Sunday, 30 December 2012

सप्तम भावस्थ विभिन्न गृह फल......30/12/2012
सूर्य .....यदि सप्तम भाव में सूर्य हो तो जातक के विवाह में विलम्ब होता है दाम्पत्य जीवन का पूर्वार्ध प्राय: कलहपूर्ण होता है पति-पत्नी के बीच में विचार वैमनस्य रहता है ...मिथुन, तुला कुम्भ का सूर्य जातक को शिक्षा विभाग से सम्बंधित करता है तथा इसी में उसकी उन्नति होती है ऐसा जातक कुशल नीतिज्ञ होता है तथा उसे एक या दो संतान होती है..जीवन के पूर्वार्ध में ही जातक के चश्मा चढ़ने की नौबत आ जाती है ...अग्नि राशी का सूर्य विवाह में देरी करता है अपवाद रूप से दो विवाह होते हैं ऐसे जातक के सर पर तालू में बल कम होते हैं...ऐसे जातक की प्रवृत्ति स्वतंत्र रहने की होती है...यदि सूर्य स्त्री राशियों में हो तो व्यापार से लाभ मिलता है..और राजनीती में जाने से सफलता मिलती है ... 
यदि सूर्य जल राशी का हो तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नति करता है सिंचाई विभाग में अधिकारी होता है अथवा विज्ञानं के क्षेत्र में चला जाता है...पुरुष राशी का सूर्य हो तो जीवन पर्यंत उतर-चढाव बने रहते हैं...संतान कम होती है ...
स्त्री राशी का सूर्य अधिक संतान देता है प्राय: सप्तमस्थ सूर्य के निम्न फल अनुभव में आते हैं पति अत्थ्वा पत्नी प्रभावशाली, व्यव्हार कुशल, आपातकाल में एक दुसरे के सहायक, अतिथि सेवक, तथा नौकरों से प्रेम से कार्य करने में कुशल...ऐसे जातकों को उद्योग या साझेदारी में भी सफलता मिलती है 
मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, और कुम्भ ....ये पुरुष राशी होती हैं ...और वृषभ, कर्क,कन्या,वृश्चिक,मकर, और मीन स्त्री संज्ञक राशी...
मेष, कर्क, तुला, मकर...ये चर राशी 
वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ ..ये स्थिर राशी 
मिथुन, कन्या, धनु, और मीन....द्वि स्वाभाव राशी..
मेष, सिंह धनु,....अग्नि राशी..
कर्क, वृश्चिक, और मीन.....जल तत्व..
वृषभ, कन्या और मकर....पृथ्वी तत्व...
मिथुन, तुला, और कुम्भ.....वायु तत्व...

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
सप्तमस्थ चंद्रमा फल....
यदि सप्तम भाव में चन्द्र हो तो जातक को दाम्पत्य जीवन का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता है ..उच्चस्थ चन्द्र द्विभार्य योग बनाता है ...अर्थत जातक या जातिका के वैवाहिक जीवन में कुछ अड़चन ..परेशानी, मत विभिन्नता के कारन पति-पत्नी का अलग रहना...अथवा तलक जैसी नौबत आती हैं ..अत: २१ से २४ वर्ष की आयु तक विवाह से बचे अथवा कोई उपाय करें....हालाँकि ऐसे जातक का विवाह के शीघ्र बाद भाग्योदय होता है और पत्नी के रहने तक उन्नति होती रहती है ..पत्नी से अलगाव या मृत्यु पश्चत स्थिति विपरीत बन जाती है ...ऐसे जातक के जीविका के साधन भी बदलते रहते हैं ..चन्द्र चंचल होता है सौर मंडल में सर्वाधिक गति वाला गृह होने के कारन मन, धन का कारक होता है...जीवन साथी का चंचल होना स्वाभाविक है...और यहीं से भूले प्रारंभ होती हैं...इसलिए इस उपरोक्त समय से बचना चाहिए अथवा कोई उपाय कर लेना चाहिए....ऐसे जातक मन, व्यवसाय, नौकरी कुछ भी स्थिर नहीं रह पाती ...
जिस जातक की कुंडली में सप्तम स्थान में चन्द्र हो उसे किरणे की दुकान, दूध, मेडिकल स्टोर , होटल, ढाबा, बेकरी , बीमे का कार्य, चंडी, इत्यादी का कार्य लाभप्रद रहता है...और अगर सप्ताम्स्थ चन्द्र पर गुरु जैसे सात्विक गृह की दृष्टि हो तो सोने पे सुहागा...उपरोक्त कार्यो के आलावा प्रिंटिंग, प्रकाशन,किसी सन्स्थ का अध्यक्ष,..आदि...अत: ऐसे जातको को इस और विचार करना चाहिए...पुरुष राशी का चन्द्र स्व-पत्नी में आसक्ति बनाये रखता है ...स्त्री राशी का चन्द्र व्यभिचार की और आकृष्ट करता है ...यदि चन्द्र अग्नि राशी का हो तो जीवन साथी का चेहरा गोल होता है और कुछ समय पश्चत तुन्दालता आती है...जातक majakiya swabhv का होता है..हर समय खुश रहने वाल...लेकिन भावुक...भी होता है......वायु तत्व का चन्द्र हो तो जीवन साथी दार्शनिक, ज्ञानी और प्रभावशाली होता है

ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ मंगल फल ...
सप्तम भाव में मंगल हो तो जातक की स्त्री और स्वयं जातक दोनों ही उग्र स्वाभाव के होते हैं...अपने आपको एक दुसरे श्रेष्ठ दिखाना इनकी आदत और दिनचर्या में शामिल होती है....अपनी कही घटिया बात..अल्प ज्ञान की बात को सर्वोपरि मन न और दुसरो की कही हुई उत्तम बात में निम्नता देखना इनकी खासियत होती है ...ये मगली योग भी कहलाता है मंगली योग (१, ४, ७, ८, १०, 12) एसा मंगल होने से योग बनता है ...ऐसे जातक के जीवन में दाम्पत्य जीवन में कलह -कलेश का वातावरण बन न कोई बड़ी बात नहीं...अहेंकर इतना की अपने आगे किसी को कुछ न समझना ...और अपना प्रभुत्व स्थापित करना इनका मेन उद्देश्य होता है ....
मगल सप्तम भाव में किशी भी राशी का हो...एक फल बहुत अच्छे से समझ आया की ऐसा जातक हर कम करने को तत्पर रहता है लेकिन उसे सफलता पूर्वक पूरा करने में सक्षम नहीं होता विघ, बाधा, रोक-रूकावट इतनी होती हैं की उसकी हिम्मत पस्त हो जाती है.....जिन लोगो को ऐसा अनुभव हो उन्हें तत्काल कोई शुभ मुहूर्त देख मंगल के जप करवा इसकी शांति का लेनी चाहिए ...और अपने मित्रो, अपने से छोटो को प्रेम पूर्वक बोलना चाहिए...अगर वे किसी भी प्रकार अपने किसी कार्य -उद्योग में सफल हो जाते हैं तो प्रतिपक्षियो से स्पर्धा...झगडे टंटे चलते रहते हैं ....
यदि मंगल अग्नि राशी का हो तो प्रेस, का धंधा लाभ दायक रहता है .....प्रथ्वी तत्व का हो तो भवन निर्माण, खेतीबाड़ी, का व्यवसाय...लाभ दायक..., वायु तत्व में हो तो वाहन चालक, वाहन को मरम्मत करने का कम, वायु यान चलाने का कम अर्थात पायलट तथा जल तत्व का मंगल हो सर्जन और इन्जिनिएरिंग जैसे कार्य लाभदायक रहते हैं ..यदि स्त्री राशी का सप्त्मष्ठ मंगल हो तो जातक संकटकाल में घबराता है ...लेकिन पुरुष राशी में हो तो धैर्यशाली व सहिष्णु होता है ऐसे जातक के मित्र बहुत कम होते हैं, पत्निसुख कम तथा साले का सुख भी अल्प होता है..... इस भाव का मंगल डाक्टरों , सर्जन , पुलिस अधिकारीयों के लिए शुभ फलदायक होता है फैज्दारी के वकीलों को ऐसा मंगल यशोभागी बनता है ..इतने पर भी जातक में कामेच्छा तीव्र होती है ..वो कोई अनुचित कार्य करे तो वो उजागर हो जाता है ...झगडे झंझट तो चलते ही रहते हैं....क्रमश:

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
सप्तमस्थ बुध का फल......
यदि सप्तमस्थ बुध हो तो जातक को स्त्री सुख तो मिलता है ..लेकिन रति सुख के समय ऐसा जातक शीघ्र ही स्खलित हो जाता है ..विवाह के समय झगडे चलते हैं ...ऐसा जातक लेखक हो तो समय संकट में भी व्यतीत होता है हाँ, स्त्री के मामले में जातक सौभाग्यशाली कहा जा सकता है .....धन संग्रह करने की रूचि उसमे स्वाभाविक होती है तथा पति के प्रत्येक कार्य में उसे सहयोग करती है ऐसे जातक की स्त्री पुरुषाकृति की तथा कर्कश वाणी बोलने वाली होती है ...
सप्त्मस्थ गुरु का फल...
यदि गुरु सप्तमस्थ हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं ऐसा प्राचीन मनीषयों का मत है लेकिन अनुभव में शुभ फल कम अशुभ फल अधिक मिले हैं अग्नि राशियों और मिथुन राशी का सप्त्मस्थ गुरु शिक्षा के लिए शुभ फलदाता होता है कारण मिथुन राशी बौद्धिक राशी के अंतर्गत आती है ऐसा जातक पढ़ाकू होता है ..पत्नी शुद्ध सात्विक विचारो की मलती है ...ऐसा जाता उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक, न्यायाधीश , या वकील बन जाता है शिक्षा-विभाग में नौकरी करने वालो तथा वकीलों के लिए यह योग शुभ होता है ..जल राशी या कन्या राशी में रहने पर बुध सांसारिक सुख में न्यूनता लता है ..प्राय: पति-पत्नी में सम्बन्ध मधुर नहीं रहते यदि गुरु अशुभ प्रभाव में हो तो जीवन-साथी जातक को छोड़ कर भाग जाता है या तलक की नौबत आ जाती है...यदि गुरु शनि से प्रभावित हो तो जातक को विवाह न करने की इच्छा बनती है ...यदि राहु साथ में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग निष्पन्न हो जाता है अपवाद रूप शादी हो भी जाये तो पति-पत्नी में अलगाव अथवा तलक की नौबत आ जाती है...लेकिन तलक नहीं होता...एक-दुसरे से अलग रहते हैं....नीच का अथवा तुला राशी में स्थित गुरु द्विभार्या योग बनत है....यानि दो विवाह होते हैं...पुएरुष राशी का गुरु हो तो जातक पत्नी को मात्र भोग्या समझता है ...जातक की दृष्टि में पत्नी का दर्जा निम्न श्रेणी का नौकर जैसा होता है...वो अपनी पत्नी को मात्र कामवासना शांत करने का साधन समझता है....यदि स्त्री राशी का गुरु हो तो जातक का व्यापर की और रुझान होता है तथा वह अपनी पत्नी और बच्चों से अत्यधिक प्रेम करता है पत्नी भी पतिपरायण होती है..तहत प्रत्येक कार्यों में मंत्री की भांति सलाह देती है सेवक की तरह सेवा करती है और माता की तरह पालन करती है ऐसे जातक को मध्य आयु में विधुर का जीवन व्यतीत करना पड़ता है ....क्रमश:

ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
सप्तमस्थ शुक्र फलम....
Yadi सप्तम भाव में शुक्र हो तो जातक के चरित्र को छोड़ कर अन्य फल शुभ ही होते हैं...कुंडली में शुक्र धनेश और सप्तमेश होता है, फलत: सप्तम भाव में वह बलवान हो जाता है..(शुक्र सप्तम भाव का प्रबल कारक है ) यदि शुक्र उच्च का हो तो अमीर घराने की एवं सुंदर पत्नी मिलती है ...मेष, मिथुन और तुला राशी हो तो पुरुष की भांति सुन्दरता लिए पत्नी मिलती है...जो व्यव्हार कुशल, विदुषी, एवं चतुर होती है तथा कुटुम्बी जानो के साथ प्रेमपूर्वक रहती है ऐसा जातक अपनी पत्नी को प्राणों से भी अधिक प्रिय समझता है ...पत्नी भी जातक पर अपना अधिकार जमा लेती है तथा अल्प संतान की ही माता बनती है ...ऐसी स्त्री को अछ्छे से पता होता है की उसे अपने पति को कैसे वश में करना है अत: वह पूर्णता पति पर अधिकार जमा लेती है...ऐसा जातक अत्यधिक कामुकता के कारन अपना स्वास्थ्य क्षीण कर लेता है ...यदि स्जिघ और कुम्भ राशी में शुक्र हो तो पत्नी माध्यम कद और स्थूल देह की, बुद्धिमती तथा प्रसन्न रहने वाली, धनु राशी में शुक्र हो तो लम्बे कद की, सुंदर धैर्य रखने वाली तथा बनाव-श्रृंगार को अधिक महत्त्व देने वाली,, जल राशी में शुक्र हो तो स्वार्थी, कलह प्रिय व कुटुंब से अलग रहने वाली तथा खुला हाथ खर्च करने वाली व सत्ता अपने हाथ में रखने वाली होती है....

ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
सप्त्मस्थ शनि फलम...
यदि सप्तम भाव में शनि हो तो जीवन साथी देर से अथवा बड़ी आयु वाला या विजातीय होता है ...स्त्री की कुंडली में शनि सप्तम में हो तो विधुर हो गए व्यक्ति के साथ विवाह होता है...पति आयु में बड़ा, धनी, मणि, और प्रेम करने वाल होता है...यहाँ ज्ञातव्य है की शनि प्रेम के प्यासे होते हैं उसी तरह शनि प्रधान जातक आजीवन प्रेम और अपनेपन के लिए तरसते रहते हैं....१००० अपनों की भीड़ में भी अपने को अकेला पाते हैं.... जल राशी अथवा अग्नि राशी का शनि एक ही विवाह का योग बनत है विचार वैमनस्य होने पर वाकयुद्ध होने तक ही नौबत आती है किन्तु फिर मेल-मिलाप हो जाता है ...जीवन साथी सुहृदय होने से गृहस्थ सुख अच्छा मिलता है लेकिन अर्थाभाव बना रहता है ..शनि आभाव के सूचक है अत: जिस भाव में स्थित हो उसकी वृद्धि ...और जिस भाव पर उनकी दृष्टि (तृतीय , सप्तम, दशम.) हो उस भाव का नाश करते हैं...ऐसे जातक का येन-केन प्रकरेण जीवन व्यतीत होता है लेकिन अंतिम परिणाम सुखद होता है क्युकी ऐसा जाता अंत में निखर कर शुद्ध कंचन बन जाता है....यही शनि की सबसे बड़ी खूबी है है की वे इन्सान को समस्त कष्ट देकर उसकी धैर्य शक्ति बढ़ाते हैं और उसे स्वर्ण से कंचन बना कर बेशकीमती बना देते हैं अत: शनि प्रदत्त कष्टों से किसी को घबराना नहीं चाहिए...जीवन के तमाम उतार-चढाव बने रहते हैं ...स्व-राशी का शनि अथवावृषभ एवं कन्या का शनि द्विभार्य योग.(दो विवाह का ) बनता है ऐसी अवस्था में तलाक हो कर पुन: विवाह होता है ...मिथुन, तुला, कुम्भ, में शनि होने से संतान कुछ देर से अथवा संतान के जनम में काफी अंतर होता है...उच्च का शनि दुसरे विवाह की स्थिति में श्रेष्ठ रहता है ....
सप्त्मस्थ राहु फलम 
प्राय: सप्तम भाव में राहु के अशुभ फल ही प्राप्त होते हैं...वाही स्थिति केतु की होती है ...आचार्यो के मतानुसार पूर्व जनम के दुस्कृत्यो का परिणाम सप्तम का राहु होता है ....अशुभ कर्मो के परिणाम स्वरुप राहु कुंडली में सप्त्मस्थ होता है ...ऐसे जातक का विवाह नहीं होता अथवा विवाह हो भी जाये तो प्रेम नहीं रहता ...ऐसा विवाह न हो कर...विवाह का पवित्र बंधन न हो कर मात्र एक देह वासना शांत करने का अनुबंध माध्यम होता है ..हाँ स्त्री राशी का राहु शुभ फल देता है विवाह शीघ्र हो जाता है और प्रेम भी बना रहता है ...सामान्यता सप्त्मस्थ राहु के निम्न फल अनुभव में आते हैं ...देर से विवाह, अंतरजातीय विवाह पुनर्भु स्त्री , अधिक आयु वाली स्त्री, विधवा से अवैध सम्बन्ध जोड़ना या विवाह होना अदि ...

Saturday, 29 December 2012

शुभ प्रभात .......30/12/2012.....टाइम ..06:34 
हम हमेशा शर्मिंदा ही रहेंगे ....क्युकी ऐसी मर्दानगी।।हमें हर रोज देखने को मिलेगी। इसलिए हम हमेशा शर्मिंदा रहेंगे। रोज अख़बार में डरते-डरते देखेंगे की कुछ और वीर-धीर पुरषों ने किसी मासूम पर अपनी मर्दानगी दिखाई।।जब देखेंग की हाँ ...हम फिर शर्मिंदा होंगे ..और ये सिलसिला मर्दानगी का और शर्मिंदगी का निरंतर चलता रहेगा।।  जय बाबा महाकाल 

