सप्तम भावस्थ विभिन्न गृह फल......30/12/2012
सूर्य .....यदि सप्तम भाव में सूर्य हो तो जातक के विवाह में विलम्ब होता है दाम्पत्य जीवन का पूर्वार्ध प्राय: कलहपूर्ण होता है पति-पत्नी के बीच में विचार वैमनस्य रहता है ...मिथुन, तुला कुम्भ का सूर्य जातक को शिक्षा विभाग से सम्बंधित करता है तथा इसी में उसकी उन्नति होती है ऐसा जातक कुशल नीतिज्ञ होता है तथा उसे एक या दो संतान होती है..जीवन के पूर्वार्ध में ही जातक के चश्मा चढ़ने की नौबत आ जाती है ...अग्नि राशी का सूर्य विवाह में देरी करता है अपवाद रूप से दो विवाह होते हैं ऐसे जातक के सर पर तालू में बल कम होते हैं...ऐसे जातक की प्रवृत्ति स्वतंत्र रहने की होती है...यदि सूर्य स्त्री राशियों में हो तो व्यापार से लाभ मिलता है..और राजनीती में जाने से सफलता मिलती है ...
यदि सूर्य जल राशी का हो तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नति करता है सिंचाई विभाग में अधिकारी होता है अथवा विज्ञानं के क्षेत्र में चला जाता है...पुरुष राशी का सूर्य हो तो जीवन पर्यंत उतर-चढाव बने रहते हैं...संतान कम होती है ...
स्त्री राशी का सूर्य अधिक संतान देता है प्राय: सप्तमस्थ सूर्य के निम्न फल अनुभव में आते हैं पति अत्थ्वा पत्नी प्रभावशाली, व्यव्हार कुशल, आपातकाल में एक दुसरे के सहायक, अतिथि सेवक, तथा नौकरों से प्रेम से कार्य करने में कुशल...ऐसे जातकों को उद्योग या साझेदारी में भी सफलता मिलती है
मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, और कुम्भ ....ये पुरुष राशी होती हैं ...और वृषभ, कर्क,कन्या,वृश्चिक,मकर, और मीन स्त्री संज्ञक राशी...
मेष, कर्क, तुला, मकर...ये चर राशी
वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ ..ये स्थिर राशी
मिथुन, कन्या, धनु, और मीन....द्वि स्वाभाव राशी..
मेष, सिंह धनु,....अग्नि राशी..
कर्क, वृश्चिक, और मीन.....जल तत्व..
वृषभ, कन्या और मकर....पृथ्वी तत्व...
मिथुन, तुला, और कुम्भ.....वायु तत्व...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ चंद्रमा फल....
यदि सप्तम भाव में चन्द्र हो तो जातक को दाम्पत्य जीवन का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता है ..उच्चस्थ चन्द्र द्विभार्य योग बनाता है ...अर्थत जातक या जातिका के वैवाहिक जीवन में कुछ अड़चन ..परेशानी, मत विभिन्नता के कारन पति-पत्नी का अलग रहना...अथवा तलक जैसी नौबत आती हैं ..अत: २१ से २४ वर्ष की आयु तक विवाह से बचे अथवा कोई उपाय करें....हालाँकि ऐसे जातक का विवाह के शीघ्र बाद भाग्योदय होता है और पत्नी के रहने तक उन्नति होती रहती है ..पत्नी से अलगाव या मृत्यु पश्चत स्थिति विपरीत बन जाती है ...ऐसे जातक के जीविका के साधन भी बदलते रहते हैं ..चन्द्र चंचल होता है सौर मंडल में सर्वाधिक गति वाला गृह होने के कारन मन, धन का कारक होता है...जीवन साथी का चंचल होना स्वाभाविक है...और यहीं से भूले प्रारंभ होती हैं...इसलिए इस उपरोक्त समय से बचना चाहिए अथवा कोई उपाय कर लेना चाहिए....ऐसे जातक मन, व्यवसाय, नौकरी कुछ भी स्थिर नहीं रह पाती ...
