शुभ प्रभात
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का विभिन्न भावो में स्थिति फल यदि षष्ठेश लगन में हो तो जातक रोगी होता है वह अपने परिवार को कष्ट देने वाला, उत्सावादी मंगल कार्यो से दूर रहने वाला, शत्रु को बल अवं पराक्रम से पराजित करने वाला माध्यम आयु में परिश्रमी अवं उत्तर आयु में अलसी होता है उसके परिवार या मित्रो की संख्या अधिक होती है ...पठन-पाठन में रूचि कम रहती है फलत: शिक्षा कम ही मिल पाती है ...ऐसा जातक मुह्फत होता है तथा न कहने वाली बात भी कह डालता है ...
यदि षष्ठेश धन भाव (II) में स्थित हो तो जातक दुष्ट प्रकृति का होता है ...समस्त पाठक ध्यान रखे की षष्ठ भाव और उसका अधिपति..काल चक्र में दुष्ट भाव कहलाते हैं अत: इस भाव का स्वामी जहाँ जिस भाव में बैठा होगा वहां अशुभ करेगा ... कार्य को चतुरता से से करता है सदा अपने धन और प्रतिष्ठा को बढ़ने में लगा रहता है सहस की उसमे कमी नहीं होती उसे अच्चा वक्ता भी कहा जाता है अपनी वंश परंपरा में उसे श्रेष्ठ माना जा सकता है वह स्वाभाव से उग्र होता है ...स्वार्थी इतना की मित्रोऔर परिजनों तक का धन हरण कर लेता है ऐसा जातक विभिन्न रोगों से कष्ट पता है...इतनी उसके भाग्य में उपलब्धियं नहीं होती जितनी की बद दुआएं मिलती हैं अपनी जन्म भूमि में उसका भाग्य उदय नहीं हो पता फलत: विदेशवास होता है लेकिन पुत्रो के द्वारा अनेतिक मार्ग से कमाए धन का स्वामी तथा सुख सुविधा युक्त गृह में निवास करने वाला होता है .....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का सहज(तृतीय) एवं चतुर्थ भाव में फल...
यदि षष्ठेश सहज भावगत हो तो जातक अपने स्वजनों अवन बंधुओं से शत्रुता रखता है परिवार वालो को उसके व्यव्हार से असहनीय पीड़ा होती है ...ऐसा जताक्किसी भी कारणवश अपने किसी परिजन की हत्या भी कर सकता है ...ऐसा जातक कामांध होता है तथा दिन में भी स्त्री संग करने की इच्छा रखता है ..उसके अनुचर भी दुष्ट बुद्धि होते हैं तथा जातक के साथ विश्वासघात करते हैं ऐसा जातक युद्ध में या झगडे में शत्रु से पारजित होता है... अपने पिता की अर्जित संपत्ति विलासितापूर्ण जीवन बिताने वाला तथा तथा अपने ग्राम का या नगर के लोगो के लिए कष्टकर होता है यदि षष्ठेश शुभ गृह हो तो जातक निरोगी तथा पापी गृह हो तो जातक विविध रोगों से कष्ट पता है.....
यदि षष्ठेश चतुर्थ भाव में हो तो जातक पिता से बैर साधने वाला होता है लेकिन पिता द्वारा अर्जित धन संपत्ति का भोग करता है माता का सुख उसे कम ही मिल पता है इसमें माता की मृत्यु हो जाना अथवा जीवित रहे तो उस से अनबन रहना दो मुख्य कारण हो सकते हैं ऐसा जातक दूसरों से द्वेष रखने वाला एवं चुगली की आदत वाला होता है उसका पिता प्राय: निरोगी रहता है पर जातक लम्बे समय तक स्वत रह कर अपने पुत्रो के साथ लक्ष्मी का उपभोग करता है ऐसे जातक की भार्या का चरित्र संदिग्ध रहता है फलत: जातक को जारज संतान हो तो कोई आश्चर्य नहीं ......
ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का विभिन्न भावगत फल...यदि षष्ठअधिपति पंचम भाव में विराजमान हो तो जातक स्वार्थी होता है, बिना मतलब तो बाप से भी सम्बन्ध नहीं रखता ...पुत्रों से उसका द्वेष बना रहता है मित्र भी शीघ्र उसका साथ छोड़ देते हैं उसका संचित कोष घाटता बढ़ता रहता है ऐसा जातक शीघ्र ही मृत्यु का ग्रास बनता है शुभ गृह षष्ठेश पंचम में हो तो जातक निर्धन होता है ...उसे पद और अधिकार की प्राप्ति होती है किन्तु वह पद पा कर दुष्ट स्वाभाव का हो जाता है ...लोगो से कपट पूर्ण व्यव्हार करता है ऐसा जातक माता की सेवा करने वाला शत्रुओं से पीड़ित अर्श अवं मस्तिष्क रोग से पीड़ित होता है .....
