन व पद सहज ही मिल जाते हैं ...यहाँ भी शनि यदि नवम में स्थित हो तो पञ्च महापुरुष योग में से एक शश योग का निर्माण होता है ...उसके सामान क्षेत्र बल वाला कोई नहीं होता ....इति ...शुभस्य ..शिव ॐ शिव ॐ शिव ॐ।।
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
नवमस्थ कुम्भ राशी .........स्वामी शनि 

यदि कुंडली के नवम भाव में कुम्भ राशी हो तो जातक धरम परायण, परोपकारी तथा जातक वृक्षारोपण, धर्मशाला आदि शुभ कार्य करता है जिस से आने जाने वाले लोगो को वहां आराम मिल सके वो स्वयं अपने आप में एक धरम ध्वज होता है।। बाल्यावस्था उसकी कष्टकर व्यतीत होती है ...तथा उसे शिक्षा और आजीविका के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है ...जीवन के मध्यकाल से उसे यश, मान -सम्मान मिलना प्रारंभ होता है। किसी को परखने की योग्यता, कूटनीति एवं नेतृत्व में कम ही लोग उसकी बराबरी कर पाते हैं। यहाँ शनि अष्टम और नवम दो भावो का स्वामी बनता है ...अत: शुभता-अशुभता उसके जीवन में चलती रहती है यदि शनि बलवान हैं तो आयु लम्बी होती है ....भाग्य साथ देता है। पञ्च महापुरुष योग में से एक शश योग का निर्माण भी होता है ...ऐसे जातक अत्यंत प्रतिभाशाली , विद्वान्, ज्योतिष, दर्शन में रूचि रखते हैं ...
नवमस्थ मीन राशी ...स्वामी गुरु 
यदि कुंडली के नवम भाव में मीन राशी हो तो जातक धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत रहता है साधू-संतों, अभ्यागतों का स्वागत करता है तथा यत्र-तत्र।।समाज और जनोपयोगी कार्य करता है ..जनता की भलाई और सामाजिक हित वाले कार्यो में उसकी रूचि होती है। जीवन में उसे सफलता मिलती है। भ्रमण का उसे शौक होता है, उसे नौकरी और व्यापर दोनों में सफलता मिलती है, उसमे सहिष्णुता व नम्रता के साथ -साथ उच्च विचार भी होते हैं ..मीन राशी द्वि स्वाभाव राशी होती है ..इसके साथ बौद्धिक राशी, धार्मिक राशी भी होती है अत: ऐसे जातक के हर विचारों धार्मिकता का पूत होना स्वाभाविक है।। यदि गुरु बलवान हो तो बहुत शुभ फल मिलते हैं और निर्बल हो तो शत्रुओं द्वारा हानि होती है। यदि गुरु लग्न में हो तो धार्मिक तथा द्वितीय में हो तो धर्मोपदेशक होता है ...और यदि स्वयं गुरु बलवान हो कर नवम भाव में हो तो पञ्च महापुरुष योग में से एक हंस महापुरुष योग का निर्माण होता है ...जो अत्यत शुभ फल्प्रदाता होता है ..इति ..शुभस्य ..शिवोम।।।

Tuesday, 5 February 2013

Ashtmesh ka vibhinn bhav gat fal...

ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:अष्टमेश की अन्य भावों में स्थिति .....
अष्टमेश प्रथम भाव (लग्न) में हो तो जातक के हर कार्य में विघ्न आते हैं ....ऐसा जातक लम्बे समय तक चलने वाली बीमारी से पीड़ित रहता है ...पाप कर्मों के प्रति उसकी रूचि रहती है और वह पापकर्मा होता भी है फलत: सर्वत्र उसकी निंदा होती है ऐसा जातक प्रसिद्द चोर होता है उसके शारीर पर अनेक व्रण (घावों) के निशान होते हैं देव-गुरु- ब्राह्मण अर्थात समाज के प्रतिष्ठित विद्वजनों से उसका बैर रहता है ...अपने किसी बड़ो की सलाह नहीं मानता उनका अनादर करता है उसे देह सुख अप्ल मिलता है लेकिन किसी उपलक्ष्य में उसे राज्य पक्ष से धन लाभ भी होता है ...अनेक दुखो को भोगता हुआ ऐसा जातक सहनशील होता है..
अष्टमेश का द्वितीय (धन) भाव में होने से जातक क्षीण आयु तथा अनेको शत्रुओ से युक्त होता है ऐसा जातक प्राय: शुभ कर्मो से रहित और नीच कर्मो से धन अर्जित कर अभिमान करने वाला समाज से त्याज्य होता है जैसा की पहले बताया गया है की कुंडली में अष्टम भाव सबसे ज्यादा पापी भाव होता है अत: यहाँ स्थित राशी, गृह पर उसका पपत्व का असर पड़ता है ...शुभ गृह हो और शुभ राशी, मित्र राशी...उच्च अथवा स्व राशी में हो तो पाप प्रभाव में कमी होती है इसके बावजूद उसे राज्य पक्ष से दंड का भय बना रहता है..शत्रुओं की गतिविधियों से उसे बहुत हानि होती है, मान-अपमान का भी रहता है...और समाज से उसे यथा योग्य सम्मान प्राप्त नहीं होता....क्रमश: शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: अष्टमेश तीसरे भाव में .........
यदि तीसरे भाव में अष्टमेश हो तो जताक अपने बंधू-बंधवो तथा सगोत्रियो से ईर्ष्या रखता है ऐसे जातक को सहोदरों का सुख नहीं मिल पता ...भाई या तो होते नहीं यदि हो भी तो आपस में बनती नहीं उनका शारीर भी कमजोर होता है तथा उस पर अधिक पाप प्रभाव हो तो जातक विकलांग भी हो सकता है अनेक रोगों से त्रस्त रहने वाला ऐसा जातक सहानुभूति नहीं ले पता...ऐसा जातक सदा दुर्वचन बोलता हैजिसके कारन वह लोगो की दृष्टि में निंदनीय होता है चूँकि सहोदरों से या कुटुंब के एनी भाई बंधवो से मतभेद के चलते ...ऐसा जातक बलहीन कहलाता है...दोस्तों शक्ति तीन होती हैं ...धन बल, देह बल, और सामाजिक बल ...जिस जातक के अपने सगे भाई नहीं होते और अन्य बांधवो से मतभेद होते हैं वो समाज में बलहीन होता है ...और वो सुरक्षित भी नहीं होता..
अष्टमेश अगर सुख भाव (चतुर्थ ) में हो तो सुख की आशा करना निराधार है ...ऐसे जातक का अपने पिता से व्यर्थ में विवाद हो कर बैर हो जाता है तथा उसे वहां सुख नहीं मिल पता...वह पिता की संपत्ति को नष्ट कर देता है ..यदि अष्टमेश पाप प्रभाव में आया हो तो पिता-पुत्र में मल्ल युद्ध की नौबत आ जाती है और दोनों न्यायालय में पहुँच जाते हैं ...ऐसा जातक अपने मित्रो तक को नहीं चोदता और उनसे भी द्रोह रखता हैस्वभाव से उग्र होने के कारण प्रत्येक से झगडा करता है यदि शुभ हो या शुभ प्रभाव में हो तो उपरोक्त अशुभता में कमी आती है
श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:सप्तम भाव में अष्टमेश के जाने से जातक प्रवास में कष्ट पाता है ...ऐसा जातक बड़े भाई के लिए कष्टप्रद होता है ..वह कामुक होता है तथा प्रमेह, शुक्रमेह, उपदंश आदि रोगों से पीड़ित होता है...ऐसा जातक का स्त्री से वैमनस्य बना रहता है....वह कम पिपासा को शांत करने के लिए व्यभिचार का सहारा लेता है ...उदार रोगों से पीड़ित रहता है..स्वयम मुर्ख होता है तथा दुष्टों से इसकी सांगत और मित्रता रहती है...ऐसे जातक की दुष्ट स्त्री के कारन मृत्यु तक संभव है...अर्श, भगंदर, जिअसे गुदा रोग होते हैं....व्यापर में हानि होती है ..यदि नौकरी करता हो तो पदावनति होने की प्रबल सम्भावना होती है...ऐसे जातक का द्विभार्या योग बनता है ..यदि शुभ प्रभाव में हो तो थोड़े बहुत शुभ फल अवश्य मिलते हैं....
अष्टमेश यदि अष्टम में ही हो तो जातक प्राय: निरोगी होता है ...अर्थ वो किसी दीर्घकालीन रोगों से त्रस्त नहीं होता...उसके कार्य व्यवसाय में प्रगति होती है धन और मन दोनों मिल जाते हैं तथा लम्बी आयु का उपभोग करता हुआ....प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेता अहि यदि अष्टमेश अशुभ प्रबह्व में आया हो अथवा अकरक हो तो देव, गुरु सज्जन पुरषों की निंदा करने वाला, सज्जन पुरशो अतःवा अपने से बड़ो का कहा न मानने वाला , स्त्री पुत्र सुख से हीन, यात्रा में दुर्घटना अथवा कष्ट पाने वाला पापकर्म, चौर्य्कला में निपुण, परे स्त्री से प्रेम करने वाल तथा अपयशी होता है...क्रमश: !!शिव ॐ!!
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
यदि अष्टमेश नवम भाव में गया हो तो जातक देव, गुरु, और सद्जनों की संगती में नहीं रहता ...ऐसा जातक धरम-कर्म को ढोंग की संज्ञा देता है...जातक पक्का नास्तिक, पाप कर्मों में रत , जीवों की हिंसा करने वाला, बंधू-बांधवों से रहित व स्नेह रहित होता है ...ऐसे जातक को पत्नी भी दु:शीला मिलती है दुसरे के धन को हरण में पति-पत्नी दोनों का दिमाग एक साथ काम करता है ...ऐसा जातक छल-फरेब, दुसरे की धन संपत्ति को हरण करने में चतुर होते हैं ...यदि अष्टमेश शुभ गृह तो शुभ फल मिलते हैं ...तथा किसी वसीयत द्वारा संपत्ति प्राप्त होती है ...
यदि अष्टमेश दशम भाव में हो तो जातक अलसी होता है तथा उसे माता-पिता का सुख प्राय: नहीं मिलता..यदि अष्टमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो माता का चरित्र संदिग्ध होता है...चुगली करने की उसकी आदत होती है...दूसरों में विद्वेष पैदा कर अपन उल्लू सीधा करता है ...इन्ही कारणों से लोग उस से घृणा करते हैं..ऐसे जातक को राज्य दंड मिलने की प्रबल सम्भावना होती है दशम भाव के शुभ फलों में भरी कमी होती है ......ऐसा जातक अपने लाभ के लिए नित्य नवीन योजनायें बनता रहता है..यदि अष्टमेश शुभ ग्रह हो और शुभ प्रबह्व में हो तो ..ऐसा जातक खोजी प्रवृत्ति का होता है...समाजोपयोगी खोज कर जगत में अपना नाम करता है ....इति शुभ...शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: अष्टमेश दशम भाव में...फल 
यदि अष्टम भाव का स्वामी एकादश में हो जातक कार्य-व्यवसाय में सफलता प्राप्त कर लेता है उसे धन-मन-सम्मान सभी कुछ प्राप्त हो जाता है...इष्ट मित्र अच्छे होते हैं तथा समय पर सहायता भी करते हैं...ऐसे जातक का माता से प्राय: वैमनस्य बना रहता है उसे यात्राओं में प्राय: कष्ट मिलता है तथा बाल्यावस्था सुखकर नहीं बीतती. ..लेकिन बाद में सुख मिलता है यदि अष्टमेश पाप प्रभाव में आया हो तो जातक अल्पायु होता है किये गए कर्मों का उसे पूरा लाभ नहीं मिलता तथा उसके इष्ट मित्र उसे धोखा देते हैं.....
यदि अष्टमेश बारहवें भाव में हो तो जातक की वाणी कर्कश होती है ऐसा जातक चौर्ये कला में निष्णात , बुरे कर्म करने वाला अल्पायु तथा आत्म ज्ञान से हीन होता है...ऐसे जातक के जन्म से ही उसका कोई अंग क्षीण होता है...या बाद में की दुर्घटना के कारन उसके किसी अंग में शिथिलता आ जाती है...आईटीआई अष्टमेश विभिन्न भावगत फलं सम्पूर्णं....शिव ॐ...

