शुभ प्रभात
षष्ठ भाव में तुला और वृश्चिक राशी....
तुला राशी स्वामी शुक्र.....यदि षष्ठ भाव में तुला राशी हो तो शुक्र षष्ठेश और लग्नेश बनता है इसकी प्रबल स्थिति जातक को जहाँ धनवान बनाती है वहीँ ईर्ष्यालु भी फलत: अपने ईर्ष्यालु स्वाभाव के कारन वह लोगो की दृष्टि में शीघ्र ही गिर जाता है और घृणा का पात्र बन जाता है धरम-करम के कार्यो में उसकी रूचि रहती है लेकिन धार्मिक कृत्यों अथवा साधू-सन्यासियों की सेवा पर किये गए व्यय के कारन बंधवो तक से उसका बैर भाव बन जाता है दुसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं की सत्य पथ का अनुगामी होते हुए भी ऐसा जातक लोगो की शत्रुता प्राप्त करता है ...शुक्र पीड़ित हो तो स्वयं जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तथा मामा मौसियों के लिए भी अनिष्ट प्रद होता है
वृश्चिक राशी स्वामी मंगल्मंगल यहाँ छटे अवं एकादश का स्वामी होता है मंगल के बलि हो कर लग्न व लग्नेश को प्रभावित करने पर जातक हिंसा प्रिय हो जाता है किसी का वध कर देना उसके बाएँ हाथ का खेल है ऐसे जातक को बिलों में रहने वाले जीवों जैसे सर्प, चूहे इत्यादि से भय रहता है चोरो व हिंसक पशुओं से ऐसे जातक को देहिक कष्ट मिलता है मंगल की निर्बल स्थिति आय के साधनों पर भले ही प्रतिकूल प्रभाव डाले लेकिन जातक की हिंसक प्रवृत्ति को समाप्त कर देती है ऐसा जातक सहनशील और धुन का पक्का होता है
षष्ठ भाव में धनु और मकर राशी....
यदि षष्ठ भाव में धनु राशी हो तो गुरु त्रिकोएश होकर जहाँ शुभ होता है वहीँ षष्ठअधिपति बन कर पुन: पापी हो जाता है इतने पर भी इसकी निर्बल स्थिति किसी किसी उच्च वर्ण विशेषतया ब्रह्मण शत्रु द्वारा हनी पहुँचाने की परिचायक होती है गुरु शुभ स्थिति में हो तो मामाओं की स्थिति को सुद्रढ़ करता है गुरु के मन-सम्मान को बढ़ता है ऐसे जातक की झूठे लोगो से शत्रुता रहती है थोड़ी सी बात भी उसके ह्रदय को कचोट जाती है अर्थात गोली के घाव की अपेक्षा बोली का घाव अधिक सालता है ऐसा जातक शत्रु का मद चूर करने वाला तथा बड़ो को मन देने वाला होता है यदि गुरु की स्थिति सामान्य हो तो ऐसा जातक तांगा चलने वाला अथवा रचे में घोडा दौड़ाने वाल होता है
मकर राशी स्वामी...शनि...यदि छठे भावे में मकर राशी हो तो जातक ब्याज पर धन देता है तथा वसूली के समय लोगो से उसके झगडे होते हैं ऐसा शनि छठे एवं जाया भाव का अधिपति होता है फलत: मामा और मौसी कर्कश वाणी बोलने वाले होते हैं शनि बलवान हो तो धन की कमी नहीं रहती लेकिन यदि निर्बल हो तो दरिद्री बनता है पुराने मित्रो तक से बैर करा देता है यहाँ तक की परिवार के सदस्य भी जातक से घृणा करने लगते हैं बहुत थोड़े लोग ऐसे रहते हैं जो जातक से सहानुभूति रखते हैं ऐसे जातक की संतति सदा रोगी रहती है आय की अपेक्षा व्यय बढे-चढ़े रहते हैं तथा दाम्पत्य जीवन में भी कलह का ही अनुभव होता है पति पत्नी में तलक की नौबत तो नहीं आती..लेकिन प्राय: अनबन ही बनी रहती है...अनुभव में यही आया है की कुम्भ लग्न वालो के लिए शनि दुखदाई ही रहता है....