यदि षष्ठेश षष्ठ भाव में ही हो जातक कंजूस होता है तथा व्यय करने के नाम से उसकी जान निकलती है ऐसा जातक अपने परिजनों से शत्रुता रखता है तथा दुसरो से प्रेम बनाये रखता है ...अपने ही स्थान में निवास करता है ऐसे जातक के सभी कष्टों का नाश हो जाता है शत्रुओं के मन को मर्दन करने में वह साक्षात् काल होता है यदि शाश्ठेस क्रूर गृह हो या पाप प्रभाव में आया हो जातक व्यर्थ का अभिमान करने वाल तथा विविध रोगों से पीड़ित होता है ..
ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का सप्तम अवं अष्टम स्थान गत फल....यदि षष्ठेश सप्तम स्थान में हो तो जातक जीवन साथी क्रूर स्वाभाव का (स्त्री/पुरुष ) व झगडालू होता है देखने में भी असुंदर और स्वरुप विहीन होता है ...ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन नरक तुली होता है यदि षष्ठेश अत्यंत पाप प्रभाव में हो तो जातक को स्त्री सुख से वंचित कर देता है ....ऐसे जातक को धन की कमी नहीं होती तथा वह सर्वगुण संपन्न मणि व्यक्ति होता है कार्य-व्यवसाय में उसे हनी होती है षष्ठेश चर राशी में हो तो व्यवसाय बदलते रहते हैं ....षष्ठेश शुभ प्रभाव में हो तो स्त्री बंध्या अर्थात संतानोत्पत्ति में अक्षम व गर्भ गिराने की प्रवृत्ति वाली होती है....उसकी स्त्री को अपनी काया से बहुत प्यार होता है ...यह अनुभव सिद्ध बात है की षष्ठ भाव के स्वामी की जाह्न स्थिति होती है वहां उस भाव फल का नाश होता है यहाँ भी यही स्थिति है सप्तम में स्थिति दाम्पत्य जीवन का नाश कर रही है....
यदि षष्ठेश की स्थिति अष्टम में हो तो जातक रोगी होता है सूर्य षष्ठेश हो कर अष्टम में हो तो जातक न्यायी , नेत्र विकारी अवं हिंसक स्वाभाव का होता है.... चन्द्र षष्ठेश हो कर अष्टम में हो तो जातक राज्य पक्ष से दंड पाने वाला, चोरो से संतप्त, ऋणी, यात्रा में कष्ट पाने वाला तथा क्षीण चन्द्र हो तो जातक अल्पायु होता है...मंगल षष्ठेश हो तो जातक सज्जनों का विरोधी, नीच कर्म रत, रक्त चाप, रक्त विकार, अर्श, अवं पित्त रोगी होता है ...यदि बुध षष्ठेश हो तो जातक क्रोधी, घमंडी, तथा यदि बुध पपक्रांत हो तो जातक पागल हो जाता है ....गुरु षष्ठेश हो तो जातक को मामा से बैर, बच्चो का सुख कम व मति भ्रम से पीड़ा होती है ...यदि शुक्र षष्ठेश हो तो जातक को स्त्री संग से देह हनी और विविध रोग तथा तथा यदि शनि षष्ठेश हो तो जातक को वाट-पित्त के कुपित होने से कष्ट होता है
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का नवम भावगत फल...यदि षष्ठेश नवम भाव में हो तो जातक के जीवन में , उसके कार्य-व्यवसाय में अनेको उतर-चढाव आते रहते हैं...वो ये लीला देख कर खुद हतप्रभ हुआ रहता है...ऐसा जातक कबाड़ या लकड़ी पत्थर बेचने वाल होता है यदि शुभ प्रभाव में अथवा अशुभ गृह हो कर षष्ठेश नवम भाव में गया हो तो जातक का स्वाभाव क्रूर हो, उसके पैरो में रोग हो...या वह लंगड़ा हो ऐसा जातक सहोदरों से बैर करने वाला, देव गुरु , ब्रह्मण की निंदा करने वाला होता है गुरु द्वेषी तथा शास्त्र पुराणों को न मानने वाला होता है ...यदि षष्ठेश शुभ प्रभाव में हो तो जातक निरोगी, धर्मात्मा, सच्चे मित्रो से युक्त एवं सम्मानीय होता है.....
