ॐ गणेशाम्बा गुर्भ्यो नम:
षष्ठ भाव में विभिन्न ग्रहों का फल सूर्य ....यदि छटे भाव में सूर्य हो तो जातक के शत्रु अधिक होते हैं लेकिन वह स्वयं शत्रुहंता होता है इसमें कोई संदेह नहीं शत्रु उसके सामने टिक नहीं पता है भाई बंधू संख्या में कम होते हैं धन धन्य का पूर्ण सुख उसे मिलता है जातक की कीर्ति अक्षणु बनी रहती है तथा वह मन्त्र शास्त्र का ज्ञाता होता है पाप प्रभाव में आया सूर्य जातक को दीर्घावधि का रोग देता है यदि सूर्य वृषभ, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ राशी का हो तो जातक को दम, डिप्थीरिया , ब्रोंकायतिस , जैसे रोग होते हैं ...कन्या और मीन का सूर्य जातक टीबी रोग से पीड़ित रखता है
यदि सूर्य पुरुष राशी में हो तो जातक भोजन भट्ट, कामुक, घमंडी , तथा क्रोध करने वाला होता है उसे छोटी आयु में ही प्रमेह और उपदर्श जैसे रोग हो जाते हैं जातक के मातुल पक्ष के लिए भी षष्ठस्थ रवि शुभ नहीं होता मौसी का विधवा हो जाना या पुत्रहीन होना जैसे फल अनुभव में आते हैं यदि स्त्री राशी का रवि हो तो जातक ठकुरसुहाती बातें करता है तथा अपना कम साध लेता है उसके मातुल पक्ष के लिए भी ऐसी स्थिति शुभ रहती है ....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: विभिन्न ग्रहों की षष्ठ भाव में स्थिति....
चंद्रमा ....यदि चन्द्र छटे भाव में हो तो देहसुख अच्छा नहीं मिलता छठा चन्द्र अरिश्त्प्रद होता है जातक के व्यवसाय में कठिनाइयाँ आती हैं तथा शत्रुओं द्वारा व्यर्थ में परेशानियाँ उत्पन्न की जाती हैं कानूनी मामलों में उसे अपयश मिलता है कर्क राशी में चन्द्र हो तो उसे उदार रोगी बनता है उसकी पाचन क्रिया ठीक नहीं होती प्राय: बचपन में इसके बुरे परिणाम मिलते हैं अग्नि राशी का चन्द्र हो तो जातक दृढ निश्चयी होता हैयादी ऐसा जातक चिकित्सा का व्यवसाय करे तो अच्चा लाभ कम लेता है तथा यशस्वी होता है नीचस्थ चन्द्र रिपु में हो तो शत्रु बहुत होते हैं धन का व्यर्थ व्यय होता है चन्द्र प्रथ्वी तत्व में हो तो विशेष कष्टकारक होता है क्युकी इस अवस्था में चंद्रमा अष्टमेश, चतुर्थेश तथा व्ययेश बनता है तथा मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट देता है रक्त दूषित हो कर देह में गर्मी बढ़ता है प्राय: नजला, जुकाम, के कारन साँस लेने में कठिनाई आती है यदि चन्द्र द्विस्वभाव राशी में हो तो काफ-क्षय -इत्यादि फेफड़ो के रोग देता है स्थिर राशी में हो तो अर्श भगंदर इत्यादि और चार राशी में हो तो उदार रोग तथा उच्च का हो तो गल रोग स्वांस रोग एवं खांसी देता है.
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में विभिन्न गृह फल ..
मंगल यदि रिपु (शत्रु) भाव में हो तो ऐसे जातक के सम्मुख शत्रु की वाही गति होती जैसे सूखे तिनके की अग्नि में ..जबरदस्त शत्रुहन्ता जातक के भुजबल के सामने शत्रु का टिक पाना संभव नहीं होता...ऐसे जातक की जठराग्नि तीव्र होती है...कामवासना का वेग भी बढ़ा-चढ़ा रहता है ...स्थिर राशी मंगल जातक को ह्रदय रोग, द्विस्वभाव में हो तो क्षय रोग और चार राशी में हो तो यकृत रोग व बालो का झाड़ना जैसी पीड़ा देता है ....
मातुल पक्ष के लिए छटे भाव का मंगल शुभ नहीं होता यदि मंगल अग्नि राशी का हो तो शत्रु द्वारा शास्त्र घात, विष घात, अथवा अग्नि का घात बना रहता है शुभ प्रभाव में आया मंगल किर्तिलभ करता है लेकिन जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है...यदि जातक अधिकारी हो तो बहुत रिश्वत लेता है और पकड़ा नहीं जाता यदि मिथुन और कन्या राशी में मंगल षष्ठस्थ हो तो जातक को कुष्ठ रोग होने का भय रहता है.....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में बुध का फल .....