जिस जातक की कुंडली में सप्तम स्थान में चन्द्र हो उसे किरणे की दुकान, दूध, मेडिकल स्टोर , होटल, ढाबा, बेकरी , बीमे का कार्य, चंडी, इत्यादी का कार्य लाभप्रद रहता है...और अगर सप्ताम्स्थ चन्द्र पर गुरु जैसे सात्विक गृह की दृष्टि हो तो सोने पे सुहागा...उपरोक्त कार्यो के आलावा प्रिंटिंग, प्रकाशन,किसी सन्स्थ का अध्यक्ष,..आदि...अत: ऐसे जातको को इस और विचार करना चाहिए...पुरुष राशी का चन्द्र स्व-पत्नी में आसक्ति बनाये रखता है ...स्त्री राशी का चन्द्र व्यभिचार की और आकृष्ट करता है ...यदि चन्द्र अग्नि राशी का हो तो जीवन साथी का चेहरा गोल होता है और कुछ समय पश्चत तुन्दालता आती है...जातक majakiya swabhv का होता है..हर समय खुश रहने वाल...लेकिन भावुक...भी होता है......वायु तत्व का चन्द्र हो तो जीवन साथी दार्शनिक, ज्ञानी और प्रभावशाली होता है
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ मंगल फल ...
सप्तम भाव में मंगल हो तो जातक की स्त्री और स्वयं जातक दोनों ही उग्र स्वाभाव के होते हैं...अपने आपको एक दुसरे श्रेष्ठ दिखाना इनकी आदत और दिनचर्या में शामिल होती है....अपनी कही घटिया बात..अल्प ज्ञान की बात को सर्वोपरि मन न और दुसरो की कही हुई उत्तम बात में निम्नता देखना इनकी खासियत होती है ...ये मगली योग भी कहलाता है मंगली योग (१, ४, ७, ८, १०, 12) एसा मंगल होने से योग बनता है ...ऐसे जातक के जीवन में दाम्पत्य जीवन में कलह -कलेश का वातावरण बन न कोई बड़ी बात नहीं...अहेंकर इतना की अपने आगे किसी को कुछ न समझना ...और अपना प्रभुत्व स्थापित करना इनका मेन उद्देश्य होता है ....
मगल सप्तम भाव में किशी भी राशी का हो...एक फल बहुत अच्छे से समझ आया की ऐसा जातक हर कम करने को तत्पर रहता है लेकिन उसे सफलता पूर्वक पूरा करने में सक्षम नहीं होता विघ, बाधा, रोक-रूकावट इतनी होती हैं की उसकी हिम्मत पस्त हो जाती है.....जिन लोगो को ऐसा अनुभव हो उन्हें तत्काल कोई शुभ मुहूर्त देख मंगल के जप करवा इसकी शांति का लेनी चाहिए ...और अपने मित्रो, अपने से छोटो को प्रेम पूर्वक बोलना चाहिए...अगर वे किसी भी प्रकार अपने किसी कार्य -उद्योग में सफल हो जाते हैं तो प्रतिपक्षियो से स्पर्धा...झगडे टंटे चलते रहते हैं ....
यदि मंगल अग्नि राशी का हो तो प्रेस, का धंधा लाभ दायक रहता है .....प्रथ्वी तत्व का हो तो भवन निर्माण, खेतीबाड़ी, का व्यवसाय...लाभ दायक..., वायु तत्व में हो तो वाहन चालक, वाहन को मरम्मत करने का कम, वायु यान चलाने का कम अर्थात पायलट तथा जल तत्व का मंगल हो सर्जन और इन्जिनिएरिंग जैसे कार्य लाभदायक रहते हैं ..यदि स्त्री राशी का सप्त्मष्ठ मंगल हो तो जातक संकटकाल में घबराता है ...लेकिन पुरुष राशी में हो तो धैर्यशाली व सहिष्णु होता है ऐसे जातक के मित्र बहुत कम होते हैं, पत्निसुख कम तथा साले का सुख भी अल्प होता है..... इस भाव का मंगल डाक्टरों , सर्जन , पुलिस अधिकारीयों के लिए शुभ फलदायक होता है फैज्दारी के वकीलों को ऐसा मंगल यशोभागी बनता है ..इतने पर भी जातक में कामेच्छा तीव्र होती है ..वो कोई अनुचित कार्य करे तो वो उजागर हो जाता है ...झगडे झंझट तो चलते ही रहते हैं....क्रमश:
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ बुध का फल......