यदि षष्ठेश दशम भाव में हो तो जातक अपनी माता से बैर रखता है ऐसा जातक पिता की संपत्ति को नष्ट करने वाला, दुष्ट बुद्धि, तथा परदेश गमन करने वाला तथा वहां सुख का अनुभव करता है ...यदि षष्ठेश शुभ गृह हो तो जातक पिता से स्नेह करने वाला समय पड़ने पर पिता की सेवा करने वाला, माता से लाभान्वित, सर्वदा निरोगी, बलवान, साहसी और धन-धान्य से परिपूर्ण व सुखी होकर अपने वंश में श्रेष्ठता प्राप्त करता है....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का आय एवं व्यय भाव गत फल यदि षष्ठेश आय भाव में हो तो जातक सब से ही शत्रुवत व्यव्हार करता है, शत्रु के द्वारा ही मृत्यु के मुख में जाता है, ऐसा जाता चतुष्पदो से लाभ प्राप्त करता है चोरो द्वारा हनी होती है पुत्र सुख से रहित विविध रोगों से कष्ट पाने वाला होता है यदि शुभ गृह षष्ठेश आय भाव में हो तो जातक चौपायों के व्यापर से लाभ कमाता है, निरोगी व सुख-साधन संपन्न जीवन व्यतीत करता है
यदि षष्ठेश हनी भाव (12th) में हो तो तो यहाँ ऐसे जातक का विपरीत राज योग बन जाता है ...(शास्त्रों के अनुसार) किसी त्रिक भाव का अधिपति वापस त्रिक भाव में बैठ गया है. किसी दुष्ट भाव का अधिपति जिस bhav में बैठा होगा उसकी हानि करेगा...यहाँ एक हानि का अधिपति दुसरे हानि भाव की हानि करेगा...अत; शुभ फल डाटा हो जायेगा ...अगर षष्ठेश पापी अथवा अशुभ गृह हो तो ऐसा जातक सदा रोगी, कार्य व्यवसाय में हानि उठाने वाला , दरिद्र, विदेश वस् में हानि, भाग्य को मानने वाला, विद्वानों का द्वेषी कमी परस्त्री गमन करने वाला तथा मन-सम्मान की चिंता न करने वाला होता है ...
ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का विभिन्न भावो में स्थिति फल यदि षष्ठेश लगन में हो तो जातक रोगी होता है वह अपने परिवार को कष्ट देने वाला, उत्सावादी मंगल कार्यो से दूर रहने वाला, शत्रु को बल अवं पराक्रम से पराजित करने वाला माध्यम आयु में परिश्रमी अवं उत्तर आयु में अलसी होता है उसके परिवार या मित्रो की संख्या अधिक होती है ...पठन-पाठन में रूचि कम रहती है फलत: शिक्षा कम ही मिल पाती है ...ऐसा जातक मुह्फत होता है तथा न कहने वाली बात भी कह डालता है ...
यदि षष्ठेश धन भाव (II) में स्थित हो तो जातक दुष्ट प्रकृति का होता है ...समस्त पाठक ध्यान रखे की षष्ठ भाव और उसका अधिपति..काल चक्र में दुष्ट भाव कहलाते हैं अत: इस भाव का स्वामी जहाँ जिस भाव में बैठा होगा वहां अशुभ करेगा ... कार्य को चतुरता से से करता है सदा अपने धन और प्रतिष्ठा को बढ़ने में लगा रहता है सहस की उसमे कमी नहीं होती उसे अच्चा वक्ता भी कहा जाता है अपनी वंश परंपरा में उसे श्रेष्ठ माना जा सकता है वह स्वाभाव से उग्र होता है ...स्वार्थी इतना की मित्रोऔर परिजनों तक का धन हरण कर लेता है ऐसा जातक विभिन्न रोगों से कष्ट पता है...इतनी उसके भाग्य में उपलब्धियं नहीं होती जितनी की बद दुआएं मिलती हैं अपनी जन्म भूमि में उसका भाग्य उदय नहीं हो पता फलत: विदेशवास होता है लेकिन पुत्रो के द्वारा अनेतिक मार्ग से कमाए धन का स्वामी तथा सुख सुविधा युक्त गृह में निवास करने वाला होता है .....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का सहज(तृतीय) एवं चतुर्थ भाव में फल...