यदि षष्ठ भाव में बुध हो तो जातक अपनों से विरोध रखता है..कब्ज, अपच, गैस , बवासीर आदि बीमारियों से पीड़ित होता है तथा छाती दुर्बल होना, श्वास रोग, क्षय रोग, मन पर अघात होने से मृत्यु होना जैसे फल अनुभव में आते हैं...ऐसा जातक अपने को सन्यासियों से श्रेष्ठ समझने की भूल करता है ऐसा जातक व्यापर करे तो हनी उठता है हाँ, लेखक या प्रकाशक हो सकता है रसायन शास्त्र का ज्ञाता भी हो सकता है ...यदि बुध मंगल के साथ अशुभ सम्बन्ध में हो तो पागलपन प्रदान करता है ..... षष्ठ का बुध पापा प्रभाव में हो तो अलर्जी , चरम रोग, आदि से पीड़ित होता है
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में शुक्र ...
यदि रिपु स्थान में शुक्र हो तो जातक के शत्रु कभी भी समाप्त नहीं होते ऐसे शत्रु सदा ही दुःख का कारन बनते हैं तथा जातक की मानसिक शांति को भंग किये रहते हैं...ऐसे जातक की कामेच्छा तीव्र होती है तथा अति विषयभोग के कारन उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है...मूत्र विकार, उपदंश, प्रमेह तथा जननेंद्रिय सम्बन्धी गुप्त रोग उसे घेरे रहते हैं...यदि शुक्र जल राशी का हो तो जातक को व्यभिचारी बनता है ...
भू तत्व राशी में से किसी में शुक्र हो तो जातक की पत्नी झाग्दली होकर भी जातक को प्रेम जताकर मन लेती है छटे भाव में शुक्र होने से जातक में कामुकता स्वाभाविक है लेकिन इन राशियों में होने पर वह कुमार्गगामी नहीं होने देता उस पर ऋण ग्रस्तता बनी रहती है मृत्यु पर्यंत ऋण से मुक्ति नहीं मिल पति ...पुरुष राशी का शुक्र जहाँ स्त्री सुंदर दिलाता है वहीँ उसके कर्कशा होने का परिचायक भी होता है यदि शुक्र स्त्री राशी में हो तो पत्नी कोमल अंगो वाली तथा पुरशो जैसे विचारो वाली होती है ऐसे जातक के मामा-मौसियों की स्थिति सुद्रढ़ होती है अपनी पूंजी लगाकर स्वतंत्र व्यवसाय करने में ऐसे जातक को हानि होती है....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में शनि...
यदि रिपु भावे में शनि अशुभ प्रभाव में हो तो अत्यंत कष्टकारक होता है जातक की जिन्दगी एक अभिशप्त जिन्दगी होती है दीर्घकालिक रोगों से ग्रसित जातक मृत्यु की कामना करता है वृषभ, सिंह वृश्चिक और कुम्भ राशी का शनि हो तो ह्रदय, कंठ, , श्वांस रोग, ....मेष, कर्क, तुला और मकर का शनि हो तो पित्त विकार, यकृत रोग, संधिवात, ...द्वि स्वाभाव राशी में हो तो (मिथुन, कन्या, धनु और मीन )दमा, कफ के विकार और पैरो में विकार और अपंगता जैसी व्याधियां होती है...रिपु स्थान का शनि जातक को पूर्व आयु में कष्टकारक रहता है ..मातुल पक्ष के लिए भी ऐसा शनि कष्टकारक रहता है ...सभी कार्यो में बाधाओं का सामना करना पड़ता है तथा व्यर्थ के अपवाद फैलने से मानसिक परेशानी भी बढती है जातक को कहीं से भी कोई मदद नहीं मिलती तथा काफी कठिन संघर्ष कर ही वह कुछ प्रगति कर पाता है....