Ashtmashth vibhinn grah fal..

अष्टमस्थ विभिन्न ग्रहों का फल अष्टमस्थ सूर्य ..........
अष्टम भाव में किसी भी क्रूर और पापी ग्रहों की स्थिति शुभ नहीं मानी गई है ...जातक को अपने जीवन में मृत्यु तुल्य कष्टों अवरोधों की स्थिति का सामना करना पड सकता है ...प्राचीन ग्रंथकारों ने अष्टमस्थ सूर्य के अशुभ फल ही बताएं हैं....लेकिन अनुभव में शुभाशुभ दोनों प्रकार के फलों को देखा गया है...यदि सूर्य पुरुष राशी...मुख्यतया अग्नि राशियों में हो तो बुरे फल मिलते हैं...घर की गुप्त बातें, जिनका दूसरों को ज्ञान हो जाना अहितकर होता है घर से बहार चली जाती हैं...नौकर-चाकर विश्वस्त नहीं होते ...यहाँ तक की अपनी पत्नी भी विश्वासपात्र नहीं रहती ...ऐसे में पारी या पत्नी कोई विश्वासघात करे तो क्या आश्चर्य ..यदि सूर्य स्व-राशी अथवा उच्च का हो तो असावधानीवश जातक की मृत्यु होती है ...यदि सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, तुला, वृषभ या कन्या राशी में हो तो जातक को लम्बी बीमारियाँ भोग कर मृत्यु का आलिंगन करना पड़ता है ...उसके जीवन साथी का चरित्र संदिग्ध रहता है...तथा मृत्यु भी जीवन साथी से पहले हो जाती है...जीवन के अंतिम दिनों में जातक को अर्थाभाव झेलना पड़ता है ..यह सब ऐसे ही होता है जैसे सूर्यास्त के बाद का अँधेरा ...सूर्य के स्त्री राशी में रहने से संतति सुख अधिक मिलता है ..पुरुष राशी में संतान सुख अल्प होता है दृष्टि मंदता से परेशानी होती ...ज्यादा पापा प्रभव में सूर्य हो तो आँख का ओप्रेसन भी होता है ...अधिक स्त्री प्रसंग के कारण उसे गुप्त रोगों का शिकार होना पड़ता है!

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ भावस्थ चन्द्रमा.....

यदि अष्टमस्थ चन्द्र हो तो बचपन में अरिष्ट होता है ...कई प्रकार के रोगों से जातक ग्रस्त रहता है...अनेक चिकित्सकों से निदान करने पर भी व्याधियां उसका पीछा नहीं छोडती उसे जल में डूबने का भय रहता है...अथवा जलोदर रोग उसकी मृत्यु का कारन बनता है यह प्राय: बाल्यकाल में ही घटित हो जाता है क्यूंकि अरिष्ट्प्रद चंद्रमा बच्चों के लिए ही ज्यादा कष्टदायी रहता है......यदि अग्नि राशी का चंद्रमा हो तो येन-केन-प्रकारेण जातक को धन मिल जाता है...विवाह में भी अच्छा दान -दहेज़ मिल जाता है...या किसी के द्वारा वारिस घोषित होने से धन-संपत्ति मिल जाती है ..यदि चन्द्र वायु राशी में हो तो जीवन साथी अच्चा मिलता है...लेकिन परिवार में कलह बनी रहती है....ऐसा जातक योगाभ्यासी , वेदांत को जानने वाला व इश्वर की उपासना करने वाल होता है उसके घर की गुप्त बातें दूसरों को नौकरों के द्वारा अथवा पत्नी के द्वारा ज्ञात हो जाती हैं ४५ वे वर्ष से सम्पत्तिनाशक योग बनते हैं....लेकिन यदि चंद्रमा उच्च या स्वग्रही हो तो शुभ फल मिलते हैं....

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
अष्टमस्थ मंगल फलम

यदि अष्टम भाव में मंगल हो तो जातक प्राय: रोगों से ग्रस्त रहता है ! उसे देहसुख अच्छा नहीं मिलता तथा वह अल्पायु एवं दरिद्री अथवा अभावग्रस्त रहता है.. जातक की बोलचाल बहुत रुखी..और असभ्य होती है...ऐसा जातक स्वार्थी और कंजूस भी होता है शायद जीवन की कठिनाई उसे ऐसा करने पर विवास करती हो ...अनभव में आय अ है की ऐसे जातक का मध्य कल निर्धनावस्था में व्यतीत होता है प्राचीन महाऋषियों ने कहा है की अष्टम में अगर मंगल विराजमान हो तो उसके लिए शुभ स्थानों में बैठे शुभ गृह भी लाभ नहीं देते...विवाह से लाभ नहीं होता ..उलटे परेशानियाँ बढती है ...मित्र शत्रुवत व्यव्हार करते हैं यदि मंगल नीच राशी में हो तो रक्त-पित्त हो जाता है ...सूर्य चंद्रमा और शनि के साथ यदि मंगल भी अशुभ सम्बन्ध में हो तो जातक अल्पायु होता है अथवा किसी षट्कर्म के कारण उसकी मृत्यु होती है...यदि अकेला मंगल हो तो शीघ्र मृत्यु नहीं होने देता...
यदि मंगल अग्नि राशी में हो तो जातक की आग से जल कर मृत्यु होती है अथवा किसी गोली या विस्फोटक पदार्थ से मृत्यु की सम्भावना होती है ...वायु राशी में होने से मस्तिष्क विकृति मृत्यु का कारण बनती है ...यदि मंगल वृषभ, कन्या और मकर राशी में हो तो शुभ फल मिलते हैं मकर राशी में मंगल संतान का आभाव करा ता है अथवा पुत्री संतान ज्यादा होती हैं ...ऐसा जाता ज्यादा खाने वाला ,,,मिष्ठान्न प्रिय होता है फलत: अजीर्ण रोग से पीड़ित रहता है ...ऐसा जातक राजकीय कर्मचारी हो तो खूब रिश्वत लेता है...यदि कर्क, वृश्चिक, एवं मीन राशी में मगल हो तो जातक के जल में डूबने से मृत्यु होने की सम्भावना रहती है....मेने पहले भी कहा की अष्टमस्थ मंगल बाधा कर्क होता है...जो व्यव्हार में गुस्सा, अहंकार, उत्तेजना ला कर इन्सान का पतन करता है...अत: समय रहते मंगल के जाप इत्यादि से उसके कोप को शांत किया जा सकता है...!!शिव ॐ !!