यदि सप्तमस्थ बुध हो तो जातक को स्त्री सुख तो मिलता है ..लेकिन रति सुख के समय ऐसा जातक शीघ्र ही स्खलित हो जाता है ..विवाह के समय झगडे चलते हैं ...ऐसा जातक लेखक हो तो समय संकट में भी व्यतीत होता है हाँ, स्त्री के मामले में जातक सौभाग्यशाली कहा जा सकता है .....धन संग्रह करने की रूचि उसमे स्वाभाविक होती है तथा पति के प्रत्येक कार्य में उसे सहयोग करती है ऐसे जातक की स्त्री पुरुषाकृति की तथा कर्कश वाणी बोलने वाली होती है ...
सप्त्मस्थ गुरु का फल...
यदि गुरु सप्तमस्थ हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं ऐसा प्राचीन मनीषयों का मत है लेकिन अनुभव में शुभ फल कम अशुभ फल अधिक मिले हैं अग्नि राशियों और मिथुन राशी का सप्त्मस्थ गुरु शिक्षा के लिए शुभ फलदाता होता है कारण मिथुन राशी बौद्धिक राशी के अंतर्गत आती है ऐसा जातक पढ़ाकू होता है ..पत्नी शुद्ध सात्विक विचारो की मलती है ...ऐसा जाता उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक, न्यायाधीश , या वकील बन जाता है शिक्षा-विभाग में नौकरी करने वालो तथा वकीलों के लिए यह योग शुभ होता है ..जल राशी या कन्या राशी में रहने पर बुध सांसारिक सुख में न्यूनता लता है ..प्राय: पति-पत्नी में सम्बन्ध मधुर नहीं रहते यदि गुरु अशुभ प्रभाव में हो तो जीवन-साथी जातक को छोड़ कर भाग जाता है या तलक की नौबत आ जाती है...यदि गुरु शनि से प्रभावित हो तो जातक को विवाह न करने की इच्छा बनती है ...यदि राहु साथ में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग निष्पन्न हो जाता है अपवाद रूप शादी हो भी जाये तो पति-पत्नी में अलगाव अथवा तलक की नौबत आ जाती है...लेकिन तलक नहीं होता...एक-दुसरे से अलग रहते हैं....नीच का अथवा तुला राशी में स्थित गुरु द्विभार्या योग बनत है....यानि दो विवाह होते हैं...पुएरुष राशी का गुरु हो तो जातक पत्नी को मात्र भोग्या समझता है ...जातक की दृष्टि में पत्नी का दर्जा निम्न श्रेणी का नौकर जैसा होता है...वो अपनी पत्नी को मात्र कामवासना शांत करने का साधन समझता है....यदि स्त्री राशी का गुरु हो तो जातक का व्यापर की और रुझान होता है तथा वह अपनी पत्नी और बच्चों से अत्यधिक प्रेम करता है पत्नी भी पतिपरायण होती है..तहत प्रत्येक कार्यों में मंत्री की भांति सलाह देती है सेवक की तरह सेवा करती है और माता की तरह पालन करती है ऐसे जातक को मध्य आयु में विधुर का जीवन व्यतीत करना पड़ता है ....क्रमश:
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ शुक्र फलम....
Yadi सप्तम भाव में शुक्र हो तो जातक के चरित्र को छोड़ कर अन्य फल शुभ ही होते हैं...कुंडली में शुक्र धनेश और सप्तमेश होता है, फलत: सप्तम भाव में वह बलवान हो जाता है..(शुक्र सप्तम भाव का प्रबल कारक है ) यदि शुक्र उच्च का हो तो अमीर घराने की एवं सुंदर पत्नी मिलती है ...मेष, मिथुन और तुला राशी हो तो पुरुष की भांति सुन्दरता लिए पत्नी मिलती है...जो व्यव्हार कुशल, विदुषी, एवं चतुर होती है तथा कुटुम्बी जानो के साथ प्रेमपूर्वक रहती है ऐसा जातक अपनी पत्नी को प्राणों से भी अधिक प्रिय समझता है ...पत्नी भी जातक पर अपना अधिकार जमा लेती है तथा अल्प संतान की ही माता बनती है ...ऐसी स्त्री को अछ्छे से पता होता है की उसे अपने पति को कैसे वश में करना है अत: वह पूर्णता पति पर अधिकार जमा लेती है...ऐसा जातक अत्यधिक कामुकता के कारन अपना स्वास्थ्य क्षीण कर लेता है ...यदि स्जिघ और कुम्भ राशी में शुक्र हो तो पत्नी माध्यम कद और स्थूल देह की, बुद्धिमती तथा प्रसन्न रहने वाली, धनु राशी में शुक्र हो तो लम्बे कद की, सुंदर धैर्य रखने वाली तथा बनाव-श्रृंगार को अधिक महत्त्व देने वाली,, जल राशी में शुक्र हो तो स्वार्थी, कलह प्रिय व कुटुंब से अलग रहने वाली तथा खुला हाथ खर्च करने वाली व सत्ता अपने हाथ में रखने वाली होती है....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्त्मस्थ शनि फलम...