षष्ठ भाव में कुम्भ और मीन राशी फल
कुम्भ राशी स्वामी शनि .....यदि शास्त भाव में कुम्भ राशी हो तो शनि पंचमेश व षष्ठेश बनता है ...रहू यदि छठे भाव में हो तो जातक को दीर्घ रागी बन देता है प्रेम-प्रसंगों में असफलता मिलती है ऐसा जातक प्रेयसी द्वारा ठुकरा दिया जाता है लेकिन ऐसे जातक में सहस की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है कभी-कभी तो वह दुस्साहसी तक हो जाता है तथा अपने से अधिक बलवान शत्रु से भीड़ जाता है अधिकारियो से झगडे और राजकीय दंड की सम्भावना बनी रहती है जल से उसे भय रहता है ऐसे जातको को नदी तलब आदि या गहरे पानी में स्नान नहीं करना चहिये ....ऐसा जातक नेवी अफसर बनता है
मीन राशी स्वामी गुरु ....जातक प्राय: अपने पुत्र और पुत्रियों से झगडा करता है यहाँ गुरु त्रित्येश अवं षष्ठेश हो कर दो पापी भावो का अधिपति बनता है यदि गुरु आय भाव में रहे तो पुत्र संतान नहीं होने देता पत्नी से प्राय: अनबन रहती है लेकिन बाद में सम्बन्ध सुधर जाते हैं ...पत्नी के कारन जातक के अपनों से वैमनस्य हो जाता है ऐसा जातक अपने घर की अपेक्षा अपने इष्ट मित्रो का ज्यादा ध्यान रखता है शनि और गुरु का राशी परिवर्त योग हो तो जातक का यौवनकाल दुखपूर्ण ही रहता है अर्थाभाव] पुत्रो का कुपुत्र होना, ऋणी रहना लोगो से धोखा मिलना इत्यादि बातें घटित होती हैं....
षष्ठ भाव में तुला और वृश्चिक राशी....
तुला राशी स्वामी शुक्र.....यदि षष्ठ भाव में तुला राशी हो तो शुक्र षष्ठेश और लग्नेश बनता है इसकी प्रबल स्थिति जातक को जहाँ धनवान बनाती है वहीँ ईर्ष्यालु भी फलत: अपने ईर्ष्यालु स्वाभाव के कारन वह लोगो की दृष्टि में शीघ्र ही गिर जाता है और घृणा का पात्र बन जाता है धरम-करम के कार्यो में उसकी रूचि रहती है लेकिन धार्मिक कृत्यों अथवा साधू-सन्यासियों की सेवा पर किये गए व्यय के कारन बंधवो तक से उसका बैर भाव बन जाता है दुसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं की सत्य पथ का अनुगामी होते हुए भी ऐसा जातक लोगो की शत्रुता प्राप्त करता है ...शुक्र पीड़ित हो तो स्वयं जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तथा मामा मौसियों के लिए भी अनिष्ट प्रद होता है
वृश्चिक राशी स्वामी मंगल्मंगल यहाँ छटे अवं एकादश का स्वामी होता है मंगल के बलि हो कर लग्न व लग्नेश को प्रभावित करने पर जातक हिंसा प्रिय हो जाता है किसी का वध कर देना उसके बाएँ हाथ का खेल है ऐसे जातक को बिलों में रहने वाले जीवों जैसे सर्प, चूहे इत्यादि से भय रहता है चोरो व हिंसक पशुओं से ऐसे जातक को देहिक कष्ट मिलता है मंगल की निर्बल स्थिति आय के साधनों पर भले ही प्रतिकूल प्रभाव डाले लेकिन जातक की हिंसक प्रवृत्ति को समाप्त कर देती है ऐसा जातक सहनशील और धुन का पक्का होता है
षष्ठ भाव में धनु और मकर राशी....