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:..अष्टमस्थ बुध फलम..................
यदि बुध अष्टमस्थ हो तो जातक अतिथि सेवक होता है उस पर राज्य की कृपा बनी रहती है...तथा वह राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है...यहाँ ज्योतिष का एक बहुत सुंदर सूत्र..ये है की अकेले बुध.की दृष्टि धन भाव पर हो ..और बुध शुभ प्रभाव व शुभ राशी में हो तो जातक को अत्यंत धनी बनाता है ....वह प्रख्यात होता है ऐसा जातक अपने कुल का पालन करने वाला कुल श्रेष्ठ होता है उसकी स्मरण शक्ति अच्छी होती है तथा वह गुप्त विद्याओं और आध्यात्म शास्त्र के पठन-पाठन में रूचि होने से अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेता है....ऐसा जातक मनमौजी दिल का साफ...चल कपट से दूर होता है अत: साझेदारी उसके लिए घातक होती है...यदि बुध उच्चस्थ और शुभ प्रभाव में हो तो अकस्मात् धन लाभ के उसे जीवन में कई सुअवसर मिलते हैं...ऐसा जातक सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय होता है तथा शुभ स्थिति में उसकी मृत्यु होती है.....सुंदर व्यक्तित्व का धनी ऐसा जातक शत्रु हन्ता होता है...आप्तजनो में विश्वास व्यक्त करते हुए अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर लेता है शास्त्रीय ज्ञान में रूचि होने से प्रख्यात देवज्ञ भी हो सकता है यदि बुध स्त्री राशी में हो तो मृत्यु का कारण मस्तिष्क विकार होता है ..बाल्यावस्था में सर में चोट लगती है ...यदि बुध पापा प्रभाव में आया हो तो जातक कुमार अवस्था से ही उसका चल चलन बिगड़ता है और अत्यधिक स्त्री प्रसंग के कारण विभिन्न रोगों से उसकी मृत्यु होती है ..शिव ॐ !!

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
अष्टमस्थ शुक्र फलम...........

यदि अष्टम भाव में शुक्र होतो अनायास धन की प्राप्ति होती है ...यहाँ अनायास धन प्राप्ति बिना अर्जन किये धन का द्योतक है ...ऐसे जातको को लोटरी , सट्टा, विरासत अथवा भूमि में गड़ा हुआ धन प्राप्त होता है विशेषत: किसी विधवा स्त्री की संपत्ति उसके मृत्यु के पश्चात प्राप्त हो जाती है ...अष्टम भाव आयु का स्थान है और नैसर्गिक रूप से शुक्र शुभ गृह है ...अत: जातक का दीर्घायु हो जाना स्वाभाविक है ...शुक्र के होने से आर्थिक और स्त्री विषेयक सुख और मिल जाता है ...ऐसा जातक विद्वान होता है तथा उसकी पत्नी प्राय: स्वाभिमानी, कर्ण प्रियभाषिणी,अवं विश्वासपात्र होती है...ऐसे जातक को प्राय: नशे की लत होती है...यदि शुक्र वृषभ, धनु या कर्क राशी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुली रहता है ...स्त्री एवं संतति से वैमनस्य बना रहता है...चूँकि ऐसे जातक अत्यधिक कामुक होने से व्यभिचारी प्रवृत्ति वाले होते हैं, फलत: मधुमेह , शुक्रमेह, उपदंश आदि गुप्त रोगों से ट्रस्ट हो कर दुःख भोगते हैं...
यदि शुक्र मिथुन या वृश्चिक राशी में अष्टमस्थ हो तो स्त्री सुख में न्यूनता रहती है...आर्थिक स्थिति साधारण तथा कार्य-व्यवसाय ठीक प्रकार नहीं चलता..यदि शुक्र मकर या कुम्भ राशी में हो तो जातक को संतान, स्त्री आदि का सुख अल्प होता है लेकिन परे स्त्रियों से उसके सम्बन्ध बने रहते हैं तथा उनसे उसे लाभ भी मिलता है ...यदि शुक्र कन्या व मेष राशी में हो तो विवाहोपरांत जातक अवनति के गर्त में गिर जाता है...कार्य-व्यवसाय में हानि, नौकरी में पदावनति , सस्पेंसन आदि फल मिलते हैं..ऐसा जातक प्राय: ऋण ग्रस्त रहता है .....अन्य राशियों में प्राय: सब ठीक ठाक रहता है..ऐसा जातक परित्यक्ता तथा विधवा स्त्रियों से सम्बन्ध रखता है ...अष्टमस्थ शुक्र दूषित हो कर पाप प्रभाव में आया हो तो कामुकता यहाँ तक बढ़ जाती है की जातक कामवासना की शांति के लिए अनैतिक तथा अनैसर्गिक संसर्ग भी करता है .....क्रमश:

