Friday, 21 December 2012



  • ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    शिव ॐ...
    अथ सप्तम भाव विवेचन
    किसी भी व्यक्ति की कुंडली में सप्तम भाव बहुत महत्वपूर्ण होता है ...कुंडली के चार केंद्र स्थानों में से ये भी एक केंद्र स्थान है ..इसे जाया भाव भी कहते हैं, मानव जीवन के प्रमुख आधार स्तम्भ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति इनमे से कामसुख का विचार सप्तम स्थान से ही किया जाता है, इस भाव का महत्त्व इसलिए भी है की प्रकृति को विस्तार देने में जातक का कितना योगदान है ...यह इस भाव से ज्ञात होता है स्त्री, डेली रोजगार, जातक को जीवन सहचरी या सहचर कैसा मिलेगा, कामशक्ति कैसी है, विवाह कब होगा, क्या वह प्रेम-विवाह होगा, पत्नी कैसे घर की होगी, पत्नी या पति का त्याग तो नहीं करना पड़ेगा, विवाह एक होगा की अधिक ससुराल पक्ष से धन मिलेगा की नहीं, तथा व्यापर वाणिज्य नानी, गुप्तांग, पुत्र के पौरुष , यात्रा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है ...
    इस भाव का विवेचन करने के लिए भाव, भाव में स्थित गृह, भाव का स्वामी, भाव पर ग्रहों की दृष्टि , भावेश कहाँ स्थित है तथा वह किस गृह से द्रष्ट है...महादशा-अन्तर्दशा अवं गोचर इत्यादि का भली प्रकार अध्यन कर लेना चाहिए....
    सप्तम भाव में मेष राशी ....स्वामी (मंगल). यदि सप्तम स्थान में मेष राशी हो तो जातक की पत्नी कर्कशा, क्रोध करने वाली, तथा इतनी तुनक मिजाज होती है की बात-बात पर रूठना, व्यर्थ में हठ करना , घर में कलह का वातावरण बनाये रखना उसके लिए सहज होता है...धन और आभूषण के प्रति उसका लगाव बहुत अधिक होता है... ऐसा जातक अपने स्वार्थ को ही प्रधानता देता है ...यह ठीक है की ऐसे जातक को गहराई से सोचने अवं तदनुरूप कार्य करने का पूर्ण ज्ञान होता है लेकिन उसका दृष्टिकोण मात्र स्वार्थपूर्ति ही रहता है...इस लग्न वालो के लिए शुक्र सप्तमेश व धनेश बनता है ...यदि मंगल बलवान हो तो जीवन सहचरी की आयु को बाधा देता है लेकिन यदि निर्बल या पाप प्रभाव में हो तो उसकी आयु काम करता है ...
  • "ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:"
    सप्तम भाव में वृषभ राशी...स्वामी शुक्र..
    यदि सप्तम भाव में वृषभ राशी हो तो शुक्र की स्थिति का विशेष अध्ययन करना चाहिए क्यूंकि वह भोग और कामवासना के भावो का अधिपति बनता है ...शुक्र की पंचम भाव, सप्तम भाव, अवं द्वादश भाव में स्थिति जातक को अति कामी बना देती है क्यूंकि ऐसी स्थिति में भोग की भावना के स्थान से उसका प्रगाढ़ सम्बन्ध बन जाता है...एअसे जातको को सुंदर जीवन साथी मिलता है किसी से कैसे व्यव्हार किया जाये यह उसे भली-भांति आता है ऐसे जातक की वाणी में शहद घुला रहता है तथा मौज-शौक के लिए धन एवं समय व्यय कर देना प्राय: अच्छा लगता है...यदि सप्तम में वृषभ का चन्द्र हो तो विवाह में जल्दबाजी ठीक नहीं होती...
    सप्तम भाव में मिथुन राशी स्वामी बुध .....
    यदि सप्तम भाव में मिथुन राशी हो तो बुध दो केंद्र स्थानों सप्तम एवं दशम का अधिपति बनता है लेकिन सौम्य गृह होने के कारण केन्द्राधिपत्य का दोष लग जाने के कारण पापी भी बन जाता है ...चूँकि भचक्र में बुध को कुमार माना जाता है इसलिए दाम्पत्य जीवन के प्रारंभ में ही अच्छे बुरे फल दे देता है ...यदि बुध शुभ प्रभाव में हो तो जातक का विवाह शीघ्त्र हो जाता है और दाम्पत्य जीवन में भी उसे विशेष अशुभ फल नहीं मिलते....यदि बुध अशुभ प्रभाव में हो तो तथा पुरुष की कुंडली में शुक्र और स्त्री की कुंडली में गुरु निर्बल हो तो विवाह में देरी होती है ...सप्तम, सप्तमेश व बुध का यदि राहु, शनि, व सूर्य जैसे प्रथक्कता जनक ग्रहों के साथ युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध हो तो शीघ्र ही तलक जैसी नौबत आ जाती है ...जीवन साथी का स्वाभाव नम्रता लिए रहता है...कमावेग अधिक होने पर भी पथभ्रष्ट होने की इच्छा नहीं होती....September 22
  • Devel Dublish

    शुभ प्रभात
    ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;
    सप्तम्स्थ कर्क राशी स्वामी चंद्रमा....