Friday, 21 December 2012



  • ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
    शिव ॐ...
    अथ सप्तम भाव विवेचन
    किसी भी व्यक्ति की कुंडली में सप्तम भाव बहुत महत्वपूर्ण होता है ...कुंडली के चार केंद्र स्थानों में से ये भी एक केंद्र स्थान है ..इसे जाया भाव भी कहते हैं, मानव जीवन के प्रमुख आधार स्तम्भ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति इनमे से कामसुख का विचार सप्तम स्थान से ही किया जाता है, इस भाव का महत्त्व इसलिए भी है की प्रकृति को विस्तार देने में जातक का कितना योगदान है ...यह इस भाव से ज्ञात होता है स्त्री, डेली रोजगार, जातक को जीवन सहचरी या सहचर कैसा मिलेगा, कामशक्ति कैसी है, विवाह कब होगा, क्या वह प्रेम-विवाह होगा, पत्नी कैसे घर की होगी, पत्नी या पति का त्याग तो नहीं करना पड़ेगा, विवाह एक होगा की अधिक ससुराल पक्ष से धन मिलेगा की नहीं, तथा व्यापर वाणिज्य नानी, गुप्तांग, पुत्र के पौरुष , यात्रा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है ...
    इस भाव का विवेचन करने के लिए भाव, भाव में स्थित गृह, भाव का स्वामी, भाव पर ग्रहों की दृष्टि , भावेश कहाँ स्थित है तथा वह किस गृह से द्रष्ट है...महादशा-अन्तर्दशा अवं गोचर इत्यादि का भली प्रकार अध्यन कर लेना चाहिए....
    सप्तम भाव में मेष राशी ....स्वामी (मंगल). यदि सप्तम स्थान में मेष राशी हो तो जातक की पत्नी कर्कशा, क्रोध करने वाली, तथा इतनी तुनक मिजाज होती है की बात-बात पर रूठना, व्यर्थ में हठ करना , घर में कलह का वातावरण बनाये रखना उसके लिए सहज होता है...धन और आभूषण के प्रति उसका लगाव बहुत अधिक होता है... ऐसा जातक अपने स्वार्थ को ही प्रधानता देता है ...यह ठीक है की ऐसे जातक को गहराई से सोचने अवं तदनुरूप कार्य करने का पूर्ण ज्ञान होता है लेकिन उसका दृष्टिकोण मात्र स्वार्थपूर्ति ही रहता है...इस लग्न वालो के लिए शुक्र सप्तमेश व धनेश बनता है ...यदि मंगल बलवान हो तो जीवन सहचरी की आयु को बाधा देता है लेकिन यदि निर्बल या पाप प्रभाव में हो तो उसकी आयु काम करता है ...
  • "ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:"
    सप्तम भाव में वृषभ राशी...स्वामी शुक्र..
    यदि सप्तम भाव में वृषभ राशी हो तो शुक्र की स्थिति का विशेष अध्ययन करना चाहिए क्यूंकि वह भोग और कामवासना के भावो का अधिपति बनता है ...शुक्र की पंचम भाव, सप्तम भाव, अवं द्वादश भाव में स्थिति जातक को अति कामी बना देती है क्यूंकि ऐसी स्थिति में भोग की भावना के स्थान से उसका प्रगाढ़ सम्बन्ध बन जाता है...एअसे जातको को सुंदर जीवन साथी मिलता है किसी से कैसे व्यव्हार किया जाये यह उसे भली-भांति आता है ऐसे जातक की वाणी में शहद घुला रहता है तथा मौज-शौक के लिए धन एवं समय व्यय कर देना प्राय: अच्छा लगता है...यदि सप्तम में वृषभ का चन्द्र हो तो विवाह में जल्दबाजी ठीक नहीं होती...
    सप्तम भाव में मिथुन राशी स्वामी बुध .....
    यदि सप्तम भाव में मिथुन राशी हो तो बुध दो केंद्र स्थानों सप्तम एवं दशम का अधिपति बनता है लेकिन सौम्य गृह होने के कारण केन्द्राधिपत्य का दोष लग जाने के कारण पापी भी बन जाता है ...चूँकि भचक्र में बुध को कुमार माना जाता है इसलिए दाम्पत्य जीवन के प्रारंभ में ही अच्छे बुरे फल दे देता है ...यदि बुध शुभ प्रभाव में हो तो जातक का विवाह शीघ्त्र हो जाता है और दाम्पत्य जीवन में भी उसे विशेष अशुभ फल नहीं मिलते....यदि बुध अशुभ प्रभाव में हो तो तथा पुरुष की कुंडली में शुक्र और स्त्री की कुंडली में गुरु निर्बल हो तो विवाह में देरी होती है ...सप्तम, सप्तमेश व बुध का यदि राहु, शनि, व सूर्य जैसे प्रथक्कता जनक ग्रहों के साथ युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध हो तो शीघ्र ही तलक जैसी नौबत आ जाती है ...जीवन साथी का स्वाभाव नम्रता लिए रहता है...कमावेग अधिक होने पर भी पथभ्रष्ट होने की इच्छा नहीं होती....September 22
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    शुभ प्रभात
    ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;
    सप्तम्स्थ कर्क राशी स्वामी चंद्रमा....
    यदि सप्तम भाव में कर्क राशी हो तो जीवन साथी सुंदर एवं कोमल प्रकृति वाला होता है ऐसे जातक का शारीर छरहरा तथा नयन नक्श तीखे होते हैं उसका व्यक्तित्व भावना प्रधान होता है यदि पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव में कर्क राशी हो तो तथा चंद्रमा सम राशी में बैठा हो तो उसे सुंदर मुखाकृति वाली शांतचित्त , कलंक रहित तथा अपने पति की सेवा में सदैव तत्पर रहने वाली पत्नी मिलती है ..जो इतनी भावुक होती है की थोड़ी सी कठोर बात भी उसके ह्रदय को कचोट जाती है उसे कठोर व्यव्हार से वश में नहीं किया जा सकता बल्कि प्यार और मीठे बोल से उसे अपना बनाया जा सकता है हवा में महल बनाना, दिवास्वप्न देखना, यथार्थ से मुह मोड़े रखना इसका स्वाभाव होता है जीवन की कठोर वास्तविकता को झेलना उसके वश में नहीं होता ...यदि चंद्रमा द्वादश भाव में अथवा पाप प्रभाव में हो तो जातक को विलासी, कामातुर एवं भोग प्रिय बना देता है... सप्ताम्स्थ कर्क राशी और चन्द्र के प्रभाव के कारन द्वि भार्या योग बनता है .....
    • September 23
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      शुभ प्रभात
      ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;
      सप्तमस्थ सिंह राशी...स्वामी सूर्य
      सप्तम बहव में यदि सिंह राशी हो तो जातक के जीवन साथी का मिजाज थोडा उग्र होता है तथा तुनकमिजाजी में उसकी बराबरी करना संभव नहीं होता...उसकी इच्छा के प्रतिकूल किया गया कार्य उसे मानी नहीं रहता फलत: घर में कलह उत्पन्न हो जाना कोई बड़ी बात न होगी.. ऐसे जातक को साहसी व स्वाभिमानी भी कहा जा सकता है...पुरुष की कुंडली में शुक्र तथा स्त्री की कुंडली में गुरु, सूर्य व चंद्रमा से द्रष्ट हो या युत हो तो जीवन सहचर या सहचरी बड़े घराने से सम्बंधित होती है... ऐसे जातक अपने बनाव श्रृंगार का विशेष ध्यान नहीं रखते फलत: सभा-सोसाइटी में इन्हें अलग से पहचाना जा सकता है विपत्ति के समय भी इन में व्यग्रता नहीं आती...मानव मन के परखी होते हैं तथा समय के साथ चलने के कारन ऐसे जातक को चतुर कहा जा सकता है
      सप्तमस्थ कन्या राशी ...स्वामी बुध
      यदि सप्तम भाव में कन्या राशी हो तो बुध चतुर्थेश और सप्तमेश बनता है ...यहाँ बुध प्रबल पापी होता है यदि बुध पर प्रथकता जनक ग्रहों का प्रभाव पड़े तो जातक को शीघ्र ही अपने जीवन साथी से प्रथक करा देता है यदि बुध अत्यधिक पापा प्रभाव में आया हो तो विवाह ही नहीं होने देता...यदि बुध बलवान हो तथा शुभ प्रभाव में हो तो जीवन साथी गुणवान, सुंदर शिक्षित, बुद्धिमान, ज्ञान्प्रिया अवं मन सम्मान से युक्त मिलता है जीवन साथी जहाँ सुंदर व सुशिल होता है वहीँ वह कोमल अंगो से युक्त तथा धन सम्पदा अर्जित करने वाल होता है...ऐसा जातक नीति एवं मर्यदयुक्त वचन बोलने वाला तथा संकटों एवं बाधाओं में अपने जीवन साथी का दृढ चित्त से साथ निभाने वाला होता है धन एवं विलासिता की चीजों की और उसकी विशेष रूचि होती है ....


    • ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
      सप्तमस्थ तुला राशी स्वामी शुक्र.....
      यदि सप्तम भाव में तुला राशी हो तो शुक्र की स्थिति का विशेष विचार करना चाहिए क्यूंकि शुक्र सप्तमेश होने के साथ-साथ सप्तम का कारक भी होता है यदि शुक्र पर शुभ प्रभाव हो तो जातक को कामसुख अच्चा प्राप्त होता है जीवन-साथ सुंदर तीखे नयन-नक्श वाला, धनि-मानी, एवं रति कलाओ को जानने वाला होता है जिस जातक की कुंडली में शुक्र पंचम भाव में बलवान हो कर स्थित हो अथवा पंचम पर दृष्टि हो अथवा पंचमेश के साथ लग्न में, त्रिकोण में स्थित हो वह जातक प्रेम विवाह करता है यदि शुक्र पंचम या द्वादश में हो तथा शनि भी बलवान हो तथा मंगल की दृष्टि में हो तो जातक में अत्यधिक कामवासना होती है ऐसे जातक देश, कल, परिस्थिति का भी ध्यान नहीं रखते....विलासिता पूर्ण जीवनयापन करना ही इनका मुख्य उद्देश्य होता है...यदि शुक्र पाप प्रभाव में हो तो जातक के जीवन साथी की मृत्यु शीघ्र हो जाती है तथा संतान सुख भी माध्यम रहता है
      सपत्मस्थ वृश्चिक राशी ...स्वामी मंगल...
      यदि सप्तम भाव में वृश्चिक राशी हो तो मंगल सप्तमेश व द्वादशेश ..दोनों बनता है ..द्वादश भाव से शय्या सुख का विचार किया जाता है...यदि मंगल पापाक्रांत हो तो शय्या सुख से हीन कर देता है वैसे भी मंगल कामसुख में अत्यधिक बाधा कारक होता है ...यदि मंगल एवं शनि अपने बुरे प्रभाव को दृष्टि द्वारा लग्न तथा शुक्र पर डाल रहे हो तो जीवनसाथी का व्यव्हार अत्यंत क्रूर होता है ऐसे जातक को जीवन साथी अल्प शिक्षित ही मिलता है....बाल्यकाल में ही उसे जीवन की निस्सारता का ज्ञान हो जाता है तथा अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है ...ऐसे जातक का कोई भी कार्य बिना विघ-बाधा के पूर्ण हो जाये, ऐसा संभव नहीं है...भाग्य की विपरीतता इसे ही कहते हैं ..जीवन की जंग ऐसे ही लोग लड़ते हैं....क्रमश:
      • प्तमस्थ धनु राशी ...स्वामी गुरु (ब्रहस्पति )
      • यदि सप्तम भाव में धनु राशी हो तो गुरु सप्तमेश व दशमेश बनता है ...और गुरु की स्थिति का विशेष अध्ययन करना चाहिए ..स्त्री जातक की कुंडली में गुरु पति का करक होता है और सप्तमेश हो कर तो और प्रबल हो जाता है फलत: गुरु जैसे प्रभाव में होगा वैसा ही फल भी प्रदान करेगा यदि गुरु बलवान हो अथवा शुभ प्रभाव में हो तो स्त्री को दाम्पत्य जीवन डीके पूर्ण सुख प्राप्त होता है लेकिन यदि गुरु पाप प्रभाव, में हो तोविप्रीत फल मिलते हैं ...अनुभव में यह भी आया है की गुरु केन्द्रधिपत्य दोष से दूषित हो कर शुभ फल प्रदाता नहीं रहता पुरुष जातक की कुंडली में गुरु बलवान हो तो उसकी पत्नी दीर्घजीवी होती है लेकिन यदि गुरु हीन्बली हो तो उसकी स्त्री पुरुषाकृति वाल, निष्ठुर स्वाभाव वाली, कलह प्रिय, पराये दोषों को देखने वाली दुसरो से इर्ष्या करने वाल, न्याय से हीन, बुद्धि रहित होती है... अहंकारी इतनी की जरा-जरा सी बात पर नागिन की तरह फुन्कारती है यह सही है की वह धनी परिवार की होती है ,...शिक्षित भी होती है....लेकिन संस्कार और मन-मर्यादा से हीन होती है
        सप्तमस्थ मकर राशी ...स्वामी शनि...
        यदि सप्तम भाव में मकर राशी हो तो जातक की पत्नी dambhi, क्रोधी व कलह प्रिय होती है...कलह करने की नवीन से नवीन युक्तियो की फैक्ट्री होती है अल्प शिक्षित होते हुए भी वह अपने बनाव श्रृंगार पर अत्यधिक ध्यान देती है ...पति की अपेक्षा आभूषण से लगाव होता है स्वभाव से संस्कार हीन, क्रोधी होने के कारण किसी का भी तिरस्कार ..अपमान कर देना उसके लिए कठिन नहीं है...ऐसी स्त्री देश, कल परिस्थिति की परवाह न कर केवल अपना हित साधती है ..अपने अहम् की तुष्टि मन-प्राण से करती है ...अत्यधिक लालच, खुदगर्ज होती है...ऐसी अवस्था में शनि सप्तमेश और अष्टमेश बनता है ...यदि शनि पर गुरु और चन्द्र का प्रभाव हो तो स्त्री धनाढ्य घर की पत्नी मिलती है तथा सेवापरायण होती है...अपने घर के मन-सम्मान के लिए सर्वस्व न्योछावर कर सकती है यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो अच्चा दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है भले ही मंगल दोष कितना प्रबल हो...शनि पत्नी का तथा मंगल मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हैं इनका पाप प्रभाव में आना उसे उग्र स्वाभाव वाला बनाएगा ही ...ऐसे जातक किसी भी प्रकार के बैर को सहज ही नहीं भूलते.....
        • September 26
        • Devel Dublish