यदि सप्तम भाव में शनि हो तो जीवन साथी देर से अथवा बड़ी आयु वाला या विजातीय होता है ...स्त्री की कुंडली में शनि सप्तम में हो तो विधुर हो गए व्यक्ति के साथ विवाह होता है...पति आयु में बड़ा, धनी, मणि, और प्रेम करने वाल होता है...यहाँ ज्ञातव्य है की शनि प्रेम के प्यासे होते हैं उसी तरह शनि प्रधान जातक आजीवन प्रेम और अपनेपन के लिए तरसते रहते हैं....१००० अपनों की भीड़ में भी अपने को अकेला पाते हैं.... जल राशी अथवा अग्नि राशी का शनि एक ही विवाह का योग बनत है विचार वैमनस्य होने पर वाकयुद्ध होने तक ही नौबत आती है किन्तु फिर मेल-मिलाप हो जाता है ...जीवन साथी सुहृदय होने से गृहस्थ सुख अच्छा मिलता है लेकिन अर्थाभाव बना रहता है ..शनि आभाव के सूचक है अत: जिस भाव में स्थित हो उसकी वृद्धि ...और जिस भाव पर उनकी दृष्टि (तृतीय , सप्तम, दशम.) हो उस भाव का नाश करते हैं...ऐसे जातक का येन-केन प्रकरेण जीवन व्यतीत होता है लेकिन अंतिम परिणाम सुखद होता है क्युकी ऐसा जाता अंत में निखर कर शुद्ध कंचन बन जाता है....यही शनि की सबसे बड़ी खूबी है है की वे इन्सान को समस्त कष्ट देकर उसकी धैर्य शक्ति बढ़ाते हैं और उसे स्वर्ण से कंचन बना कर बेशकीमती बना देते हैं अत: शनि प्रदत्त कष्टों से किसी को घबराना नहीं चाहिए...जीवन के तमाम उतार-चढाव बने रहते हैं ...स्व-राशी का शनि अथवावृषभ एवं कन्या का शनि द्विभार्य योग.(दो विवाह का ) बनता है ऐसी अवस्था में तलाक हो कर पुन: विवाह होता है ...मिथुन, तुला, कुम्भ, में शनि होने से संतान कुछ देर से अथवा संतान के जनम में काफी अंतर होता है...उच्च का शनि दुसरे विवाह की स्थिति में श्रेष्ठ रहता है ....
सप्त्मस्थ राहु फलम
प्राय: सप्तम भाव में राहु के अशुभ फल ही प्राप्त होते हैं...वाही स्थिति केतु की होती है ...आचार्यो के मतानुसार पूर्व जनम के दुस्कृत्यो का परिणाम सप्तम का राहु होता है ....अशुभ कर्मो के परिणाम स्वरुप राहु कुंडली में सप्त्मस्थ होता है ...ऐसे जातक का विवाह नहीं होता अथवा विवाह हो भी जाये तो प्रेम नहीं रहता ...ऐसा विवाह न हो कर...विवाह का पवित्र बंधन न हो कर मात्र एक देह वासना शांत करने का अनुबंध माध्यम होता है ..हाँ स्त्री राशी का राहु शुभ फल देता है विवाह शीघ्र हो जाता है और प्रेम भी बना रहता है ...सामान्यता सप्त्मस्थ राहु के निम्न फल अनुभव में आते हैं ...देर से विवाह, अंतरजातीय विवाह पुनर्भु स्त्री , अधिक आयु वाली स्त्री, विधवा से अवैध सम्बन्ध जोड़ना या विवाह होना अदि ...