    यदि सप्तम भाव में कर्क राशी हो तो जीवन साथी सुंदर एवं कोमल प्रकृति वाला होता है ऐसे जातक का शारीर छरहरा तथा नयन नक्श तीखे होते हैं उसका व्यक्तित्व भावना प्रधान होता है यदि पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव में कर्क राशी हो तो तथा चंद्रमा सम राशी में बैठा हो तो उसे सुंदर मुखाकृति वाली शांतचित्त , कलंक रहित तथा अपने पति की सेवा में सदैव तत्पर रहने वाली पत्नी मिलती है ..जो इतनी भावुक होती है की थोड़ी सी कठोर बात भी उसके ह्रदय को कचोट जाती है उसे कठोर व्यव्हार से वश में नहीं किया जा सकता बल्कि प्यार और मीठे बोल से उसे अपना बनाया जा सकता है हवा में महल बनाना, दिवास्वप्न देखना, यथार्थ से मुह मोड़े रखना इसका स्वाभाव होता है जीवन की कठोर वास्तविकता को झेलना उसके वश में नहीं होता ...यदि चंद्रमा द्वादश भाव में अथवा पाप प्रभाव में हो तो जातक को विलासी, कामातुर एवं भोग प्रिय बना देता है... सप्ताम्स्थ कर्क राशी और चन्द्र के प्रभाव के कारन द्वि भार्या योग बनता है .....
    • September 23
    • Devel Dublish

      शुभ प्रभात
      ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;
      सप्तमस्थ सिंह राशी...स्वामी सूर्य
      सप्तम बहव में यदि सिंह राशी हो तो जातक के जीवन साथी का मिजाज थोडा उग्र होता है तथा तुनकमिजाजी में उसकी बराबरी करना संभव नहीं होता...उसकी इच्छा के प्रतिकूल किया गया कार्य उसे मानी नहीं रहता फलत: घर में कलह उत्पन्न हो जाना कोई बड़ी बात न होगी.. ऐसे जातक को साहसी व स्वाभिमानी भी कहा जा सकता है...पुरुष की कुंडली में शुक्र तथा स्त्री की कुंडली में गुरु, सूर्य व चंद्रमा से द्रष्ट हो या युत हो तो जीवन सहचर या सहचरी बड़े घराने से सम्बंधित होती है... ऐसे जातक अपने बनाव श्रृंगार का विशेष ध्यान नहीं रखते फलत: सभा-सोसाइटी में इन्हें अलग से पहचाना जा सकता है विपत्ति के समय भी इन में व्यग्रता नहीं आती...मानव मन के परखी होते हैं तथा समय के साथ चलने के कारन ऐसे जातक को चतुर कहा जा सकता है
      सप्तमस्थ कन्या राशी ...स्वामी बुध
      यदि सप्तम भाव में कन्या राशी हो तो बुध चतुर्थेश और सप्तमेश बनता है ...यहाँ बुध प्रबल पापी होता है यदि बुध पर प्रथकता जनक ग्रहों का प्रभाव पड़े तो जातक को शीघ्र ही अपने जीवन साथी से प्रथक करा देता है यदि बुध अत्यधिक पापा प्रभाव में आया हो तो विवाह ही नहीं होने देता...यदि बुध बलवान हो तथा शुभ प्रभाव में हो तो जीवन साथी गुणवान, सुंदर शिक्षित, बुद्धिमान, ज्ञान्प्रिया अवं मन सम्मान से युक्त मिलता है जीवन साथी जहाँ सुंदर व सुशिल होता है वहीँ वह कोमल अंगो से युक्त तथा धन सम्पदा अर्जित करने वाल होता है...ऐसा जातक नीति एवं मर्यदयुक्त वचन बोलने वाला तथा संकटों एवं बाधाओं में अपने जीवन साथी का दृढ चित्त से साथ निभाने वाला होता है धन एवं विलासिता की चीजों की और उसकी विशेष रूचि होती है ....


    • ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      सप्तमस्थ तुला राशी स्वामी शुक्र.....
      यदि सप्तम भाव में तुला राशी हो तो शुक्र की स्थिति का विशेष विचार करना चाहिए क्यूंकि शुक्र सप्तमेश होने के साथ-साथ सप्तम का कारक भी होता है यदि शुक्र पर शुभ प्रभाव हो तो जातक को कामसुख अच्चा प्राप्त होता है जीवन-साथ सुंदर तीखे नयन-नक्श वाला, धनि-मानी, एवं रति कलाओ को जानने वाला होता है जिस जातक की कुंडली में शुक्र पंचम भाव में बलवान हो कर स्थित हो अथवा पंचम पर दृष्टि हो अथवा पंचमेश के साथ लग्न में, त्रिकोण में स्थित हो वह जातक प्रेम विवाह करता है यदि शुक्र पंचम या द्वादश में हो तथा शनि भी बलवान हो तथा मंगल की दृष्टि में हो तो जातक में अत्यधिक कामवासना होती है ऐसे जातक देश, कल, परिस्थिति का भी ध्यान नहीं रखते....विलासिता पूर्ण जीवनयापन करना ही इनका मुख्य उद्देश्य होता है...यदि शुक्र पाप प्रभाव में हो तो जातक के जीवन साथी की मृत्यु शीघ्र हो जाती है तथा संतान सुख भी माध्यम रहता है
      सपत्मस्थ वृश्चिक राशी ...स्वामी मंगल...
      यदि सप्तम भाव में वृश्चिक राशी हो तो मंगल सप्तमेश व द्वादशेश ..दोनों बनता है ..द्वादश भाव से शय्या सुख का विचार किया जाता है...यदि मंगल पापाक्रांत हो तो शय्या सुख से हीन कर देता है वैसे भी मंगल कामसुख में अत्यधिक बाधा कारक होता है ...यदि मंगल एवं शनि अपने बुरे प्रभाव को दृष्टि द्वारा लग्न तथा शुक्र पर डाल रहे हो तो जीवनसाथी का व्यव्हार अत्यंत क्रूर होता है ऐसे जातक को जीवन साथी अल्प शिक्षित ही मिलता है....बाल्यकाल में ही उसे जीवन की निस्सारता का ज्ञान हो जाता है तथा अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है ...ऐसे जातक का कोई भी कार्य बिना विघ-बाधा के पूर्ण हो जाये, ऐसा संभव नहीं है...भाग्य की विपरीतता इसे ही कहते हैं ..जीवन की जंग ऐसे ही लोग लड़ते हैं....क्रमश:
      • प्तमस्थ धनु राशी ...स्वामी गुरु (ब्रहस्पति )
      • यदि सप्तम भाव में धनु राशी हो तो गुरु सप्तमेश व दशमेश बनता है ...और गुरु की स्थिति का विशेष अध्ययन करना चाहिए ..स्त्री जातक की कुंडली में गुरु पति का करक होता है और सप्तमेश हो कर तो और प्रबल हो जाता है फलत: गुरु जैसे प्रभाव में होगा वैसा ही फल भी प्रदान करेगा यदि गुरु बलवान हो अथवा शुभ प्रभाव में हो तो स्त्री को दाम्पत्य जीवन डीके पूर्ण सुख प्राप्त होता है लेकिन यदि गुरु पाप प्रभाव, में हो तोविप्रीत फल मिलते हैं ...अनुभव में यह भी आया है की गुरु केन्द्रधिपत्य दोष से दूषित हो कर शुभ फल प्रदाता नहीं रहता पुरुष जातक की कुंडली में गुरु बलवान हो तो उसकी पत्नी दीर्घजीवी होती है लेकिन यदि गुरु हीन्बली हो तो उसकी स्त्री पुरुषाकृति वाल, निष्ठुर स्वाभाव वाली, कलह प्रिय, पराये दोषों को देखने वाली दुसरो से इर्ष्या करने वाल, न्याय से हीन, बुद्धि रहित होती है... अहंकारी इतनी की जरा-जरा सी बात पर नागिन की तरह फुन्कारती है यह सही है की वह धनी परिवार की होती है ,...शिक्षित भी होती है....लेकिन संस्कार और मन-मर्यादा से हीन होती है
        सप्तमस्थ मकर राशी ...स्वामी शनि...