          शुभ प्रभात
          ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
          सप्तमस्थ कुम्भ राशी ...स्वामी शनि
          सप्तमस्थ कुम्भ राशी हो तो शनि षष्ठेश व सप्तमेश बनता है ..लग्न के लिए अशुभ फलदायी बन कर शनि अपनी भुक्ति में धन और स्वास्थ्य की हानि करता है ...पत्नी कम संपन्न घर की होती है..रंग सांवला होता है ..अगर सप्तम भाव पर शनि की दृष्टी भी हो तो भी विवाह में देरी संभव है अथवा विवाह हो भी जाये तो पति=पत्नी को किसी कारन वश अलग रहना पद सकता है या नौबत तलक की भी आ सकती है यहाँ शनि की विछेदात्मक दृष्टि में फर्क इतना है की शनि आपके धैर्य की परीक्षा लेते हैं...मगल की दृष्टि हो तो तुरंत सब कुछ उत्तेजना में आकर पति-पत्नी गलत फैसला ले सकते हैं.....शनि आपको अपने फैसले पर विचर करने के लिए धैर्य प्रदान करते हैं...समय देते हैं...आपके बुद्धि, विवेक की परीक्षा लेते हैं...यही फर्क है शनि और मंगल .में .शनि इन्सान को कष्ट देकर उसे कुंदन बनते हैं जबकि मंगल उत्तेजन आवेश दिलाकर उसका नाश करते हैं....यदि सप्तम भाव पर शुभ गृह की दृष्टि हो यथा गुरु और चंद्रमा की तो जातक का जीवन साथी संघर्ष शील, विपत्तियों का दृढ़ता पूर्वक मुकाबला करने वाला , इश्वर व गुरु से डरने वाला तथा अपने से बड़ों का आदर..सम्मान करने वाला होता है वह पुण्य कार्यो में रूचि rakhta है और समस्त पुण्य दायक कार्यों में यथा शक्ति सहायता करता है ...इसकी संतान भी श्रेष्ठ व गुणवान होती है.....
          सप्तमस्थ मीन राशी....स्वामी गुरु
          यदि सप्तमस्थ मीन राशी हो तो जातक की स्त्री उज्जवलवर्ण न हो कर भी उसके नयन-नक्श सुंदर होते हैं...स्वाभाव से चंचल, बतों में चपल, लेकिन सीधी सच्ची और देश काल और परिस्थिति के अनुकूल बातें करने वाली होती है गुरु यहाँ सुखेश (चतुर्थेश ) व सप्तमेश बनता है अत: केन्द्रधिपत्य दोष से पीड़ित होता है और अगर केंद्र (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम ) में बैठ गया हो तो गुरु की बलवान स्थिति ही जातक को सहारा देती है ..बहुत सुख प्रदान करती है ..किसी एनी गृह के साथ गुरु स्थित हो तो ऐसी स्थिति में गुरु अपना समस्त शुभता उस गृह को प्रदान कर देता है... गुरु पर मंगल का प्रभाव हो तो जीवनसाथी की आयु क्षीण होती है शनि, सूर्य एवं राहु का प्रभाव पति पत्नी में प्रथकता ला देता है ...उच्च का गुरु हो तो गुणवान पुत्र उत्पन्न होते हैं तथा जातक के जीवन साथी को तैराकी का शौक होता है..!!
        शुभ प्रभात 
        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठेश का विभिन्न भावो में स्थिति फल 
        यदि षष्ठेश लगन में हो तो जातक रोगी होता है वह अपने परिवार को कष्ट देने वाला, उत्सावादी मंगल कार्यो से दूर रहने वाला, शत्रु को बल अवं पराक्रम से पराजित करने वाला माध्यम आयु में परिश्रमी अवं उत्तर आयु में अलसी होता है उसके परिवार या मित्रो की संख्या अधिक होती है ...पठन-पाठन में रूचि कम रहती है फलत: शिक्षा कम ही मिल पाती है ...ऐसा जातक मुह्फत होता है तथा न कहने वाली बात भी कह डालता है ...
        यदि षष्ठेश धन भाव (II) में स्थित हो तो जातक दुष्ट प्रकृति का होता है ...समस्त पाठक ध्यान रखे की षष्ठ भाव और उसका अधिपति..काल चक्र में दुष्ट भाव कहलाते हैं अत: इस भाव का स्वामी जहाँ जिस भाव में बैठा होगा वहां अशुभ करेगा ... कार्य को चतुरता से से करता है सदा अपने धन और प्रतिष्ठा को बढ़ने में लगा रहता है सहस की उसमे कमी नहीं होती उसे अच्चा वक्ता भी कहा जाता है अपनी वंश परंपरा में उसे श्रेष्ठ माना जा सकता है वह स्वाभाव से उग्र होता है ...स्वार्थी इतना की मित्रोऔर परिजनों तक का धन हरण कर लेता है ऐसा जातक विभिन्न रोगों से कष्ट पता है...इतनी उसके भाग्य में उपलब्धियं नहीं होती जितनी की बद दुआएं मिलती हैं अपनी जन्म भूमि में उसका भाग्य उदय नहीं हो पता फलत: विदेशवास होता है लेकिन पुत्रो के द्वारा अनेतिक मार्ग से कमाए धन का स्वामी तथा सुख सुविधा युक्त गृह में निवास करने वाला होता है .....

        ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठेश का सहज(तृतीय) एवं चतुर्थ भाव में फल...
        यदि षष्ठेश सहज भावगत हो तो जातक अपने स्वजनों अवन बंधुओं से शत्रुता रखता है परिवार वालो को उसके व्यव्हार से असहनीय पीड़ा होती है ...ऐसा जताक्किसी भी कारणवश अपने किसी परिजन की हत्या भी कर सकता है ...ऐसा जातक कामांध होता है तथा दिन में भी स्त्री संग करने की इच्छा रखता है ..उसके अनुचर भी दुष्ट बुद्धि होते हैं तथा जातक के साथ विश्वासघात करते हैं ऐसा जातक युद्ध में या झगडे में शत्रु से पारजित होता है... अपने पिता की अर्जित संपत्ति विलासितापूर्ण जीवन बिताने वाला तथा तथा अपने ग्राम का या नगर के लोगो के लिए कष्टकर होता है यदि षष्ठेश शुभ गृह हो तो जातक निरोगी तथा पापी गृह हो तो जातक विविध रोगों से कष्ट पता है.....
        यदि षष्ठेश चतुर्थ भाव में हो तो जातक पिता से बैर साधने वाला होता है लेकिन पिता द्वारा अर्जित धन संपत्ति का भोग करता है माता का सुख उसे कम ही मिल पता है इसमें माता की मृत्यु हो जाना अथवा जीवित रहे तो उस से अनबन रहना दो मुख्य कारण हो सकते हैं ऐसा जातक दूसरों से द्वेष रखने वाला एवं चुगली की आदत वाला होता है उसका पिता प्राय: निरोगी रहता है पर जातक लम्बे समय तक स्वत रह कर अपने पुत्रो के साथ लक्ष्मी का उपभोग करता है ऐसे जातक की भार्या का चरित्र संदिग्ध रहता है फलत: जातक को जारज संतान हो तो कोई आश्चर्य नहीं ......

        ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
        षष्ठेश का विभिन्न भावगत फल...
        यदि षष्ठअधिपति पंचम भाव में विराजमान हो तो जातक स्वार्थी होता है, बिना मतलब तो बाप से भी सम्बन्ध नहीं रखता ...पुत्रों से उसका द्वेष बना रहता है मित्र भी शीघ्र उसका साथ छोड़ देते हैं उसका संचित कोष घाटता बढ़ता रहता है ऐसा जातक शीघ्र ही मृत्यु का ग्रास बनता है शुभ गृह षष्ठेश पंचम में हो तो जातक निर्धन होता है ...उसे पद और अधिकार की प्राप्ति होती है किन्तु वह पद पा कर दुष्ट स्वाभाव का हो जाता है ...लोगो से कपट पूर्ण व्यव्हार करता है ऐसा जातक माता की सेवा करने वाला शत्रुओं से पीड़ित अर्श अवं मस्तिष्क रोग से पीड़ित होता है .....
        यदि षष्ठेश षष्ठ भाव में ही हो जातक कंजूस होता है तथा व्यय करने के नाम से उसकी जान निकलती है ऐसा जातक अपने परिजनों से शत्रुता रखता है तथा दुसरो से प्रेम बनाये रखता है ...अपने ही स्थान में निवास करता है ऐसे जातक के सभी कष्टों का नाश हो जाता है शत्रुओं के मन को मर्दन करने में वह साक्षात् काल होता है यदि शाश्ठेस क्रूर गृह हो या पाप प्रभाव में आया हो जातक व्यर्थ का अभिमान करने वाल तथा विविध रोगों से पीड़ित होता है ..

        ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
        षष्ठेश का सप्तम अवं अष्टम स्थान गत फल....
        यदि षष्ठेश सप्तम स्थान में हो तो जातक जीवन साथी क्रूर स्वाभाव का (स्त्री/पुरुष ) व झगडालू होता है देखने में भी असुंदर और स्वरुप विहीन होता है ...ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन नरक तुली होता है यदि षष्ठेश अत्यंत पाप प्रभाव में हो तो जातक को स्त्री सुख से वंचित कर देता है ....ऐसे जातक को धन की कमी नहीं होती तथा वह सर्वगुण संपन्न मणि व्यक्ति होता है कार्य-व्यवसाय में उसे हनी होती है षष्ठेश चर राशी में हो तो व्यवसाय बदलते रहते हैं ....षष्ठेश शुभ प्रभाव में हो तो स्त्री बंध्या अर्थात संतानोत्पत्ति में अक्षम व गर्भ गिराने की प्रवृत्ति वाली होती है....उसकी स्त्री को अपनी काया से बहुत प्यार होता है ...यह अनुभव सिद्ध बात है की षष्ठ भाव के स्वामी की जाह्न स्थिति होती है वहां उस भाव फल का नाश होता है यहाँ भी यही स्थिति है सप्तम में स्थिति दाम्पत्य जीवन का नाश कर रही है....
        यदि षष्ठेश की स्थिति अष्टम में हो तो जातक रोगी होता है सूर्य षष्ठेश हो कर अष्टम में हो तो जातक न्यायी , नेत्र विकारी अवं हिंसक स्वाभाव का होता है.... चन्द्र षष्ठेश हो कर अष्टम में हो तो जातक राज्य पक्ष से दंड पाने वाला, चोरो से संतप्त, ऋणी, यात्रा में कष्ट पाने वाला तथा क्षीण चन्द्र हो तो जातक अल्पायु होता है...मंगल षष्ठेश हो तो जातक सज्जनों का विरोधी, नीच कर्म रत, रक्त चाप, रक्त विकार, अर्श, अवं पित्त रोगी होता है ...यदि बुध षष्ठेश हो तो जातक क्रोधी, घमंडी, तथा यदि बुध पपक्रांत हो तो जातक पागल हो जाता है ....गुरु षष्ठेश हो तो जातक को मामा से बैर, बच्चो का सुख कम व मति भ्रम से पीड़ा होती है ...यदि शुक्र षष्ठेश हो तो जातक को स्त्री संग से देह हनी और विविध रोग तथा तथा यदि शनि षष्ठेश हो तो जातक को वाट-पित्त के कुपित होने से कष्ट होता है

        ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
        षष्ठेश का नवम भावगत फल...
        यदि षष्ठेश नवम भाव में हो तो जातक के जीवन में , उसके कार्य-व्यवसाय में अनेको उतर-चढाव आते रहते हैं...वो ये लीला देख कर खुद हतप्रभ हुआ रहता है...ऐसा जातक कबाड़ या लकड़ी पत्थर बेचने वाल होता है यदि शुभ प्रभाव में अथवा अशुभ गृह हो कर षष्ठेश नवम भाव में गया हो तो जातक का स्वाभाव क्रूर हो, उसके पैरो में रोग हो...या वह लंगड़ा हो ऐसा जातक सहोदरों से बैर करने वाला, देव गुरु , ब्रह्मण की निंदा करने वाला होता है गुरु द्वेषी तथा शास्त्र पुराणों को न मानने वाला होता है ...यदि षष्ठेश शुभ प्रभाव में हो तो जातक निरोगी, धर्मात्मा, सच्चे मित्रो से युक्त एवं सम्मानीय होता है.....
        यदि षष्ठेश दशम भाव में हो तो जातक अपनी माता से बैर रखता है ऐसा जातक पिता की संपत्ति को नष्ट करने वाला, दुष्ट बुद्धि, तथा परदेश गमन करने वाला तथा वहां सुख का अनुभव करता है ...यदि षष्ठेश शुभ गृह हो तो जातक पिता से स्नेह करने वाला समय पड़ने पर पिता की सेवा करने वाला, माता से लाभान्वित, सर्वदा निरोगी, बलवान, साहसी और धन-धान्य से परिपूर्ण व सुखी होकर अपने वंश में श्रेष्ठता प्राप्त करता है....

        ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठेश का आय एवं व्यय भाव गत फल 
        यदि षष्ठेश आय भाव में हो तो जातक सब से ही शत्रुवत व्यव्हार करता है, शत्रु के द्वारा ही मृत्यु के मुख में जाता है, ऐसा जाता चतुष्पदो से लाभ प्राप्त करता है चोरो द्वारा हनी होती है पुत्र सुख से रहित विविध रोगों से कष्ट पाने वाला होता है यदि शुभ गृह षष्ठेश आय भाव में हो तो जातक चौपायों के व्यापर से लाभ कमाता है, निरोगी व सुख-साधन संपन्न जीवन व्यतीत करता है 
        यदि षष्ठेश हनी भाव (12th) में हो तो तो यहाँ ऐसे जातक का विपरीत राज योग बन जाता है ...(शास्त्रों के अनुसार) किसी त्रिक भाव का अधिपति वापस त्रिक भाव में बैठ गया है. किसी दुष्ट भाव का अधिपति जिस bhav में बैठा होगा उसकी हानि करेगा...यहाँ एक हानि का अधिपति दुसरे हानि भाव की हानि करेगा...अत; शुभ फल डाटा हो जायेगा ...अगर षष्ठेश पापी अथवा अशुभ गृह हो तो ऐसा जातक सदा रोगी, कार्य व्यवसाय में हानि उठाने वाला , दरिद्र, विदेश वस् में हानि, भाग्य को मानने वाला, विद्वानों का द्वेषी कमी परस्त्री गमन करने वाला तथा मन-सम्मान की चिंता न करने वाला होता है ...
        शुभ संध्या दोस्तों ...जय बाबा महाकाल।।

        स्वप्न और शकुन .......21.12.2012

        कभी-कभी हमजो स्वप्न देख्तेहें उस से हमें प्रसन्नता भी होती है, दुःख भी होता है, घृणा भी होती है, रोते भी हैं, भयभीत भी होते हैं ...दरअसल ये हमारे कुक्ष्म शारीर की गतिविधिया होती हैं। कहावत है "जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन"...हमारे विचार राजस, तामस, सत्व इन तीन गुणों में से जिसे प्रबावित होते हैं इन्सान को उसी तरह के स्वप्न दिखाई देते हैं।
        अपनी जाग्रतावस्था में हम अपनी विचारधारा पर नियंत्रण रखने में सक्षम होते हैं लेकिन अचेतावस्था में नहीं। स्वप्न हम अपनी इच्छानुसार नहीं देख सकते। शयनावस्था में मस्तिष्क की गतिविधि बिना किसी निर्देशन के या नियंत्रण के होती हैं। स्वप्न प्राय:लोगो को ऐसी स्थितयों और स्थानों में ले जाते हैं जो उनके व्यक्तित्व और अनुभव से सम्बंधित नहीं होते। परन्तु जो कुछ उन्हें स्वप्न में दिखाई देता है उसके सम्बन्ध में देखने, पढने या कहीं सुनने में, उसका ज्ञान उन्हें अवश्य प्राप्त होता है।
        स्वप्न बिलकुल सामान्य घटनाओं या वस्तुओं के संबंद में भी हो सकते हैं उनमे हमारे बचपन की घटनाओ का भी दर्शन हो सकता है,रमणीय स्थानों के दर्शन, धार्मिक स्थानों के दर्शन, विभत्स दर्शन, मारकाट , लड़ाई झगडा, यौन सम्बन्ध, फकीरी हालत, हर्ष, रोना, दीपक, प्रकाश, दुःख ....आदि-आदि। में व्यक्ति होगा जो स्वप्न न देखता हो। ऐसा हो सकता है की मस्तिष्क हीन पागल या नितांत मुर्ख स्वप्न न देखते हो। परन्तु अधिक सम्भावना यही है की वे भी स्वप्न देखते होंगे शायद जाग्रतावस्था में .
        एरिस्टोटल (Aristotle) ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ़ एनिमल्स में लिखा है की केवल मनुष्य ही नहीं वरन जानवर भी स्वप्न देखते हैं। पिल्नी ने तो ये भी कहा है की छोटे शिशु अक्सर स्वप्नों में ही खोते रहते हैं ..हँसते हैं, मुस्कुराते हैं, रॉते हैं, चौंकते हैं ।
        यह अक्सर देखा गया है की स्वप्न में कोई अशुभ बात या घटना देख कर लोग अनेक प्रकार से आशंकाओं से घिर जाते हैं, घबरा जाते हैं ...लेकिन ऐसा नहीं होता।।।आप सभी स्वयं देखेंगे की जिन स्वप्नों को आप गलत, घ्रणित समझ रहे थे उसमे कुछ शुभ अशुभ घटना क्रम छुपा हुआ है ...ये सब पूर्वाभाश होते हैं जो की अबूझ पहेली के रूप में आपको दिखाई देते हैं।।।आप सबकी कुछ शंकाओं का निवारण करने का प्रयास करुन्गाकाही कोई त्रुटी भूल हो तो क्षमा कीजियेगा। धन्यवाद ......देवल दुबलिश।। शिव ॐ।।

        Monday, 10 December 2012

        Shasth bhav me vibhinn graho ki sthiti....

        ॐ गणेशाम्बा गुर्भ्यो नम: 
        षष्ठ भाव में विभिन्न ग्रहों का फल 
        सूर्य ....यदि छटे भाव में सूर्य हो तो जातक के शत्रु अधिक होते हैं लेकिन वह स्वयं शत्रुहंता होता है इसमें कोई संदेह नहीं शत्रु उसके सामने टिक नहीं पता है भाई बंधू संख्या में कम होते हैं धन धन्य का पूर्ण सुख उसे मिलता है जातक की कीर्ति अक्षणु बनी रहती है तथा वह मन्त्र शास्त्र का ज्ञाता होता है पाप प्रभाव में आया सूर्य जातक को दीर्घावधि का रोग देता है यदि सूर्य वृषभ, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ राशी का हो तो जातक को दम, डिप्थीरिया , ब्रोंकायतिस , जैसे रोग होते हैं ...कन्या और मीन का सूर्य जातक टीबी रोग से पीड़ित रखता है 
        यदि सूर्य पुरुष राशी में हो तो जातक भोजन भट्ट, कामुक, घमंडी , तथा क्रोध करने वाला होता है उसे छोटी आयु में ही प्रमेह और उपदर्श जैसे रोग हो जाते हैं जातक के मातुल पक्ष के लिए भी षष्ठस्थ रवि शुभ नहीं होता मौसी का विधवा हो जाना या पुत्रहीन होना जैसे फल अनुभव में आते हैं यदि स्त्री राशी का रवि हो तो जातक ठकुरसुहाती बातें करता है तथा अपना कम साध लेता है उसके मातुल पक्ष के लिए भी ऐसी स्थिति शुभ रहती है ....

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: विभिन्न ग्रहों की षष्ठ भाव में स्थिति....
        चंद्रमा ....यदि चन्द्र छटे भाव में हो तो देहसुख अच्छा नहीं मिलता छठा चन्द्र अरिश्त्प्रद होता है जातक के व्यवसाय में कठिनाइयाँ आती हैं तथा शत्रुओं द्वारा व्यर्थ में परेशानियाँ उत्पन्न की जाती हैं कानूनी मामलों में उसे अपयश मिलता है कर्क राशी में चन्द्र हो तो उसे उदार रोगी बनता है उसकी पाचन क्रिया ठीक नहीं होती प्राय: बचपन में इसके बुरे परिणाम मिलते हैं अग्नि राशी का चन्द्र हो तो जातक दृढ निश्चयी होता हैयादी ऐसा जातक चिकित्सा का व्यवसाय करे तो अच्चा लाभ कम लेता है तथा यशस्वी होता है नीचस्थ चन्द्र रिपु में हो तो शत्रु बहुत होते हैं धन का व्यर्थ व्यय होता है चन्द्र प्रथ्वी तत्व में हो तो विशेष कष्टकारक होता है क्युकी इस अवस्था में चंद्रमा अष्टमेश, चतुर्थेश तथा व्ययेश बनता है तथा मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट देता है रक्त दूषित हो कर देह में गर्मी बढ़ता है प्राय: नजला, जुकाम, के कारन साँस लेने में कठिनाई आती है यदि चन्द्र द्विस्वभाव राशी में हो तो काफ-क्षय -इत्यादि फेफड़ो के रोग देता है स्थिर राशी में हो तो अर्श भगंदर इत्यादि और चार राशी में हो तो उदार रोग तथा उच्च का हो तो गल रोग स्वांस रोग एवं खांसी देता है.

