Friday, 21 December 2012

शुभ संध्या दोस्तों ...जय बाबा महाकाल।।

स्वप्न और शकुन .......21.12.2012

कभी-कभी हमजो स्वप्न देख्तेहें उस से हमें प्रसन्नता भी होती है, दुःख भी होता है, घृणा भी होती है, रोते भी हैं, भयभीत भी होते हैं ...दरअसल ये हमारे कुक्ष्म शारीर की गतिविधिया होती हैं। कहावत है "जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन"...हमारे विचार राजस, तामस, सत्व इन तीन गुणों में से जिसे प्रबावित होते हैं इन्सान को उसी तरह के स्वप्न दिखाई देते हैं।
अपनी जाग्रतावस्था में हम अपनी विचारधारा पर नियंत्रण रखने में सक्षम होते हैं लेकिन अचेतावस्था में नहीं। स्वप्न हम अपनी इच्छानुसार नहीं देख सकते। शयनावस्था में मस्तिष्क की गतिविधि बिना किसी निर्देशन के या नियंत्रण के होती हैं। स्वप्न प्राय:लोगो को ऐसी स्थितयों और स्थानों में ले जाते हैं जो उनके व्यक्तित्व और अनुभव से सम्बंधित नहीं होते। परन्तु जो कुछ उन्हें स्वप्न में दिखाई देता है उसके सम्बन्ध में देखने, पढने या कहीं सुनने में, उसका ज्ञान उन्हें अवश्य प्राप्त होता है।
स्वप्न बिलकुल सामान्य घटनाओं या वस्तुओं के संबंद में भी हो सकते हैं उनमे हमारे बचपन की घटनाओ का भी दर्शन हो सकता है,रमणीय स्थानों के दर्शन, धार्मिक स्थानों के दर्शन, विभत्स दर्शन, मारकाट , लड़ाई झगडा, यौन सम्बन्ध, फकीरी हालत, हर्ष, रोना, दीपक, प्रकाश, दुःख ....आदि-आदि। में व्यक्ति होगा जो स्वप्न न देखता हो। ऐसा हो सकता है की मस्तिष्क हीन पागल या नितांत मुर्ख स्वप्न न देखते हो। परन्तु अधिक सम्भावना यही है की वे भी स्वप्न देखते होंगे शायद जाग्रतावस्था में .
एरिस्टोटल (Aristotle) ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ़ एनिमल्स में लिखा है की केवल मनुष्य ही नहीं वरन जानवर भी स्वप्न देखते हैं। पिल्नी ने तो ये भी कहा है की छोटे शिशु अक्सर स्वप्नों में ही खोते रहते हैं ..हँसते हैं, मुस्कुराते हैं, रॉते हैं, चौंकते हैं ।
यह अक्सर देखा गया है की स्वप्न में कोई अशुभ बात या घटना देख कर लोग अनेक प्रकार से आशंकाओं से घिर जाते हैं, घबरा जाते हैं ...लेकिन ऐसा नहीं होता।।।आप सभी स्वयं देखेंगे की जिन स्वप्नों को आप गलत, घ्रणित समझ रहे थे उसमे कुछ शुभ अशुभ घटना क्रम छुपा हुआ है ...ये सब पूर्वाभाश होते हैं जो की अबूझ पहेली के रूप में आपको दिखाई देते हैं।।।आप सबकी कुछ शंकाओं का निवारण करने का प्रयास करुन्गाकाही कोई त्रुटी भूल हो तो क्षमा कीजियेगा। धन्यवाद ......देवल दुबलिश।। शिव ॐ।।

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