ऐसा जातक अगर जॉब में हो तो उसे समय से पूर्व अवकाश ग्रहण करना पड़ता है अच्छी नौकरी पहले तो कहीं मिलती नहीं यदि एनी प्रबल योगो से मिल भी जाये विशेष लाभ नहीं मिलता रिपु स्थान के जातक अधिकतर भैंस आदि दुधारू पशु पल कर दुग्ध का व्यवसाय करते पाए गए हैं वाही उनके लिए उचित भी है....म्मेनास्थ शनि शत्रुओ की भरमार रखता है लेकिन बिना किसी प्रयास के उन्हें नष्ट भी कर देता है संपत्ति, यश और अधिकार एक साथ नहीं मिलते किसी एक की ही प्राप्ति होती है....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में राहु
यदि रिपु स्थान में राहु हो तो शत्रुओं के लिए जातक साक्षात् कल होता है वह शत्रु समूह को ऐसे भस्म कर देता है जैसे अग्नि वन को जलाकर भस्म कर देती है ...मामा को संतान हनी होती है ..स्वयं चौपाये जानवर पाल कर धनी बनता है ...ऐसा जातक नीच व्यवसाय की और अग्रसर होता है..बाल्यकाल कष्टकर व्यतीत होती है ...नजर लग्न...प्रेत व्याध नख-विष जैसे व्याधियों से जातक कष्ट प्राप्त करता है कमर में वाट के कारन दर्द, मिर्गी, सफ़ेद दाग, आदि ये सब छटे राहु के फल होते हैं....स्त्री राशी का राहु छटे भाव में शुभ फल देता है...ज्योतिष में प्रतिपादित सूत्र का यहाँ अक्षरस: पालन होता है...भगवन शिव ने कहा है की "त्रि शत एकादश राहु करोति शुभम अथवा त्रि शत एकादश राहु करोति विपुल धनम" ऐसे जातक की देह निरोगी व स्त्री पतिव्रता मिलती है...लेकिन नौकरी के लए यह राहु शुभ नहीं होता..... स्त्री की हालत अच्छी नहीं होती पिसाच पीड़ा या आकस्मिक रोग से उसकी मृत्यु होती है
षष्ट भावस्थ केतु फल...
छटे स्थान का केतु जातक का अपने मामा से वैमनस्य करता है मामा द्वारा उसका अपमना होता है रोग होते तो तो हैं लेकिन दीर्घकालीन नहीं होते ऐसे जातक का बड़े-से बड़ा शत्रु भी विनाश को प्राप्त होता है...ऐसे जातक को चुपयो का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ...(वर्तमान कल में चौपायो में कर या चौपहिया सवारी का समावेश होता है ) तथा उसे आकस्मिक द्रव्य लाभ के सुअवसर प्राप्त होते रहते हैं इतने पर भी जातक का मन दुर्बल होता है...लेकिन उसे इष्ट सिद्धि का लाभ होता है .....
षष्ठ भाव में विभिन्न ग्रहों का फल सूर्य ....यदि छटे भाव में सूर्य हो तो जातक के शत्रु अधिक होते हैं लेकिन वह स्वयं शत्रुहंता होता है इसमें कोई संदेह नहीं शत्रु उसके सामने टिक नहीं पता है भाई बंधू संख्या में कम होते हैं धन धन्य का पूर्ण सुख उसे मिलता है जातक की कीर्ति अक्षणु बनी रहती है तथा वह मन्त्र शास्त्र का ज्ञाता होता है पाप प्रभाव में आया सूर्य जातक को दीर्घावधि का रोग देता है यदि सूर्य वृषभ, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ राशी का हो तो जातक को दम, डिप्थीरिया , ब्रोंकायतिस , जैसे रोग होते हैं ...कन्या और मीन का सूर्य जातक टीबी रोग से पीड़ित रखता है
यदि सूर्य पुरुष राशी में हो तो जातक भोजन भट्ट, कामुक, घमंडी , तथा क्रोध करने वाला होता है उसे छोटी आयु में ही प्रमेह और उपदर्श जैसे रोग हो जाते हैं जातक के मातुल पक्ष के लिए भी षष्ठस्थ रवि शुभ नहीं होता मौसी का विधवा हो जाना या पुत्रहीन होना जैसे फल अनुभव में आते हैं यदि स्त्री राशी का रवि हो तो जातक ठकुरसुहाती बातें करता है तथा अपना कम साध लेता है उसके मातुल पक्ष के लिए भी ऐसी स्थिति शुभ रहती है ....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: विभिन्न ग्रहों की षष्ठ भाव में स्थिति....