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठ भाव में विभिन्न गृह फल ..
        मंगल यदि रिपु (शत्रु) भाव में हो तो ऐसे जातक के सम्मुख शत्रु की वाही गति होती जैसे सूखे तिनके की अग्नि में ..जबरदस्त शत्रुहन्ता जातक के भुजबल के सामने शत्रु का टिक पाना संभव नहीं होता...ऐसे जातक की जठराग्नि तीव्र होती है...कामवासना का वेग भी बढ़ा-चढ़ा रहता है ...स्थिर राशी मंगल जातक को ह्रदय रोग, द्विस्वभाव में हो तो क्षय रोग और चार राशी में हो तो यकृत रोग व बालो का झाड़ना जैसी पीड़ा देता है ....
        मातुल पक्ष के लिए छटे भाव का मंगल शुभ नहीं होता यदि मंगल अग्नि राशी का हो तो शत्रु द्वारा शास्त्र घात, विष घात, अथवा अग्नि का घात बना रहता है शुभ प्रभाव में आया मंगल किर्तिलभ करता है लेकिन जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है...यदि जातक अधिकारी हो तो बहुत रिश्वत लेता है और पकड़ा नहीं जाता यदि मिथुन और कन्या राशी में मंगल षष्ठस्थ हो तो जातक को कुष्ठ रोग होने का भय रहता है.....

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
        षष्ठ भाव में बुध का फल .....
        यदि षष्ठ भाव में बुध हो तो जातक अपनों से विरोध रखता है..कब्ज, अपच, गैस , बवासीर आदि बीमारियों से पीड़ित होता है तथा छाती दुर्बल होना, श्वास रोग, क्षय रोग, मन पर अघात होने से मृत्यु होना जैसे फल अनुभव में आते हैं...ऐसा जातक अपने को सन्यासियों से श्रेष्ठ समझने की भूल करता है ऐसा जातक व्यापर करे तो हनी उठता है हाँ, लेखक या प्रकाशक हो सकता है रसायन शास्त्र का ज्ञाता भी हो सकता है ...यदि बुध मंगल के साथ अशुभ सम्बन्ध में हो तो पागलपन प्रदान करता है ..... षष्ठ का बुध पापा प्रभाव में हो तो अलर्जी , चरम रोग, आदि से पीड़ित होता है

        ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठ भाव में शुक्र ...

        यदि रिपु स्थान में शुक्र हो तो जातक के शत्रु कभी भी समाप्त नहीं होते ऐसे शत्रु सदा ही दुःख का कारन बनते हैं तथा जातक की मानसिक शांति को भंग किये रहते हैं...ऐसे जातक की कामेच्छा तीव्र होती है तथा अति विषयभोग के कारन उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है...मूत्र विकार, उपदंश, प्रमेह तथा जननेंद्रिय सम्बन्धी गुप्त रोग उसे घेरे रहते हैं...यदि शुक्र जल राशी का हो तो जातक को व्यभिचारी बनता है ...
        भू तत्व राशी में से किसी में शुक्र हो तो जातक की पत्नी झाग्दली होकर भी जातक को प्रेम जताकर मन लेती है छटे भाव में शुक्र होने से जातक में कामुकता स्वाभाविक है लेकिन इन राशियों में होने पर वह कुमार्गगामी नहीं होने देता उस पर ऋण ग्रस्तता बनी रहती है मृत्यु पर्यंत ऋण से मुक्ति नहीं मिल पति ...पुरुष राशी का शुक्र जहाँ स्त्री सुंदर दिलाता है वहीँ उसके कर्कशा होने का परिचायक भी होता है यदि शुक्र स्त्री राशी में हो तो पत्नी कोमल अंगो वाली तथा पुरशो जैसे विचारो वाली होती है ऐसे जातक के मामा-मौसियों की स्थिति सुद्रढ़ होती है अपनी पूंजी लगाकर स्वतंत्र व्यवसाय करने में ऐसे जातक को हानि होती है....

        ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठ भाव में शनि...

        यदि रिपु भावे में शनि अशुभ प्रभाव में हो तो अत्यंत कष्टकारक होता है जातक की जिन्दगी एक अभिशप्त जिन्दगी होती है दीर्घकालिक रोगों से ग्रसित जातक मृत्यु की कामना करता है वृषभ, सिंह वृश्चिक और कुम्भ राशी का शनि हो तो ह्रदय, कंठ, , श्वांस रोग, ....मेष, कर्क, तुला और मकर का शनि हो तो पित्त विकार, यकृत रोग, संधिवात, ...द्वि स्वाभाव राशी में हो तो (मिथुन, कन्या, धनु और मीन )दमा, कफ के विकार और पैरो में विकार और अपंगता जैसी व्याधियां होती है...रिपु स्थान का शनि जातक को पूर्व आयु में कष्टकारक रहता है ..मातुल पक्ष के लिए भी ऐसा शनि कष्टकारक रहता है ...सभी कार्यो में बाधाओं का सामना करना पड़ता है तथा व्यर्थ के अपवाद फैलने से मानसिक परेशानी भी बढती है जातक को कहीं से भी कोई मदद नहीं मिलती तथा काफी कठिन संघर्ष कर ही वह कुछ प्रगति कर पाता है....
        ऐसा जातक अगर जॉब में हो तो उसे समय से पूर्व अवकाश ग्रहण करना पड़ता है अच्छी नौकरी पहले तो कहीं मिलती नहीं यदि एनी प्रबल योगो से मिल भी जाये विशेष लाभ नहीं मिलता रिपु स्थान के जातक अधिकतर भैंस आदि दुधारू पशु पल कर दुग्ध का व्यवसाय करते पाए गए हैं वाही उनके लिए उचित भी है....म्मेनास्थ शनि शत्रुओ की भरमार रखता है लेकिन बिना किसी प्रयास के उन्हें नष्ट भी कर देता है संपत्ति, यश और अधिकार एक साथ नहीं मिलते किसी एक की ही प्राप्ति होती है....

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: 
        षष्ठ भाव में राहु

        यदि रिपु स्थान में राहु हो तो शत्रुओं के लिए जातक साक्षात् कल होता है वह शत्रु समूह को ऐसे भस्म कर देता है जैसे अग्नि वन को जलाकर भस्म कर देती है ...मामा को संतान हनी होती है ..स्वयं चौपाये जानवर पाल कर धनी बनता है ...ऐसा जातक नीच व्यवसाय की और अग्रसर होता है..बाल्यकाल कष्टकर व्यतीत होती है ...नजर लग्न...प्रेत व्याध नख-विष जैसे व्याधियों से जातक कष्ट प्राप्त करता है कमर में वाट के कारन दर्द, मिर्गी, सफ़ेद दाग, आदि ये सब छटे राहु के फल होते हैं....स्त्री राशी का राहु छटे भाव में शुभ फल देता है...ज्योतिष में प्रतिपादित सूत्र का यहाँ अक्षरस: पालन होता है...भगवन शिव ने कहा है की "त्रि शत एकादश राहु करोति शुभम अथवा त्रि शत एकादश राहु करोति विपुल धनम" ऐसे जातक की देह निरोगी व स्त्री पतिव्रता मिलती है...लेकिन नौकरी के लए यह राहु शुभ नहीं होता..... स्त्री की हालत अच्छी नहीं होती पिसाच पीड़ा या आकस्मिक रोग से उसकी मृत्यु होती है 
        षष्ट भावस्थ केतु फल...
        छटे स्थान का केतु जातक का अपने मामा से वैमनस्य करता है मामा द्वारा उसका अपमना होता है रोग होते तो तो हैं लेकिन दीर्घकालीन नहीं होते ऐसे जातक का बड़े-से बड़ा शत्रु भी विनाश को प्राप्त होता है...ऐसे जातक को चुपयो का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ...(वर्तमान कल में चौपायो में कर या चौपहिया सवारी का समावेश होता है ) तथा उसे आकस्मिक द्रव्य लाभ के सुअवसर प्राप्त होते रहते हैं इतने पर भी जातक का मन दुर्बल होता है...लेकिन उसे इष्ट सिद्धि का लाभ होता है .....

        Shashth bhav -Tula se meen rashi falam...

        शुभ प्रभात 
        षष्ठ भाव में तुला और वृश्चिक राशी....

        तुला राशी स्वामी शुक्र.....यदि षष्ठ भाव में तुला राशी हो तो शुक्र षष्ठेश और लग्नेश बनता है इसकी प्रबल स्थिति जातक को जहाँ धनवान बनाती है वहीँ ईर्ष्यालु भी फलत: अपने ईर्ष्यालु स्वाभाव के कारन वह लोगो की दृष्टि में शीघ्र ही गिर जाता है और घृणा का पात्र बन जाता है धरम-करम के कार्यो में उसकी रूचि रहती है लेकिन धार्मिक कृत्यों अथवा साधू-सन्यासियों की सेवा पर किये गए व्यय के कारन बंधवो तक से उसका बैर भाव बन जाता है दुसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं की सत्य पथ का अनुगामी होते हुए भी ऐसा जातक लोगो की शत्रुता प्राप्त करता है ...शुक्र पीड़ित हो तो स्वयं जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तथा मामा मौसियों के लिए भी अनिष्ट प्रद होता है 
        वृश्चिक राशी स्वामी मंगल्मंगल यहाँ छटे अवं एकादश का स्वामी होता है मंगल के बलि हो कर लग्न व लग्नेश को प्रभावित करने पर जातक हिंसा प्रिय हो जाता है किसी का वध कर देना उसके बाएँ हाथ का खेल है ऐसे जातक को बिलों में रहने वाले जीवों जैसे सर्प, चूहे इत्यादि से भय रहता है चोरो व हिंसक पशुओं से ऐसे जातक को देहिक कष्ट मिलता है मंगल की निर्बल स्थिति आय के साधनों पर भले ही प्रतिकूल प्रभाव डाले लेकिन जातक की हिंसक प्रवृत्ति को समाप्त कर देती है ऐसा जातक सहनशील और धुन का पक्का होता है

        षष्ठ भाव में धनु और मकर राशी....
        यदि षष्ठ भाव में धनु राशी हो तो गुरु त्रिकोएश होकर जहाँ शुभ होता है वहीँ षष्ठअधिपति बन कर पुन: पापी हो जाता है इतने पर भी इसकी निर्बल स्थिति किसी किसी उच्च वर्ण विशेषतया ब्रह्मण शत्रु द्वारा हनी पहुँचाने की परिचायक होती है गुरु शुभ स्थिति में हो तो मामाओं की स्थिति को सुद्रढ़ करता है गुरु के मन-सम्मान को बढ़ता है ऐसे जातक की झूठे लोगो से शत्रुता रहती है थोड़ी सी बात भी उसके ह्रदय को कचोट जाती है अर्थात गोली के घाव की अपेक्षा बोली का घाव अधिक सालता है ऐसा जातक शत्रु का मद चूर करने वाला तथा बड़ो को मन देने वाला होता है यदि गुरु की स्थिति सामान्य हो तो ऐसा जातक तांगा चलने वाला अथवा रचे में घोडा दौड़ाने वाल होता है 
        मकर राशी स्वामी...शनि...यदि छठे भावे में मकर राशी हो तो जातक ब्याज पर धन देता है तथा वसूली के समय लोगो से उसके झगडे होते हैं ऐसा शनि छठे एवं जाया भाव का अधिपति होता है फलत: मामा और मौसी कर्कश वाणी बोलने वाले होते हैं शनि बलवान हो तो धन की कमी नहीं रहती लेकिन यदि निर्बल हो तो दरिद्री बनता है पुराने मित्रो तक से बैर करा देता है यहाँ तक की परिवार के सदस्य भी जातक से घृणा करने लगते हैं बहुत थोड़े लोग ऐसे रहते हैं जो जातक से सहानुभूति रखते हैं ऐसे जातक की संतति सदा रोगी रहती है आय की अपेक्षा व्यय बढे-चढ़े रहते हैं तथा दाम्पत्य जीवन में भी कलह का ही अनुभव होता है पति पत्नी में तलक की नौबत तो नहीं आती..लेकिन प्राय: अनबन ही बनी रहती है...अनुभव में यही आया है की कुम्भ लग्न वालो के लिए शनि दुखदाई ही रहता है....