सूर्य .....यदि सप्तम भाव में सूर्य हो तो जातक के विवाह में विलम्ब होता है दाम्पत्य जीवन का पूर्वार्ध प्राय: कलहपूर्ण होता है पति-पत्नी के बीच में विचार वैमनस्य रहता है ...मिथुन, तुला कुम्भ का सूर्य जातक को शिक्षा विभाग से सम्बंधित करता है तथा इसी में उसकी उन्नति होती है ऐसा जातक कुशल नीतिज्ञ होता है तथा उसे एक या दो संतान होती है..जीवन के पूर्वार्ध में ही जातक के चश्मा चढ़ने की नौबत आ जाती है ...अग्नि राशी का सूर्य विवाह में देरी करता है अपवाद रूप से दो विवाह होते हैं ऐसे जातक के सर पर तालू में बल कम होते हैं...ऐसे जातक की प्रवृत्ति स्वतंत्र रहने की होती है...यदि सूर्य स्त्री राशियों में हो तो व्यापार से लाभ मिलता है..और राजनीती में जाने से सफलता मिलती है ...
यदि सूर्य जल राशी का हो तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नति करता है सिंचाई विभाग में अधिकारी होता है अथवा विज्ञानं के क्षेत्र में चला जाता है...पुरुष राशी का सूर्य हो तो जीवन पर्यंत उतर-चढाव बने रहते हैं...संतान कम होती है ...
स्त्री राशी का सूर्य अधिक संतान देता है प्राय: सप्तमस्थ सूर्य के निम्न फल अनुभव में आते हैं पति अत्थ्वा पत्नी प्रभावशाली, व्यव्हार कुशल, आपातकाल में एक दुसरे के सहायक, अतिथि सेवक, तथा नौकरों से प्रेम से कार्य करने में कुशल...ऐसे जातकों को उद्योग या साझेदारी में भी सफलता मिलती है
मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, और कुम्भ ....ये पुरुष राशी होती हैं ...और वृषभ, कर्क,कन्या,वृश्चिक,मकर, और मीन स्त्री संज्ञक राशी...
मेष, कर्क, तुला, मकर...ये चर राशी
वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ ..ये स्थिर राशी
मिथुन, कन्या, धनु, और मीन....द्वि स्वाभाव राशी..
मेष, सिंह धनु,....अग्नि राशी..
कर्क, वृश्चिक, और मीन.....जल तत्व..
वृषभ, कन्या और मकर....पृथ्वी तत्व...
मिथुन, तुला, और कुम्भ.....वायु तत्व...
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ चंद्रमा फल....
यदि सप्तम भाव में चन्द्र हो तो जातक को दाम्पत्य जीवन का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता है ..उच्चस्थ चन्द्र द्विभार्य योग बनाता है ...अर्थत जातक या जातिका के वैवाहिक जीवन में कुछ अड़चन ..परेशानी, मत विभिन्नता के कारन पति-पत्नी का अलग रहना...अथवा तलक जैसी नौबत आती हैं ..अत: २१ से २४ वर्ष की आयु तक विवाह से बचे अथवा कोई उपाय करें....हालाँकि ऐसे जातक का विवाह के शीघ्र बाद भाग्योदय होता है और पत्नी के रहने तक उन्नति होती रहती है ..पत्नी से अलगाव या मृत्यु पश्चत स्थिति विपरीत बन जाती है ...ऐसे जातक के जीविका के साधन भी बदलते रहते हैं ..चन्द्र चंचल होता है सौर मंडल में सर्वाधिक गति वाला गृह होने के कारन मन, धन का कारक होता है...जीवन साथी का चंचल होना स्वाभाविक है...और यहीं से भूले प्रारंभ होती हैं...इसलिए इस उपरोक्त समय से बचना चाहिए अथवा कोई उपाय कर लेना चाहिए....ऐसे जातक मन, व्यवसाय, नौकरी कुछ भी स्थिर नहीं रह पाती ...