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
अष्टमस्थ शनि गृह फलम

यदि शनि अष्टमस्थ हो तो सुख की आशा करना निर्मूल है...शनि को ज्योतिष में दुःख का कारक तथा अष्टम स्थान को संकट, कष्ट, व मृत्यु आदि का स्थान माना जाता है ....अत: दुःख स्वरुप शनि जब स्वयं दुःख स्थान में विराजमान हो तो सुख की आशा करना निर्मूल है...इतने पर भी यदि शनि बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है ...पूर्णायु भोग कर ही ऐसा जातक स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त होता है यदि शनि स्वग्रही अथवा उच्च का हो तो जातक को दहेज़ में अच्छा धन और संपत्ति प्राप्त होती है ...ऐसा जातक मृत्यु समय स्वस्थ चित्त रहता है तथा मृत्यु का उसे पूर्वाभास होता है...उसे ज्ञान होता है...
अत्यधिक पाप प्रभाव में आया शनि राजकीय दंड विशेषत: कारावास का कारन बनता है ऐसे जातक की बाल्यावस्था में ही उसके माता-पिता की मृत्यु हो जाती है या पिता को भारी आर्थिक हानि होती है...यदि शनि कर्क राशी में हो तो जातक संपत्ति और अधिकार दोनों मिल जाते हैं ...यदि शनि धनु राशी में हो तो विवाहोपरांत अशुभ फल करता है ...इसका कारण भाग्येश का अपनी राशी से द्वादश होना है (वृषभ लग्न में शनि भाग्येश होते हैं और जब वे अष्टम भाव में हो तो भाग्य भाव से द्वादश स्थान अष्टम पड़ता है)..ऐसे जातक को धनार्जन नहीं हो पता बल्कि उसके व्यय में वृद्धि हो जाती है...यदि शनि वृषभ, कन्या, तुला और कुम्भ या मीन राशी में हो तो नौकरी के लिए शुभ होता है शेष राशियों में हो तो स्वतंत्र व्यवसाय के लिए शुभ होता है ...लेकिन संतान और संपत्ति दोनों एक साथ नहीं मिलते.....क्रमश: शेष कल...२३/१०/२०१२

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
अष्टमस्थ राहु फलम............

राहु एक छाया गृह है इसका अपना कोई फल नहीं होता है ..यह जिस राशी में स्थित होता है तदनुसार फल देता है ...इतने पर भी इसमें शनि जैसे गुण होते हैं..."शनिवत राहु कुज वत केतु " अर्थात राहु का फल शनि जैसा और केतु का फल मंगल जैसा ! राहु और शनि के पापत्व में बड़ा अंतर है... शनि जातक को विभिन्न कष्ट देकर धर्म अध्यात्म की और परिवर्तन करते हैं वाही राहु...अपनी राशी स्थिति अनुसार विभिन्न बाधाएं, आकस्मिक शुभाशुभ प्रभाव अथवा विनाश जैसे भूकंप, तूफान.या कोई भयानक प्राकर्तिक आपदा, शक्तिशाली से शक्तिशाली सत्ता] व्यक्ति को धूल चटा देते हैं ...रहू कालपुरुष का मुख है ..समस्त श्रृष्टि , समस्त चराचर जगत कल पुरुष के मुख में समां जाता है...पापी श्रेणी में इसी वजह से गिना जाता है की अस्तित्व न होते हुए भी ...महाकाल है...अत: विनाशक हैं ..जब देने पर आते हैं तो रंक को रजा बनते देर नहीं लगती....यदि राहु पुरुष राशी में से किसी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य होता है ...क्यूंकि स्त्री कलह करने वाली व संदिग्ध चरित्र की होती है .ऐसे जातक को धनार्जन की धुन रहती है...वहा नैतिक-अनैतिक का ध्यान किये बिना धन संचय में लगा रहता है ...राजकीय नौकरी में हो तो रिश्वत लेता है पर शीघ्र ही पकड़ा जाता है और दंड भोगता है ....इसकी मृत्यु मूर्छित अवस्था में होती है 
स्त्री राशी का राहु हो तो प्राय: उपरोक्त से फल उलटे मिलते हैं...पत्नी अच्छी मिलती है....लेकिन पत्नी की मृत्यु हो जाने से विधुर जीवन यापन करना पड़ता है...इसे मृत्यु का ज्ञान पहले ही हो जाता है तथा मृत्यु के समय चेतना बनी रहती है...प्राय: ऐसे जातक स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं..यदि नौकरी करते हो तो रिश्वत लेते हैं पर पकडे नहीं जाते ..यदि राहु शुभ प्रभाव में हो तो जातक को उत्तर आयु में सुख मिलता है..लेकिन पापा प्रभाव में हो तो बुढ़ापे तक सुख नहीं मिलता ...अत: अष्टमस्थ गृह को ध्यान में रख कर उसकी शांति ...अवश्य करा लेनी चाहिए...
अष्टमस्थ केतु 
अष्टमस्थ केतु शुभ फलदाता नहीं होता ...ऐसे जातक को प्राय: अर्श, भगंदर, आदि रोग लगे रहते हैं मूत्रकृछ (यूरिन की बीमारी, इस'कक्क की बीमारी )से वह ४२ वर्ष की उम्र में पीड़ित होता है ...व्यवसाय में अनेक उलझाने आती हैं ...जातक जितनी महनत करता है उतना उसको फल नहीं मिलता...दिया हुआ पैसा वापस नहीं आता..प्राय: वृश्चिक राशी का केतु शुभ फल देता है..जैसा की पहले बताया ..की इसका फल मंगल जैसा होता है ...फोड़े, फुंसी , मुहासे, आगजनी की घटना, विस्फोट, ये सब केतु के लक्षण हैं...जातक को दुर्घटनाओं से देह कष्ट होता है...पत्नी बच्चों में कलह बनी रहती है ...शत्रु के शास्त्र से मृत्यु की आशंका रहती है ...यदि केतु शुभ प्रभाव में हो तो उपर्युक्त फलो में न्यूनता रहती है ...और शुभ फल मिलते हैं.....शिव ॐ...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:अथ अष्टम भाव फलं ....
कुंडली में अष्टम भाव का बहुत महत्त्व है ..यह जातक की आयु का परिचय देता.है इस भाव में स्थित गृह का, दृष्टि का बहुत महत्त्व है इस भाव में स्थित गृह आपके सम्पूर्ण व्यक्तिव को शुभाशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं....यदि जीवन है तो कुंडली के एनी भावो के योगो का भी कोई अर्थ है अन्यथा नहीं... अत: कुंडली में मारक योग का निर्णय करने के लिए सप्तमेश और द्वितीयेश का भी विचार कर लेना चाहिए क्यूँ की आठवां और तीसरा भाव (अष्टम से अष्टम ) आयु स्थान कहे गए हैं और द्वितीय तीसरे भाव का व्ययेश होने के कारन भी आयु का सूचक है....जातक की आयु कितनी होगी यह ज्ञात करने के लिए लग्न, लग्नेश, अष्टम, अष्टम भाव, तृतीय भाव तथा तृतीयेश तथा परम अयुश्कार्क शनि देव के बल का सम्यक अध्यन बहुत जरुरी है ....
यदि इनमे से दो भाव बलवान हो तो जातक अल्पायु, तीन भाव बलवान हो तो मध्यमायु और चारो बलवान हो तो पूर्णायु होता है ...इसके अलावा चंद्रमा और बुद्ध की स्थिति पर भी विचार कर लेना आवश्यक है क्यूंकि कुंडली में इनकी हीन बलवता बचपन में अरिष्ट्प्रद होती है ...जातक की मृत्यु तक हो जाती है..भगवान शिव ने ज्योतिष के २,५०,००० सूत्र प्रतिपादित किये थे जो कालांतर में घटते -घटते मात्र ५२०० रह गए जिनमे से अकेले २५०० सूत्र नाड़ी सूत्र हैं जो अपने आपमें बहुत सटीक भविष्यफल कहने में समर्थ हैं और दक्षिण भारत में वहां के विद्वजनो के पास सुरक्षित हैं...उन्होंने इन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया...गोपनीय रखा हुआ है...इस भाव से मुख्यता आयु की अवधि व मृत्यु कब और कैसे होगी, विदेश यात्रा योग, स्त्री सौम्य या कर्कशा , विपरीत राजयोग से प्रचुर धन और गहन चिंतन अथवा अन्वेषण के साथ , गुप्त धन, गुह्य अंगो में रोग..इत्यादि का अध्यन किया जाता है...