यदि षष्ठ भाव में धनु राशी हो तो गुरु त्रिकोएश होकर जहाँ शुभ होता है वहीँ षष्ठअधिपति बन कर पुन: पापी हो जाता है इतने पर भी इसकी निर्बल स्थिति किसी किसी उच्च वर्ण विशेषतया ब्रह्मण शत्रु द्वारा हनी पहुँचाने की परिचायक होती है गुरु शुभ स्थिति में हो तो मामाओं की स्थिति को सुद्रढ़ करता है गुरु के मन-सम्मान को बढ़ता है ऐसे जातक की झूठे लोगो से शत्रुता रहती है थोड़ी सी बात भी उसके ह्रदय को कचोट जाती है अर्थात गोली के घाव की अपेक्षा बोली का घाव अधिक सालता है ऐसा जातक शत्रु का मद चूर करने वाला तथा बड़ो को मन देने वाला होता है यदि गुरु की स्थिति सामान्य हो तो ऐसा जातक तांगा चलने वाला अथवा रचे में घोडा दौड़ाने वाल होता है
मकर राशी स्वामी...शनि...यदि छठे भावे में मकर राशी हो तो जातक ब्याज पर धन देता है तथा वसूली के समय लोगो से उसके झगडे होते हैं ऐसा शनि छठे एवं जाया भाव का अधिपति होता है फलत: मामा और मौसी कर्कश वाणी बोलने वाले होते हैं शनि बलवान हो तो धन की कमी नहीं रहती लेकिन यदि निर्बल हो तो दरिद्री बनता है पुराने मित्रो तक से बैर करा देता है यहाँ तक की परिवार के सदस्य भी जातक से घृणा करने लगते हैं बहुत थोड़े लोग ऐसे रहते हैं जो जातक से सहानुभूति रखते हैं ऐसे जातक की संतति सदा रोगी रहती है आय की अपेक्षा व्यय बढे-चढ़े रहते हैं तथा दाम्पत्य जीवन में भी कलह का ही अनुभव होता है पति पत्नी में तलक की नौबत तो नहीं आती..लेकिन प्राय: अनबन ही बनी रहती है...अनुभव में यही आया है की कुम्भ लग्न वालो के लिए शनि दुखदाई ही रहता है....
षष्ठ भाव में कुम्भ और मीन राशी फल
कुम्भ राशी स्वामी शनि .....यदि शास्त भाव में कुम्भ राशी हो तो शनि पंचमेश व षष्ठेश बनता है ...रहू यदि छठे भाव में हो तो जातक को दीर्घ रागी बन देता है प्रेम-प्रसंगों में असफलता मिलती है ऐसा जातक प्रेयसी द्वारा ठुकरा दिया जाता है लेकिन ऐसे जातक में सहस की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है कभी-कभी तो वह दुस्साहसी तक हो जाता है तथा अपने से अधिक बलवान शत्रु से भीड़ जाता है अधिकारियो से झगडे और राजकीय दंड की सम्भावना बनी रहती है जल से उसे भय रहता है ऐसे जातको को नदी तलब आदि या गहरे पानी में स्नान नहीं करना चहिये ....ऐसा जातक नेवी अफसर बनता है
मीन राशी स्वामी गुरु ....जातक प्राय: अपने पुत्र और पुत्रियों से झगडा करता है यहाँ गुरु त्रित्येश अवं षष्ठेश हो कर दो पापी भावो का अधिपति बनता है यदि गुरु आय भाव में रहे तो पुत्र संतान नहीं होने देता पत्नी से प्राय: अनबन रहती है लेकिन बाद में सम्बन्ध सुधर जाते हैं ...पत्नी के कारन जातक के अपनों से वैमनस्य हो जाता है ऐसा जातक अपने घर की अपेक्षा अपने इष्ट मित्रो का ज्यादा ध्यान रखता है शनि और गुरु का राशी परिवर्त योग हो तो जातक का यौवनकाल दुखपूर्ण ही रहता है अर्थाभाव] पुत्रो का कुपुत्र होना, ऋणी रहना लोगो से धोखा मिलना इत्यादि बातें घटित होती हैं....
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