चंद्रमा ....यदि चन्द्र छटे भाव में हो तो देहसुख अच्छा नहीं मिलता छठा चन्द्र अरिश्त्प्रद होता है जातक के व्यवसाय में कठिनाइयाँ आती हैं तथा शत्रुओं द्वारा व्यर्थ में परेशानियाँ उत्पन्न की जाती हैं कानूनी मामलों में उसे अपयश मिलता है कर्क राशी में चन्द्र हो तो उसे उदार रोगी बनता है उसकी पाचन क्रिया ठीक नहीं होती प्राय: बचपन में इसके बुरे परिणाम मिलते हैं अग्नि राशी का चन्द्र हो तो जातक दृढ निश्चयी होता हैयादी ऐसा जातक चिकित्सा का व्यवसाय करे तो अच्चा लाभ कम लेता है तथा यशस्वी होता है नीचस्थ चन्द्र रिपु में हो तो शत्रु बहुत होते हैं धन का व्यर्थ व्यय होता है चन्द्र प्रथ्वी तत्व में हो तो विशेष कष्टकारक होता है क्युकी इस अवस्था में चंद्रमा अष्टमेश, चतुर्थेश तथा व्ययेश बनता है तथा मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट देता है रक्त दूषित हो कर देह में गर्मी बढ़ता है प्राय: नजला, जुकाम, के कारन साँस लेने में कठिनाई आती है यदि चन्द्र द्विस्वभाव राशी में हो तो काफ-क्षय -इत्यादि फेफड़ो के रोग देता है स्थिर राशी में हो तो अर्श भगंदर इत्यादि और चार राशी में हो तो उदार रोग तथा उच्च का हो तो गल रोग स्वांस रोग एवं खांसी देता है.
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में विभिन्न गृह फल ..
मंगल यदि रिपु (शत्रु) भाव में हो तो ऐसे जातक के सम्मुख शत्रु की वाही गति होती जैसे सूखे तिनके की अग्नि में ..जबरदस्त शत्रुहन्ता जातक के भुजबल के सामने शत्रु का टिक पाना संभव नहीं होता...ऐसे जातक की जठराग्नि तीव्र होती है...कामवासना का वेग भी बढ़ा-चढ़ा रहता है ...स्थिर राशी मंगल जातक को ह्रदय रोग, द्विस्वभाव में हो तो क्षय रोग और चार राशी में हो तो यकृत रोग व बालो का झाड़ना जैसी पीड़ा देता है ....
मातुल पक्ष के लिए छटे भाव का मंगल शुभ नहीं होता यदि मंगल अग्नि राशी का हो तो शत्रु द्वारा शास्त्र घात, विष घात, अथवा अग्नि का घात बना रहता है शुभ प्रभाव में आया मंगल किर्तिलभ करता है लेकिन जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है...यदि जातक अधिकारी हो तो बहुत रिश्वत लेता है और पकड़ा नहीं जाता यदि मिथुन और कन्या राशी में मंगल षष्ठस्थ हो तो जातक को कुष्ठ रोग होने का भय रहता है.....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में बुध का फल .....
यदि षष्ठ भाव में बुध हो तो जातक अपनों से विरोध रखता है..कब्ज, अपच, गैस , बवासीर आदि बीमारियों से पीड़ित होता है तथा छाती दुर्बल होना, श्वास रोग, क्षय रोग, मन पर अघात होने से मृत्यु होना जैसे फल अनुभव में आते हैं...ऐसा जातक अपने को सन्यासियों से श्रेष्ठ समझने की भूल करता है ऐसा जातक व्यापर करे तो हनी उठता है हाँ, लेखक या प्रकाशक हो सकता है रसायन शास्त्र का ज्ञाता भी हो सकता है ...यदि बुध मंगल के साथ अशुभ सम्बन्ध में हो तो पागलपन प्रदान करता है ..... षष्ठ का बुध पापा प्रभाव में हो तो अलर्जी , चरम रोग, आदि से पीड़ित होता है
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में शुक्र ...
यदि रिपु स्थान में शुक्र हो तो जातक के शत्रु कभी भी समाप्त नहीं होते ऐसे शत्रु सदा ही दुःख का कारन बनते हैं तथा जातक की मानसिक शांति को भंग किये रहते हैं...ऐसे जातक की कामेच्छा तीव्र होती है तथा अति विषयभोग के कारन उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है...मूत्र विकार, उपदंश, प्रमेह तथा जननेंद्रिय सम्बन्धी गुप्त रोग उसे घेरे रहते हैं...यदि शुक्र जल राशी का हो तो जातक को व्यभिचारी बनता है ...
भू तत्व राशी में से किसी में शुक्र हो तो जातक की पत्नी झाग्दली होकर भी जातक को प्रेम जताकर मन लेती है छटे भाव में शुक्र होने से जातक में कामुकता स्वाभाविक है लेकिन इन राशियों में होने पर वह कुमार्गगामी नहीं होने देता उस पर ऋण ग्रस्तता बनी रहती है मृत्यु पर्यंत ऋण से मुक्ति नहीं मिल पति ...पुरुष राशी का शुक्र जहाँ स्त्री सुंदर दिलाता है वहीँ उसके कर्कशा होने का परिचायक भी होता है यदि शुक्र स्त्री राशी में हो तो पत्नी कोमल अंगो वाली तथा पुरशो जैसे विचारो वाली होती है ऐसे जातक के मामा-मौसियों की स्थिति सुद्रढ़ होती है अपनी पूंजी लगाकर स्वतंत्र व्यवसाय करने में ऐसे जातक को हानि होती है....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में शनि...