जिस जातक की कुंडली में सप्तम स्थान में चन्द्र हो उसे किरणे की दुकान, दूध, मेडिकल स्टोर , होटल, ढाबा, बेकरी , बीमे का कार्य, चंडी, इत्यादी का कार्य लाभप्रद रहता है...और अगर सप्ताम्स्थ चन्द्र पर गुरु जैसे सात्विक गृह की दृष्टि हो तो सोने पे सुहागा...उपरोक्त कार्यो के आलावा प्रिंटिंग, प्रकाशन,किसी सन्स्थ का अध्यक्ष,..आदि...अत: ऐसे जातको को इस और विचार करना चाहिए...पुरुष राशी का चन्द्र स्व-पत्नी में आसक्ति बनाये रखता है ...स्त्री राशी का चन्द्र व्यभिचार की और आकृष्ट करता है ...यदि चन्द्र अग्नि राशी का हो तो जीवन साथी का चेहरा गोल होता है और कुछ समय पश्चत तुन्दालता आती है...जातक majakiya swabhv का होता है..हर समय खुश रहने वाल...लेकिन भावुक...भी होता है......वायु तत्व का चन्द्र हो तो जीवन साथी दार्शनिक, ज्ञानी और प्रभावशाली होता है
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ मंगल फल ...
सप्तम भाव में मंगल हो तो जातक की स्त्री और स्वयं जातक दोनों ही उग्र स्वाभाव के होते हैं...अपने आपको एक दुसरे श्रेष्ठ दिखाना इनकी आदत और दिनचर्या में शामिल होती है....अपनी कही घटिया बात..अल्प ज्ञान की बात को सर्वोपरि मन न और दुसरो की कही हुई उत्तम बात में निम्नता देखना इनकी खासियत होती है ...ये मगली योग भी कहलाता है मंगली योग (१, ४, ७, ८, १०, 12) एसा मंगल होने से योग बनता है ...ऐसे जातक के जीवन में दाम्पत्य जीवन में कलह -कलेश का वातावरण बन न कोई बड़ी बात नहीं...अहेंकर इतना की अपने आगे किसी को कुछ न समझना ...और अपना प्रभुत्व स्थापित करना इनका मेन उद्देश्य होता है ....
मगल सप्तम भाव में किशी भी राशी का हो...एक फल बहुत अच्छे से समझ आया की ऐसा जातक हर कम करने को तत्पर रहता है लेकिन उसे सफलता पूर्वक पूरा करने में सक्षम नहीं होता विघ, बाधा, रोक-रूकावट इतनी होती हैं की उसकी हिम्मत पस्त हो जाती है.....जिन लोगो को ऐसा अनुभव हो उन्हें तत्काल कोई शुभ मुहूर्त देख मंगल के जप करवा इसकी शांति का लेनी चाहिए ...और अपने मित्रो, अपने से छोटो को प्रेम पूर्वक बोलना चाहिए...अगर वे किसी भी प्रकार अपने किसी कार्य -उद्योग में सफल हो जाते हैं तो प्रतिपक्षियो से स्पर्धा...झगडे टंटे चलते रहते हैं ....
यदि मंगल अग्नि राशी का हो तो प्रेस, का धंधा लाभ दायक रहता है .....प्रथ्वी तत्व का हो तो भवन निर्माण, खेतीबाड़ी, का व्यवसाय...लाभ दायक..., वायु तत्व में हो तो वाहन चालक, वाहन को मरम्मत करने का कम, वायु यान चलाने का कम अर्थात पायलट तथा जल तत्व का मंगल हो सर्जन और इन्जिनिएरिंग जैसे कार्य लाभदायक रहते हैं ..यदि स्त्री राशी का सप्त्मष्ठ मंगल हो तो जातक संकटकाल में घबराता है ...लेकिन पुरुष राशी में हो तो धैर्यशाली व सहिष्णु होता है ऐसे जातक के मित्र बहुत कम होते हैं, पत्निसुख कम तथा साले का सुख भी अल्प होता है..... इस भाव का मंगल डाक्टरों , सर्जन , पुलिस अधिकारीयों के लिए शुभ फलदायक होता है फैज्दारी के वकीलों को ऐसा मंगल यशोभागी बनता है ..इतने पर भी जातक में कामेच्छा तीव्र होती है ..वो कोई अनुचित कार्य करे तो वो उजागर हो जाता है ...झगडे झंझट तो चलते ही रहते हैं....क्रमश:
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ बुध का फल......