यदि षष्ठेश सहज भावगत हो तो जातक अपने स्वजनों अवन बंधुओं से शत्रुता रखता है परिवार वालो को उसके व्यव्हार से असहनीय पीड़ा होती है ...ऐसा जताक्किसी भी कारणवश अपने किसी परिजन की हत्या भी कर सकता है ...ऐसा जातक कामांध होता है तथा दिन में भी स्त्री संग करने की इच्छा रखता है ..उसके अनुचर भी दुष्ट बुद्धि होते हैं तथा जातक के साथ विश्वासघात करते हैं ऐसा जातक युद्ध में या झगडे में शत्रु से पारजित होता है... अपने पिता की अर्जित संपत्ति विलासितापूर्ण जीवन बिताने वाला तथा तथा अपने ग्राम का या नगर के लोगो के लिए कष्टकर होता है यदि षष्ठेश शुभ गृह हो तो जातक निरोगी तथा पापी गृह हो तो जातक विविध रोगों से कष्ट पता है.....
यदि षष्ठेश चतुर्थ भाव में हो तो जातक पिता से बैर साधने वाला होता है लेकिन पिता द्वारा अर्जित धन संपत्ति का भोग करता है माता का सुख उसे कम ही मिल पता है इसमें माता की मृत्यु हो जाना अथवा जीवित रहे तो उस से अनबन रहना दो मुख्य कारण हो सकते हैं ऐसा जातक दूसरों से द्वेष रखने वाला एवं चुगली की आदत वाला होता है उसका पिता प्राय: निरोगी रहता है पर जातक लम्बे समय तक स्वत रह कर अपने पुत्रो के साथ लक्ष्मी का उपभोग करता है ऐसे जातक की भार्या का चरित्र संदिग्ध रहता है फलत: जातक को जारज संतान हो तो कोई आश्चर्य नहीं ......
ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का विभिन्न भावगत फल...यदि षष्ठअधिपति पंचम भाव में विराजमान हो तो जातक स्वार्थी होता है, बिना मतलब तो बाप से भी सम्बन्ध नहीं रखता ...पुत्रों से उसका द्वेष बना रहता है मित्र भी शीघ्र उसका साथ छोड़ देते हैं उसका संचित कोष घाटता बढ़ता रहता है ऐसा जातक शीघ्र ही मृत्यु का ग्रास बनता है शुभ गृह षष्ठेश पंचम में हो तो जातक निर्धन होता है ...उसे पद और अधिकार की प्राप्ति होती है किन्तु वह पद पा कर दुष्ट स्वाभाव का हो जाता है ...लोगो से कपट पूर्ण व्यव्हार करता है ऐसा जातक माता की सेवा करने वाला शत्रुओं से पीड़ित अर्श अवं मस्तिष्क रोग से पीड़ित होता है .....
यदि षष्ठेश षष्ठ भाव में ही हो जातक कंजूस होता है तथा व्यय करने के नाम से उसकी जान निकलती है ऐसा जातक अपने परिजनों से शत्रुता रखता है तथा दुसरो से प्रेम बनाये रखता है ...अपने ही स्थान में निवास करता है ऐसे जातक के सभी कष्टों का नाश हो जाता है शत्रुओं के मन को मर्दन करने में वह साक्षात् काल होता है यदि शाश्ठेस क्रूर गृह हो या पाप प्रभाव में आया हो जातक व्यर्थ का अभिमान करने वाल तथा विविध रोगों से पीड़ित होता है ..
ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का सप्तम अवं अष्टम स्थान गत फल....यदि षष्ठेश सप्तम स्थान में हो तो जातक जीवन साथी क्रूर स्वाभाव का (स्त्री/पुरुष ) व झगडालू होता है देखने में भी असुंदर और स्वरुप विहीन होता है ...ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन नरक तुली होता है यदि षष्ठेश अत्यंत पाप प्रभाव में हो तो जातक को स्त्री सुख से वंचित कर देता है ....ऐसे जातक को धन की कमी नहीं होती तथा वह सर्वगुण संपन्न मणि व्यक्ति होता है कार्य-व्यवसाय में उसे हनी होती है षष्ठेश चर राशी में हो तो व्यवसाय बदलते रहते हैं ....षष्ठेश शुभ प्रभाव में हो तो स्त्री बंध्या अर्थात संतानोत्पत्ति में अक्षम व गर्भ गिराने की प्रवृत्ति वाली होती है....उसकी स्त्री को अपनी काया से बहुत प्यार होता है ...यह अनुभव सिद्ध बात है की षष्ठ भाव के स्वामी की जाह्न स्थिति होती है वहां उस भाव फल का नाश होता है यहाँ भी यही स्थिति है सप्तम में स्थिति दाम्पत्य जीवन का नाश कर रही है....