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
अष्टमस्थ विभिन्न राशी फल 
अष्टमस्थ मेष राशी फल : स्वामी मंगल 

यदि अष्टम स्थान में मेष राशी हो तो जातक प्राय: बहार विदेश में ही निवास करता है...यहाँ मंगल तीसरे और आठवे दोनों आयु भावों का अधिपति बनता है ...अत: यदि लग्न बलवान हो तो आयु दीर्घ होती है ...अष्टम भाव और अष्टमेश दोनों मंगल पर पड़ने वाले प्रभाव को मृत्यु का कारन बतलाते हैं...मंगल यदि अष्टम भाव में हो तो जातक यौवनकल में व्यसनी होता है...उसे नींद में बद्बदाने की अथवा उठकर चलने का योग होता हैशुभ योग हो तो जातक धनि-मानी होता है ऐसे जातक की मृत्यु भी घर में नहीं होती ...विदेशवास के दौरान ही ऐसा जातक पूर्व बातों को याद करता हुआ प्राणों को त्यागता है ...यदि अशुभ योग हो तो जातक दरिद्र व हर समय चिंता करने वाल होता है ..अष्टम भाव में पापा गृह बाधक तो होते हैं वहीँ प्रतिस्पर्धा अथवा सार्वजानिक चुनावो के लिए अच्छे भी होते हैं...
अष्टमस्थ वृषभ राशी फल....स्वामी शुक्र 
यदि अष्टम भाव में वृषभ राशी हो तो शुक्र लग्नाधिपति और अष्टमेश बनता है....इसकी निर्बल स्थिति जातक की आयु को समाप्त कर देती है ऐसे जातक को काफ रोग होता है और प्राय: काफ के कारन ही श्वास नलिका में अवरोध होने से उसकी मृत्यु हो जाती है ऐसे जातक को प्राय: भोजन करते समय..अचानक धसका सा लग जाता है ..ऐसे जातक को सावधानी रखनी चाहिए की...और पानी का सेवन करते रहना चाहिए.... यदि चन्द्र और बुध के साथ शुक्र भी बलि हो तो अत्यधिक ख़ुशी या हंसने के कारन जातक की ह्रदय गति रुक जाती है ऐसा जातक चोरो अथवा डाकुओं से संघर्ष करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है चोपयों के सींगो से भी मृत्यु भय होता है यदि लग्न और शुक्र मंगल या केतु से प्रभावित हो तो जातक की मृत्यु अग्निदाह अथवा विस्फोटक, या गोली लगने से होती है ....