यदि सप्तमस्थ बुध हो तो जातक को स्त्री सुख तो मिलता है ..लेकिन रति सुख के समय ऐसा जातक शीघ्र ही स्खलित हो जाता है ..विवाह के समय झगडे चलते हैं ...ऐसा जातक लेखक हो तो समय संकट में भी व्यतीत होता है हाँ, स्त्री के मामले में जातक सौभाग्यशाली कहा जा सकता है .....धन संग्रह करने की रूचि उसमे स्वाभाविक होती है तथा पति के प्रत्येक कार्य में उसे सहयोग करती है ऐसे जातक की स्त्री पुरुषाकृति की तथा कर्कश वाणी बोलने वाली होती है ...
सप्त्मस्थ गुरु का फल...
यदि गुरु सप्तमस्थ हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं ऐसा प्राचीन मनीषयों का मत है लेकिन अनुभव में शुभ फल कम अशुभ फल अधिक मिले हैं अग्नि राशियों और मिथुन राशी का सप्त्मस्थ गुरु शिक्षा के लिए शुभ फलदाता होता है कारण मिथुन राशी बौद्धिक राशी के अंतर्गत आती है ऐसा जातक पढ़ाकू होता है ..पत्नी शुद्ध सात्विक विचारो की मलती है ...ऐसा जाता उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक, न्यायाधीश , या वकील बन जाता है शिक्षा-विभाग में नौकरी करने वालो तथा वकीलों के लिए यह योग शुभ होता है ..जल राशी या कन्या राशी में रहने पर बुध सांसारिक सुख में न्यूनता लता है ..प्राय: पति-पत्नी में सम्बन्ध मधुर नहीं रहते यदि गुरु अशुभ प्रभाव में हो तो जीवन-साथी जातक को छोड़ कर भाग जाता है या तलक की नौबत आ जाती है...यदि गुरु शनि से प्रभावित हो तो जातक को विवाह न करने की इच्छा बनती है ...यदि राहु साथ में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग निष्पन्न हो जाता है अपवाद रूप शादी हो भी जाये तो पति-पत्नी में अलगाव अथवा तलक की नौबत आ जाती है...लेकिन तलक नहीं होता...एक-दुसरे से अलग रहते हैं....नीच का अथवा तुला राशी में स्थित गुरु द्विभार्या योग बनत है....यानि दो विवाह होते हैं...पुएरुष राशी का गुरु हो तो जातक पत्नी को मात्र भोग्या समझता है ...जातक की दृष्टि में पत्नी का दर्जा निम्न श्रेणी का नौकर जैसा होता है...वो अपनी पत्नी को मात्र कामवासना शांत करने का साधन समझता है....यदि स्त्री राशी का गुरु हो तो जातक का व्यापर की और रुझान होता है तथा वह अपनी पत्नी और बच्चों से अत्यधिक प्रेम करता है पत्नी भी पतिपरायण होती है..तहत प्रत्येक कार्यों में मंत्री की भांति सलाह देती है सेवक की तरह सेवा करती है और माता की तरह पालन करती है ऐसे जातक को मध्य आयु में विधुर का जीवन व्यतीत करना पड़ता है ....क्रमश:
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ शुक्र फलम....
Yadi सप्तम भाव में शुक्र हो तो जातक के चरित्र को छोड़ कर अन्य फल शुभ ही होते हैं...कुंडली में शुक्र धनेश और सप्तमेश होता है, फलत: सप्तम भाव में वह बलवान हो जाता है..(शुक्र सप्तम भाव का प्रबल कारक है ) यदि शुक्र उच्च का हो तो अमीर घराने की एवं सुंदर पत्नी मिलती है ...मेष, मिथुन और तुला राशी हो तो पुरुष की भांति सुन्दरता लिए पत्नी मिलती है...जो व्यव्हार कुशल, विदुषी, एवं चतुर होती है तथा कुटुम्बी जानो के साथ प्रेमपूर्वक रहती है ऐसा जातक अपनी पत्नी को प्राणों से भी अधिक प्रिय समझता है ...पत्नी भी जातक पर अपना अधिकार जमा लेती है तथा अल्प संतान की ही माता बनती है ...ऐसी स्त्री को अछ्छे से पता होता है की उसे अपने पति को कैसे वश में करना है अत: वह पूर्णता पति पर अधिकार जमा लेती है...ऐसा जातक अत्यधिक कामुकता के कारन अपना स्वास्थ्य क्षीण कर लेता है ...यदि स्जिघ और कुम्भ राशी में शुक्र हो तो पत्नी माध्यम कद और स्थूल देह की, बुद्धिमती तथा प्रसन्न रहने वाली, धनु राशी में शुक्र हो तो लम्बे कद की, सुंदर धैर्य रखने वाली तथा बनाव-श्रृंगार को अधिक महत्त्व देने वाली,, जल राशी में शुक्र हो तो स्वार्थी, कलह प्रिय व कुटुंब से अलग रहने वाली तथा खुला हाथ खर्च करने वाली व सत्ता अपने हाथ में रखने वाली होती है....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्त्मस्थ शनि फलम...