यदि रिपु भावे में शनि अशुभ प्रभाव में हो तो अत्यंत कष्टकारक होता है जातक की जिन्दगी एक अभिशप्त जिन्दगी होती है दीर्घकालिक रोगों से ग्रसित जातक मृत्यु की कामना करता है वृषभ, सिंह वृश्चिक और कुम्भ राशी का शनि हो तो ह्रदय, कंठ, , श्वांस रोग, ....मेष, कर्क, तुला और मकर का शनि हो तो पित्त विकार, यकृत रोग, संधिवात, ...द्वि स्वाभाव राशी में हो तो (मिथुन, कन्या, धनु और मीन )दमा, कफ के विकार और पैरो में विकार और अपंगता जैसी व्याधियां होती है...रिपु स्थान का शनि जातक को पूर्व आयु में कष्टकारक रहता है ..मातुल पक्ष के लिए भी ऐसा शनि कष्टकारक रहता है ...सभी कार्यो में बाधाओं का सामना करना पड़ता है तथा व्यर्थ के अपवाद फैलने से मानसिक परेशानी भी बढती है जातक को कहीं से भी कोई मदद नहीं मिलती तथा काफी कठिन संघर्ष कर ही वह कुछ प्रगति कर पाता है....
ऐसा जातक अगर जॉब में हो तो उसे समय से पूर्व अवकाश ग्रहण करना पड़ता है अच्छी नौकरी पहले तो कहीं मिलती नहीं यदि एनी प्रबल योगो से मिल भी जाये विशेष लाभ नहीं मिलता रिपु स्थान के जातक अधिकतर भैंस आदि दुधारू पशु पल कर दुग्ध का व्यवसाय करते पाए गए हैं वाही उनके लिए उचित भी है....म्मेनास्थ शनि शत्रुओ की भरमार रखता है लेकिन बिना किसी प्रयास के उन्हें नष्ट भी कर देता है संपत्ति, यश और अधिकार एक साथ नहीं मिलते किसी एक की ही प्राप्ति होती है....
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठ भाव में राहु
यदि रिपु स्थान में राहु हो तो शत्रुओं के लिए जातक साक्षात् कल होता है वह शत्रु समूह को ऐसे भस्म कर देता है जैसे अग्नि वन को जलाकर भस्म कर देती है ...मामा को संतान हनी होती है ..स्वयं चौपाये जानवर पाल कर धनी बनता है ...ऐसा जातक नीच व्यवसाय की और अग्रसर होता है..बाल्यकाल कष्टकर व्यतीत होती है ...नजर लग्न...प्रेत व्याध नख-विष जैसे व्याधियों से जातक कष्ट प्राप्त करता है कमर में वाट के कारन दर्द, मिर्गी, सफ़ेद दाग, आदि ये सब छटे राहु के फल होते हैं....स्त्री राशी का राहु छटे भाव में शुभ फल देता है...ज्योतिष में प्रतिपादित सूत्र का यहाँ अक्षरस: पालन होता है...भगवन शिव ने कहा है की "त्रि शत एकादश राहु करोति शुभम अथवा त्रि शत एकादश राहु करोति विपुल धनम" ऐसे जातक की देह निरोगी व स्त्री पतिव्रता मिलती है...लेकिन नौकरी के लए यह राहु शुभ नहीं होता..... स्त्री की हालत अच्छी नहीं होती पिसाच पीड़ा या आकस्मिक रोग से उसकी मृत्यु होती है
षष्ट भावस्थ केतु फल...
छटे स्थान का केतु जातक का अपने मामा से वैमनस्य करता है मामा द्वारा उसका अपमना होता है रोग होते तो तो हैं लेकिन दीर्घकालीन नहीं होते ऐसे जातक का बड़े-से बड़ा शत्रु भी विनाश को प्राप्त होता है...ऐसे जातक को चुपयो का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ...(वर्तमान कल में चौपायो में कर या चौपहिया सवारी का समावेश होता है ) तथा उसे आकस्मिक द्रव्य लाभ के सुअवसर प्राप्त होते रहते हैं इतने पर भी जातक का मन दुर्बल होता है...लेकिन उसे इष्ट सिद्धि का लाभ होता है .....
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