        षष्ठ भाव में कुम्भ और मीन राशी फल 
        कुम्भ राशी स्वामी शनि .....यदि शास्त भाव में कुम्भ राशी हो तो शनि पंचमेश व षष्ठेश बनता है ...रहू यदि छठे भाव में हो तो जातक को दीर्घ रागी बन देता है प्रेम-प्रसंगों में असफलता मिलती है ऐसा जातक प्रेयसी द्वारा ठुकरा दिया जाता है लेकिन ऐसे जातक में सहस की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है कभी-कभी तो वह दुस्साहसी तक हो जाता है तथा अपने से अधिक बलवान शत्रु से भीड़ जाता है अधिकारियो से झगडे और राजकीय दंड की सम्भावना बनी रहती है जल से उसे भय रहता है ऐसे जातको को नदी तलब आदि या गहरे पानी में स्नान नहीं करना चहिये ....ऐसा जातक नेवी अफसर बनता है 
        मीन राशी स्वामी गुरु ....जातक प्राय: अपने पुत्र और पुत्रियों से झगडा करता है यहाँ गुरु त्रित्येश अवं षष्ठेश हो कर दो पापी भावो का अधिपति बनता है यदि गुरु आय भाव में रहे तो पुत्र संतान नहीं होने देता पत्नी से प्राय: अनबन रहती है लेकिन बाद में सम्बन्ध सुधर जाते हैं ...पत्नी के कारन जातक के अपनों से वैमनस्य हो जाता है ऐसा जातक अपने घर की अपेक्षा अपने इष्ट मित्रो का ज्यादा ध्यान रखता है शनि और गुरु का राशी परिवर्त योग हो तो जातक का यौवनकाल दुखपूर्ण ही रहता है अर्थाभाव] पुत्रो का कुपुत्र होना, ऋणी रहना लोगो से धोखा मिलना इत्यादि बातें घटित होती हैं....

        Thursday, 29 November 2012

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम: षष्ठ भाव...विवेचना....
        छठे स्थान को रिपु भाव अर्थात शत्रु का स्थान कहा जाता है शत्रु चूँकि अपने हितो को हनी पहुंचता है वह अपना नहीं हो सकता और क्यूंकि जो अपने हैं वे हमें हनी नहीं पहुंचा सकते इसलिए शत्रु के साथ-साथ इस स्थान से अपनों और परयो का भी विचार किया जाता है शत्रु की सर्वप्रथम इच्छा रहती है की वह अपने प्रतिद्वंद्वी को क्षति अथवा चोट पहुंचाए. ...उसके कार्यो में बाधा डाले वत: यह भी इस भाव से विचारणीय है चोट व घाव के साथ-साथ रोग का विचार भी इसी भाव से करना चाहिए ऋण चूँकि देना पड़ता है इसलिए यह भी दुसरो से लिया जाता है अपनों से लेकर देना नहीं पड़ता फलत: वह ऋण नहीं कहा जा सकता ....इसके साथ मामा, कतिपर्देश, पुत्र की आर्थिक स्थिति, पत्नी का चाचा, चोरो द्वारा धन की हनी इत्यादि का विचार किया जाता है....
        इस स्थान का सूक्षम अध्यन करने के लिए छटा भाव अवं उसकी राशी, छठे भाव में स्थित गृह, षष्ठेश अवं षष्ठ स्थान पर दृष्टि डालने वाले गृह षष्ठेश किस भाव में है...किस गृह से युक्त है किस गृह की उस पर दृष्टि है तथा मंगल का सम्यक विचार करने के पश्चात ही फल कथन करना चाहिए .....क्रमश:

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
        षष्ठ भाव में विभिन्न राशी फल...
        मेष राशी ..स्वामी मंगल ...

        छठे भाव में मेष राशी हो तो ऐसा जातक मित्रता के लिए तरसता है क्युकी उसके शत्रु ही प्राय: अधिक होते हैं...पहले तो ऐसे जातक का कोई मित्र नहीं होता नहीं हो भी तो मित्रवत व्यव्हार नहीं करता...इसका कारण जातक का स्वयं का व्यव्हार होता है....ऐसा जातक कतुभाशी...गली-गलौच की भाषा बोलने वाला चुगली करने वाल...क्रोधी स्वभाव का होता है सरकारी कर्मचारी हो तो प्राय: अपने सहयोगियों के विरुद्ध अधिकारियो के कण भरता है यद्यपि ऐसा जातक कठोर परिश्रमी होता है तथापि उसके श्रम का स्वल्प फल ही उसे मिलता है ऐसे जातक को मुर्ख कहे तो गलत न होगा..
        वृषभ राशी ...स्वामी शुक्र... 
        छठे भाव में वृषभ राशी हो तो जातक कामातुर होता है वह यहाँ तक गिर जाता है की अपनी संतान के बराबर वालो से भी अविअध सम्बन्ध रखता है व्यभिचारी होने के कारण स्व्बंधुओं से भी उसका बैर हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे महापापी कहा जाये तो क्या आश्चर्य जातक की स्त्री से उसके सम्बन्ध मधुर नहीं होते संतान भी आज्ञाकारी नहीं होती ऐसा जातक प्राय: खिन्नता पूर्ण जीवन जीते हैं

        ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
        षष्ठ भाव में मिथुन और कर्क राशी का फल...
        मिथुन राशी स्वामी बुध ....यदि षष्ठ भाव में मिथुन राशी हो तो जातक का गृहस्थ जीवन नरकतुल्य होता है व्यवसाय में प्राय: हानि उठानी पड़ती है इतने पर भी जातक नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय को महत्त्व देता है ...यदि बुध बलवान हो तो मामाओ की संख्या में और उनकी सम्रद्धि में वृद्धि होती है निर्बल हो तो नौकरों द्वारा परेशानी तथा शत्रुओ द्वारा हानि उठानी पड़ती है बुध और गुरु दोनों ही निर्बल हो तो बड़े भाई के लिए स्थिति घटक रहती है प्राय: ऐसे जातको का सभी से वैमनस्य बना रहता है .....
        कर्क राशी स्वामी चंद्रमा .....कर्क राशी हो और चन्द्र बलवान हो तो मौसियों (माता की बहनों ) की संख्या अधिक होती है निर्बल चन्द्र मामा की छाती में रोग की सुचना देते हैं ऐसे जातक का अपने बच्चो से अत्यधिक प्रेम होता है इस कारन उसका दुसरो से लड़ी-झगडा होता रहता है इस कारन उसकी संतति का भी झगडालू स्वाभाव होता है...इन्ही कारणों से राजभ्य की उत्पत्ति होती है क्युकी संतान प्रेम के कारन उचित-अनुचित का वह ध्यान नहीं रख पता यदि ऐसा जातक सरकारी कर्मचारी हो तो अपने अधिनस्थो को व्यर्थ में डाटता -डपटता रहता है उसकी किसी से नहीं बनती....

        ॐ गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम;षष्ठ भाव में सिंह व कन्या राशी...का फल 
        सिंह राशी स्वामी सूर्य......यदि रिपु भाव में सिंह राशी हो तो जातक अपने बंधू-बंधवो, कुटुंब जानो से द्वेष रखने वाल होता है ..उसके मन में दुर्भावना भरी होती है तथा धन के निमित्त वह दुसरो से बैर लेता है ऐसा जातक अपनी कन्या के कारन जमता से अथवा अपनी ससुराल वालो से शत्रुता करने वाला, वैश्याओ के साथ रमण करने वाला, तथा श्रेष्ठ स्त्रियों का शत्रु होता है उसके स्वाभाव के कारन ही लक्ष्मी उसके यहाँ से शीघ्र पलायन कर जाती है तथा अपनी अचल समाप्ति का वह स्वयं नाश कर देता हैअपने क्रोधी स्वाभाव अवं भ्रष्ट आचरण के कारन घर में कलेश का वातावरण बनता है ...अंतत: ऐसा जातक दरिद्र हो कर दुसरो के आश्रित होता है....
        कन्या राशी स्वामी बुद्ध....ऐसा जातक कामुक होता है तथा व्यभिचार में रत हो कर अर्थ हानि करता है यदि बुध की स्थिति निर्बल हो तो जातक को लम्बे समय तक चलने वाले रोग से पीड़ित होना पड़ता है अंतड़ियो में सडन, उदार में केंसर, अपेंडीसायतिस, और हर्निया जैसे रोग भी संभावित हैं बार-बार ऋण लेना पड़ता है और उसे चुकाने के अवसर नहीं आते मामा तथा छोटी बहन के जीवन को हनी पहुँचती है छोटे भाई से भी सौमनस्य नहीं रह पता यदि बुध अपनी राशियों से तीसरे या बारहवे स्थित हो तो और उस पर किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो अर्थात बुध सिंह या वृश्चिक राशी में स्थित हो तो विपरीत राजयोग की सृष्टि करता है दुसरे शब्दों में ऐसा बुध लाभप्रद होता है ......

        Thursday, 22 November 2012


        • शुभ प्रभात
          पंचम भाव में बुध
          .....
          यदि पंचम भाव में बुध हो और शुभ प्रभाव में हो तो जातक सौभाग्यशाली होता है उसे सुंदर अवं गुनवंती पत्नी मिलती है तथा वह आनंदमय जीवन व्यतीत करता है ऐसे जातक को संतान का पूर्ण सुख तो मिलता है ही अपितु भगवन विष्णु अथवा श्री कृष्ण का अनन्य भक्त होता है..ऐसा जाता...हास्य कला का जानकर और छोटी उम्र से ही अच्छी पद प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ऐसा जातक विनोदी स्वाभाव का सदा प्रसन्न रहने वाल अपने से बड़ो का आदर करने वाला तथा देव गुरु भक्त होता है ...
          यदि जल राशी का हो तो संतति मंद बुद्धि अर्थात पागल होती है ऐसा जातक त्य्पिस्त, हस्त्चिंह परीक्षक शब्द शास्त्र का ज्ञाता होता है यदि बुध अग्नि राशी का हो तो जातक गणित, ज्योतिष ओ तत्व ज्ञान में विशेष रुस्ची रखता है ...वायु राशी में बुध हो तो जातक को संतति सुख का आभाव रहता है लेकिन वो ऐसे ग्रंथों की रचना कर डालता है जिनमे उसकी कीर्ति अक्ष्णु बनी रहती है अन्यान्य योग से एक अथवा दो संतान हो भी जाती हैं लेकिन जातक को उनसे विशेष लाभ नहीं रहता ...
          यदि पृथ्वी तत्व का बुध हो तो जातक ज्योतिष की हस्त रेखा विधि का विशेषग्य या पदार्थ का ज्ञाता होता है यदि बुध पप्क्रांत हो जातक अनुदार, अर्धशिक्षित, अवं झगडालू होता है यदि बुध का शनि से शुभ योग हो तो जातक को सत्ता लोटरी आदि से लाभ होता है यदि बुध का चंद्रमा से शुभ योग हो तो जातक धनि किन्तु व्यभिचारी होता है ....बुध नीच का हो या शत्रु राशी का हो तो तुलसी यक्षणी की साधना कभी न करे ...