यदि सप्तम भाव में शनि हो तो जीवन साथी देर से अथवा बड़ी आयु वाला या विजातीय होता है ...स्त्री की कुंडली में शनि सप्तम में हो तो विधुर हो गए व्यक्ति के साथ विवाह होता है...पति आयु में बड़ा, धनी, मणि, और प्रेम करने वाल होता है...यहाँ ज्ञातव्य है की शनि प्रेम के प्यासे होते हैं उसी तरह शनि प्रधान जातक आजीवन प्रेम और अपनेपन के लिए तरसते रहते हैं....१००० अपनों की भीड़ में भी अपने को अकेला पाते हैं.... जल राशी अथवा अग्नि राशी का शनि एक ही विवाह का योग बनत है विचार वैमनस्य होने पर वाकयुद्ध होने तक ही नौबत आती है किन्तु फिर मेल-मिलाप हो जाता है ...जीवन साथी सुहृदय होने से गृहस्थ सुख अच्छा मिलता है लेकिन अर्थाभाव बना रहता है ..शनि आभाव के सूचक है अत: जिस भाव में स्थित हो उसकी वृद्धि ...और जिस भाव पर उनकी दृष्टि (तृतीय , सप्तम, दशम.) हो उस भाव का नाश करते हैं...ऐसे जातक का येन-केन प्रकरेण जीवन व्यतीत होता है लेकिन अंतिम परिणाम सुखद होता है क्युकी ऐसा जाता अंत में निखर कर शुद्ध कंचन बन जाता है....यही शनि की सबसे बड़ी खूबी है है की वे इन्सान को समस्त कष्ट देकर उसकी धैर्य शक्ति बढ़ाते हैं और उसे स्वर्ण से कंचन बना कर बेशकीमती बना देते हैं अत: शनि प्रदत्त कष्टों से किसी को घबराना नहीं चाहिए...जीवन के तमाम उतार-चढाव बने रहते हैं ...स्व-राशी का शनि अथवावृषभ एवं कन्या का शनि द्विभार्य योग.(दो विवाह का ) बनता है ऐसी अवस्था में तलाक हो कर पुन: विवाह होता है ...मिथुन, तुला, कुम्भ, में शनि होने से संतान कुछ देर से अथवा संतान के जनम में काफी अंतर होता है...उच्च का शनि दुसरे विवाह की स्थिति में श्रेष्ठ रहता है ....
सप्त्मस्थ राहु फलम
प्राय: सप्तम भाव में राहु के अशुभ फल ही प्राप्त होते हैं...वाही स्थिति केतु की होती है ...आचार्यो के मतानुसार पूर्व जनम के दुस्कृत्यो का परिणाम सप्तम का राहु होता है ....अशुभ कर्मो के परिणाम स्वरुप राहु कुंडली में सप्त्मस्थ होता है ...ऐसे जातक का विवाह नहीं होता अथवा विवाह हो भी जाये तो प्रेम नहीं रहता ...ऐसा विवाह न हो कर...विवाह का पवित्र बंधन न हो कर मात्र एक देह वासना शांत करने का अनुबंध माध्यम होता है ..हाँ स्त्री राशी का राहु शुभ फल देता है विवाह शीघ्र हो जाता है और प्रेम भी बना रहता है ...सामान्यता सप्त्मस्थ राहु के निम्न फल अनुभव में आते हैं ...देर से विवाह, अंतरजातीय विवाह पुनर्भु स्त्री , अधिक आयु वाली स्त्री, विधवा से अवैध सम्बन्ध जोड़ना या विवाह होना अदि ...