ॐ श्री गणेशाम्बा गुर्भ्यो नम: 
अष्टमस्थ मिथुन राशी....स्वामी बुध 

यदि अष्टमस्थ मिथुन राशी हो तो बुध अष्टमेश बनता है...बुध सौर मंडल वहां की गृह परिषद् में युवराज का स्थान प्राप्त है...गति तेज़ है..२०-४२ दिनों में एक राशी में रहते हैं..अत: अतिशीघ्र शुभाशुभ फल प्रदाता माने जाते हैं..अत: बाल्यावस्था से ही शुभाशुभ प्रभाव घटित होने प्रारंभ हो जाते हैं ...पाप प्रभाव में आया बुध जातक को शीघ्र ही घर से विलग कर देता है और वह विदेशवास करता है...यदि मंगल की राशी में स्थित हो कर बुध पाप प्रभाव में हो, पाप दृष्ट हो अथवा किसी भी शुभ गृह की दृष्टि में न हो तो दीर्घकालीन रोगों से ग्रसित करता है ..लेकिन धन लाभ के लिए ऐसा बुध अच्छा होता है यदि बुध वृश्चिक राशी में हो तो जातक शत्रुओं द्वारा घात लगाकर मारा जाता है ...ऐसा जातक पापात्मा होता है फलत: पापों के परिणामस्वरूप मृत्यु का ग्रास बनता है......अर्श, भगंदर जैसे गुदा रोग भी मृत्यु का कारन बनते हैं लम्पट होने से प्रमेह या मधुमेह जैसे रोग हो जाने से भी आयु क्षीण. होती है ....
अष्टमस्थ कर्क राशी....स्वामी चन्द्र 
यदि अष्टमस्थ कर्क राशी हो तो चन्द्रमा अष्टमधिपति होता है इस पर आया पाप प्रभाव अरिष्ट्प्रद रहता है...शैशवकाल में ऐसा जातक अनेक कष्ट भोगता है ..उसे जल में डूबने का भय होता है अत: ऐसे जातक को जल से सावधान रहना चाहिए ...अथवा कालांतर में जलोदर नमक रोग से मृत्यु संभव होती है ...ऐसे जातकों की नौकरों के द्वारा या घर की किसी स्त्री के द्वारा घर की गुप्ता बातें घर से बहार जाती हैं ..यदि चन्द्रमा यहाँ उच्च का हो शुभ प्रभाव में हो और पंचम भाव भी शुभ प्रभाव में हो तो जातक को आकस्मिक लाभ, अद्भुत दैविक ज्ञान प्राप्त होता है .....


  • !!ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:!!
    अष्टमस्थ सिंह राशी...स्वामी सूर्य 

    यदि अष्टम भाव में सिंह राशी हो तो सूर्य अष्टमाधिपति बनता है यदि लग्न व लग्नेश पर इसका अशुभ प्रभाव हो तो जातक हकला कर बोलता है अर्थात उसकी वाणी में दोष होता है सर्प के काटने से अथवा किसी के द्वारा विष दिए जाने से उसकी मृत्यु हो सकती है....हिंसक पशुओं (शेर, चीता आदि ) से खाए जाने का भय भी बना रहता है चोरों द्वारा उसकी धन संपत्ति अवम जीवन को हानि पहुँचती है...जीवन साथी खर्चीला मिलता है....यदि अष्टमेश अग्नि राशी का हो तो प्राय: अशुभ फल ही अनुभव में आते हैं ऐसे जातक के जीवन साथी का चरित्र संदिग्ध रहता है तथा उसकी वृद्धावस्था कष्टकर व्यतीत होती है...विशेषत: अर्थाभाव बना रहता है ....
    अष्टमस्थ कन्या राशी....स्वामी बुध 
    अष्टमस्थ कन्या राशी हो तो बुध त्रिकोणेश होने के साथ-साथ अष्टमाधिपति भी बनता है...यदि बुध निर्बल अवस्था का हो तो जातक को पुत्र द्वारा अपमान सहन करना पड़ता है...तथा धन की हानि होती है मृगी होने की सम्भावना रहती है यदि सूर्य पाप प्रभाव में हो तो जातक का विवाह नहीं होता मृत्यु सावधान अवस्था में होती है...यदि अष्टमाधिपति छटे भाव में हो तो सुजाक अथवा किसी गुप्त रोग से जातक की मृत्यु की सम्भावना होती है ...ऐसा जातक गुप्त विद्या और आध्यात्म की पुस्तकें पढने में रूचि लेता है...यदि बुध स्वराशी होतो आक्स्मत धन लाभ होता है तथा यदि उच्च का हो तो अप्रत्यासित धन (भूमि में गड़ा धन, लोटरी ) आदि की प्रबल सम्भावना होती है ...विवाह हो जाये तो जातक की पत्नी रहस्य को गुप्त रखने वाली तथा आनंद पूर्वक रहने वाली होती है
    • October 14, 2012
    • Devel Dublish
      शुभ प्रभात
      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      अष्टमस्थ तुला राशी ....स्वामी शुक्र...

      अष्टमस्थ तुला राशी होने से शुक्र तृतीयेश अवं सप्तमेश बनकर प्रबल पापी गृह बन जाता है चूँकि ये दोनों ही आयु स्थान हैं और शुक्र आयुष्कारक गृह है फलत: शुक्र बलवान हो तो दीर्घायु करता है यदि निर्बल या पाप प्रभाव में आया हो तो क्षीणआयु करता है व मित्रो द्वारा अपमानित भी कराता है ...स्व-राशिस्थ या उच्च का शुक्र गो तो जातक को अनायास धन-प्राप्ति होती है....यह धन संपत्ति विरासत से, सट्टे या लोटरी से , या किसी विधवा स्त्री द्वारा दी जाती है ....ऐसे जातक को बड़े उद्योगों से भी धन लाभ मिलता है अष्टम अधिपति अवं अष्टम भाव पर शुभ प्रभाव हो तो जातक धार्मिक वृत्ति वाल होता है तथा व्रताधिक अधिक करता है फलत: जठराग्नि क्षीण हो जाने के कारन से भी मृत्यु संभव होती है....ऐसे जातक का अत्यधिक दुस्साहस भी उसका मृत्युकारक बनता है...अष्टमस्थ प्रबल पाप गृह हो और कुंडली में योगकारक हो तो तो किसी भी स्पर्धा, चुनाव, प्रतिस्पर्धा आदि में विजय आसान होती है...
      अष्टमस्थ वृश्चिक राशी ...स्वामी मंगल 
      अष्टमस्थ वृश्चिक राशी हो तो मंगल लग्नेश और अष्टमाधिपति बनता है...ऐसे में अष्टम भाव पर शुभ प्रभाव हो तो जातक की आयु दीर्घ होती है ...यदि अष्टम भाव व अष्टमाधिपति पाप प्रभाव में हो तो उसका मस्तिष्क विकृत हो जाता है तथा वह आत्म घात कर लेता..जितने भी आत्महत्या के केस होते हैं मंगल उसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कारन मंगल उत्तेजना, आवेश, अहंकार का पर्याय है...अत: ये जातक अथवा जातिका को उकसाता है ....यदि शनि की दृष्टि लग्न और मंगल पर हो तो जातक दुसरे की हत्या कर सकता है ...ऐसे जातक की इच्छा बहुत कुछ खाने की होती है....वह विरुद्ध आहार का भक्षण करता है ..फलत रुधिर विकार (खून में इन्फेक्सन) होता है ..पित्त दूषित हो जाता है तथा शारीर में घाव हो जाने से उसमे कीड़े उत्पन्न होने का भय होता है और यही उसकी मृत्यु का कारण हो सकता है ...अत: ऐसे जातक को जिनका मंगल, शनि और राहु ख़राब हो तुरंत उसकी शांति करा लेनी चाहिए और अपने आचरण में यथा संभव सुधर लाना चाहिए....ॐ शांति :

      ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      अष्टमस्थ धनु राशी...स्वामी गुरु 

      यदि अष्टम भाव में धनु राशी हो तो गुरु आएश और अष्टमेश बनता है यदि गुरु की स्थिति बलवान हो अवं अष्टम भाव पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक विदेशवास करता है तह वहां अच्छा धन अर्जित करता है ...उसकी आयु दीर्घ होती है तथा वह लम्बी बीमारियों से बचा रहता है पाप प्रबह्व में आया गुरु भिन्न-भिन्न रोग उत्पन्न करता है ...यदि कुंडली का अष्टम भाव या अष्टमस्थ मगल से प्रभावित हो तो जातक को विविध रोग होते हैं यदि बुध से प्रभावित हो तो प्राय: कर्ण रोग होते हैं कर्न्स्रव अथवा कर्ण शूल से पीड़ा होती यदि शुक्र से सम्बंधित हो तो उदरशूल से मृत्यु तक संभव है यदि स्वराशी का हो तो बहुभोजन के कारण अजीर्ण रोग हो जाता है सूर्य से प्रभावित हो तो विशुचिका, कब्ज जहर आदि से पीड़ा होती है ....सूर्य राहु का योग अष्टम में हो तो पिता अथवा स्वयं की किसी षट्कर्म द्वारा मृत्यु संभव....
      अष्टमस्थ मकर राशी स्वामी शनि 
      यदि अष्टम भाव में मकर राशी हो तो शनि अष्टमेश व नवमेश बनता है ...नवमेश होने जहाँ वह शुभ है वहीँ अष्टमेश हो जाने से प्रबल पापी भी है शनि का बलवान होना जातक को लम्बी आयु देता है...मृत्यु के समय उसका चित्त स्थिर होता है तथा बिना किसी व्याधि के अपने समय पर ही मृत्यु होती है ऐसे जातक की रूचि आध्यात्म, परा विद्या, साधना, विभिन्न मंत्रो को सिद्धहस्त करने की खूबी होती है...उसे एकाकी जीवन पसंद होता है ऐसे जातक को उच्च पद की प्राप्ति है यदि शनि निर्बल हो आयु को क्षीण करता है ऐसा जातक वायु रोगों से पीड़ित होता है ..ऐसे जातक के निर्बल शनि के कारण उस पर नकारात्मक उर्जा का प्रभाव ज्यादा रहता है फलत: ऐसे जातक को कुछ अप्राकर्तिक पीड़ा जिसे आम भाषा में उपरी का असर बोलते हैं...को झेलना पड़ सकता है ,,इसके साथ उदार शूल, अर्श, भगंदर जैसे रोग भी उसे घेरे रहते हैं.....शिव ॐ

      ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      अष्टमस्थ कुम्भ राशी..... स्वामी शनि ....

      यदि अष्टम में कुम्भ राशी हो तो शनि सप्तमेश व अष्टमेश बनता है इसकी बलवान स्थिति जातक को दीर्घायु बनाती है ...वहीँ दाम्पत्य जीवन में अशुभता भी लती है तथा जीवन साथी स्वाभाव उग्र, रुखा तथा कर्कश वाणी बोलने वाला मिलता है पति या पत्नी के द्वारा अपमानित होने के योग बनते हैं...यदि शनि निर्बल अवस्था में हो तो अपनी दशा -अन्तर्दशा में अशुभ फल देता है ...शुक्र की दशा में शनि का अंतर अथवा शनि की दशा में शक्र का अंतर जातक को दिवालिया बना देता है....जातक के घर को अग्नि से जल जाने का भय रहता है ...तथा उसकी संपत्ति नष्ट हो जाती है ...अत्यधिक श्रम करने का बाद भी जातक नवीन घर नहीं बना पाता तथा अधिक श्रम करने से, वायु के दूषित होने से तथा घावों के साद जाने से मृत्यु की सम्भावना रहती है ...
      अष्टमस्थ मीन राशी...स्वामी गुरु 
      यदि अष्टम भाव में मीन राशी हो तो गुरु पंचमेश व अष्टमेश बनता है गुरु की बलवान स्थिति जातक को पुत्र सुख देती है लेकिन निर्बल गुरु संतान से अपमानित करता है...गुरु बलवान हो तो जातक की आयु लम्बी होती है...निर्बल अवस्था में स्थित गुरु और मीन राशी पर पाप गृह की दृष्टि जातक को उसकी जनम भूमि में नहीं रहने देती...उसे विदेशवास करना पड़ता है...आयु के उत्तर भाग में प्राय: उदार रोग व अतिसार रोग होने की प्रबल सम्भावना होती है...पित्त की थेली या पित्त के दूषित हो जाने ..पित्त ज्वर भी मृत्यु का कारण बनता है...जल में डूबकर मृत्यु की सम्भावना को नाकारा नहीं जा सकता ...तीसरा ...छटा और आठवां भाव क्रमश: एक दुसरे से प्रबल पापी भाव होते हैं...अत: यहाँ शुभ गृह या पाप गृह की स्थिति, दृष्टि, व भावेश की स्थिति..बहुत महत्वपूर्ण होती है....