यदि षष्ठेश की स्थिति अष्टम में हो तो जातक रोगी होता है सूर्य षष्ठेश हो कर अष्टम में हो तो जातक न्यायी , नेत्र विकारी अवं हिंसक स्वाभाव का होता है.... चन्द्र षष्ठेश हो कर अष्टम में हो तो जातक राज्य पक्ष से दंड पाने वाला, चोरो से संतप्त, ऋणी, यात्रा में कष्ट पाने वाला तथा क्षीण चन्द्र हो तो जातक अल्पायु होता है...मंगल षष्ठेश हो तो जातक सज्जनों का विरोधी, नीच कर्म रत, रक्त चाप, रक्त विकार, अर्श, अवं पित्त रोगी होता है ...यदि बुध षष्ठेश हो तो जातक क्रोधी, घमंडी, तथा यदि बुध पपक्रांत हो तो जातक पागल हो जाता है ....गुरु षष्ठेश हो तो जातक को मामा से बैर, बच्चो का सुख कम व मति भ्रम से पीड़ा होती है ...यदि शुक्र षष्ठेश हो तो जातक को स्त्री संग से देह हनी और विविध रोग तथा तथा यदि शनि षष्ठेश हो तो जातक को वाट-पित्त के कुपित होने से कष्ट होता है
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का नवम भावगत फल...यदि षष्ठेश नवम भाव में हो तो जातक के जीवन में , उसके कार्य-व्यवसाय में अनेको उतर-चढाव आते रहते हैं...वो ये लीला देख कर खुद हतप्रभ हुआ रहता है...ऐसा जातक कबाड़ या लकड़ी पत्थर बेचने वाल होता है यदि शुभ प्रभाव में अथवा अशुभ गृह हो कर षष्ठेश नवम भाव में गया हो तो जातक का स्वाभाव क्रूर हो, उसके पैरो में रोग हो...या वह लंगड़ा हो ऐसा जातक सहोदरों से बैर करने वाला, देव गुरु , ब्रह्मण की निंदा करने वाला होता है गुरु द्वेषी तथा शास्त्र पुराणों को न मानने वाला होता है ...यदि षष्ठेश शुभ प्रभाव में हो तो जातक निरोगी, धर्मात्मा, सच्चे मित्रो से युक्त एवं सम्मानीय होता है.....
यदि षष्ठेश दशम भाव में हो तो जातक अपनी माता से बैर रखता है ऐसा जातक पिता की संपत्ति को नष्ट करने वाला, दुष्ट बुद्धि, तथा परदेश गमन करने वाला तथा वहां सुख का अनुभव करता है ...यदि षष्ठेश शुभ गृह हो तो जातक पिता से स्नेह करने वाला समय पड़ने पर पिता की सेवा करने वाला, माता से लाभान्वित, सर्वदा निरोगी, बलवान, साहसी और धन-धान्य से परिपूर्ण व सुखी होकर अपने वंश में श्रेष्ठता प्राप्त करता है....
ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
षष्ठेश का आय एवं व्यय भाव गत फल यदि षष्ठेश आय भाव में हो तो जातक सब से ही शत्रुवत व्यव्हार करता है, शत्रु के द्वारा ही मृत्यु के मुख में जाता है, ऐसा जाता चतुष्पदो से लाभ प्राप्त करता है चोरो द्वारा हनी होती है पुत्र सुख से रहित विविध रोगों से कष्ट पाने वाला होता है यदि शुभ गृह षष्ठेश आय भाव में हो तो जातक चौपायों के व्यापर से लाभ कमाता है, निरोगी व सुख-साधन संपन्न जीवन व्यतीत करता है
यदि षष्ठेश हनी भाव (12th) में हो तो तो यहाँ ऐसे जातक का विपरीत राज योग बन जाता है ...(शास्त्रों के अनुसार) किसी त्रिक भाव का अधिपति वापस त्रिक भाव में बैठ गया है. किसी दुष्ट भाव का अधिपति जिस bhav में बैठा होगा उसकी हानि करेगा...यहाँ एक हानि का अधिपति दुसरे हानि भाव की हानि करेगा...अत; शुभ फल डाटा हो जायेगा ...अगर षष्ठेश पापी अथवा अशुभ गृह हो तो ऐसा जातक सदा रोगी, कार्य व्यवसाय में हानि उठाने वाला , दरिद्र, विदेश वस् में हानि, भाग्य को मानने वाला, विद्वानों का द्वेषी कमी परस्त्री गमन करने वाला तथा मन-सम्मान की चिंता न करने वाला होता है ...
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