          पंचमस्थ गुरु....
          श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम
          :
          यदि सूत भाव में देवगुरु ब्रहस्पति विद्यमान हो तो जातक सबका सुहृदय, सज्जनों में श्रेष्ठ अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, श्रेष्ठ पुत्रो से युक्त व गूढ़ विषयों में रूचि रखने वाल होता है ...मंत-तंत्र की सिद्धि उसे प्राप्त होती है उसे पत्नी सुंदर व गुनवंती मिलती है तथा दोनों में प्रगाढ़ प्रेम होता है ऐसा जातक अपने अधिकारियो का प्रिय पात्र होता है गृह सज्जा अवं स्वयं के रखरखाव का विशेष ध्यान रखता है ऐसा जातक न तो स्वयं कोई गलत कार्य करता है और न दुसरो को गलत कम करने की सलाह देता है..ऐसे जातक के पुत्र आज्ञाकारी एवं सच्चरित्र होते हैं जातक स्वयं भी न्यायिक प्रवृत्ति का होता है पंचाम्स्थ गुरु अगर सूर्य चंद्रमा से शुभ योग करता हो या दोनों गुरु से त्रिकोण स्थान (पंचम या नवम) भाव में स्थित हो तो आकस्मिक लाभ (जुआ, सत्ता, लोटरी ) के योग बनते हैं वायु तत्व में होने से जातक की शिक्षा पूर्ण हो जाती है ऐसे जातक प्राय: स्कूल में अध्यापक होते हैं तथा इसी क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करते हैं ऐसे जातक के संतति अल्प होती है और उस से कोई लाभ भी नहीं होता
          पृथ्वी तत्व का गुरु हो जातक की शिक्षा पूरी नहीं हो पति धनु राशी में भी शिक्षा अधूरी रह जाती है लड़कियां अधिक और लड़के कम उत्पन्न होते हैं ऐसे जातक प्राय: व्यापर करते हैं ....जल तत्व का गुरु से जातक को संतानाभाव रहता है पंचम भावस्थ गुरु जल राशी, स्त्री राशी में धन पुत्रादि के लिए शुभ नहीं रहता वकीलों, बैरिस्टरो , वीडयो, दर्श्नाचार्यो, एवं भाषाविदो के लिए शुभ होता है इन्हें अपने कार्यो में प्रसिद्धि मिलती है यह अलग बात है की पुत्र चिंता बनी रहती है..

          ॐ गनेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
          पंचमस्थ शुक्र ....का फल

          पंचामस्थ शुक्र जातक को कवी अवं कलाकार बना देता है इसका कारन यह है की पंचम भाव कल्पना अथवा भावनाओ का घर है शुक बुध की युति अथवा चतुर्थेश और पंचमेश का राशिपरिवर्तन योग हो तो जातक क्लब, सिनेमा. खेल आदि में ज्यादा रूचि लेता है पंचम भाव और पंचमेश बलवान हो तो उपरोक्त बातो में ख्याति अर्जित होती है
          ऐसे जातक को संतान अधिक्य योग होता है स्त्री संतति की बहुलता रहती है भोग विलासी प्रवृत्ति के कारन ऐसे जातक मौज-शौक की वस्तुओं पर अधिक व्यय करते हैं उनका स्वाभाव हंसमुख और विनोदी होता है जीवन भर आनंद चैन से समय व्यतीत करते हैं धुन के ऐसे धुनी जताक जिस बात को मन में थान लें उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं...ऐसे जातक को जुआ, सत्ता, लोटरी से लाभ होता है अग्नि राशी का शुक्र शिक्षित नहीं होने देता लेकिन इतने पर भी जातक विद्वान् कहा जा सकता है अदाकारी और कलाकारी के माध्यम से धनोपार्जन करने के पश्चात् भी धन का संचय नहीं हो पता कामुक होता है फलत: एक पत्नीवत सिधांत को नहीं मानता संतान हो या न हो उसकी उसे कोई चिंता नहीं होती.....
          वायु तत्व का शुक्र उच्च शिक्षा प्रदान करता है ऐसा जातक प्राध्यापक अथवा shikshan संसथान से सम्बंधित कार्यो में लगा होता है स्त्रियों की कुंडली में इन राशियों का शुक्र ऋतुकाल में कष्टप्रद होता है प्रदर व योनी आर्द्रता के योग हो जाते हैं इसी कारन संतानाभाव बना रहता है.....

          पंचमस्थ शनि ...फल ..
          पंचम भाव में शनि हो तो जातक की देह कृशकाय, शुष्क, एवं दुर्बल होती है विद्वान् होता है मगर बात को तुरंत नहीं समझ पता....पंचम भाव विद्या बुद्धि, पद, मन्त्र आदि का भाव हा....और शनि की गति मंद है अत: हर कार्यो में, फलो में मंदता आणि स्वाभाविक है... कम शक्ति की कमी होती है संतान भाव में स्थिति से शनि का दुष्प्रभाव पड़ना ही है...अत: संतान का न होना अथवा काफी देर से होना फलित होता है स्त्रियों की कुंडली में मासिकधर्म में गड़बड़ी, प्रदर, मृतवत्सा आदि कुफल होते हैं....लेकिन यदि शुभ हो कर बलवान हो तो भूमि, खदान, माकन आदि से लाभ करता है तथा सार्वजानिक अधिकार पद दिलाता है जुआ, सट्टा, रेस लाटरी आदि से आकस्मिक लाभ नहीं होते बल्कि इनमे धन का अपव्यय होता है
          ऐसे जातक सार्वजानिक पद पर रहते हुए भी लोगो पर अपना प्रभाव डालते हैं....अग्नि राशी का शनि भाग्योदय में सहायक होता है स्व्भुज्बल से उन्नति की और अग्रसर ऐसे जातक विलक्षण स्वाभाव के स्वामी होते हैं अपने विचारो को यथासंभव दुसरो से छिपाते हैं प्रत्येक को संशय की दृष्टि से देखते हैं मुह पर प्रशंसा और पीठ पीछे बुरे करना इनकी आदत होती है ऐसे ही जातक चाटुकार होते हैं इनके यहाँ संतान तो बहुत होती हैं लेकिन जीवित कम ही रह पति हैं. शिक्षा के लिए ऐसा शनि शुभ नहीं होता....
          वायु राशी का शनि होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर वकील, जज आदि बनता है इन राशियों का शनि प्राय: माता-पिता से अलग कर देता है दत्तक पुत्र बनने का योग भी बनता है पूर्वार्जित संपत्ति मिलती तो अवश्य है लेकिन जातक के जीवनकाल में ही नष्ट भी हो जाती है पंच्मस्थ शनि प्राय: आपदा देकर ही शांति प्रदान करता है हृदय रोग से या जल में डूबने से मृत्यु होती है..

          ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
          पंचमस्थ राहु...फल...
          रहू एक पापी गृह है शास्त्रों में एक उक्ति है की शनिवत रहू अर्थात रहू शनि की भांति फल करता है....लेकिन पापत्व शनि से ज्यादा पापी है यदि अशुभ सम्बन्ध में हो तो जातक कुमार्गगामी होता है संतंभाव से पीड़ित होता है तथा नीच लोगो की संगती में खुश रहता है उसे राज्य की और से दंड मिलने का भय रहता है चन्द्र के साथ अशुभ संयोग करने पर जातक के संतान नहीं होती उसे पिसाच पीड़ा से संताप मिलता है ऐसे जातक के जीवन में प्राय: कम ही सहायक होते हैं ...शत्रुओ की बाढ़ सी आई रहती है इतने पर भी वह हर नहीं मानता गृह कलह से चिंता बनी रहती है फलत: अपच व ह्रदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है
          स्त्री अवं संतान सुख में रहू प्राय: बधाकार्क ही बनता है स्त्री मिल भी जाये तो रुग्न ही बनी रहती है यदि रहू अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग बन जाता है पुरुष राशी का रहू जातक को घमंडी बनता है ऐसे जातक शिक्षा या व्यवसाय के योग्य होते हैं वह उन्हें नहीं मिल पति फलत: असफल रहते हैं
          स्त्री राशी के रहू में जातक की स्थिति शांतिप्रिय अवं विवेकशील होती है शिक्षा अच्छी मिलती है लेख अच्चा होता है शिक्षा के कारन यश मिलता है do विवाह होते हैं तथा पुत्रसुख भी मिलता है..

          ॐ श्री गणेशाम्बा गुरुभ्यो नम:
          पंच्मस्थ केतु फल.....

          पंचामस्थ केतु के भी प्राय: शुभ फल नहीं मिलते....सर्प दोष कहलाता है....जातक को सर्प के अशुभ स्वप्न आते हैं.. विद्या और ज्ञान से वंचित होता है डरपोक होता है तथा विदेश में वस् करने की इच्छा रखता है उसकी बुद्धि भ्रष्ट होती है जिसके कारन मानसिक कलेश या शारीरिक कष्ट होते हैं संतान सुख या तो होता नहीं या देर से होता है.....
          ऐसे जातक को उदर रोग से पीड़ा होती है कपटी स्वाभाव का ऐसा जातक अभिचार कर्म द्वारा अपने सहोदर पर भी घाट करता है परिवार वालो से उसकी बनती नहीं क्युकी वे सभी लोग उसके लिए कष्टकारक होते हैं शिक्षा अपूर्ण रहने का शोक उसे जीवन भर ट्रस्ट करता है ...सट्टा, रेस मुकद्दमो आदि में उसका धन व्यय होता है ...
          लेकिन यदि केतु अवं पंचमेश बलवान हो तथा सिंह, धनु, मीन या वृश्चिक राशी का हो तो शुभ फल देता है शिक्षा अच्छी मिलती है राज्याधिकार भी दिलाता है या किसी संस्था का प्रबंधक बनाता  है ऐसे जातको की बातें प्रभावशाली होती हैं धार्मिक वृत्ति का होने से जातक तीर्थयात्रा भी करता है....और मंत-तंत्र का, आध्यातिमिक गूढ़ ज्ञान का ज्ञाता होता है...
          By : Deval Dublish, Meerut..Mob. 9690507570