        यदि सप्तम भाव में मकर राशी हो तो जातक की पत्नी dambhi, क्रोधी व कलह प्रिय होती है...कलह करने की नवीन से नवीन युक्तियो की फैक्ट्री होती है अल्प शिक्षित होते हुए भी वह अपने बनाव श्रृंगार पर अत्यधिक ध्यान देती है ...पति की अपेक्षा आभूषण से लगाव होता है स्वभाव से संस्कार हीन, क्रोधी होने के कारण किसी का भी तिरस्कार ..अपमान कर देना उसके लिए कठिन नहीं है...ऐसी स्त्री देश, कल परिस्थिति की परवाह न कर केवल अपना हित साधती है ..अपने अहम् की तुष्टि मन-प्राण से करती है ...अत्यधिक लालच, खुदगर्ज होती है...ऐसी अवस्था में शनि सप्तमेश और अष्टमेश बनता है ...यदि शनि पर गुरु और चन्द्र का प्रभाव हो तो स्त्री धनाढ्य घर की पत्नी मिलती है तथा सेवापरायण होती है...अपने घर के मन-सम्मान के लिए सर्वस्व न्योछावर कर सकती है यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो अच्चा दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है भले ही मंगल दोष कितना प्रबल हो...शनि पत्नी का तथा मंगल मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हैं इनका पाप प्रभाव में आना उसे उग्र स्वाभाव वाला बनाएगा ही ...ऐसे जातक किसी भी प्रकार के बैर को सहज ही नहीं भूलते.....
        • September 26
        • Devel Dublish

          शुभ प्रभात
          ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
          सप्तमस्थ कुम्भ राशी ...स्वामी शनि
          सप्तमस्थ कुम्भ राशी हो तो शनि षष्ठेश व सप्तमेश बनता है ..लग्न के लिए अशुभ फलदायी बन कर शनि अपनी भुक्ति में धन और स्वास्थ्य की हानि करता है ...पत्नी कम संपन्न घर की होती है..रंग सांवला होता है ..अगर सप्तम भाव पर शनि की दृष्टी भी हो तो भी विवाह में देरी संभव है अथवा विवाह हो भी जाये तो पति=पत्नी को किसी कारन वश अलग रहना पद सकता है या नौबत तलक की भी आ सकती है यहाँ शनि की विछेदात्मक दृष्टि में फर्क इतना है की शनि आपके धैर्य की परीक्षा लेते हैं...मगल की दृष्टि हो तो तुरंत सब कुछ उत्तेजना में आकर पति-पत्नी गलत फैसला ले सकते हैं.....शनि आपको अपने फैसले पर विचर करने के लिए धैर्य प्रदान करते हैं...समय देते हैं...आपके बुद्धि, विवेक की परीक्षा लेते हैं...यही फर्क है शनि और मंगल .में .शनि इन्सान को कष्ट देकर उसे कुंदन बनते हैं जबकि मंगल उत्तेजन आवेश दिलाकर उसका नाश करते हैं....यदि सप्तम भाव पर शुभ गृह की दृष्टि हो यथा गुरु और चंद्रमा की तो जातक का जीवन साथी संघर्ष शील, विपत्तियों का दृढ़ता पूर्वक मुकाबला करने वाला , इश्वर व गुरु से डरने वाला तथा अपने से बड़ों का आदर..सम्मान करने वाला होता है वह पुण्य कार्यो में रूचि rakhta है और समस्त पुण्य दायक कार्यों में यथा शक्ति सहायता करता है ...इसकी संतान भी श्रेष्ठ व गुणवान होती है.....
          सप्तमस्थ मीन राशी....स्वामी गुरु
          यदि सप्तमस्थ मीन राशी हो तो जातक की स्त्री उज्जवलवर्ण न हो कर भी उसके नयन-नक्श सुंदर होते हैं...स्वाभाव से चंचल, बतों में चपल, लेकिन सीधी सच्ची और देश काल और परिस्थिति के अनुकूल बातें करने वाली होती है गुरु यहाँ सुखेश (चतुर्थेश ) व सप्तमेश बनता है अत: केन्द्रधिपत्य दोष से पीड़ित होता है और अगर केंद्र (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम ) में बैठ गया हो तो गुरु की बलवान स्थिति ही जातक को सहारा देती है ..बहुत सुख प्रदान करती है ..किसी एनी गृह के साथ गुरु स्थित हो तो ऐसी स्थिति में गुरु अपना समस्त शुभता उस गृह को प्रदान कर देता है... गुरु पर मंगल का प्रभाव हो तो जीवनसाथी की आयु क्षीण होती है शनि, सूर्य एवं राहु का प्रभाव पति पत्नी में प्रथकता ला देता है ...उच्च का गुरु हो तो गुणवान पुत्र उत्पन्न होते हैं तथा जातक के जीवन साथी को तैराकी का शौक होता है..!!

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